महात्मा गाँधी, जिन्हें ‘राष्ट्रपिता‘ के रूप में जाना जाता है, ने भारत की स्वतंत्रता में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके सत्य और अहिंसा के सिद्धांत ने न केवल भारत को आज़ादी दिलाई बल्कि पूरी दुनिया को भी प्रेरित किया। महात्मा गाँधी के जीवन पर आधारित कविताएं उनकी सादगी, समर्पण और नेतृत्व को दर्शाती हैं। विद्यार्थियों और युवाओं के लिए ये हिन्दी कविताएं गाँधी जी के आदर्शों को समझने और आत्मसात करने का एक प्रेरणास्रोत बन सकती हैं।
ये रहीं 10+ Poem on Mahatma Gandhi in Hindi:
आँखो पर चश्मा, हाथ में लाठी Poem on Mahatma Gandhi
आँखो पर चश्मा, हाथ में लाठी, चेहरे पर मुस्कान,
दिल में था उनके हिन्दुस्तान!
अंग्रेजों पर भारी जिसका वार,
अहिंसा उनका था हथियार!
धर्म-अधर्म, जात-पात को भुलाकर,
वो जीना सिखाते थे,
सादा जीवन और उच्च विचार!
बड़ो को दो सम्मान और छोटो को प्यार,
बापू यही सबको बताते थे!
लोगों के मन में अन्धकार मिटाते,
स्वच्छता पर वे देते थे जोर।
ऐसे महात्मा को हम कभी भूल ना पाएंगे,
उनके विचारों को हम सदा अपनाएंगे।
~ अज्ञात
गाँधीजी Poem in Hindi
संत, महात्मा हो तुम जग के, बापू हो हम दीनों के,
दलितों के अभीष्ट वर-दाता, आश्रय हो गतिहीनों के;
आर्य अजातशत्रुता की उस परंपरा के स्वतः प्रमाण,
सदय बंधु तुम विरोधियों के, निर्दय स्वजन अधीनों के!
~ मैथिलीशरण गुप्त
तकली Poem on Mahatma Gandhi
नाच रही है प्यारी तकली,
नाज़ुक-बदन फूल-सी हल्की।
बहुत नहीं है चौड़ी-चकली,
पोनी से रिश्ता जोड़ा है।
प्रीति नहीं है इसकी नकली,
तार-तार से मिला रही है।
अपना उसकी रग-रग तक ली,
ऐंठा सूत बहुत जब इससे।
व्यर्थ चक्करों से जब थक ली,
पलट पड़ी सीधा करने को।
सड़क सत्य-आग्रह की तक ली,
गांधीजी के हाथों पड़ कर।
इसने अद्भुत चमक-दमक ली,
जब जल गये विदेशी कपड़े।
भारत लज्जा इसने ढँक ली,
नाच रही है प्यारी तकली।
~ गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’
गांधी, भारत मां की शान है Poem on Mahatma Gandhi
देश की संतान है
भारत मां की शान है
सत्य-अहिंसा हमें सिखाता
गांधी उसका नाम है।
गोरों को भगाने वाला
सबको न्याय दिलाने वाला
स्वच्छता का पाठ पढ़ाता
गांधी उसका नाम है।
~ डॉ. प्रमोद सोनवानी ‘पुष्प’
तुम्हें नमन, गांधी Poem on Mahatma Gandhi
चल पड़े जिधर दो डग, मग में
चल पड़े कोटि पग उसी ओर ;
गड़ गई जिधर भी एक दृष्टि
गड़ गए कोटि दृग उसी ओर,
जिसके शिर पर निज हाथ धरा
उसके शिर- रक्षक कोटि हाथ
जिस पर निज मस्तक झुका दिया
झुक गए उसी पर कोटि माथ ;
हे कोटि चरण, हे कोटि बाहु
हे कोटि रूप, हे कोटि नाम !
तुम एक मूर्ति, प्रतिमूर्ति कोटि
हे कोटि मूर्ति, तुमको प्रणाम !
युग बढ़ा तुम्हारी हँसी देख
युग हटा तुम्हारी भृकुटि देख,
तुम अचल मेखला बन भू की
खीचते काल पर अमिट रेख ;
तुम बोल उठे युग बोल उठा
तुम मौन रहे, जग मौन बना,
कुछ कर्म तुम्हारे संचित कर
युगकर्म जगा, युगधर्म तना ;
युग-परिवर्तक, युग-संस्थापक
युग संचालक, हे युगाधार !
