सम्प्रेषण के प्रकार (Types of Communication)
सम्प्रेषण की उपयोगिता को देखते हुए सम्प्रेषण को दो भागों में बाँटा गया है-
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शैक्षिक सम्प्रेषण (Educational communication)।
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लोक सम्प्रेषण (Public communication)।
व्यक्तिगत एवं सामूहिक सम्प्रेषण
(Kinds of Communication : Individual and
Collective Communication)
1. शैक्षिक सम्प्रेषण
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यह सम्प्रेषण शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये किया गया सम्प्रेषण है।
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सन्देश देने वाला व्यक्ति शिक्षक तथा सन्देश ग्रहण करने वाला व्यक्ति छात्र होता है।
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सन्देश की विषयवस्तु पाठ्यक्रम से या पाठ्य सहगामी क्रियाओं से सम्बन्धित होती है।
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छात्रों को समझाने के लिये शाब्दिक तथा अशाब्दिक दोनों ही प्रकार के सम्प्रेषणों का प्रयोग किया जाता है।
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प्रभावशाली शिक्षण के लिये प्रभावशाली शैक्षिक सम्प्रेषण होना आवश्यक है।
2. लोक सम्प्रेषण (Public communication)
इसकी प्रकृति सामूहिक होती है। लोक सम्प्रेषण में भाषा सरल, स्पष्ट एवं लोकप्रिय होती है जिससे सन्देश में किसी प्रकार की भ्रांति न हो सके। इस प्रकार के सम्प्रेषण में अधिकतर सन्देश देने वाले व्यक्ति के आमने-सामने बात नहीं हो सकती।
लोक सम्प्रेषण में सूचना, विचार, अवकाश के सदुपयोग हेतु मनोरंजक गतिविधियों का सम्प्रेषण, संचार माध्यमों द्वारा जन-जन तक किया जा सकता है।
लोक सम्प्रेषण में रेडियो, टी. वी., समाचार पत्र, पत्रिकाओं, पुस्तकों, वीडियो फिल्म तथा विज्ञापन बोर्डों का प्रयोग किया जाता है जो सन्देश को जन-जन तक पहुँचाने में सहायक होते हैं।
गर्वनर (1976) के अनुसार- “Public communication refers to all impersonal means of communication by which visual and/or auditory messages are transmitted directly to public.“
राष्ट्र विकास व राष्ट्र निर्माण में लोक सम्प्रेषण का बहुत बड़ा हाथ होता है। लोक सम्प्रेषण में जन संचार माध्यम (Mass media) का प्रयोग होता है।
डॉ. गुप्ता (1993) के अनुसार-“जन संचार माध्यम ऐसे संचार यन्त्र हैं जिनके द्वारा एक ही समाचार को एक बड़े जनमानस (Public), जो बहुत दूर-दूर तक रहते हैं, तक एक ही समय में एक साथ एवं आसानी से पहुँचाया जा सकता है। ये जनसंचार माध्यम शिक्षण में छात्रों को प्रेरणा देने के लिये, उनकी धारिता शक्ति (Retention power) में वृद्धि के लिये, शिक्षण उद्देश्यों को प्रस्तुत करने के लिये, कक्षा शिक्षण में बने प्रत्ययों को पुनर्वलित करने के लिये, सूचनाओं को समय के अनुसार संगठित करने के लिये तथा शिक्षण को अधिक रोचक, स्पष्ट एवं सार्वभौमिक बनाने के लिये अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुए हैं।“
