लड़कियाँ केवल समाज की आधी आबादी ही नहीं, बल्कि सशक्तिकरण, संघर्ष और सपनों की जीती-जागती मिसाल भी हैं। उनके अधिकारों, इच्छाओं और अस्तित्व की लड़ाई सदियों से चली आ रही है, और साहित्य ने हमेशा उनकी भावनाओं को आवाज़ दी है। हिंदी कविता जगत में भी लड़कियों पर कई बेहतरीन रचनाएँ लिखी गई हैं, जो उनके सपनों, इच्छाओं, समाज में उनकी भूमिका और चुनौतियों को उकेरती हैं।
इस लेख में हम ऐसी 10 बेहतरीन हिंदी कविताओं को प्रस्तुत कर रहे हैं, जिन्हें प्रसिद्ध कवियों ने लिखा है। ये कविताएँ लड़कियों की आत्मनिर्भरता, संघर्ष और उनकी उड़ान को बखूबी दर्शाती हैं। आइए, इन प्रेरणादायक कविताओं के माध्यम से लड़कियों की दुनिया को और गहराई से समझें।
लड़कियों पर बेहतरीन हिंदी कविताएँ: उनके सपने, संघर्ष और स्वतंत्रता की गूंज
आगे दस हिंदी कविताएँ प्रस्तुत हैं ‘10+ Poem on Girls in Hindi‘, यह प्रसिद्ध कवियों की अनमोल रचनाएँ हैं, जो लड़कियों के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती हैं-
1. भागी हुई लड़कियाँ – आलोक धन्वा
आलोक धन्वा की यह प्रसिद्ध कविता उन लड़कियों की बात करती है जो समाज की बंदिशों से मुक्त होकर अपने सपनों की ओर भागती हैं।
एक घर की जंजीरें
कितना ज्यादा दिखाई पड़ती हैं
जब घर से कोई लड़की भागती है
क्या उस रात की याद आ रही है
जो पुरानी फिल्मों में बार-बार आती थी
जब भी कोई लड़की घर से भगती थी?
बारिश से घिरे वे पत्थर के लैम्पपोस्ट
महज आंखों की बेचैनी दिखाने भर उनकी रोशनी?
और वे तमाम गाने रजतपरदों पर दीवानगी के
आज अपने ही घर में सच निकले!
क्या तुम यह सोचते थे
कि वे गाने महज अभिनेता-अभिनेत्रियों के लिए
रचे गए?
और वह खतरनाक अभिनय
लैला के ध्वंस का
जो मंच से अटूट उठता हुआ
दर्शकों की निजी जिन्दगियों में फैल जाता था?
तुम तो पढ कर सुनाओगे नहीं
कभी वह खत
जिसे भागने से पहले
वह अपनी मेज पर रख गई
तुम तो छुपाओगे पूरे जमाने से
उसका संवाद
चुराओगे उसका शीशा उसका पारा
उसका आबनूस
उसकी सात पालों वाली नाव
लेकिन कैसे चुराओगे
एक भागी हुई लड़की की उम्र
जो अभी काफी बची हो सकती है
उसके दुपट्टे के झुटपुटे में?
उसकी बची-खुची चीजों को
जला डालोगे?
उसकी अनुपस्थिति को भी जला डालोगे?
जो गूंज रही है उसकी उपस्थिति से
बहुत अधिक
सन्तूर की तरह
केश में
उसे मिटाओगे
एक भागी हुई लड़की को मिटाओगे
उसके ही घर की हवा से
उसे वहां से भी मिटाओगे
उसका जो बचपन है तुम्हारे भीतर
वहां से भी
मैं जानता हूं
कुलीनता की हिंसा !
