विषय-सामग्री का स्वरूप (Form of Subject-Matter)
पाठ्य-वस्तु विश्लेषण में प्रमुखतः दो शब्द हैं- पाठ्य-वस्तु एवं विश्लेषण। यहाँ पाठ्य-वस्तु से अभिप्राय उस पठनीय सामग्री से है, जो लिखित रूप में हमारे सामने है तथा कक्षा में जिसका शिक्षण करना है। यह लिखित इकाई एक सम्पूर्ण पाठ के रूप में हो सकती है, इकाई गद्य के रूप में भी हो सकती है अथवा अन्य किसी भी विषय के रूप में भी हो सकती है।
विश्लेषण का शाब्दिक अर्थ है कि किसी पदार्थ के संयोग को पृथक् करना। इस आधार पर यहाँ विश्लेषण का आशय किसी दिये हुए पाठ या निहित भाषा, भाव, विचार आदि को इस प्रकार स्पष्ट था विश्लेषित करना है कि वह छात्रों के लिये सहज बोधगम्य बन जाय।
अतः पाठ्य-वस्तु विश्लेषण का आशय शिक्षण हेतु चयनित किसी इकाई में निहित भाषा तत्त्वों के विश्लेषण के साथ-साथ उस इकाई में छिपे भावों, विचारों, मार्मिक स्थलों, अन्तर्कथाओं आदि को भी उजागर करना है।
वस्तुत: पाठ्य-वस्तु विश्लेषण वह तकनीकी है, जो शिक्षक को पाठ की पूर्व तैयारी में सहायक होती ही है। शिक्षक इसकी सहायता से दी हुई पाठ्य-वस्तु को कक्षा में इस भाँति विश्लेषित करता है कि छात्रों को उस इकाई का अधिकतम भाषा-तात्विक ज्ञान होने के साथ-साथ उसमें निहित भावों, विचारों, मार्मिक स्थलों आदि की सम्यक् जानकारी हो जाती है।
शिक्षण को प्रभावी बनाने में पाठ्य-वस्तु विश्लेषण बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है । इसकी सहायता से शिक्षक यह जान लेता है कि उसे कक्षा में पढ़ाये जाने वाले पाठ में से कौन-कौन से शब्दों या शब्द समूहों को भाषा तात्विक ज्ञान के लिए चुनना है।
भाषा तत्त्वों में शब्द का शुद्ध उच्चारण, लेखन, अर्थबोध, प्रतीक बोध, कहावत, मुहावरे, भाषा रूप आदि का ज्ञान किस तकनीक से कराया जा सकता है। इसके लिए अधिगम सामग्री क्या रखी जाय कि यह अधिक स्पष्ट और स्थायी हो जाय।
इसी प्रकार प्रस्तुत पाठ में निहित वैचारिक सामग्री क्या है ? उसे छात्रों तक किस प्रकार पहुँचाया जा सकता है ? उसे स्पष्ट करने के लिए क्या तकनीक अपनायी जाय। इस सम्पूर्ण जानकारी से शिक्षण तो प्रभावी बनता ही है, शिक्षक में भी आत्मविश्वास पैदा होता है।
देनन्दिनी-लेखन में भी पाठ्य-वस्तु विश्लेषण अत्यधिक उपयोगी है।
विषय-वस्तु का विश्लेषण (Analysis of Contents)
शिक्षकों को कक्षा में जाने से पूर्व पाठ की तैयारी करनी पड़ती है,उसे पहले से ही यह निश्चित करना होता है कि अगले दिन पढ़ायी जाने वाली पाठ की इकाई में कौन-कौन से तत्त्वों का ज्ञान बालकों को कराना है और क्यों ? उसमें आयी हुई वैचारिक सामग्री कौन-सी है, जिसकी जानकारी छात्रों को कराना आवश्यक है।
उसे यह भी पहले से ही निश्चित करना होता है कि इकाई में निहित भाषायी और वैचारिक ज्ञान किस तकनीक से दिया जाय कि छात्र उसे सहज ही आत्मसात् कर सकें। यह चिन्तन ही पाट्य-वस्तु विश्लेषण का आधार है। उसका स्वरूप भी इसी आधार को लिए हुए होता है। पाठ्य-वस्तु विश्लेषण को पाठ विश्लेषण या विषय-वस्तु विश्लेषण भी कहा जाता है।
पाठ्य-वस्तु विश्लेषण को और अधिक समझने के लिए यह आवश्यक है कि हम उसके स्वरूप एवं उसके अवयवों पर भी दृष्टिपात करें। शिक्षण हेतु निर्धारित पाठ के शिक्षण से पूर्व शिक्षक को यह देखना चाहिये कि उस पाठ में से शिक्षण हेतु क्या चुना गया ? और क्यों ?