डायट (Diet), एस. सी. ई. आर. टी. (S.C. E.R.T.) तथा विभिन्न शैक्षिक राज्य संस्थान, जनसंचार माध्यमों का उपयोग करके, जनसंख्या शिक्षा, पर्यावरण शिक्षा, जन शिक्षा, पारिवारिक शिक्षा, जीवन जीने की शिक्षा (Living life education), जीवन पर्यन्त शिक्षा (Lifelong education), स्वास्थ्य (Health), पोषण, कृषि शिक्षण तथा शिक्षार्थी (Student) के लिये आज कार्यरत है।
एस.सी.ई.आर.टी., यू.जी.सी., इन्दिरा गाँधी ओपन यूनिवर्सिटी (IGNOU) आदि टी. वी. के माध्यम से शैक्षिक कार्यक्रम छात्रों के लिये तैयार करते हैं और प्रसारित करते हैं। ये कार्यक्रम विशेष रूप से शैक्षिक वर्ग के लिये ही बनाये जाते हैं।
व्यक्तिगत एवं सामूहिक सम्प्रेषण
कक्षा में जो भी क्रियाएँ होती हैं वे सभी सम्प्रेषण में आती हैं तथा शिक्षण का पूर्ण करती है। कक्षा सम्प्रेषण के प्रकारों के लिये शिक्षा में वैयक्तिक शिक्षण एवं सामूहिक शिक्षण के अर्थ, गुण-दोष एवं प्रयोग आदि पर प्रकाश डालेंगे।
1. वैयक्तिक सम्प्रेषण (Individual Communication)
वैयक्तिक सम्प्रेषण का अर्थ (Meaning of individual communication)
जब शिक्षक प्रत्येक बालक को अलग-अलग शिक्षण देता है तो इसे वैयक्तिक सम्प्रेषण कहते हैं। ए.जी. मेलबिन ने वैयक्तिक सम्प्रेषण की परिभाषा इस प्रकार दी है, “विचारों का आदान-प्रदान अथवा व्यक्तिगत वार्तालाप द्वारा बालकों को अध्ययन में सहायता, आदेश तथा निर्देश प्रदान करने के लिये शिक्षक का प्रत्येक बालक से पृथक्-पृथक् साक्षात्कार करना।“
वैयक्तिक सम्प्रेषण के उद्देश्य (Aims of individual communication)
वैयक्तिक शिक्षण के निम्नलिखित उद्देश्य हैं:-
- छात्रों में व्यक्तिगत विभिन्नताएँ होती हैं, उनकी रुचियों, अभिरुचियों, आवश्यकताओं तथा मानसिक योग्यताओं को ध्यान में रखा जाता है।
- बालकों की विशिष्ट योग्यताओं और व्यक्तित्व का विकास करना व्यक्तिगत सम्प्रेषण का उद्देश्य है।
- साधारण बालकों के लिये व्यक्तिगत शिक्षण आवश्यक है।
- वैयक्तिक सम्प्रेषण बालकों को क्रियाशीलता का अवसर देता है।
वैयक्तिक सम्प्रेषण के गुण (Merits of Individual Communication)
वैयक्तिक सम्प्रेषण में निम्नलिखित गुण विद्यमान रहते हैं:-
- इस विधि के अनुसार शिक्षा का केन्द्र बालक होता है। अत: यह विधि मनोवैज्ञानिक है।
- इस विधि में बालक स्वयं करना सीखता है।
- इस विधि में बालक ज्ञान अर्जित करने के लिये प्रेरित किया जाता है।
- व्यक्तिगत सम्प्रेषण में शिक्षक, बालक पर अपने व्यक्तित्व का प्रभाव डालने में समर्थ रहता है।
- यह विधि रोचक है। इस विधि के अनुसार शिक्षा व्यक्तिगत भिन्नताओं के अनुसार दी जाती है।
- सीखना व्यक्तिगत कार्य है। यह विधि इस सिद्धान्त का समर्थन करती है।
- इस विधि में शिक्षक, बालक पर व्यक्तिगत ध्यान दे सकता है।
- यह विधि बालक की प्रकृति के शिक्षा देने की व्यवस्था करती है।
- इस विधि की एक विशेषता यह है कि यह विधि प्रखर बुद्धि तथा मन्द बुद्धि दोनों प्रकार के छात्रों के लिये समान रूप से उपयोगी है।
वैयक्तिक सम्प्रेषण के दोष (Demerits of Individual Communication)
वैयक्तिक सम्प्रेषण के दोष निम्नलिखित प्रकार से हैं:-
- यह विधि व्ययपूर्ण है। प्रत्येक समाज इसकी व्यवस्था नहीं कर सकता।
- इस विधि के द्वारा बालक में सामाजिकता के गुण उत्पन्न नहीं किये जा सकते। बालक समाज से अलग रहता है।
