प्रकृति (Nature) हमारे जीवन का आधार है, जो हमें शुद्ध हवा, मीठा पानी, हरे-भरे जंगल और सुंदर नज़ारे प्रदान करती है। इसकी गोद में हर जीव-जन्तु फलता-फूलता है। यदि हम प्रकृति की रक्षा करें, तो यह हमें अनमोल उपहार देती है, लेकिन यदि हम इसे नुकसान पहुँचाएँ, तो इसका दुष्प्रभाव पूरे पर्यावरण पर पड़ता है। प्रकृति पर लिखी गई कविताएँ हमारे मन को शांति देती हैं और हमें इससे जुड़े रहने की प्रेरणा देती हैं।
प्रकृति की विविधता अनंत है- ऊँचे पहाड़ों से गहरे समुद्र तक, हर जगह इसकी अनुपम छटा बिखरी है। इस लेख में पढ़िए, कैसे कवियों ने प्रकृति के सौंदर्य को शब्दों में संजोया है:
- ऋतुएं: बसंत के फूल, ग्रीष्म की तपिश, शरद की रंगत और शीत की बर्फ—हर ऋतु का मनमोहक चित्रण।
- प्राकृतिक तत्व: धरती, जल, अग्नि और वायु—इन तत्वों को मानवीय भावनाओं से जोड़कर गहराई से उकेरा गया है।
- पशु-पक्षी: उनकी चहचहाहट, व्यवहार और सौंदर्य को सहजता से काव्य में ढाला गया है।
- प्राकृतिक सुंदरता: सूर्योदय, चांदनी रात, तारों की छटा—इन अलौकिक दृश्यों ने कवियों को प्रेरित किया है।
प्रकृति का यह काव्यात्मक रूप पढ़कर आप भी इसके सजीव चित्रों में खो जाएंगे! इस लेख में हम आपके लिए प्रकृति पर सुंदर कविताएँ (Poem on Nature in Hindi) लेकर आए हैं, जो आपके दिल को छू जाएँगी। साथ ही, 8 पंक्तियों की कविता (8 Lines Poem on Nature in Hindi) और 4 पंक्तियों की छोटी कविता (4 Lines Short Poem on Nature in Hindi) भी दी गई हैं, जो प्रकृति की महिमा और इसके संरक्षण का संदेश देती हैं।
पानी और धूप | Poem on Nature in Hindi
अभी अभी थी धूप, बरसने
लगा कहाँ से यह पानी
किसने फोड़ घड़े बादल के
की है इतनी शैतानी।
सूरज ने क्यों बंद कर लिया
अपने घर का दरवाज़ा
उसकी माँ ने भी क्या उसको
बुला लिया कहकर आज।
ज़ोर-ज़ोर से गरज रहे हैं
बादल हैं किसके काका
किसको डाँट रहे हैं, किसने
कहना नहीं सुना माँ का।
बिजली के आँगन में अम्माँ
चलती है कितनी तलवार
कैसी चमक रही है फिर भी
क्यों ख़ाली जाते हैं वार।
क्या अब तक तलवार चलाना
माँ वे सीख नहीं पाए
इसीलिए क्या आज सीखने
आसमान पर हैं आए।
एक बार भी माँ यदि मुझको
बिजली के घर जाने दो
उसके बच्चों को तलवार
चलाना सिखला आने दो।
ख़ुश होकर तब बिजली देगी
मुझे चमकती सी तलवार
तब माँ कोई कर न सकेगा
अपने ऊपर अत्याचार।
पुलिसमैन अपने काका को
फिर न पकड़ने आएँगे
देखेंगे तलवार दूर से ही
वे सब डर जाएँगे।
अगर चाहती हो माँ काका
जाएँ अब न जेलख़ाना
तो फिर बिजली के घर मुझको
तुम जल्दी से पहुँचाना।
काका जेल न जाएँगे अब
तुझे मँगा दूँगी तलवार
पर बिजली के घर जाने का
अब मत करना कभी विचार।
4 पंक्तियों की छोटी कविता | 4 Lines Short Poem on Nature in Hindi
पेड़ लगाओ, हरियाली लाओ,
धरती माँ को स्वच्छ बनाओ।
नदियाँ हँसें, जंगल लहराए,
नीला आसमाँ मुस्कुराए।
~ कृतिका की प्रकृति पर हिन्दी कविता
8 पंक्तियों की कविता | 8 Lines Poem on Nature in Hindi
हरी-भरी वादियाँ, सुंदर ये नज़ारे,
कल-कल बहते झरने, मन को प्यारे।
चहकते परिंदे, लहराती हवाएँ,
धरती की गोद में जीवन मुस्काए।
फूलों की खुशबू, नदियों की कल-कल,
