लिपि – लिपि की परिभाषा, अर्थ, भेद और उदाहरण

lipi

लिपि (Script) : मौखिक भाषा या उच्चारित भाषा को स्थायी रूप देने के लिए भाषा के लिखित रूप का विकास हुआ। प्रत्येक ध्वनि के लिए लिखित चिह्न या वर्ण बनाए गए, और वर्णों की इसी व्यवस्था को ‘लिपि‘ कहा जाता है।

वास्तव में, लिपि ध्वनियों को लिखकर प्रस्तुत करने का एक ढंग है। यह हमें भाषा को स्थायी रूप देने, भविष्य की पीढ़ी तक ज्ञान और विचारों को पहुंचाने, और विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों के बीच संवाद स्थापित करने में मदद करता है।

लिपि का विकास मानव सभ्यता के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है। इसने ज्ञान के प्रसार, शिक्षा के विकास, और साहित्य और कला के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

आज दुनिया में विभिन्न प्रकार की लिपियां मौजूद हैं, जिनमें से प्रत्येक की अपनी विशेषताएं और इतिहास है। लिपि भाषा का एक अभिन्न अंग है, और यह मानव संचार और संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

लिपि की परिभाषा

भाषा को लिखने के लिए, चिन्हों के व्यवस्थित रूप को ‘लिपि‘ कहते हैं। देवनागरी, रोमन, ब्राह्मी, गुरुमुखी और फारसी आदि दुनियाँ की कुछ प्रमुख लिपियाँ हैं।

प्रत्येक भाषा की अपनी लिपि होती है। विश्व की प्रचलित सभी भाषाओं की भिन्न-भिन्न लिपियाँ हैं। कुछ प्रमुख भाषाओं की लिपियाँ इस प्रकार हैं। लिपि के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  • देवनागरी लिपि (हिंदी, संस्कृत, मराठी, नेपाली)
  • लैटिन लिपि (अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पेनिश)
  • अरबी लिपि (अरबी, उर्दू, फारसी)
  • चीनी लिपि (चीनी भाषा)
  • जापानी लिपि (जापानी भाषा)

Lipi ke Udaharan

लिपियों के उदाहरण

आगे विश्व की कुछ भाषाएँ और उनकी लिपियों के नाम एवं उदाहरण दिए जा रहे हैं-

# भाषा लिपि उदाहरण
1. हिन्दी देवनागरी बच्चे खेल रहे हैं।
2. संस्कृत देवनागरी बालकाः क्रीड़न्ति।
3. अंग्रेजी रोमन The Boys are Playing
4. फ्रेंच रोमन Les garçons jouent.
5. पोलिश रोमन Chłopcy grają.
6. जर्मन रोमन Die Jungs spielen.
7. स्पेनिश रोमन Los chicos están jugando.
8. मराठी देवनागरी मुले खेळत आहेत।
9. नेपाली देवनागरी केटाहरू खेलिरहेका छन्।
10. पंजाबी गुरमुखी ਮੁੰਡੇ ਖੇਡ ਰਹੇ ਹਨ।
11. उर्दू फारसी لڑکے کھیل رہے ہیں۔
12. अरबी फारसी الأولاد يلعبون.
13. रूसी रूसी Мальчики играют.
14. बुल्गेरियन रूसी Момчетата играят.

यों तो हर भाषा की अपनी लिपि होती है, किन्तु कोई भी भाषा किसी भी लिपि में लिखी जा सकती है। हम हिन्दी को रोमन लिपि में और अंग्रेजी को देवनागरी में लिख सकते हैं। जैसे-

Kai Bhashaye Ek hi Lipi Me

किसी एक भाषा को उसकी सामान्य लिपि से दूसरी लिपि में लिखना, इस तरह कि वास्तविक अनुवाद न हुआ हो, इसे लिप्यन्तरण कहते हैं।