लेकिन उसके भागने की बात
याद से नहीं जाएगी
पुरानी पवनचिक्कयों की तरह
वह कोई पहली लड़की नहीं है
जो भागी है
और न वह अन्तिम लड़की होगी
अभी और भी लड़के होंगे
और भी लड़कियां होंगी
जो भागेंगे मार्च के महीने में
लड़की भागती है
जैसे फूलों गुम होती हुई
तारों में गुम होती हुई
तैराकी की पोशाक में दौड़ती हुई
खचाखच भरे जगरमगर स्टेडियम में
अगर एक लड़की भागती है
तो यह हमेशा जरूरी नहीं है
कि कोई लड़का भी भागा होगा
कई दूसरे जीवन प्रसंग हैं
जिनके साथ वह जा सकती है
कुछ भी कर सकती है
महज जन्म देना ही स्त्री होना नहीं है
तुम्हारे उस टैंक जैसे बंद और मजबूत
घर से बाहर
लड़कियां काफी बदल चुकी हैं
मैं तुम्हें यह इजाजत नहीं दूंगा
कि तुम उसकी सम्भावना की भी तस्करी करो
वह कहीं भी हो सकती है
गिर सकती है
बिखर सकती है
लेकिन वह खुद शामिल होगी सब में
गलतियां भी खुद ही करेगी
सब कुछ देखेगी शुरू से अंत तक
अपना अंत भी देखती हुई जाएगी
किसी दूसरे की मृत्यु नहीं मरेगी
लड़की भागती है
जैसे सफेद घोड़े पर सवार
लालच और जुए के आरपार
जर्जर दूल्हों से
कितनी धूल उठती है
तुम
जो
पत्नियों को अलग रखते हो
वेश्याओं से
और प्रेमिकाओं को अलग रखते हो
पत्नियों से
कितना आतंकित होते हो
जब स्त्री बेखौफ भटकती है
ढूंढती हुई अपना व्यक्तित्व
एक ही साथ वेश्याओं और पत्नियों
और प्रमिकाओं में !
अब तो वह कहीं भी हो सकती है
उन आगामी देशों में
जहां प्रणय एक काम होगा पूरा का पूरा
कितनी-कितनी लड़कियां
भागती हैं मन ही मन
अपने रतजगे अपनी डायरी में
सचमुच की भागी लड़कियों से
उनकी आबादी बहुत बड़ी है
क्या तुम्हारे लिए कोई लड़की भागी?
क्या तुम्हारी रातों में
एक भी लाल मोरम वाली सड़क नहीं?
क्या तुम्हें दाम्पत्य दे दिया गया?
क्या तुम उसे उठा लाए
अपनी हैसियत अपनी ताकत से?
तुम उठा लाए एक ही बार में
एक स्त्री की तमाम रातें
उसके निधन के बाद की भी रातें !
तुम नहीं रोए पृथ्वी पर एक बार भी
किसी स्त्री के सीने से लगकर
सिर्फ आज की रात रुक जाओ
तुमसे नहीं कहा किसी स्त्री ने
सिर्फ आज की रात रुक जाओ
कितनी-कितनी बार कहा कितनी स्त्रियों ने दुनिया भर में
समुद्र के तमाम दरवाजों तक दौड़ती हुई आयीं वे
सिर्फ आज की रात रुक जाओ
और दुनिया जब तक रहेगी
सिर्फ आज की रात भी रहेगी
2. लड़कियाँ – सिमरत गगन
सिमरत गगन की यह कविता लड़कियों के जीवन, उनकी इच्छाओं और संघर्षों को बयां करती है।
चिड़ियाँ स्वयं कभी नहीं मरतीं
मार दी जाती हैं
लडकियाँ स्वयं कभी नहीं जलतीं
जला दी जाती हैं…
तिनका-तिनका घोंसला बना लेती
सपना सजा लेती हैं
लेकिन तूफ़ान की नीयत का क्या भरोसा
कब आ जाए…
लड़कियाँ साहसी हैं
लेकिन डरा दी जाती हैं
लड़कियाँ ख़ुशदिल हैं
रूला दी जाती हैं
आपस में बैठी
खिल-खिलाकर हँस लेती हैं
नाच तो लेती हैं
लेकिन ताउम्र उस हँसी का
क़र्ज़ नहीं उतरता…
लड़कियाँ काँच होती हैं
जो घूरने मात्र से टूट जाए
लड़कियाँ सच होती हैं
कि मुस्कान से जुड़ जाएँ
