सम्प्रेषण का महत्त्व (Importance of Communication)
सम्प्रेषण प्रशासन का महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है। किसी संगठन का कार्य करने के लिये सम्प्रेषण होना आवश्यक है। यदि संगठन की पूरी जानकारी होगी तो उसमें रुचि होगी और लगाव भी होगा। शोध कार्य से पता चलता है कि संगठन का सफल संचालन तभी होता है जब उसमें काम करने वाले व्यक्ति सहयोग करें।
लोकतन्त्र की यह पहली आवश्यकता है कि जनता प्रशासन से अधिक से अधिक मात्रा में जुड़े। इसलिये व्यापार तथा शासन दोनों क्षेत्रों में उत्तम सम्प्रेषण व्यवस्था होनी चाहिये। आज इसकी आवश्यकता को ध्यान रखते हुए सभी राज्य सरकारों ने सूचना एवं प्रसारण विभाग खोले हैं।
इस प्रकार सम्प्रेषण के महत्त्व के सम्बन्ध में स्पष्ट है कि:-
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“संचार या सम्प्रेषण प्रशासनिक संगठन की रक्त धारा है।”
“Communication is the blood current of administrative organisation.” -
मेषफार के अनुसार-“मनुष्य जीवन के सभी पक्षों में सम्प्रेषण की क्रिया एक केन्द्रीय तत्त्व है।”
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पिफनर ने संचार को प्रबन्ध का हृदय (Heart of management) बताया है।
सम्प्रेषण की प्रकृति एवं विशेषताएँ (Nature and Characteristics of Communication)
सम्प्रेषण की प्रकृति एवं विशेषताओं को निम्नलिखित प्रकार से देखा जा सकता है:-
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सम्प्रेषण सदैव एक गत्यात्मक (Dynamic) प्रक्रिया होती है।
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सम्प्रेषण प्रक्रिया में परस्पर अत:क्रिया तथा पृष्ठपोषण होना आवश्यक होता है।
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सम्प्रेषण एक मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक प्रणाली है।
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सम्प्रेषण सर्व व्यापक है। बिना सम्प्रेषण के शिक्षण कार्य असम्भव है।
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सम्प्रेषण द्विपक्षीय होता है-(1) सन्देश देने वाला। (2) सन्देश प्राप्त कराने वाला।
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सम्प्रेषण के लिये सम्प्रेषित तथ्यों, सूचनाओं और विचारों आदि का प्राप्तकर्ता के लिये सार्थक होना आवश्यक है।
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सम्प्रेषण में विचारों और भावनाओं का आदान-प्रदान होता है।
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सम्प्रेषण एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है जो कम से कम दो व्यक्तियों के मध्य होती है।
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सम्प्रेषण में शिष्टता एवं नम्रता का प्रयोग किया जाता है।
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