लिप्यन्तरण किसे कहते हैं? लिप्यन्तरण एक प्रक्रिया है जिसमें किसी भाषा के शब्दों को उसी भाषा की अलग-अलग लिपियों में लिखा जाता है, बिना कि शब्दों का अर्थ या भाव किसी अन्य भाषा में बदले जाएं। यह तकनीक विभिन्न भाषाओं और उनकी लिपियों के बीच अंतराल को कम करने में मदद कर सकती है, जिससे विभिन्न सांस्कृतिक समृद्धियों और भाषाओं के बीच संचार को सुगम बनाया जा सकता है।

इस प्रक्रिया के द्वारा, एक व्यक्ति एक भाषा के शब्दों को उसी भाषा की अन्य लिपि में लिख सकता है, जो कि अक्षरों और वर्णमालाओं के रूप में व्यक्त होती है। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण होता है जो किसी विशेष भाषा को सीख रहे हों और उसकी लिपि को समझने में परेशानी महसूस करते हैं। इस प्रक्रिया के द्वारा, वे उस भाषा के शब्दों को अपनी सामान्य लिपि में लिख सकते हैं जिससे उनकी समझ में आसानी होती है।

लिपि एवं भाषा में अंतर

लिपि और भाषा दोनों अलग-अलग चीज़ें होती हैं। भाषा वह होती है जो बोली जाती है, लिखने को तो उसे किसी भी लिपि में लिखा जा सकता है। आगे लिपि और भाषा में प्रमुख अंतर दिया गया है-

# भाषा लिपि
1. प्रत्येक भाषा की अपनी ध्वनियाँ होती है। सामान्यतः एक लिपि किसी भी भाषा में लिखी जा सकती है।
2. भाषा सूक्ष्म होती है। लिपि स्थूल होती है।
3. भाषा में अपेक्षाकृत अस्थायित्व होता है, क्योंकि भाषा उच्चरित होते ही गायब हो जाती है। लिपि में अपेक्षाकृत स्थायित्व होता है, क्योंकि किसी भी लिपि को लिखकर ही व्यक्त किया जा सकता है।
4. भाषा ध्वन्यात्मक होती है। लिपि दृश्यात्मक होती है।
5. भाषा तुरंत प्रभावकारी होती है। लिपि थोड़ी विलंब से प्रभावकारी होती है।
6. भाषा ध्वनि संकेतों की व्यवस्था है। लिपि वर्ण संकेतों की व्यवस्था है।
7. भाषा ही संगीत का माध्यम है। परंतु लिपि नहीं।

lipi ke prakar

लिपि के भेद

यद्यपि संसार भर में प्रयोग हो रही भाषाओं की संख्या अब भी हजारों में है, तथापि इस समय इन भाषाओं को लिखने के लिए केवल लगभग दो दर्जन लिपियों का ही प्रयोग हो रहा है। और भी गहराई में जाने पर पता चलता है कि संसार में केवल तीन प्रकार की ही मूल लिपियाँ (या लिपि परिवार) हैं –

  1. चित्रलिपि – चीन, जापान एवं कोरिया में प्रयुक्त लिपियाँ,
  2. ब्राह्मी से व्युत्पन्न लिपियाँ – देवनागरी तथा दक्षिण एशिया एवं दक्षिण-पूर्व एशिया में प्रयुक्त लिपियाँ;
  3. फोनेशियन से व्युत्पन्न लिपियाँ – सम्प्रति यूरोप, मध्य एशिया एवं उत्तरी अफ्रीका में प्रयुक्त लिपियाँ।

ये तीनों लिपियाँ तीन अलग-अलग क्षेत्रों में विकसित हुईं, जो पर्वतों एवं मरुस्थलों द्वारा एक-दूसरे से अलग-अलग स्थित हैं।

अल्फाबेटिक लिपि

इसमें स्वर अपने पूरे अक्षर का रूप लिये व्यंजन के बाद आते हैं। अर्थात ऐसी लिपि जिसमें वर्णों को व्याकरणिक क्रम में व्यवस्थित किया गया हो, उसे अल्फाबेटिक लिपि कहते हैं। जैसे-