- इस विधि से शिक्षक अपने और बालक के समय को नष्ट करता है। इस प्रकार समय और शक्ति का अपव्यय होता है।
- कुछ विषय एक साथ पढ़ाये जाते हैं। संगीत, गायन आदि विषय सामूहिक रूप से पढ़ाये जाने पर अधिक रोचक होते हैं।
- यह विधि अव्यावहारिक है।
- इस विधि में प्रेरणा, प्रोत्साहन और प्रतिस्पर्धा का सदैव अभाव रहता है। इस प्रकार बालकों में प्रेरणा का अभाव रहता है।
- यह विधि प्रत्येक बालक के लिये उपयोगी नहीं हो सकती।
2. सामूहिक सम्प्रेषण (Collective Communication)
सामूहिक सम्प्रेषण का अर्थ (Meaning of Collective communication)
सामूहिक सम्प्रेषण का अर्थ कक्षा शिक्षण है। विद्यालय में एक सी मानसिक योग्यता वाले छात्रों के अनेक उपसमूह बना लिये जाते हैं। साधारणतया इनको कक्षा कहते हैं। ये कक्षाएँ सामूहिक इकाइयाँ होती हैं। शिक्षक इन कक्षाओं में जाते हैं और सभी छात्रों को एक साथ शिक्षा देते हैं।
इस प्रकार सामूहिक शिक्षण में शिक्षक सामूहिक शिक्षण द्वारा ज्ञान प्रदान करते हैं। इस विधि में एक कक्षा के सभी छात्रों के लिये सामूहिक शिक्षण विधि का प्रयोग किया जाता है।
सामूहिक सम्प्रेषण के गुण (Merits of Collective Communication)
सामूहिक सम्प्रेषण के गुण निम्नलिखित हैं:-
- यह विधि सरल तथा सस्ती है। इसी कारण यह विधि व्यावहारिक है।
- इस विधि से शिक्षा देने में बालकों की तर्क शक्ति, कल्पना और चिन्तन शक्ति का विकास होता है।
- इस विधि से शिक्षण देने से बालकों में प्रतियोगिता की भावना का उदय होता है।
- यह विधि इतिहास, भूगोल, संगीत, कला तथा कविता के पाठों के लिये उपयोगी होती है।
- इस विधि से शिक्षण देने से बालकों में अनुकरण की भावना उत्पन्न होती है। बालक अनुकरण करके ही सीखते हैं।
- रायबर्न के अनुसार-“यह विधि छात्रों को सुझाव और नवीन ज्ञान प्रदान करती है।“
सामूहिक सम्प्रेषण के दोष (Demerits of Collective Communication)
सामूहिक सम्प्रेषण के प्रमुख दोष निम्नलिखित प्रकार हैं:-
- इस विधि को मनोवैज्ञानिक नहीं कहा जा सकता। इसमें बालकों की रुचियों और आवश्यकताओं की अवहेलना की जाती है।
- यह विधि कक्षा केन्द्रित है शिक्षा बाल केन्द्रित होनी चाहिये।
- यह विधि समय सारणी के अनुसार शिक्षक और छात्रों को एक संकुचित क्षेत्र में बाँध देती है। शिक्षक पाठ्यक्रम में निर्धारित विषयवस्तु में ही जूझता रहता है। फलस्वरूप बालक का विकास रूक जाता है।
- इस विधि में शिक्षक और छात्रों के मध्य सम्पर्क नहीं बन पाता। एक शिक्षक अनेक कक्षाओं को पढ़ाता है। इस प्रकार बालकों से व्यक्तिगत सम्पर्क नहीं बन पाता।
- इस विधि से शिक्षक बालकों की व्यक्तिगत कठिनाइयों को दूर नहीं कर पाता। अत: बालक का विकास रूक जाता है।
अन्य प्रकार के सप्रेषण
1. अनौपचारिक संप्रेषण (Informal communication or Grapevine Communication)
जब एक समूह में किसी को किसी से भी बात करने की आजादी हो तो उसे रोपवाइन संप्रेषण कहते हैं। रोपवाइन संप्रेषण में कोई अनौपचारिक वैज्ञानिक तरीके से बात नहीं की जाती है। इसमें सभी आजाद होते हैं कोई किसी से भी बात कर सकते हैं।
उदाहरण – जब स्कूल में अवकाश होता है तो सभी बच्चे आजाद होते हैं। अतः अब आपस में किसी से भी बात कर सकते हैं।