युग-निर्माता, युग-मूर्ति तुम्हें
युग युग तक युग का नमस्कार !
दृढ़ चरण, सुदृढ़ करसंपुट से
तुम काल-चक्र की चाल रोक,
नित महाकाल की छाती पर
लिखते करुणा के पुण्य श्लोक !
हे युग-द्रष्टा, हे युग सृष्टा,
पढ़ते कैसा यह मोक्ष मन्त्र ?
इस राजतंत्र के खण्डहर में
उगता अभिनव भारत स्वतन्त्र !
~ सोहनलाल द्विवेदी
बापू जैसा लडूंगा मैं Poem on Mahatma Gandhi
बापू जैसा बनूंगा मैं,
राह सत्य की चलूंगा मैं।
बम से बंदूकों से नहीं,
बापू जैसा लडूंगा मैं।
जब भी कांटे घेरेंगे,
फूल के जैसा खिलूंगा में।
वतन की खातिर जीता हूं,
वतन की खातिर मरूंगा मैं।
आपस में लड़ना कैसा,
मिलकर सब से रहूंगा मैं।
~ राममूरत ‘राही’
कैसा संत हमारा (महात्मा गांधी) Hindi Poem on Mahatma Gandhi
कैसा संत हमारा
गांधी
कैसा संत हमारा!
दुनिया गो थी दुश्मन उसकी दुश्मन था जग सारा ।
आख़िर में जब देखा साधो वह जीता जग हारा ।।
कैसा संत हमारा
गांधी
कैसा संत हमारा!
सच्चाई के नूर से उस के मन में था उजियारा ।
बातिन में शक्ती ही शक्ती ज़ाहर में बेचारा ।।
कैसा संत हमारा
गांधी
कैसा संत हमारा!
बूढ़ा था या नए जनम में बंसी का मतवारा ।
मोहन नाम सही था पर साधो रूप वही था सारा ।।
कैसा संत हमारा
गांधी
कैसा संत हमारा!
भारत के आकाश पे वो है एक चमकता तारा ।
सचमुच ज्ञानी, सचमुच मोहन सचमुच प्यारा-प्यारा ।।
कैसा संत हमारा
गांधी
कैसा संत हमारा!
~ साग़र निज़ामी
बापू के प्रति Hindi Poem on Mahatma Gandhi
तुम मांस हीन, तुम रक्तहीन, हे अस्थिशेष! तुम अस्थिहीन,
तुम शुद्ध बुद्ध आत्मा केवल, हे चिर पुराण, हे चिर नवीन,
तुम पूर्ण इकाई जीवन की, जिसमें असार भव शून्य लीन,
आधार अमर! होगी जिस पर भावी की संस्कृति समासीन।
तुम मांस, तुम्ही हो रक्त-अस्थि, निर्मित जिनसे नव युग का तन,
तुम धन्य! तुम्हारा नि:स्व त्याग हो विश्व भोग का वर साधन;
इस भस्म-काम तन की रज से जग पूर्णकाम, नव जग-जीवन,
बीनेगा सत्य अहिंसा के ताने-बानों से मानवपन।
सदियों का दैन्य तमिस्र तूम, धुन तुमने, कात प्रकाश सूत,
हे नग्न! नग्न पशुता ढँक दी बुन नव संस्कृत मनुजत्व पूत,
जग पीड़ित छूतों से प्रभूत, छू अमृत स्पर्श से, हे अछूत,
तुमने पावन कर मुक्त किए मृत संस्कृतियों के विकृत भूत।
सुख भोग खोजने आते सब, आए तुम करने सत्य खोज,
जग की मिट्टी के पुतले जन, तुम आत्मा के मन के मनोज,
जड़ता, हिंसा, स्पर्धा में भर चेतना, अहिंसा, नम्र ओज,
पशुता का पंकज बना दिया तुमने मानवता का सरोज।
पशुबल की कारा से जग को दिखलाई आत्मा की विमुक्ति,
विद्वेष, घृणा से लड़ने को सिखलाई दुर्जय प्रेम युक्ति,
वर श्रम-प्रसूति से की कृतार्थ तुमने विचार-परिणीत उक्ति;
विश्वानुरक्त हे अनासक्त सर्वस्व त्याग को बना मुक्ति।
सहयोय सिखा शासित जन को शासन का दुर्वह हरा भार,
होकर निरस्त्र, सत्याग्रह से रोका मिथ्या का बल प्रहार,
बहु भेद विग्रहों में खोई ली जीर्ण जाति क्षय से उबार
तुमने प्रकाश को कह प्रकाश, औ अँधकार को अँधकार।
उर के चरखे में कात सूक्ष्म युग-युग का विषय जनित विषाद,
गुंजित कर दिया गगन जग का भर तुमने आत्मा का निनाद!