  • रोमन लिपि/ लैटिन लिपि– अंग्रेज़ी, फ्रांसिसी, जर्मन, कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग और पश्चिमी और मध्य यूरोप की सारी भाषाएँ।
  • यूनानी लिपि– यूनानी भाषा, कुछ गणितीय चिन्ह।
  • अरबी लिपि– अरबी, उर्दू, फ़ारसी, कश्मीरी।
  • इब्रानी लिपि– इब्रानी।
  • सीरिलिक लिपि– रूसी, सवियत संघ की अधिकांश भाषाएँ।

अल्फासिलैबिक लिपि

अल्फासिलैबिक लिपि शब्द को “फोनेटिक लिपि” या “ध्वनिक लिपि” के रूप में जाना जाता है। यह लिपि उन भाषाओं के लिए उपयुक्त होती है जो किसी भाषा की ध्वनि को क्रमिक ढंग से लिखा या प्रकट किया जाता है।

उदाहरण के लिए, अंग्रेजी के लिए “इंटरनेशनल फोनेटिक एल्फाबेट” (IPA) एक प्रसिद्ध अल्फासिलैबिक लिपि है जो अंग्रेजी के ध्वनिक संरचनाओं को लिखने के लिए उपयोग किया जाता है। इसमें विभिन्न ध्वनियों को व्यक्त करने के लिए विशेष वर्णों का उपयोग किया जाता है।

अल्फासिलैबिक लिपि की हर एक इकाई में एक या अधिक व्यंजन होता है और उस पर स्वर की मात्रा का चिह्न लगाया जाता है। अगर इकाई में व्यंजन नहीं होता तो स्वर का पूरा चिह्न लिखा जाता है।

  • शारदा लिपि – कश्मीरी भाषा, लद्दाखी भाषा, हिमाचली/पहाड़ी/डोंगरी भाषा, पंजाबी/गुरुमुखी भाषा,तिब्बती भाषा, उत्तर – पश्चिमी भारतीय भाषा की लिपि।
  • देवनागरी लिपि– हिन्दी भाषा, काठमाण्डू भाषा (नेपाली भाषा), भोजपुरी भाषा, बंगाली भाषा, उड़िया भाषा (कलिंग भाषा), असमिया भाषा, राजस्थानी भाषा, गुजराती भाषा, मारवाड़ी भाषा, सिन्धी भाषा, गढ़वाली भाषा, छत्तीसगढ़ी भाषा, अवधी, मराठी, कोंकणी।
  • मध्य भारतीय लिपि– तेलुगू भाषा।
  • द्रविड़ लिपि– तमिल भाषा, कन्नड़ भाषा, मलयालम भाषा, कोलंबो (श्रीलंकाई) भाषा।

चित्र लिपि

जो लिपि चित्रों या प्रतीकों का उपयोग करके ध्वनियों को व्यक्त करती है, उसे चित्र लिपि कहते हैं। ये सरलीकृत चित्र होते हैं।

  • प्राचीन मिस्री लिपि– प्राचीन मिस्री
  • चीनी लिपि– चीनी (मंदारिन, कैण्टोनी)
  • कांजी लिपि– जापानी

दक्षिण भारतीय भाषाओं व बौद्ध धर्म के प्रचारकों द्वारा पूर्व में भाषा को क्रमबद्ध एवम् व्यवस्थित किया गया जिससे चित्र लिपि में भी मात्राओं जैसी प्रवृत्ति विकसित हो गई।

  • मंगोलियन लिपि जापानी भाषा,
  • कोरियाई भाषा,
  • मैण्डरिन भाषा,
  • चीनी भाषा,
  • तुर्कमेनिस्तान भाषा,
  • दक्षिण पूर्वी सोवियत गणराज्य के देशों की भाषाएँ