‘क्या’ की जानकारी के लिए शिक्षक प्रस्तुत पाठ इकाई में निहित भाषा तत्त्वों को उजागर करने के लिए उसमें आये शब्दों, शब्द समूहों, वाक्यांशों, कहावत, मुहावरों आदि का चयन करता है। यह चयनित सामग्री शिक्षण सामग्री कहलाती है। इसे शिक्षण सामग्री के नाम से भी अभिहित किया जाता है, क्योंकि शिक्षण में इनको ही उभारा जाता है तथा इनका ही शिक्षण विशेष रूप से किया जाता है।
शिक्षण सामग्री के रूप में भाषायी तत्त्वों के अतिरिक्त उस इकाई में निहित भावों, विचारों, मार्मिक स्थलों, अन्तर्कथाओं आदि से सम्बन्धित स्थलों, पंक्तियों या शब्दावलियों को भी चयनित किया जाता है।
शिक्षण सामग्री के चयन के समय यह बात भी ध्यान में रखी जाती है कि उसका चयन क्यों किया जा रहा है ? उस सामग्री के द्वारा छात्रों को क्या दिया जा सकेगा? क्या वह उसके त्रुटिपूर्ण उच्चारण को शुद्ध करेगी या उसके त्रुटिपूर्ण वर्तनी लेखन को सुधारेगी। वह सामग्री अर्थबोध कराने के लिए चुनी गयी है या प्रतीकार्य स्पष्ट करने के लिए उसका चयन हुआ है। उसे आशय स्पष्ट करने के लिए शिक्षण सामग्री बनाया गया है या भाव बोध कराने के लिए चयनित किया गया है। उससे कोई विचार स्पष्ट हो सकेगा या कोई अन्तर्कथा सामने आ सकेगी।
इस प्रकार का चिन्तन और उल्लेख शिक्षण बिन्दु कहलाता है। शिक्षण सामग्री के चयन के समय देखना आवश्यक होता है कि उसका शिक्षण बिन्दु क्या बनेगा? अर्थात् उसका चयन क्यों किया गया है ?
शिक्षण सामग्री चुनते समय यह भी निश्चित कर लिया जाता है कि वह सामग्री भाषा तत्त्वों का ज्ञान करायेगी या वैचारिक-धरातल को विस्तार देगी।
लेखन, उच्चारण, अर्थबोध, कहावत, मुहावरे आदि भाषायी सामग्री कहलाती है, जबकि भावों और विचारों की जानकारी, मार्मिक स्थलों का स्पष्टीकरण, अन्तर्कथाओं आदि वैचारिक सामग्री के रूप में मानी जाती हैं।
शिक्षक को यह भी देखना पड़ता है कि उसने जिस शिक्षण सामग्री का चयन जिस शिक्षण बिन्दु को दृष्टिगत रखकर किया है उसे स्पष्ट करने या छात्र तक सम्प्रेषित करने में किस तकनीक को अपनाया जाय।
तकनीक के निर्धारण के साथ-साथ इस बात का भी स्मरण रखना पड़ता है कि छात्रों तक पहुँचाया गया ज्ञान और अधिक प्रभावी एवं स्थिर कैसे बनाया जा सकता है ? एतदर्थ अधिगम सामग्री का प्रस्तुतीकरण भी किया जाता है।
इसलिए पाठ्य-वस्तु विश्लेषण के पाँच अवयव हुए-शिक्षण सामग्री, शिक्षण बिन्दु, पक्ष, तकनीक एवं अधिगम सामग्री। किसी भी पाठ का विश्लेषण इन्हीं पाँच स्तम्भों में किया जाता है।
विषय-वस्तु विश्लेषण के सिद्धान्त (Principles of Contents Matter Analysis)
विषय-वस्तु का निर्माण करते समय सामान्यतया शिक्षक, शिक्षार्थी से सम्बन्धित मनोवैज्ञानिक, दार्शनिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय दृष्टिकोण को ध्यान में रखना आवश्यक है। इन्हीं बिन्दुओं से सम्बन्धित कतिपय सिद्धान्तों का विवरण इस प्रकार से है (विस्तार से पढ़ें – विषय-वस्तु विश्लेषण के सिद्धान्त)–
- पर्यावरण केन्द्रीयता का सिद्धान्त (Principle of environment centredness)
- समाज केन्द्रीयता का सिद्धान्त (Principle of society centredness)
- उद्देश्य एवं लक्ष्य केन्द्रीयता का सिद्धान्त (Principle of aims and objectives centredness)
- उपयोगिता का सिद्धान्त (Principle of utility)
- क्रियाशीलता का सिद्धान्त (Principle of activity)
- लचीलेपन का सिद्धान्त (Principle of flexibility)
- अध्यापक से परामर्श का सिद्धान्त (Principle of consideration with the teacher)
- बाल-केन्द्रीयता का सिद्धान्त (Principle of child-centredness)
उपर्युक्त वर्णित विषय-वस्तु निर्माण के सिद्धान्तों को ही विविध विद्वानों द्वारा अपनी-अपनी भाषा में वर्णित किया गया है। ? विस्तार से पढ़ें – विषय-वस्तु विश्लेषण के सिद्धान्त।
विषय-वस्तु के शिक्षण बिन्दुओं का निर्धारण (Determination of Educational Points about Content)
किसी पाठ या शिक्षण इकाई का पाठ्य-वस्तु विश्लेषण करने के लिए सर्वप्रथम शिक्षण सामग्री का चयन करना पड़ता है। शिक्षण सामग्री का चयन करते समय इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि हमने उसे शिक्षण सामग्री क्यों बनाया है ? अर्थात् हम उसके द्वारा छात्रों को किस प्रकार का ज्ञान देना चाहते हैं? विस्तार से पढ़ें – विषय-वस्तु के शिक्षण बिन्दुओं का निर्धारण।