रंग-रंग खद्दर के सत्रों में नव जीवन आशा, स्पृहाह्लाद
मानवी कला के सूत्रधार, हर लिया यंत्र कौशल प्रवाद।
जड़वाद जर्जरित जग में तुम अवतरित हुए आत्मा महान
यंत्राभिभूत युग में करने मानव जीवन का परित्राण,
बहु छाया-बिंबों में खोया, पाने व्यक्तित्व प्रकाशवान
फिर रक्तमांस प्रतिमाओं में फूँकने सत्य-से अमर प्राण।
संसार छोड़ कर ग्रहण किया नर जीवन का परमार्थ सार
अपवाद बने, मानवता के ध्रुव नियमों का करने प्रचार,
हो सार्वजनिकता जयी, अजित! तुमने निजत्व निज दिया हार,
लौकिकता को जीवित रखने तुम हुए अलौकिक, हे उदार।
~ सुमित्रानंदन पंत
गाँधी, तूफ़ान के पिता Hindi Poem on Mahatma Gandhi
देश में जिधर भी जाता हूँ,
उधर ही एक आह्वान सुनता हूँ।
‘जडता को तोडने के लिए भूकम्प लाओ।
घुप्प अँधेरे में फिर अपनी मशाल जलाओ।
पूरे पहाड हथेली पर उठाकर पवनकुमार के समान तरजो।
कोई तूफ़ान उठाने को कवि, गरजो, गरजो, गरजो!’
सोचता हूँ, मैं कब गरजा था?
जिसे लोग मेरा गर्जन समझते हैं,
वह असल में गाँधी का था,
उस गाँधी का था, जिसने हमें जन्म दिया था।
तब भी हमने गाँधी के
तूफ़ान को ही देखा, गाँधी को नहीं।
वे तूफ़ान और गर्जन के पीछे बसते थे।
सच तो यह है कि अपनी लीला में,
तूफ़ान और गर्जन को शामिल होते देख
वे हँसते थे।
तूफ़ान मोटी नहीं, महीन आवाज़ से उठता है।
वह आवाज़ जो मोम के दीप के समान,
एकान्त में जलती है और बाज नहीं,
कबूतर के चाल से चलती है।
गाँधी तूफ़ान के पिता और बाजों के भी बाज थे,
क्योंकि वे नीरवता की आवाज़ थे।
~रामधारी सिंह “दिनकर”
एक दिन इतिहास पूछेगा Hindi Poem on Mahatma Gandhi
एक दिन इतिहास पूछेगा
कि तुमने जन्म गाँधी को दिया था,
जिस समय हिंसा,
कुटिल विज्ञान बल से हो समंवित,
धर्म, संस्कृति, सभ्यता पर डाल पर्दा,
विश्व के संहार का षड्यंत्र रचने में लगी थी,
तुम कहाँ थे? और तुमने क्या किया था!
एक दिन इतिहास पूछेगा
कि तुमने जन्म गाँधी को दिया था,
जिस समय अन्याय ने पशु-बल सरा पी-
उग्र, उद्धत, दंभ-उन्मद-
एक निर्बल, निरपराध, निरीह को
था कुचल डाला
तुम कहाँ थे? और तुमने क्या किया था?
एक दिन इतिहास पूछेगा
कि तुमने जन्म गाँधी को दिया था,
जिस समय अधिकार, शोषण, स्वार्थ
हो निर्लज्ज, हो नि:शंक, हो निर्द्वन्द्व
सद्य: जगे, संभले राष्ट्र में घुन-से लगे
जर्जर उसे करते रहे थे,
तुम कहाँ थे? और तुमने क्या किया था?