लड़कियाँ बहुत वफ़ादार होती हैं
ये कभी छोड़कर नहीं जातीं
भेज दी जाती हैं…
भुरने-टूटने पर विवश हो जाती हैं
टहनी से टूटे
सूखे फूल की तरह
सुगंध बाँटता
स्वयं गंधहीन हो जाता है
लड़कियाँ बहुत भोली-भाली होती हैं…
3. कविता करती लड़कियाँ – हरविंदर भंडाल
हरविंदर भंडाल की इस रचना में उन लड़कियों का चित्रण है जो कविता के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त करती हैं।
दूर अँधेरे की ओट में सिमटी बैठी
जलावतन कविता
आहट महसूस करती है
चाँदनी का लिबास पहन लेती है
अपने ही जिस्म में उग आए
ओस कणों पर सवार होकर
सपनों से अक्षर अर्पित कर देती है
उन लड़कियों को
जो कविता की जलावतनी की उम्र में
अपनी पलकों में
कविता के आँसू पिरो रही हैं
—कुछ लड़कियाँ कविता कह रही हैं।
वैसे
अभी मन की दीवारों पर उगे
बहुत वटवृक्ष हैं
जिनके नीचे
संबंधों के प्रेत भटकते हैं प्रायः
मिट्टी में
अवशेषों की दुर्गंध है
और अक्स में
तारों की राख
समंदर अब डूब चुके जहाज़ों का
मात्र मलबा रह गया है
समंदर के मलबे में मिले शंख को
कान से लगाकर
कुछ लड़कियाँ
लहरों से जन्मा संगीत सुन रही हैं
—कुछ कविता लिख रही हैं।
कविता के शील का
यदि यह मौसम होता,
तो कविता
गाल पर सूखे आँसू के
निशान-सी नहीं
न बुझे हुए जुगनू की रोशनी में
राह देखने की
लालसा-भर होती
कविता गजरों में छिपी सुगंध-सी
अथवा
चूड़ियों के रंग-सी होती
कविता सूर्य-सी
या चंद्रमा-सी होती
शिव की जटाओं में
सूख रही गंगा के सामने
कुछ लड़कियाँ
धूप के पैबंदों में
बादल के टुकड़े बाँधकर
सावन का सृजन कर रही हैं।
—कुछ लड़कियाँ कविता लिख रही हैं।
4. खेलमग्न तीन लड़कियाँ – मंगेश पाडगाँवकर
मंगेश पाडगाँवकर की यह कविता तीन लड़कियों की खेल में मग्नता और उनकी मासूमियत को दर्शाती है।
झोपड़ी के सामने नाले के बगल में
तीन बच्चियाँ करंजुवे खेल रही हैं
बचपन के कोमल हाथों में
करंजुवे को ऊँचे उछालकर लोक रही हैं
एक लड़की सुनहली रोशनी की राह से
हौले-हौले चलने लगी
अचानक अँधेरे के जंगल में पहुँची
जहाँ उस पर एक शेर ने झपट्टा मारा
झोपड़ी के सामने नाले के बगल में
तीन बच्चियाँ करंजुवे खेल रही हैं
बचपन के कोमल हाथों में
करंजुवे को ऊँचे उछालकर लोक रही हैं
दूसरी लड़की बाँसुरी सुनकर अभिभूत हुई
राधा की भाँति बिल्कुल वैसी ही तिरती चली
तिरती-तिरती जब वह ठिठक कर रुकी
बाट जोह रहे अजगर ने उसे
घेरकर लपेट लिया
उसे कसकर मृत्यु-फाँस में फाँस लिया
झोपड़ी के सामने नाले के बगल में
तीन बच्चियाँ करंजुवे खेल रही हैं
बचपन के कोमल हाथों में
करंजुवे को ऊँचे उछालकर लोक रही हैं
तीसरी बच्ची ने कहा : यहीं रहूँगी
नक्षत्रों का आसमान मैं यहीं से देखूँगी
ज़मीन पर उसका पैर मज़बूती से खड़ा था
फिर भी भूमि एकदम फट गई, और
देखते-देखते उसे पूरा निगल गई
झोपड़ी के सामने नाले के बगल में
तीन बच्चियाँ करंजुवे खेल रही हैं
बचपन के कोमल हाथों में
करंजुवे को ऊँचे उछालकर लोक रही हैं!
