हरिवंश राय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, कवि परिचय एवं भाषा शैली और उनकी प्रमुख रचनाएँ एवं कृतियाँ। हरिवंश राय बच्चन का जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय नीचे दिया गया है।
Harivansh Rai Bachchan Biography in Hindi / Harivansh Rai Bachchan Jeevan Parichay / Harivansh Rai Bachchan Jivan Parichay / हरिवंश राय बच्चन :
पूरा नाम | हरिवंश राय श्रीवास्तव उर्फ बच्चन |
उपाधि | डॉ. (डाक्टरेट – कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय) |
जन्म | 27 नवम्बर, 1907 |
जन्मस्थान | प्रयाग, इलाहाबाद |
मृत्यु | 18 जनवरी, 2003 |
मृत्युस्थान | मुंबई |
पेशा | लेखक, कवि, प्राध्यापक |
माता | सरस्वती देवी |
पिता | प्रताप नारायण श्रीवास्तव |
पत्नी | श्यामा बच्चन, तेजी बच्चन |
पुत्र | अमिताभ बच्चन, अजिताभ बच्चन |
प्रमुख रचनाएँ | क्या भूलूँ क्या याद करूँ, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान तक, प्रवास की डायरी, मधुशाला, मधुकलश, मधुबाला, निशा-निमन्त्रण, एकान्त संगीत |
भाषा | हिन्दी भाषा |
शैली | विविध शैलियों का प्रयोग |
साहित्य काल | छायावादोत्तर काल |
विधाएं | आत्मकथा, काव्य, कविता |
साहित्य में स्थान | हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि |
पुरस्कार | साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्म भूषण, सरस्वती सम्मान |
हरिवंशराय बच्चन का जीवन परिचय
हरिवंश राय बच्चन का जन्म प्रयाग (इलाहाबाद) में सन् 1907 ई० में हुआ। इनके पिता प्रताप नारायण श्रीवास्तव गाँव-बाबूपट्टी, जिला-प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश में रहते थे। बच्चन के पूर्वज मूलरूप से अमोढ़ा (उत्तर प्रदेश) के निवासी थे। हरिवंश राय बच्चन हिन्दी भाषा के प्रसिद्ध लेखक तथा कवि रहे थे। उन्होंने काशी और प्रयाग में शिक्षा प्राप्त की। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से उन्होंने डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। कुछ समय वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापक रहे और कालांतर में दिल्ली में भारत के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ भी रहे। वहीं से उन्होंने अवकाश ग्रहण किया। और कवि सांस की लंबी बीमारी की बजह से हरिवंश राय बच्चन की मृत्यु 18 जनवरी 2003 को मुम्बई में हुई।
हरिवंश राय बच्चन हिन्दी कविता के छायावादोत्तर काल के प्रमुख कवियों में से एक हैं। मधुशाला बच्चन की सबसे प्रसिद्ध कृति है। हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में हरिवंश राय बच्चन का भी नाम आता है। हिन्दी सिनेमा जगत के प्रसिद्ध अभिनेता अमिताभ बच्चन उनके बड़े पुत्र हैं।
हरिवंशराय बच्चन का साहित्यिक एवं कवि परिचय
‘हरिवंशराय बच्चन’ उत्तर छायावादी काल के आस्थावादी कवि थे। उनकी कविताओं में मानवीय भावनाओं की सामान्य एवं स्वाभाविक अभिव्यक्ति हुई है। सरलता, संगीतात्मकता, प्रवाह और मार्मिकता उनके काव्य की विशेषताएँ हैं और इन्हीं से उनको इतनी अधिक लोकप्रियता प्राप्त हुई।