क्यों कि गाँधी व्यर्थ
यदि मिलती न हिंसा को चुनौती,
क्यों कि गाँधी व्यर्थ
यदि अन्याय की ही जीत होती,
क्यों कि गाँधी व्यर्थ
जाति स्वतंत्र होकर
यदि न अपने पाप धोती !
~ हरिवंशराय बच्चन
दुख से दूर पहुंचकर गांधी Hindi Poem on Mahatma Gandhi
दुख से दूर पहुंचकर गांधी।
सुख से मौन खड़े हो
मरते-खपते इंसानों के
इस भारत में तुम्हीं बड़े हो
जीकर जीवन को अब जीना
नहीं सुलभ है हमको
मरकर जीवन को फिर जीना
सहज सुलभ है तुमको
~ केदारनाथ अग्रवाल
गाँधी जी कहते हे राम! Poem on Mahatma Gandhi in Hindi
राम नाम है सुख का धाम।
राम सँवारे बिगड़े काम।।
असुर विनाशक, जगत नियन्ता,
मर्यादापालक अभियन्ता,
आराधक तुलसी के राम।
राम सँवारे बिगड़े काम।।
मात-पिता के थे अनुगामी,,
चौदह वर्ष रहे वनगामी,
किया भूमितल पर विश्राम।
राम सँवारे बिगड़े काम।।
कपटी रावण मार दिया था
लंका का उद्धार किया था,
राम नाम में है आराम।
राम सँवारे बिगड़े काम।।
जब भी अन्त समय आता है,
मुख पर राम नाम आता है,
गांधी जी कहते हे राम!
राम सँवारे बिगड़े काम।।
~ रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
अब भारत नया बनाएँगे, हम वंशज गाँधी के
अब भारत नया बनाएँगे, हम वंशज गाँधी के
पुस्तक-अख़बार जलाएँगे, हम वंशज गाँधी के
जनता की पीर हुई बासी, क्या मिलना गाकर भी
बस वंशावलियां गाएँगे, हम वंशज गाँधी के
बापू की बेटी बिकी अगर, इसमें हम क्या कर लें
कुछ नारे नए सुझाएँगे, हम वंशज गाँधी के
खाली हाथों से शंका है, अपराध न हो जाए
इन हाथों को कटवाएँगे, हम वंशज गाँधी के
रथ यात्रा ऊँची कुर्सी की, जब-जब भी निकलेगी
पैरों में बिछते जाएँगे, हम वंशज गाँधी के
~ ऋषभ देव शर्मा
गाँधी – नये सुभाषित – दिनकर की गांधी पर कविता खंड
छिपा दिया है राजनीति ने बापू! तुमको,
लोग समझते यही कि तुम चरखा-तकली हो।
नहीं जानते वे, विकास की पीड़ाओं से
वसुधा ने हो विकल तुम्हें उत्पन्न किया था।
कौन कहता है कि बापू शत्रु थे विज्ञान के?
वे मनुज से मात्र इतनी बात कहते थे,
रेल, मोटर या कि पुष्पक-यान, चाहे जो रचो, पर,
सोच लो, आखिर तुम्हें जाना कहाँ है।
सत्य की संपूर्णता देती न दिखलाई किसी को,
हम जिसे हैं देखते, वह सत्य का, बस, एक पहलू है।
सत्य का प्रेमी भला तब किस भरोसे पर कहे यह
मैं सही हूँ और सब जन झूठ हैं?
चलने दो मन में अपार शंकाओं को तुम,
निज मत का कर पक्षपात उनको मत काटो।
क्योंकि कौन हैं सत्य, कौन झूठे विचार हैं,
अब तक इसका भेद न कोई जान सका है।
सत्य है सापेक्ष्य, कोई भी नहीं यह जानता है,
सत्य का निर्णीत अन्तिम रूप क्या है? इसलिए,
आदमी जब सत्य के पथ पर कदम धरता,
वह उसी दिन से दुराग्रह छोड़ देता है।
हम नहीं मारें, न दें गाली किसी को,
मत कभी समझो कि इतना ही अलम है।
बुद्धि की हिंसा, कलुष है, क्रूरता है कृत्य वह भी
जब कभी हो क्रुद्ध चिंतन के धरातल पर
हम विपक्षी के मतों पर वार करते हैं।
शान्ति-सिद्धि का तेज तुम्हारे तन में है,
खड्ग न बाँहों को न जीभ को व्याल करो।
इससे भी ऊपर रहस्य कुछ मन में है,
चिंतन करते समय न दृग को लाल करो।
तुम बहस में लाल कर लेते दृगों को,
शान्ति की यह साधना निश्छल नहीं है।
शान्ति को वे खाक देंगे जन्म जिनकी
जीभ संकोची, हृदय शीतल नहीं है।
काम हैं जितने जरूरी, सब प्रमुख हैं,
तुच्छ इसको औ’ उसे क्यों श्रेष्ठ कहते हो?