लिपि (लेखन कला) का उद्भव

भारतीय दृष्टिकोण सदैव आध्यात्मिक रहा है। कोई भी भौतिक सृजन, चाहे वह थोड़ी सी विचित्रता से भरी हो और नवीनता को शामिल करे, कोई भी दैवीय सृजन माना जाता है। इसी कारण है कि मूल शास्त्र, वेद, को अपौरुषेय कहा जाता है, जाति व्यवस्था की उत्पत्ति ब्रह्मा से जुड़ी होती है, और भारतीय लिपि, ब्राह्मी, को ब्रह्मा द्वारा बनाया गया माना जाता है। भारतीय दृष्टिकोण भारतीय साहित्य और कला के उत्पत्ति में भी प्रकट होता है। ईसा पूर्व 580 के लगभग एक वस्त्र-खंड ब्रह्मा की छवि को दिखाता है, जो एक समूह के ताड़ पत्तियों को पकड़ रहा है। यह स्पष्ट प्राचीन प्रमाण है कि लेखन और कला का संबंध ब्रह्मा से ही है। नारद स्मृति में लिपि के उत्पत्ति के संबंध में एक श्लोक उपलब्ध है-

ना करिष्यति यदि ब्रह्मा लिखितं चक्षुरुत्तमम्‌।
तदेयमस्य लोकस्य नाभविष्यत्‌ शुभाङ्गतिः॥

अर्थ– यदि ब्रह्मा ‘लेखन’ के रूप में उत्तम नेत्र का विकास नहीं करते तो तीनों लोकों को शुभ गति नहीं प्राप्त होती।

वृहस्पति स्मृति में भी इसी तरह लिखा गया है कि पहले सृष्टि-कर्त्ता ने अक्षरों को पत्तों पर अंकित करने का विधान किया था, क्योंकि छः मास में किसी भी वस्तु के संबंध में स्मृति भ्रमित हो जाती थी। बौद्ध ग्रंथ ललितविस्तर सूत्र में 64 लिपियों का उल्लेख किया गया है। उनमें सबसे पहले ब्राह्मी लिपि का उल्लेख है। जैन ग्रंथों में एक प्रसंग आता है कि ऋषभनाथ को एक लड़की थी, जिसका नाम बम्पी था। उसको पढ़ाने के लिए उन्होंने एक लिपि को विकसित किया। इसी से बम्पी को पढ़ाने के लिए निकाली गई लिपि को ब्राह्मी कहा गया। यहीं समवायंणसूत्र एवं पणवणासूत्र में 18 लिपियों का वर्णन मिलता है, जिनमें प्रथम नाम ब्राह्मी का है।

विदेशी विचारधारा

प्रायः पश्चिमी विचारकों ने इस सम्बन्ध में एक नवीन दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है, जिससे इस क्षेत्र में अनेक समस्याएँ उठ खड़ी हुई हैं। उन्होंने सामान्यतया यह व्यक्त किया है कि भारतीयों ने 600 ई० पू० के पहले लेखन-कला में कोई गति नहीं प्राप्त की थी। इसके पूर्व भारतीय, लेखन-कला से पूर्णतया अनभिज्ञ थे। इस मत के संस्थापक तथा प्रतिस्थापक हैं- ब्यूलर, डेविड डिरिंजर आदि। इस समस्या का अध्ययन सबसे पहले डॉ० मैक्समूलर महोदय ने किया। पाणिनीय शिक्षा के निम्नलिखित श्लोक को आधार बनाकर डॉ० डेबिड डिरिंजर कहते हैं कि ब्राह्मी भारत की आदि लिपि है और इसकी तिथि किसी उपलब्ध तर्क के आधार पर पाँचवीं शताब्दी ई० पू० के पहले निर्धारित नहीं की जा सकती –

गीती शीघ्री शिरःकम्पी तथा लिखित-पाठकः।
अनर्थज्ञोऽल्पकण्ठश्च षडेते पाठकाधमाः॥

अर्थ– गाकर पढ़ना, शीघ्रता से पढ़ना, पढ़ते हुए सिर हिलाना, लिखा हुआ पढ़ना, अर्थ न जानकर पढ़ना, और धीमा आवाज होना, ये छे पाठक के दोष हैं।

इस श्लोक में पाठक के छः दोषों का विवेचन किया गया है, पर इसके साथ कहीं भी लेखक का वर्णन नहीं मिलता। इसलिए इनका विचार है कि लेखनक्रिया का बाद में विकास हुआ होगा। पर विदेशी विचारकों का यह मत पूर्णतया भारतीय दृष्टिकोण से अमान्य है।