आरम्भ में ‘हरिवंश राय बच्चन’ उमर खैय्याम के जीवन-दर्शन से बहुत प्रभावित रहे। इसी ने उनके जीवन को मस्ती से भर दिया। मधुशाला, मधुबाला, हाला और प्याला को उन्होंने प्रतीकों के रूप में स्वीकार किया।
पहली पत्नी श्यामा की मृत्यु के बाद घोर विषाद और निराशा ने उनके जीवन को घेर लिया। इसके स्वर हमको ‘निशा-निमन्त्रण‘ और ‘एकान्त संगीत‘ में सुनने को मिले। इसी समय से हृदय की गम्भीर वृत्तियों का विश्लेषण आरम्भ हुआ। किन्तु ‘सतरंगिणी‘ में फिर ‘नीड़ का निर्माण‘ किया गया और जीवन का प्याला एक बार फिर उल्लास और आनन्द के आसव से छलकने लगा।
‘बच्चन’ वास्तव में व्यक्तिवादी कवि रहे किन्तु ‘बंगाल का काल‘ तथा इसी प्रकार की अन्य रचनाओं में उन्होंने अपने जीवन के बाहर विस्तृत जनजीवन पर भी दृष्टि डालने का प्रयत्न किया। इन परवर्ती रचनाओं में कुछ नवीन विषय भी उठाए गए और कुछ अनुवाद भी प्रस्तुत किए गए। इनमें कवि की विचारशीलता तथा चिन्तन की प्रधानता रही।
परवर्ती रचनाओं में कवि की वह भावावेशपूर्ण तन्मयता नहीं है, जो उनकी आरम्भिक रचनाओं में पाठकों और श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध करती रही।
हरिवंशराय बच्चन की रचनाएँ एवं कृतियाँ
- काव्य: मधुशाला, मधुकलश, मधुबाला, निशा-निमन्त्रण, एकान्त संगीत, सतरंगिनी, मिलन-यामिनी, आकुल अन्तर, बुद्ध और नाचघर, प्रणय-पत्रिका, आरती और अंगार आदि।
- आत्मकथा: क्या भूलूँ क्या याद करूँ, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान तक, प्रवास की डायरी।
हरिवंश राय बच्चन ने छोटी बड़ी लगभग पचास से भी अधिक रचनाएं की। उनमें सबसे प्रसिद्ध उनका काव्य मधुशाला ही है। उनकी प्रमुख कविताएं (काव्य), आत्मकथा, तथा अन्य रचनाएं निम्न हैं:
कविता (काव्य) संग्रह
हरिवंश राय बच्चन की कविता एवं काव्य संग्रह निम्नलिखित है:
- आकुल अंतर (1943),
- आत्म परिचय (1937),
- आरती और अंगारे (1958),
- उभरते प्रतिमानों के रूप (1969),
- एकांत संगीत (1939),
- कटती प्रतिमाओं की आवाज़ (1968),
- खादी के फूल (1948),
- चार खेमे चौंसठ खूंटे (1962),
- जाल समेटा (1973),
- तेरा हार (1929),
- त्रिभंगिमा (1961),
- दो चट्टानें (1965),
- धार के इधर-उधर (1957),
- निशा निमंत्रण (1938),
- प्रणय पत्रिका (1955),
- बंगाल का काल (1946),
- बहुत दिन बीते (1967),
- बुद्ध और नाचघर (1958),
- मधुकलश (1937),
- मधुबाला (1936),
- मधुशाला (1935),
- मिलन यामिनी (1950),
- सतरंगिनी (1945),
- सूत की माला (1948),
- हलाहल (1946)।
आत्मकथा
हरिवंश राय बच्चन की आत्मकथाएं निम्नलिखित है:
- क्या भूलूँ क्या याद करूँ (1969),
- नीड़ का निर्माण फिर (1970),
- बसेरे से दूर (1977),
- दशद्वार से सोपान तक (1985),
- प्रवास की डायरी।
अन्य रचनाएं
हरिवंश राय बच्चन की अन्य विविध रचनाएं इस प्रकार है:
- अभिनव सोपान (1964)
- आज के लोकप्रिय हिन्दी कवि: सुमित्रानंदन पंत (1960),
- आधुनिक कवि (1961),
- उमर खय्याम की रुबाइयाँ (1959),
- ओथेलो (1959),
- कवियों में सौम्य संत: पंत (1960),
- किंग लियर (1972),
- खय्याम की मधुशाला (1938),