हरियाली से महके ये दुनिया पल-पल।
आओ मिलकर इसे सुरक्षित बनाएँ,
प्रकृति के रंगों को और निखराएँ।
~ कृतिका की प्रकृति पर हिन्दी कविता
प्रकृति का संदेश Heart touching Poem on Nature in Hindi
हरी घास पर ओस की बूंदें, मोती जैसी चमक रही,
कलियों संग किलकारियाँ भरती, मधुर हवा मचल रही।
नदियाँ गुनगुनाती बहतीं, लहरों में संगीत बसा,
पेड़ों की छाँव में बैठो, लगे सुकून का हरसा।
सूरज की किरणें कहतीं, हर दिन नया उजाला है,
चिड़ियों की मीठी बोली, मन को कितना भाता है।
फूलों की खुशबू महके, जीवन को महकाने दो,
प्रकृति का हर रंग समेटो, इसे संवारने दो।
पर इस सुंदरता को हमने, धीरे-धीरे खो दिया,
पेड़ कटे, नदियाँ सूखीं, आसमान भी रो दिया।
अब भी वक्त है जागने का, आओ कसम ये खाएँ,
प्रकृति को फिर से संवारें, इसे स्वच्छ बनाएँ।
~ प्रांशी की दिल को छू लेने वाली प्रकृति पर कविता
प्रकृति की मुस्कान Heart touching Poem on Nature in Hindi
हरी घास पर ओस की बूंदें,
सूरज की पहली किरणों से धुले,
पत्तों पर फिसलती नन्हीं सी मुस्कान,
जैसे हो प्रकृति की नई पहचान।
नीले आसमान में उड़ते पंछी,
हवा के संग झूमते वनस्पति,
नदियों की कलकल, पर्वत की चोटी,
हर ओर बिखरी है सौंदर्य की ज्योति।
सागर की लहरें गीत सुनाती,
धरती को प्रेम से लोरी सुनाती,
बादल भी मिलकर चित्र बनाते,
धरा को आसमां से गले लगाते।
चंद्रमा की चांदनी शीतल,
तारों के संग उसकी झिलमिल,
प्रकृति के हर रंग में बसी है,
जीवन की अनकही, प्यारी कहानी।
जब कभी उदास हो मन तेरा,
आँखें बंद कर, महसूस कर धरा,
प्रकृति के आलिंगन में पाएगा,
शांति और प्रेम का सच्चा किनारा।
~ प्रांशी
फूलों की मुस्कान Heart touching Poem on Nature in Hindi
फूलों की मुस्कान में बसी,
धरती की अनमोल कहानियाँ,
हर पंखुड़ी में छिपी हुई,
प्रकृति की प्यारी नादानियाँ।
सवेरे की शीतल बयार में,
खिलते हैं ये नन्हें सपने,
हवा संग झूमते-गाते,
बांटते खुशबू के रत्न अनजाने।
रंग-बिरंगे ये फूल सजे,
हर बगिया का श्रंगार बने,
जीवन में उल्लास भरते,
मन के हर कोने में बसा करें।
बन जाते हैं सांझ की माला,
जब सूरज ढलने लगता है,
और ओस की बूंदों में चमकते,
जैसे तारे खुद उतर आते हैं।
फूल हैं प्रकृति का उपहार,
प्रेम और सौंदर्य का आधार,
ये सिखाते हैं जीना हमें,
मुस्कुराना, झुकना हर बार।
प्रकृति के इस अद्भुत जादू में,
फूलों की दुनिया में खो जाओ,
हर फूल कहता है बस इतना,
सादगी में ही सुख पाओ।
~ प्रांशी
पेड़ Poem on Nature in Hindi
इक छोटा सा बीज हुआ करता था कभी,
रौंदते थे आने जाने वाले सभी,
फिर भी आलोचना ना की मैंने कभी”
नन्हा पौधा हुआ करता था कभी,
तोड़ते मरोड़ते थे आने जाने वाले सभी,
फिर भी बढना ना छोड़ा मैंने कभी
इक विशाल पेड़ हुआ करता था कभी,
आने जाने वाले आश्रय लेते थे सभी,
पक्षी अपने घोसले,
मनुष्य रहा करते थे सभी
ठण्ड से बचाने , खुद को आग लगाया ,
सूरज से तपकर, फिर भी मैंने दी छाया ,
मूसलाधार से लड़कर मैंने ही था बचाया ,
भूख मिटाता था मैं कभी,
फिर भी पत्थर मारते थे सभी
काट डाला, मार डाला,
मतलबी है यहाँ सभी,
लोग कहते है अब,
सड़क के बीचो-बीच
एक विशाल पेड़ हुआ करता था कभी!