2. औपचारिक संप्रेषण (Formal communication)
जब बात करने का तरीका एक विधिवत और वैज्ञानिक हो उसे औपचारिक संप्रेषण कहते हैं। औपचारिक संप्रेषण में काम करने का तरीका बहुत ही सुलझा हुआ होता है और सभी अपने अपने कामों पर ज्यादा ध्यान देते है।
उदाहरण – किसी ऑफिस में जब कोई जनियर अपने सीनियर से बात करता है।
3. एकल / एक तरफा / वन सप्रेषण (one Way Communication)
जब संदेश एक तरफ से ही होता है तो एकल या वन वे सप्रेषण होता है। इसमें भेजने वाला संदेश भेज देता है और प्राप्तकर्ता उसे ग्रहण कर लेता है।
उदाहरण – कक्षा में अध्यापक ने बच्चों को बोला कि वह खड़े हो जाइए तो बच्चे खड़े हो जाते हैं तो वह वन वे सम्प्रेषण हुआ।
4. दवितरफा / ट्वे संप्रेषण (Two Way Communication)
जब दो व्यक्ति आपस में बातचीत करते है तो उन में तर्क-वितर्क होता है अर्थात प्राप्तकर्ता और भेजने वाला दोनों ही सम्मिलित होते है।
उदाहरण – अध्यापक कक्षा में बच्चों से प्रश्न करता है तो बच्चे उसका उत्तर देते हैं तो वे टू वे संप्रेषण हुआ।
5. अतः वैयक्तिक संप्रेषण (Intra Personal Communication)
जब व्यक्ति अपनी इच्छाओं के बारे में सोचता है तो उसे अंतः वैयक्तिक संप्रेषण कहते हैं। दूसरे शब्दों में जो व्यक्ति खुद से प्रशन करता है तो अत वैयक्तिक संप्रेषण कहलाता है।
उदाहरण – परीक्षा कक्ष में जाने से पहले विद्यार्थी खुद से बात करता है।
6. अंतर वैयक्तिक संप्रेषण (Interpersonal communication)
जब दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच बातचीत होती है अर्थात जब हम दूसरों की इच्याओं के बारे में बात करते हैं तो अंतर वैयक्तिक संप्रेषण कहलाता है।
उदाहरण – मनोवैज्ञानिक और परामर्शदाता हमेशा दूसरों के बारे में बताते हैं अतः अंतर वैयक्तिक संप्रेषण हुआ।
7. शाब्दिक सप्रेषण (Verbal Communication)
शाब्दिक संप्रेषण में सदैव भाषा का प्रयोग किया जाता है। शाब्दिक संप्रेषण होता है जब मौखिक अभिव्यक्ति के द्वारा अपने शब्दों को प्रस्तुत करते हैं। हम अपने दैनिक जीवन में सबसे ज्यादा शाब्दिक सप्रेषण का ही प्रयोग करते हैं।
8. अशाब्दिक सप्रेषण (Non Verbal Communication)
जब हम इशारों चिन्हों और कूट भाषा में बातचीत करते है तो वह अशाब्दिक संप्रेषण कहलाता है। उदाहरण – बहरे बच्चों से हम हाथों से इशारे करके बातचीत करते हैं।
9. मौखिक संप्रेषण
मौखिक संप्रेषण का अर्थ है आमने सामने मौखिक बातचीत करके सूचनाओं का आदान प्रदान करना। यह संप्रेषण प्रत्यक्ष व्यक्तिगत वार्तालाप के द्वारा भी किया जा सकता है और अप्रत्यक्ष व्यक्तिगत वार्तालाप के द्वारा भी। दूसरी पद्धति में सन्देश प्रेषक टेलीफ़ोन तथा मोबाइल जैसे उपकरणों का प्रयागे करता है।
10. लिखित संप्रेषण
लिखित संप्रेषण से आशय ऐसे संप्रेषण से है जो कि लिखित में हो । ज्यादातर दशाओं में यह औपचारिक संप्रेषण होता है। संगठन के कुशल संचालन के लिए यह जरूरी है कि उसमें रिपोर्ट, नीतियाँ, कार्यविधियाँ, योजनाएं, समझौते, स्मरण पत्र आदि लिख कर तैयार किये जाएं जिससे इनका रिकॉर्ड रखा जा सके तथा सम्बद्ध व्यक्ति उन पर अपने-अपने दायित्व के अनुसार उचित कार्यवाही कर सकें।
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