- चौंसठ रूसी कविताएँ (1964),
- जनगीता (1958),
- टूटी छूटी कड़ियाँ (1973)।
- डब्लू बी यीट्स एंड अकल्टिज़म (1968),
- नये पुराने झरोखे (1962),
- नागर गीता (1966),
- नेहरू: राजनैतिक जीवनचरित (1961),
- पंत के सौ पत्र (1970),
- प्रवास की डायरी (1971),
- बच्चन के लोकप्रिय गीत (1967),
- बच्चन के साथ क्षण भर (1934),
- भाषा अपनी भाव पराये (1970),
- मरकत द्वीप का स्वर (1968),
- मैकबेथ (1957),
- सोपान (1953),
- हैमलेट (1969)।
पुरस्कार एवं सम्मान
- साहित्य अकादमी पुरस्कार (1938) : उनकी कविता “दो चट्टानें” के लिए।
- सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार (1938)
- कमल पुरस्कार (1938) : एफ्रो एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी सम्मानित।
- सरस्वती सम्मान : बिड़ला फाउण्डेशन ने उनकी आत्मकथा के लिए उन्हें सरस्वती सम्मान दिया था।
- पद्म भूषण : बच्चन को भारत सरकार द्वारा 1976 में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
- भारत सरकार ने 2000 ई. उनके सम्मान में 5 रुपये के मूल्य का डाक टिकट भी जारी किया।
Frequently Asked Questions (FAQ)
1. हरिवंश राय बच्चन का संक्षेप में जीवन परिचय लिखो?
हरिवंश राय का जन्म प्रयाग, इलाहाबाद में सन् 1907 ई० में हुआ। इनको बाल्यकाल में ‘बच्चन’ कहा जाता था जिसका शाब्दिक अर्थ ‘बच्चा’ या ‘संतान’ होता है। हरिवंश राय बच्चन हिन्दी भाषा के प्रसिद्ध लेखक तथा कवि रहे थे। उन्होंने काशी और प्रयाग में शिक्षा प्राप्त की। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से उन्होंने डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। कुछ समय वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापक रहे और कालांतर में दिल्ली में भारत के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ भी रहे। वहीं से उन्होंने अवकाश ग्रहण किया। और कवि सांस की लंबी बीमारी की बजह से हरिवंश राय बच्चन की मृत्यु 18 जनवरी 2003 को मुम्बई में हुई।
2. बच्चन जी की प्रमुख कृतियां या रचनाओं के नाम लिखो?
मधुबाला, मधुकलश, सतरंगीनी , एकांत संगीत , निशा निमंत्रण, विकल विश्व, खादी के फूल , सूत की माला, मिलन दो चट्टानें भारती और अंगारे इत्यादि हरिवंश राय बच्चन की मुख्य कृतियां है। हरिवंश राय बच्चन की गद्य रचनाओं में क्या भूलूं क्या याद करू, टूटी छूटी कड़ियां, नीड़ का निर्माण फिर-फिर आदि श्रेष्ठ है।
3. हरिवंश राय का जन्म कब और कहाँ हुआ?
हरिवंश राय बच्चन का जन्म प्रयाग (इलाहाबाद) में सन् 1907 ई० में हुआ। इनके पिता प्रताप नारायण श्रीवास्तव गाँव-बाबूपट्टी, जिला-प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश में रहते थे। बच्चन के पूर्वज मूलरूप से अमोढ़ा (उत्तर प्रदेश) के निवासी थे।
4. हरिवंश राय बच्चन ने प्रारम्भिक शिक्षा कहाँ पूर्ण हुई?
हरिवंशराय जी अपनी शिक्षा म्युनिसिपल स्कूल से शुरू की थी, उसके बाद उन्होंने कायस्थ पाठशाला में पहले उर्दू और फिर हिन्दी की शिक्षा प्राप्त की।
5. हरिवंश राय ने उच्च शिक्षा कहाँ से प्राप्त की?