~ शीतलेश थुल
बाढ़ Poem on Nature in Hindi
नदियों के बहाव को रोका और उन पर बाँध बना डाले,
जगह जगह बहती धाराएँ अब बन के रह गई हैं गंदे नाले,
जब धाराएँ सुकड़ गई तो उन सब की धरती कब्जा ली,
सीनों पर फ़िर भवन बन गए छोड़ा नहीं कुछ भी खाली,
अच्छी वर्षा जब भी होती हैं पानी बाँधो से छोड़ा जाता है,
वो ही तो फ़िर धारा के सीनों पर भवनों में घुस जाता हैं,
इसे प्राकृतिक आपदा कहकर सब बाढ़ बाढ़ चिल्लाते हैं,
मीडिया अफसर नेता मिलकर तब रोटियां खूब पकाते हैं
~ शिशिर मधुकर
एक वृक्ष की हत्या Poem on Prakriti in Hindi
अबकी घर लौटा तो देखा वह नहीं था—
वही बूढ़ा चौकीदार वृक्ष
जो हमेशा मिलता था घर के दरवाज़े पर तैनात।
पुराने चमड़े का बना उसका शरीर
वही सख़्त जान
झुर्रियोंदार खुरदुरा तना मैला-कुचैला,
राइफ़िल-सी एक सूखी डाल,
एक पगड़ी फूल पत्तीदार,
पाँवों में फटा-पुराना जूता
चरमराता लेकिन अक्खड़ बल-बूता
धूप में बारिश में
गर्मी में सर्दी में
हमेशा चौकन्ना
अपनी ख़ाकी वर्दी में
दूर से ही ललकारता, “कौन?”
मैं जवाब देता, “दोस्त!”
और पल भर को बैठ जाता
उसकी ठंडी छाँव में
दरअसल, शुरू से ही था हमारे अंदेशों में
कहीं एक जानी दुश्मन
कि घर को बचाना है लुटेरों से
शहर को बचाना है नादिरों से
देश को बचाना है देश के दुश्मनों से
बचाना है—
नदियों को नाला हो जाने से
हवा को धुआँ हो जाने से
खाने को ज़हर हो जाने से :
बचाना है—जंगल को मरुस्थल हो जाने से,
बचाना है—मनुष्य को जंगल हो जाने से।
~ कुँवर नारायण
हिमालय Poem on Prakriti in Hindi
मेरे नगपति! मेरे विशाल!
साकार, दिव्य, गौरव विराट्,
पौरुष के पुंजीभूत ज्वाल!
मेरी जननी के हिम-किरीट!
मेरे भारत के दिव्य भाल!
मेरे नगपति! मेरे विशाल!
युग-युग अजेय, निर्बंध, मुक्त,
युग-युग गर्वोन्नत, नित महान्,
निस्सीम व्योम में तान रहा
युग से किस महिमा का वितान?
कैसी अखंड यह चिर-समाधि?
यतिवर! कैसा यह अमर ध्यान?
तू महाशून्य में खोज रहा
किस जटिल समस्या का निदान?
उलझन का कैसा विषम जाल?
मेरे नगपति! मेरे विशाल!
ओ, मौन, तपस्या-लीन यती!
पल भर को तो कर दृगुन्मेष!
रे ज्वालाओं से दग्ध, विकल
है तड़प रहा पद पर स्वदेश।
सुखसिंधु, पंचनद, ब्रह्मपुत्र,
गंगा, यमुना की अमिय-धार
जिस पुण्यभूमि की ओर बही
तेरी विगलित करुणा उदार,
जिसके द्वारों पर खड़ा क्रांत
सीमापति! तूने की पुकार,
‘पद-दलित इसे करना पीछे
पहले ले मेरा सिर उतार।’
उस पुण्य भूमि पर आज तपी!
रे, आन पड़ा संकट कराल,
व्याकुल तेरे सुत तड़प रहे
डँस रहे चतुर्दिक विविध व्याल।
मेरे नगपति! मेरे विशाल!