इसलिए उपर्युक्त मतों का खण्डन बड़े ही समवेत स्वर में भारतीय विचारक डॉ० राजबली पाण्डेय, डॉ० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा तथा डॉ० ए० सी० दास आदि ने किया है। जहाँ डिरिंजर जहाँ केवल पाठकों की स्थिति का अनुमान करते हैं वहीं ‘लिखित’ शब्द इस बात का द्योतक है कि पाठक लिखा हुआ पढ़ता था अथवा बोल-बोल कर लिखता था। डॉ० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का यह तर्क बड़ा सटीक प्रतीत होता है। यहाँ इस श्लोक में गीती, शीघ्री, शिरः कम्पी, अनर्थज्ञ एवं अल्पकण्ठ आदि पाठकों के छः दोष बताये गये हैं। पाठक का अभिप्राय ‘पढ़ने वाले’ से है। जब तक लिखने का प्रसंग नहीं होगा तब तक पढ़ने वाले का प्रसंग आना अस्वाभाविक है। अतएव निश्चित ही उस समय तक लेखन-कला का विकास हो गया होगा।

पढ़िए – देवनागरी लिपि की सम्पूर्ण जानकारी

ब्रेल लिपि

ब्रेल लिपि एक ऐसी लिपि है जिसका उपयोग दृष्टिबाधित व्यक्तियों को पढ़ाने के लिए किया जाता है। इस लिपि में, नेत्रहीन व्यक्ति स्पर्श के माध्यम से पढ़ाई और लिखाई करते हैं। इस लिपि के माध्यम से, पत्र पर उभरे हुए बिंदुओं के स्पर्श से दृष्टिबाधित व्यक्तियों को शिक्षा दी जाती है। इसके अतिरिक्त, ब्रेल लिपि का उपयोग करके पुस्तकों को भी लिखा जा सकता है। जिस तरह टाइपराइटर के माध्यम से पुस्तकें लिखी जाती हैं, ठीक उसी प्रकार, ब्रेल लिपि में रचना के लिए ब्रेलराइटर का उपयोग किया जाता है।

ब्रेल लिपि के संस्थापक लुइस ब्रेल 4 जनवरी 1809 को फ्रांस के कुप्रे में जन्मे थे। उनकी बचपन में हुई एक दुर्घटना के कारण उनकी आंखों की रौशनी चली गई थी। एक चाकू उनकी एक आंख में लग गया था और सही समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण उनकी दूसरी आंख भी धीरे-धीरे खराब हो गई। इसके बाद, लुइस ब्रेल ने अनेक समस्याओं का सामना किया, लेकिन कभी हार नहीं मानी। उन्होंने अपने जैसे लोगों की समस्याओं को समझते हुए केवल 15 साल की आयु में ब्रेल लिपि का आविष्कार किया, जो आज दृष्टिहीन लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है।

6 नवंबर 2018 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव को मंजूरी दी, जिसमें हर साल 4 जनवरी को ब्रेल लिपि के जनक लुई ब्रेल के जन्मदिन को ‘विश्व ब्रेल दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। इसके पश्चात, 4 जनवरी 2019 को पहली बार विश्व ब्रेल दिवस का आयोजन किया गया। संयुक्त राष्ट्र के विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 39 मिलियन लोग नेत्रहीन हैं, और लगभग 253 मिलियन लोग किसी तरह की आंखों से संबंधित समस्याओं से जूझ रहे हैं। ब्रेल लिपि इन लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है जो उन्हें सहायता प्रदान करती है।

Braille Lipi

वास्तव में, हर साल 4 जनवरी को दुनियाभर में ब्रेल दिवस (World Braille Day) के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से नेत्रहीन लोगों के लिए महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इसी दिन लुइस ब्रेल का जन्म हुआ था, जो नेत्रहीनों के जीवन में रोशनी की राह दिखाने वाले थे। लुइस ब्रेल ने ब्रेल लिपि को जन्म दिया, जिसका उपयोग आज दृष्टिहीन लोग भी कर रहे हैं और अपने जीवन में आगे बढ़ रहे हैं।