5. आज़ाद लड़की – वंदना गुप्ता
वंदना गुप्ता की इस कविता में एक स्वतंत्र लड़की की आकांक्षाओं और उसकी आज़ादी की बात की गई है।
मैं नींद में देखता हूँ आकाश
और चाँद के पास खड़ी एक कमसिन लड़की को
जो आँखों में समंदर की प्यास लिए
अपने सपनों को तलाशती
उम्र दर उम्र
उसकी चाहतों का आकाश
लंबा होता जाता
बचपन, किशोर, युवा से
प्रौढ़ होते उसके सपनों की चादर
फैलती जाती वितान-सी
वह बिखेरती जाती अपने सपनों की लड़ियाँ
आकाशी रास्तों पर
मैं वर्षों से देखता हूँ
नींद में चलते हुए उस लड़की को
शहर में, क़स्बे में, गाँव में
अपनी महत्वाकाँक्षा की जद्दोजहद में
उलझते-सुलझते…
जो छूना चाहती है अपने
सपनों का आसमान
चाहरदिवारी से निकलकर
जीना चाहती है अपनी स्वतंत्र आरज़ूए
करना चाहती है प्रेम अपनी शर्तों पर
रोप देना चाहती है अपनी मयूरपंखी ख़्वाहिशें
वक्त के सीने में लहू बनकर
दौड़ना चाहती है लंबी रेश के घोड़े के माफिक
आसमान के बीचों-बीच लहराना चाहती है
अपनी आज़ादी का परचम
शहर की, क़स्बे की, गाँव की
वह आज़ाद लड़की
जिसे मैं देखता हूँ अब नए लिबास में
नए रंग भरते हुए…।
6. जो लड़की – उत्तम चौधरी
उत्तम चौधरी की यह कविता उस लड़की के बारे में है जो समाज की सीमाओं को पार कर अपनी पहचान बनाती है।
जारुल वृक्ष के पत्तों को हिलाती जो लड़की जा रही है
मैं उसकी परछाई से भी
परिचित हूँ
देख रहा हूँ बादल उड़ रहे हैं उसके ज़ाफ़रानी रंगों वाले दुपट्टे के भीतर
नस के रंग वाले चूड़ीदार से दौड़ती आ रही है विदेशी सुगंध
वह सड़क पार करेगी, ब्रिज को भी, उसके बाद
प्रविष्ट होगी तिस्ता पार्क में… इसके बाद घास तोड़ेगी, फूल तोड़ेगी—
तथा मन ही मन गालियाँ देगी हेयर ड्रेसर को
क्योंकि बाल उसने सही नहीं काटे।
अपने फिसलन-भरे नाख़ूनों को टटोलती
पीली, हरी तथा भूरी तितलियों के पंख पर
स्वयं की आँखें बनाएगी और इंतज़ार का चेहरा
लड़की जानती ही नहीं कि उसके प्रेमी के पैरों में
चक्के लग चुके हैं और उसके बालों से झर रहे हैं
बर्फ़ के कण
वह लापरवाह है फिर भी उसका चेहरा उत्तर की ओर है।
7. सुनो लड़कियों – चित्रा पंवार
चित्रा पंवार की इस कविता में लड़कियों को संबोधित करते हुए जीवन के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया गया है।
कोई नहीं देगा तुम्हें
तुम्हारे हिस्से की ज़मीन
आसमान
हवा, धूप, पानी
सुनो लड़कियों!!
जंगली फूलों की तरह
हक़ से उगना
और जम जाना सीखो…
8. ज़्यादा पढ़ी लिखी लड़कियाँ – मीना प्रजापति
मीना प्रजापति की यह कविता उन लड़कियों के बारे में है जो अधिक शिक्षित हैं और समाज में अपनी जगह बना रही हैं।
ज़्यादा पढ़ी लिखी लड़कियाँ
बिगड़ जाती हैं, बाग़ी हो जाती हैं
पढ़ते-पढ़ते दुनियादारी समझ जाती हैं
जिन पर बस चलाना था
अब वे आँख दिखाने लगी हैं
ज़्यादा पढ़ी लिखी लड़कियाँ बिगड़ जाती हैं।
पढ़-लिखकर नवाब बन जाती हैं
सत्ता में आ जाती हैं
संसद में जोर से हँस देती हैं
कोई किताब अब इन्हें शउर,
नहीं सिखाती क्या?