कितनी मणियाँ लुट गयीं? मिटा
कितना मेरा वैभव अशेष!
तू ध्यान-मग्न ही रहा; इधर
वीरान हुआ प्यारा स्वदेश।
किन द्रौपदियों के बाल खुले?
किन-किन कलियों का अंत हुआ?
कह हृदय खोल चित्तौर! यहाँ
कितने दिन ज्वाल-वसंत हुआ?
पूछे सिकता-कण से हिमपति!
तेरा वह राजस्थान कहाँ?
वन-वन स्वतंत्रता-दीप लिये
फिरनेवाला बलवान कहाँ?
तू पूछ, अवध से, राम कहाँ?
वृंदा! बोलो, घनश्याम कहाँ?
ओ मगध! कहाँ मेरे अशोक?
वह चंद्रगुप्त बलधाम कहाँ ?
पैरों पर ही है पड़ी हुई
मिथिला भिखारिणी सुकुमारी,
तू पूछ, कहाँ इसने खोयीं
अपनी अनंत निधियाँ सारी?
री कपिलवस्तु! कह, बुद्धदेव
के वे मंगल-उपदेश कहाँ?
तिब्बत, इरान, जापान, चीन
तक गये हुए संदेश कहाँ?
वैशाली के भग्नावशेष से
पूछ लिच्छवी-शान कहाँ?
ओ री उदास गंडकी! बता
विद्यापति कवि के गान कहाँ?
तू तरुण देश से पूछ अरे,
गूँजा कैसा यह ध्वंस-राग?
अंबुधि-अंतस्तल-बीच छिपी
यह सुलग रही है कौन आग?
प्राची के प्रांगण-बीच देख,
जल रहा स्वर्ण-युग-अग्निज्वाल,
तू सिंहनाद कर जाग तपी!
मेरे नगपति! मेरे विशाल!
रे, रोक युधिष्ठिर को न यहाँ,
जाने दे उनको स्वर्ग धीर,
पर, फिरा हमें गांडीव-गदा,
लौटा दे अर्जुन-भीम वीर।
कह दे शंकर से, आज करें
वे प्रलय-नृत्य फिर एक बार।
सारे भारत में गूँज उठे,
‘हर-हर-बम’ का फिर महोच्चार।
ले अँगड़ाई, उठ, हिले धरा,
कर निज विराट् स्वर में निनाद,
तू शैलराट! हुंकार भरे,
फट जाय कुहा, भागे प्रमाद।
तू मौन त्याग, कर सिंहनाद,
रे तपी! आज तप का न काल।
नव-युग-शंखध्वनि जगा रही,
तू जाग, जाग, मेरे विशाल!
~ रामधारी सिंह दिनकर
ओस Poem on Prakriti in Hindi
हरी घास पर बिखेर दी हैं
ये किसने मोती की लड़ियाँ?
कौन रात में गूँथ गया है
ये उज्ज्वल हीरों की कड़ियाँ?
जुगनू से जगमग-जगमग ये
कौन चमकते हैं यों चमचम?
नभ के नन्हें तारों से ये
कौन दमकते हैं यों दमदम?
लुटा गया है कौन जौहरी
अपने घर का भरा ख़ज़ाना?
पत्तों पर, फूलों पर, पग-पग
बिखरे हुए रतन हैं नाना।
बड़े सबेरे मना रहा है
कौन ख़ुशी में यह दीवाली?
वन-उपवन में जला दी है
किसने दीपावली निराली?
जी होता, इन ओस-कणों को
अंजलि में भर घर ले आऊँ?
इनकी शोभा निरख-निरखकर
इन पर कविता एक बनाऊँ।
~ सोहनलाल द्विवेदी
आओ, मिलकर बचाएँ Poem on Nature in Hindi
अपनी बस्तियों को
नंगी होने से
शहर की आबो-हवा से बचाएँ उसे
बचाएँ डूबने से
पूरी की पूरी बस्ती को
हड़िया में
अपने चेहरे पर
संथाल परगना की माटी का रंग
भाषा में झारखंडीपन
ठंडी होती दिनचर्या में
जीवन की गर्माहट
मन का हरापन
भोलापन दिल का
अक्खड़पन, जुझारूपन भी
भीतर की आग
धनुष की डोरी
तीर का नुकीलापन
कुल्हाड़ी की धार
जंगल की ताज़ा हवा
नदियों की निर्मलता
पहाड़ों का मौन
गीतों की धुन
मिट्टी का सोंधापन
फ़सलों की लहलहाहट
नाचने के लिए खुला आँगन
गाने के लिए गीत
हँसने के लिए थोड़ी-सी खिलखिलाहट
रोने के लिए मुट्ठीभर एकांत
बच्चों के लिए मैदान
पशुओं के लिए हरि-हरि घास
बूढों के लिए पहाड़ों की शांति
और इस अविश्वास-भरे दौर में
थोड़ा-सा विश्वास
थोड़ी-सी उम्मीद
थोड़े-से सपने
आओ, मिलकर बचाएँ
कि इस दौर में भी बचाने को
बहुत कुछ बचा है,
अब भी हमारे पास!