हरिवंश राय बच्चन ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम.ए. किया और 1952 तक वे इसी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर भी रहे। इसके बाद लंदन में जाकर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य के विख्यात कवि डब्लू.बी. यीट्स की कविताओं पर शोध कर पीएच.डी. (Ph.D) पूरी की थी। वे दूसरे भारतीय थे जिन्हें कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से इंग्लिश लिटरेचर में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त थी। इसके बाद वे पुनः भारत आकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाने लगे साथ ही साथ ऑल इंडिया रेडियो इलाहाबाद में भी काम करने लगे।
6. हरिवंश राय बच्चन की मृत्यु कब और कहाँ हुई।
हरिवंश राय जी का 18 जनवरी 2003 में 95 वर्ष की आयु में मुंबई के एक अस्पताल में सांस की बीमारी की बजह से निधन हो गया। परंतु इनके निधन के बाबजूद ये अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों के दिलों में आज भी जिंदा हैं।
7. हरिवंश राय की पहली शादी किससे हुई थी?
हरिवंश राय की पहली शादी 1926 में 19 वर्ष की उम्र में “श्यामा बच्चन” से हुई जो उस समय 14 वर्ष की थीं। 1936 में टीबी के कारण श्यामा की मृत्यु हो गई। पाँच साल बाद 1941 में बच्चन ने एक पंजाबन तेजी सूरी से विवाह किया जो रंगमंच तथा गायन से जुड़ी हुई थीं।
8. हरिवंश राय की दूसरी पत्नी का क्या नाम था?
हरिवंश राय बच्चन दूसरा पत्नी का नाम “तेजी बच्चन” थीं। जिनसे उन्होंने 1941 में शादी की। जिनसे दो संताने हुईं। इन दोनों में एक बॉलीवुड सुपर स्टार अमिताभ बच्चन हैं और दूसरे पुत्र अजिताभ जो एक बिजनेस मैन बने।
9. हरिवंश राय बच्चन के कैरियर की शुरुआत कब हुई?
हरिवंश राय बच्चन ने सन् 1941 से 1952 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर के रूप में काम किया। 1952 में इंग्लिश लिटरेचर में PHD करने के लिए इंग्लैंड की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए। वहाँ शोध करने के बाद, सन् 1955 में वापस आकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाने लगे साथ ही साथ ऑल इंडिया रेडियो अलाहाबाद में भी काम करने लगे। सिर्फ इतना ही नहीं, उन्होंने फिल्मों के लिए भी लिखने का काम किया। अमिताभ के द्वारा अभिनय किया गया एक मशहूर गीत ‘रंग बरसे भीगे चुनर वाली रंग बरसे’ उन्होंने ही लिखा जिसे खुद उनके बेटे अमिताभ बच्चन ने गाया। हरिवंशराय को 1955 में भारत सरकार ने उन्हें विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के रूप में चुना गया और वे दिल्ली आकर रहने लगे। उनको 1966 में भारत सरकार द्वारा राज्य सभा के लिए नामांकित किया गया। हरिवंश राय बच्चन को सन् 1976 में पद्म भूषण के सम्मान से नवाजा गया।
10. हरिवंश राय बच्चन का कार्य क्षेत्र क्या था?