देवनागरी से अन्य लिपियों में रूपान्तरण

आजकल, देवनागरी से अन्य लिपियों में रूपांतरण एक आसान काम हो गया है। कई तरीके और उपकरण उपलब्ध हैं जो आपको विभिन्न भाषाओं में लिखने में मदद कर सकते हैं।

आईट्रान्स: आईट्रान्स, देवनागरी को लैटिन (रोमन) लिपि में बदलने का एक आधुनिक और अक्षत (lossless) तरीका है। यह ऑनलाइन इंटरफ़ेस (Online Interface to iTrans) के माध्यम से उपलब्ध है।

कंप्यूटर प्रोग्राम: कई कंप्यूटर प्रोग्राम उपलब्ध हैं जिनकी सहायता से आप देवनागरी में लिखे पाठ को किसी भी भारतीय लिपि में बदल सकते हैं। कुछ प्रोग्राम देवनागरी को लैटिन, अरबी, चीनी, क्रिलिक, आईपीए (IPA) आदि लिपियों में भी बदल सकते हैं।

यूनिकोड: यूनिकोड के आगमन के बाद, देवनागरी का रोमनीकरण (romanization) धीरे-धीरे अनावश्यक होता जा रहा है। क्योंकि धीरे-धीरे कम्प्यूटर पर देवनागरी (और अन्य लिपियों) को भी पूर्ण समर्थन मिलने लगा है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कोई भी रूपांतरण प्रणाली 100% सटीक नहीं होती है। कुछ मामलों में, आपको रूपांतरण के बाद पाठ को थोड़ा संपादित करने की आवश्यकता हो सकती है।

भारत की 22 भाषाएं और उनकी लिपि

भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाओं की संख्या 22 है:

भाषा का नाम लिपि का नाम
हिंदी देवनागिरी
सिंधी देवनागिरी/फ़ारसी
पंजाबी गुरुमुखी
कश्मीरी फ़ारसी
गुजराती गुजराती
मराठी देवनागिरी
उड़िया उड़िया
बांग्ला बांग्ला
असमिया असमिया
उर्दू फ़ारसी
तमिल ब्राह्मी
तेलुगु ब्राह्मी
मलयालम ब्राह्मी
कन्नड़ कन्नड़/ब्राह्मी
कोंकणी देवनागिरी
संस्कृत देवनागिरी
नेपाली देवनागिरी
संथाली देवनागिरी
डोंगरी देवनागिरी
मणिपुरी मणिपुरी
वोडों देवनागिरी
मैथिली देवनागिरी/मैथिली

FAQs

1. लिपि किसे कहते हैं? लिपि की परिभाषा उदाहरण सहित लिखो।
किसी भी भाषा को लिखने के ढंग या लिखावट को लिपि कहते हैं। उदाहरण के लिए- देवनागरी लिपि, रोमन लिपि, ब्राह्मी लिपि आदि।

2. हिन्दी भाषा की कौन सी लिपि होती है?
हिन्दी भाषा की लिपि का नाम “देवनागरी लिपि” है।

3. अंधों के लिए कौन सी लिपि का प्रयोग होता है?
अन्धो के लिए ब्रेल लिपि का प्रयोग होता है।

4. ब्रेल लिपि के जनक कौन हैं?
ब्रेल लिपि के जनक “लुइस ब्रेल” थे, जिन्होंने 1824 में ब्रेल लिपि का अविष्कार किया था, जो स्वयं भी जन्म से अंधे थे।

5. विश्व की सबसे प्राचीन लिपि का क्या नाम हैं?
विश्व की सबसे प्राचीन लिपि का नाम “ब्राह्मी लिपि” है।

6. लिपि और भाषा में क्या अंतर है?
विचारों के मौखिक या उच्चारित रूप को भाषा जबकि उन्हीं विचारों को लिखित रूप में व्यक्त करने की व्यवस्था को लिपि कहते हैं।

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