सामूहिक सम्प्रेषण – अर्थ, गुण, दोष एवं प्रयोग

Samuhik Sampreshan

कक्षा में जो भी क्रियाएँ होती हैं वे सभी सम्प्रेषण में आती हैं तथा शिक्षण का पूर्ण करती है। कक्षा सम्प्रेषण के प्रकारों के लिये शिक्षा में सामूहिक शिक्षण के अर्थ, गुण-दोष एवं प्रयोग आदि पर प्रकाश डालेंगे।

सामूहिक सम्प्रेषण (Collective Communication)

सामूहिक सम्प्रेषण का अर्थ (Meaning of Collective communication)

सामूहिक सम्प्रेषण का अर्थ कक्षा शिक्षण है। विद्यालय में एक सी मानसिक योग्यता वाले छात्रों के अनेक उपसमूह बना लिये जाते हैं। साधारणतया इनको कक्षा कहते हैं। ये कक्षाएँ सामूहिक इकाइयाँ होती हैं। शिक्षक इन कक्षाओं में जाते हैं और सभी छात्रों को एक साथ शिक्षा देते हैं।

इस प्रकार सामूहिक शिक्षण में शिक्षक सामूहिक शिक्षण द्वारा ज्ञान प्रदान करते हैं। इस विधि में एक कक्षा के सभी छात्रों के लिये सामूहिक शिक्षण विधि का प्रयोग किया जाता है।

सामूहिक सम्प्रेषण के गुण (Merits of Collective Communication)

सामूहिक सम्प्रेषण के गुण निम्नलिखित हैं:-

  1. यह विधि सरल तथा सस्ती है। इसी कारण यह विधि व्यावहारिक है।
  2. यह विधि छात्रों को व्यवहार कुशल बनाती है। बालक अनेक बालकों के सम्पर्क में आने के कारण अच्छे गुण ग्रहण करते हैं।
  3. इस विधि से शिक्षा देने में बालकों की तर्क शक्ति, कल्पना और चिन्तन शक्ति का विकास होता है।
  4. यह विधि छात्रों में नेतृत्व के गुणों का विकास करती है। इसमें बालकों के लिये पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं का आयोजन किया जाता है।
  5. इस विधि से शिक्षण देने से बालकों में प्रतियोगिता की भावना का उदय होता है।
  6. यह विधि बालकों में सद्गुणों का विकास करती है। बालक सामूहिक कार्य करते हैं। वे शिक्षक आदर्श का अनुकरण करते हैं।
  7. यह विधि इतिहास, भूगोल, संगीत, कला तथा कविता के पाठों के लिये उपयोगी होती है।
  8. इस विधि से शिक्षण देने से बालकों में अनुकरण की भावना उत्पन्न होती है। बालक अनुकरण करके ही सीखते हैं।
  9. रायबर्न के अनुसार-“यह विधि छात्रों को सुझाव और नवीन ज्ञान प्रदान करती है।
  10. यह विधि छात्रों में पढ़ने के लिये उत्साह पैदा करती है। बालक सीखने के लिये व्यक्तिगत प्रयास करते हैं।
  11. यह विधि लज्जाशील तथा संकोची बालकों के लिये अधिक उपयोगी है। ऐसे बालक कक्षा में बैठकर चुपचाप ज्ञान अर्जित करते रहते हैं। अन्य बालकों को प्रश्नों का उत्तर देते हुए देखकर उनमें भी प्रश्नों का उत्तर देने की प्रवृत्ति उत्पन्न हो जाती है।
  12. कक्षा शिक्षण से बालकों में विचारों का आदान-प्रदान होता है। इस प्रकार बालकों की कार्यकुशलता बढ़ती है।
  13. यह विधि छात्रों को योग्य नागरिक बनाने का प्रशिक्षण देती है। वे अपने भावी जीवन की तैयारी करते हैं।

सामूहिक सम्प्रेषण के दोष (Demerits of Collective Communication)

सामूहिक सम्प्रेषण के प्रमुख दोष निम्नलिखित प्रकार हैं:-

  1. इस विधि को मनोवैज्ञानिक नहीं कहा जा सकता। इसमें बालकों की रुचियों और आवश्यकताओं की अवहेलना की जाती है।
  2. यह विधि कक्षा केन्द्रित है शिक्षा बाल केन्द्रित होनी चाहिये।
  3. यह विधि समय सारणी के अनुसार शिक्षक और छात्रों को एक संकुचित क्षेत्र में बाँध देती है। शिक्षक पाठ्यक्रम में निर्धारित विषयवस्तु में ही जूझता रहता है। फलस्वरूप बालक का विकास रूक जाता है।
  4. इस विधि में शिक्षक और छात्रों के मध्य सम्पर्क नहीं बन पाता। एक शिक्षक अनेक कक्षाओं को पढ़ाता है। इस प्रकार बालकों से व्यक्तिगत सम्पर्क नहीं बन पाता।
  5. इस विधि से शिक्षक बालकों की व्यक्तिगत कठिनाइयों को दूर नहीं कर पाता। अत: बालक का विकास रूक जाता है।
  6. इस विधि में शिक्षक तो सक्रिय रहता है लेकिन बालक निष्क्रिय रहते हैं। उन्हें कक्षा में किसी प्रकार का कार्य करने का अवसर नहीं मिलता वे किसी प्रकार की क्रिया नहीं करते।
  7. कक्षा में सभी बालकों को एक साथ तथा एक ही विधि से पढ़ाने में बालक का हित नहीं होता। मन्द बुद्धि वाले बालक पीछे रह जाते हैं और प्रखर बुद्धि वाले बालकों का भी कोई हित नहीं होता।
  8. इस प्रकार से शिक्षा देने में बालकों के व्यक्तिगत भेदों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। सभी बालकों को एक समान शिक्षा दी जाती है।

सम्प्रेषण के प्रकार (Kinds of Communication)

सम्प्रेषण की उपयोगिता को देखते हुए सम्प्रेषण को दो भागों में बाँटा गया है- 1. शैक्षिक सम्प्रेषण (Educational communication), 2. लोक सम्प्रेषण (Public communication)।

अन्य प्रकार:-

  1. व्यक्तिगत सम्प्रेषण
  2. सामूहिक सम्प्रेषण

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