हरिवंश राय बच्चन एक कुशल लेखक, कवि एवं वक्ता थे। उन्होंने कई गेय काव्य की रचनाएं की। उन्होंने अध्यापन का कार्य भी किया। उन्होंने भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के रूप में भी कार्य किया। उन्हें राज्य सभा के लिए भी नामांकित किया गया।
11. हरिवंश राय बच्चन की उपलब्धियाँ क्या हैं? बताइए।
हरिवंशराय को 1955 में भारत सरकार ने उन्हें विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के रूप में चुना गया और वे दिल्ली आ गए। उनको 1966 में भारत सरकार द्वारा राज्य सभा के लिए नामांकित किया गया। बच्चन को 1968 में “दो चट्टानें” नामक कविता के लिए भारत सरकार द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। कुछ समय बाद उन्हें “सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार” और एफ्रो एसियन सम्मेलन के “कमल पुरस्कार” से भी सम्मानित किया गया। उनकी सफल जीवन कथा, क्या भूलूं क्या याद रखु , नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर और दशद्वार से सोपान के लिए बिरला फाउंडेशन द्वारा “सरस्वती पुरस्कार” से सम्मानित किया गया। 1976 मैं उनके हिंदी भाषा के विकास में अभूतपूर्व योगदान के लिए “पद्म भूषण” से सम्मानित किया गया।
12. हरिवंश राय बच्चन के प्रसिद्ध प्रसंग लिखिए?
पहली पत्नी श्यामा की मृत्यु के बाद घोर विषाद और निराशा ने उनके जीवन को घेर लिया। वर्ष 1936 में उनकी अकाल मृत्यु हो गयी। पांच साल बाद वर्ष 1941 में बच्चन जी का दूसरा विवाह तेजी बच्चन से हुआ और उन दोनों की दो संतान हुईं। इन दोनों के दो पुत्रों में एक बॉलीवुड सुपर स्टार अमिताभ बच्चन हैं और दूसरे पुत्र अजिताभ एक बिजनेस मैन बने।
कविता – हरिवंश राय बच्चन की कविताएं
पथ की पहचान नामक गीत हरिवंश राय बच्चन ने सतरंगिणी नामक काव्य में लिखा है। इस गीत का मूल भाव यह है कि सफल जीवन के लिए मनुष्य को साहस के साथ जीवन-मार्ग पर अग्रसर होना चाहिए। जीवन की कठिनाइयों से घबराना नहीं चाहिए तथा अन्य महापुरुषों के आदर्शों से प्रेरणा लेनी चाहिए।
1. पथ की पहचान – हरिवंश राय बच्चन (सतरंगिणी से)
पूर्व चलने के बटोही,
बाट की पहचान कर ले।
पुस्तकों में है नहीं
छापी गयी इसकी कहानी,
हाल इसका ज्ञात होता
है न औरों की जुबानी,
अनगिनत-राही गए इस
राह से, उनका पता क्या?
पर गए कुछ लोग इस पर
छोड़ पैरों की निशानी,
यह निशानी मूक होकर
भी बहुत कुछ बोलती है,
खोल इसका अर्थ, पंथी,
पंथ का अनुमान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही,
बाट की पहचान कर ले। ॥ 1 ॥
यह बुरा है या कि अच्छा,
व्यर्थ दिन इस पर बिताना,
अब असंभव, छोड़ यह पथ
दूसरे पर पग बढ़ाना,
तू इसे अच्छा समझ,
यात्रा सरल इससे बनेगी।
सोच मत केवल तुझे ही
यह पड़ा मन में बिठाना,
हर सफल पंथी यही
विश्वास ले इस पर बढ़ा है,
तू इसी पर आज अपने
चित्त का अवधान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही,
बाट की पहचान कर ले। ॥ 2 ॥
है अनिश्चित किस जगह पर
सरित, गिरि गह्वर मिलेंगे,
है अनिश्चित, किस जगह पर
बाग वन सुन्दर मिलेंगे।
किस जगह यात्रा खतम हो
जायगी, यह भी अनिश्चित,
है अनिश्चित, कब सुमन, कब
कंटकों के शर मिलेंगे,
कौन सहसा छूट जाएँगे,
मिलेंगे. कौन सहसा
आ पड़े कुछ भी, रुकेगा
तू न ऐसी आन कर ले।
पूर्व चलने के बटोही,
बाट की पहचान कर ले। ॥ 3 ॥
कौन कहता है कि स्वप्नों
को न आने दे हृदय में!