ये उठती हैं, गिरती हैं
अपने लिए जीती हैं
अपने मुताबिक दुनिया,
बदलने के लिए लड़ती हैं
और फिर दुनिया कहती है—
पढ़ी-लिखी लड़कियाँ बाग़ी हो जाती हैं
पढ़ने लिखने तक तो ठीक था
अब हक़ ज़माने लगी हैं
पसंद की शादी करने लगती हैं
मोनोक्रोम फ़ैशन अपनाने लग जाती हैं
समाज के ठेकेदारों की नज़रों में
लड़कियाँ अब तो बिल्कुल बिगड़ गई हैं
सुनो, मम्मी-पापा, अंकल-आंटी
कुल-मिलाकर, आस पड़ोस के समाज भी
अब ‘आँचल में दूध आंखों में पानी’ वाली
ज़मीन नहीं रही है
अब लड़कियाँ स्टार्टअप का बूस्टर डोज ले
आगे बढ़ रही हैं
चूड़ी, बिंदी, बिछिया को
अंतिम सत्य मानकर
पल्लू में नहीं गाँठती हैं
ये लड़कियाँ, हिपहॉप बहु बनने की हिमाक़त कर रही हैं
अब लड़कियाँ सोच रही हैं
समझ रही हैं, गढ़ रही हैं, मढ रही हैं
हमारे बाद, आगे अभी और बढ़ेंगी
पढ़ी-लिखी लड़कियाँ
अभी और बिगड़ेंगी…।
9. लड़कियाँ – रेखा राजवंशी
रेखा राजवंशी की इस कविता में लड़कियों के जीवन, उनकी चुनौतियों और उनकी उम्मीदों का वर्णन है।
लड़कियाँ ये नहीं करतीं
लड़कियाँ वो नहीं करतीं
लड़कियाँ ऐसे नहीं उठतीं
लड़कियाँ वैसे नहीं बैठतीं
लड़कियाँ ज़बान नहीं लड़ाती
बेबात मुँह नहीं खोलतीं
बहस नहीं करतीं
बड़ों के आगे नहीं बोलतीं
लड़कियाँ काम पे जाती हैं
रात से पहले घर आती हैं
ठहाके लगा के नहीं हँसती
बस धीरे से मुस्कुराती हैं
सुनते-सुनते जाने कब बड़ी हो गई
अपने पैरों पर खड़ी हो गई
परिवार को पालने लगी
बूढ़े माँ-बाप को संभालने लगी
पर लड़का न बन सकी
10. लड़की – चाहत अन्वी
चाहत अन्वी की यह कविता एक लड़की के मनोभावों और उसकी दुनिया को दर्शाती है।
सुनो नीली फ़्राक वाली लड़की
तुम्हारा नाम क्या है?
वो खिल-खिलाकर बोली
‘लड़की’
मैंने देखा एक चिड़िया उसकी नीली फ़्राक के कोने से
फुर्र से नीले आकाश में उड़ गई।
11. प्रेम में पड़ी लड़की – रेखा राजवंशी
यह कविता प्रेम में डूबी नारी के समर्पण, आशा और आत्मअन्वेषण को दर्शाती है।
सच है कि
प्रेम में पड़ी लड़की
तुम्हारे साथ सिर्फ़
सोना नहीं चाहती
जागना चाहती है
बतियाना चाहती है
जीना चाहती है
सुख दुःख
बाँटना चाहती है
हर दंश
हर बाण
तुम्हारे साथ
झेलना चाहती है
चलना चाहती है
मिलाकर
क़दम से क़दम
सोचना चाहती है
समझना चाहती है
देखना चाहती है दुनिया
तुम्हारी आँखों से
तुम्हारे कंधे पर
सर टिका कर
कल्पना की उड़ान भरना
भर नहीं चाहती
सितारों, चाँद
और बादलों के पार
उड़ जाना भर
उसका रोमांस नहीं
सच की खुरदुरी ज़मीन पर
हाथों में डाल हाथ
चलना चाहती है
क़दम से क़दम मिलाकर
बढ़ना चाहती है
सच ही लिखा था
अमृता प्रीतम ने
प्रेम में पड़ी स्त्री
तुम्हारे साथ
सिर्फ़ सोना नहीं चाहती
संदेश एवं निष्कर्ष
लड़कियाँ केवल कोमलता और ममता का प्रतीक नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता, संघर्ष और शक्ति की मिसाल भी हैं। इन “10+ Poem on Girls in Hindi” कविताओं के माध्यम से हमें यह समझने को मिलता है कि समाज में लड़कियों की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है और उन्हें समानता, शिक्षा और स्वतंत्रता का पूरा अधिकार मिलना चाहिए।
हम सभी का दायित्व है कि हम लड़कियों को सशक्त बनने में मदद करें, उनकी क्षमताओं को पहचानें और उन्हें आगे बढ़ने का अवसर दें। जब एक लड़की आगे बढ़ती है, तो सिर्फ वह ही नहीं, बल्कि पूरा समाज प्रगति करता है। आइए, हम उनके सपनों को पंख दें और एक समानतापूर्ण समाज की नींव रखें।