मैं समझता हूँ कि रण स्वाधीनता का
और आलू छीलना, दोनों बराबर हैं।
लो शोणित, कुछ नहीं अगर यह आँसू और पसीना,
सपने ही जब धधक उठें तब क्या धरती पर जीना?
सुखी रहो, दे सका नहीं मैं जो कुछ रो-समझा कर,
मिले तुम्हें वह कभी भाइयों-बहनों! मुझे गँवा कर।
जो कुछ था देय, दिया तुमने, सब लेकर भी
हम हाथ पसारे हुए खड़े हैं आशा में;
लेकिन, छींटों के आगे जीभ नहीं खुलती,
बेबसी बोलती है आँसू की भाषा में।
वसुधा को सागर से निकाल बाहर लाये,
किरणों का बन्धन काट उन्हें उन्मुक्त किया,
आँसुओं-पसीनों से न आग जब बुझ पायी,
बापू! तुमने आखिर को अपना रक्त दिया।
बापू! तुमने होम दिया जिसके निमित्त अपने को,
अर्पित सारी भक्ति हमारी उस पवित्र सपने को।
क्षमा, शान्ति, निर्भीक प्रेम को शतशः प्यार हमारा,
उगा गये तुम बीज, सींचने का अधिकार हमारा।
निखिल विश्व के शान्ति-यज्ञ में निर्भय हमीं लगेंगे,
आयेगा आकाश हाथ में, सारी रात जगेंगे।
बड़े-बड़े जो वृक्ष तुम्हारे उपवन में थे,
बापू! अब वे उतने बड़े नहीं लगते हैं;
सभी ठूँठ हो गये और कुछ ऐसे भी हैं
जो अपनी स्थितियों में खड़े नहीं लगते हैं।
कुर्ता-टोपी फेंक कमर में भले बाँध लो
पाँच हाथ की धोती घुटनों से ऊपर तक,
अथवा गाँधी बनने के आकुल प्रयास में
आगे के दो दाँत डाक्टर से तुड़वा लो।
पर, इतने से मूर्तिमान गाँधीत्व न होता,
यह तो गाँधी का विरूपतम व्यंग्य-चित्र है।
गाँधी तब तक नहीं, प्राण में बहनेवाली
वायु न जबतक गंधमुक्त, सबसे अलिप्त है।
गाँधी तब तक नहीं, तुम्हारा शोणित जब तक
नहीं शुद्ध गैरेय, सभी के सदृश लाल है।
स्थान में संघर्ष हो तो क्षुद्रता भी जीतती है,
पर, समय के युद्ध में वह हार जाती है।
जीत ले दिक में “जिना”, पर, अन्त में बापू! तुम्हारी
जीत होगी काल के चौड़े अखाड़े में।
एक देश में बाँध संकुचित करो न इसको,
गाँधी का कर्तव्य-क्षेत्र दिक नहीं, काल है।
गाँधी हैं कल्पना जगत के अगले युग की,
गाँधी मानवता का अगला उद्विकास हैं।
~ रामधारी सिंह “दिनकर”
आशा है कि महात्मा गाँधी पर कविताएं (Poems on Mahatma Gandhi in Hindi) पढ़ने के बाद आपको उनके जीवन, आदर्शों और संघर्ष के बारे में गहराई से जानने का अवसर मिला होगा। ये कविताएं न केवल गाँधी जी के महान विचारों को उजागर करती हैं, बल्कि आपके भीतर सत्य, अहिंसा और सादगी के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी जगाएंगी। यदि यह लेख आपको रोचक और जानकारीपूर्ण लगा हो, तो इसी प्रकार की अन्य प्रेरणादायक कविताएं पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट पर जुड़े रहें।