देखते सब हैं इन्हें
अपनी उमर, अपने समय में
और तू कर यत्न भी तो
मिल नहीं सकती सफलता,
ये उदय होते, लिए कुछ
ध्येय नयनों के निलय में,
किन्तु जग के पंथ पर यदि
स्वप्न दो तो सत्य दो सौ,
स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो,
सत्य का भी ज्ञान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही!
बाट की पहचान कर ले। ॥ 4 ॥
स्वप्न आता स्वर्ग का, द्रग
कोरकों में दीप्ति आती,
पंख लग जाते पगों को,
ललकती उन्मुक्त-छाती,
रास्ते का एक काँटा
पाँव का दिल चीर देता,
रक्त की दो बूंद गिरती,
एक दुनिया डूब जाती,
आँख में हो स्वर्ग, लेकिन
पाँव पृथ्वी पर टिके हों,
कंटकों की इस अनोखी
सीख का सम्मान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही,
बाट की पहचान कर ले। ॥ 5 ॥
उपर्युक्त हरिवंश राय बच्चन की कविता ‘पथ की पहचान’ में प्रयुक्त कठिन शब्द और अर्थ:
चित्त का अवधान : मनोयोग, निश्चय। गह्वर : गड्ढे। सरित, गिरि, गह्वर : बाधाओं एवं कठिनाइयों के प्रतीक हैं। बाग, वन : सुख के प्रतीक हैं। कंटकों के शर : बाण की तरह चुभने वाले काँटे, दुःख के प्रतीक। कोरकों : कली। आन : हठ। निलय : कक्ष। स्वप्न का प्रयोग कल्पना के लिए किया गया है। रास्ते का एक काँटा पाँव का दिल चीर देता = जीवन की एक कठिनाई कभी-कभी मनुष्य को हताश कर देती है। आँख में हो स्वर्ग लेकिन पाँव पृथ्वी पर टिके हों= मन में चाहे कितनी ऊँची कल्पना हो परन्तु कार्य व्यावहारिक होना चाहिए।
2. मधुबाला (कविता) – हरिवंशराय बच्चन
मैं मधुबाला मधुशाला की,
मैं मधुशाला की मधुबाला!
मैं मधु-विक्रेता को प्यारी,
मधु के धट मुझ पर बलिहारी,
प्यालों की मैं सुषमा सारी,
मेरा रुख देखा करती है
मधु-प्यासे नयनों की माला।
मैं मधुशाला की मधुबाला!
इस नीले अंचल की छाया
में जग-ज्वाला का झुलसाया
आकर शीतल करता काया,
मधु-मरहम का मैं लेपन कर
अच्छा करती उर का छाला।
मैं मधुशाला की मधुबाला!
3. दिन जल्दी जल्दी ढलता है – हरिवंशराय बच्चन (निशा निमन्त्रण से)
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
हो जाए न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
4. नीड़ का निर्माण – हरिवंशराय बच्चन (सतरंगिनी से)
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!
वह उठी आँधी कि नभ में,
छा गया सहसा अँधेरा,
धूलि धूसर बादलों नें
भूमि को भाँति घेरा,
रात-सा दिन हो गया, फिर
रात आई और काली,
लग रहा था अब न होगा
इस निशा का फिर सवेरा,
रात के उत्पात-भय से
भीत जन-जन, भीत कण-कण
किंतु प्राची से उषा की
मोहनी मुसकान फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर,
वह चले झोंके कि काँपे
भीम कायावान भूधर,
जड़ समेत उखड़-पुखड़कर
गिर पड़े, टूटे विटप वर,
हाय, तिनकों से विनिर्मित
घोंसलों पर क्या न बीती,
डगमगाए जबकि कंकड़,
ईंट, पत्थर के महल-घर;
बोल आशा के विहंगम,
किस जगह पर तू छिपा था,
जो गगन चढ़ उठाता
गर्व से निज तान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!
