सम्प्रेषण कौशल (Communication Skill)
सम्प्रेषण कौशल दो शब्दों से मिलकर बना है- (1) सम्प्रेषण, (2) कौशल।
कौशल का अर्थ होता है ‘कुशलता से कार्य करने की योग्यता‘ (Ability to work with cleverness) जबकि सम्प्रेषण का अर्थ “सूचनाओं तथा भावनाओं का एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को आदान-प्रदान करना होता है।” अतः सूचनाओं, तथ्यों तथा विचारों का कुशलता से आदान-प्रदान करना ही सम्प्रेषण कौशल कहलाता है। सम्प्रेषण करना मानव की प्रवृत्ति है। बिना सम्प्रेषण के कोई कार्य पूरा नहीं हो सकता।
सम्प्रेषण कौशल को प्रभावशाली कैसे बनायें?
सम्प्रेषण कौशल को प्रभावशाली बनाने के लिये तीन बिन्दुओं पर ध्यान देना आवश्यक है-
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सम्प्रेषण भाषा एवं माध्यमों का प्रयोग (Use of communication media and language),
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सम्प्रेषण में मनोवैज्ञानिक प्रयोग (Use of psychology) तथा
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इन्द्रियों का प्रयोग (Use of sense organs)।
शुद्ध उच्चारण, शुद्ध वाचन और शुद्ध तरीकों का सम्प्रेषण प्रक्रिया से घनिष्ठ सम्बन्ध है। यदि उच्चारण शुद्ध है तो वर्तनी भी शुद्ध होगी, जिससे सम्प्रेषण भी सार्थक और प्रभावी होगा। इस प्रकार सही और शुद्ध उच्चारण सम्प्रेषण की प्रभावशीलता के लिये नितान्त आवश्यक है।
इस प्रकार के सम्प्रेषण द्वारा एक-दूसरे के विचारों को अधिक अच्छी प्रकार से समझा जा सकता है। शिक्षकों को अशुद्ध उच्चारण से बचना चाहिये ताकि अच्छे सम्प्रेषण के लिये वह छात्रों को प्रेरित कर सके।
आज का विद्यार्थी कल का नागरिक है। नागरिक के रूप में उसे किसी क्षेत्र का नेतृत्व ग्रहण करना है। सफल नेतृत्व के लिये सम्प्रेषण की योग्यता आवश्यक होती है। इस योग्यता का विकास बचपन से ही वाद-विवाद अथवा भाषण के अभ्यास से किया जा सकता है। यह अभ्यास जितना शीघ्र प्रारम्भ किया जाता है उतना ही लाभप्रद होता है।
विद्यालयों में बाल सभाओं, गृहप्रणालियों और काउन्सिलों का आयोजन इसी दृष्टि से किया जाता है कि बालक बाल सभाओं में भाग लेकर बोलना सीखें और अपने विचारों को प्रकट करना सीख सकें।
वाद-विवाद प्रतियोगिताओं का भी प्रायोजन यह होता है छात्र किसी विषय के पक्ष और विपक्ष में बोलना सीखें। पक्ष और विपक्ष में विचार प्रकट करने से सम्प्रेषण की योग्यता विकसित होती है।
प्राथमिक विद्यालयों में वाद-विवाद प्रतियोगिता चौथी और पाँचवी कक्षा में और माध्यमिक विद्यालयों में कक्षा 6 से ही आयोजित की जा सकती है। पहले तो विषयवस्तु छात्रों को रटा दी जाती है। जब उनको रटी हुई सामग्री बोलने में कठिनाई होती है तो अध्यापक उनके पीछे से संकेत देता रहता है। बाद में बालक स्वयं किसी भी विषय पर बोलने की क्षमता पैदा कर लेते हैं।
भाषण देते वक्त वह निर्भीक होकर अपने विचार व्यक्त करता है, प्रारम्भ में वह ठिठकता है, झिझकता है और बोलते-बोलते रुक जाता है, लेकिन अभ्यास से धारा प्रवाह बोलने लगता है और प्रभावी सम्प्रेषण की योग्यता का स्वयं में विकास कर लेता है।
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