क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों
में उषा है मुसकराती,
घोर गर्जनमय गगन के
कंठ में खग पंक्ति गाती;
एक चिड़या चोंच में तिनका
लिए जो गा रही है,
वह सहज में ही पवन
उंचास को नीचा दिखाती!
नाश के दुख से कभी
दबता नहीं निर्माण का सुख
प्रलय की निस्तब्धता से
सृष्टि का नव गान फिर-फिर!
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर!
5. मधुशाला (कविता) भाग एक – हरिवंशराय बच्चन
मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला। ॥ 1 ॥
प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला। ॥ 2 ॥
प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला। ॥ 3 ॥
भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला। ॥ 4 ॥
मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला,
भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,
उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,
अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला। ॥ 5 ॥
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला,
‘किस पथ से जाऊँ?’ असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ
‘राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला। ॥ 6 ॥
चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!
‘दूर अभी है’, पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,
हिम्मत है न बढूँ आगे को साहस है न फिरुँ पीछे,
किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला। ॥ 7 ॥
मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला,
हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला,
ध्यान किए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का,
और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको दूर लगेगी मधुशाला। ॥ 8 ॥
मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला,
अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला,
बने ध्यान ही करते-करते जब साकी साकार, सखे,
रहे न हाला, प्याला, साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला। ॥ 9 ॥
सुन, कलकल़ , छलछल़ मधुघट से गिरती प्यालों में हाला,
सुन, रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला,
बस आ पहुंचे, दुर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है,
चहक रहे, सुन, पीनेवाले, महक रही, ले, मधुशाला। ॥ 10 ॥
जलतरंग बजता, जब चुंबन करता प्याले को प्याला,
वीणा झंकृत होती, चलती जब रूनझुन साकीबाला,
डाँट डपट मधुविक्रेता की ध्वनित पखावज करती है,
मधुरव से मधु की मादकता और बढ़ाती मधुशाला। ॥ 11 ॥
मेहंदी रंजित मृदुल हथेली पर माणिक मधु का प्याला,
अंगूरी अवगुंठन डाले स्वर्ण वर्ण साकीबाला,
पाग बैंजनी, जामा नीला डाट डटे पीनेवाले,
इन्द्रधनुष से होड़ लगाती आज रंगीली मधुशाला। ॥ 12 ॥
हाथों में आने से पहले नाज़ दिखाएगा प्याला,
अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला,
बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले,
पथिक, न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला। ॥ 13 ॥
लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला,
फेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला,
दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं,
पीड़ा में आनंद जिसे हो, आए मेरी मधुशाला। ॥ 14 ॥
जगती की शीतल हाला सी पथिक, नहीं मेरी हाला,
जगती के ठंडे प्याले सा पथिक, नहीं मेरा प्याला,
ज्वाल सुरा जलते प्याले में दग्ध हृदय की कविता है,
जलने से भयभीत न जो हो, आए मेरी मधुशाला। ॥ 15 ॥
बहती हाला देखी, देखो लपट उठाती अब हाला,
देखो प्याला अब छूते ही होंठ जला देनेवाला,
‘होंठ नहीं, सब देह दहे, पर पीने को दो बूंद मिले’
ऐसे मधु के दीवानों को आज बुलाती मधुशाला। ॥ 16 ॥
धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,
मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका,
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला। ॥ 17 ॥
लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी हाला,
हर्ष-विकंपित कर से जिसने, हा, न छुआ मधु का प्याला,
हाथ पकड़ लज्जित साकी को पास नहीं जिसने खींचा,
व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला। ॥ 18 ॥
बने पुजारी प्रेमी साकी, गंगाजल पावन हाला,
रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला’
‘और लिये जा, और पीये जा’, इसी मंत्र का जाप करे’
मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं, मंदिर हो यह मधुशाला। ॥ 19 ॥
बजी न मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला,
बैठा अपने भवन मुअज्ज़िन देकर मस्जिद में ताला,
लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,
रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला। ॥ 20 ॥
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