~ निर्मला पुतुल (अनुवाद : अशोक सिंह)
बिन कुएं का पानी Hindi Poem on Nature
तू आया था उन बादलों की तरह ,
जो बरस कर चला गया,
धरती फिर भी प्यासी रही ,
बिन पानी रेतीले इलाकों तरह।
आया तो था,
बिन कही बातों की तरह,
जरा सी हवा ले गई तुझे,
तेज तुफानो की तरह!
ऐ हवा कबी आ ठहर कर ,
कुछ जी लू मैं तुझे भी ,
क्यों बुझ जाता है तू ,
लिखे हुए रेत मैं अफसानों की तरह!
कभी मेरी भी प्यास बुझे,
कबी तो सुनाऊं दिल का हाल तुझे,
देख जरा कबसे रुकी हुई हूं,
तू क्यों भागता है क्रजदारों की तरह!
देख जरा मेरा भी और,
धरती हु मै तेरी,
कर दे इस तरह मुझे,
फूल सी मेहकू ही और,
बना दे मुझे भी भगदारों की तरह।
अबकी आ तो बरस के जा
रहूं न मैं विरानो की तरह,
तरस गई हु,
में बिन पानी के कुऐ कि तरह।
~ प्रांशी
बसंत के फूल Hindi Poem on Nature
बसंत की आई है बयार,
हरियाली से सजी है धरती, अपार,
फूलों की महक से महकी धरा,
प्रकृति ने ओढ़ी है नई चादर हरी।
गुलाब, गुलमोहर, चमेली खिले,
हर कोने में रंगों के मेले,
पीले सरसों के फूलों से सजी,
जैसे धूप ने खेतों को छू लिया अभी।
कोयल की मधुर तान संग लहराए,
मधुर हवाओं में फूल झूम जाएं,
हर शाख पर बहारें आई हैं,
बागों में नई जान समाई है।
तितलियाँ भी उड़तीं रंग-बिरंगी,
फूलों से करतीं मीठी बातें,
बसंत के इस सुहाने मौसम में,
प्रकृति ने बाँटी अपनी सौगातें।
ये रंग, ये खुशबू, ये छवि निराली,
दिलों में जगाए उमंगों की लहरें प्यारी,
हर फूल है एक नई कहानी,
बसंत ऋतु में सजी प्रकृति की रानी।
बसंत के फूल सिखाते हमें,
प्रकृति से जुड़ने का अद्भुत गीत,
हर क्षण को महकाओ जीवन में,
फूलों सी बनाओ अपनी रीत।
~ हरिऔध
सावन का विज्ञान Hindi Poem on Nature
सावन का महीना ज्यों ज्यों ही पास आता हैं,
उमस भरा मौसम सकल लोगों को सताता हैं,
गोरियां राहत के लिए जो उपाय अपनाती हैं,
उस से तो सावन में उमंगों की बहार आती हैं,
झूलो का पड़ जाना मरा एक निरा बहाना है,
असल खेल तो खुद को तपिश से बचाना है,
मेहंदी के लाल रंग जब हाथों में लग जाते हैं,
उबलते बदनो को वो ठण्डी राहत दिलाते हैं,
झूलो के करम से सब पीड़ाएँ जब मिटती हैं,
सजना से मिलन को फ़िर हूक सी उठती हैं
इशारों में गा गा कर जो मन के भेद बताते हैं,
वही सब तो सावन के मधुर गीत कहलाते हैं,
गोरी के मायके से मिठाइयां जो भी आती हैं,
वो भी तो पाक मिलन की खुशियां मनाती हैं।
~ रामधारी सिंह ‘दिनकर’
ग्रीष्म Hindi Poem on Nature
तपता अम्बर, तपती धरती,
तपता रे जगती का कण-कण!
त्रास्त विरल सूखे खेतों पर
बरस रही है ज्वाला भारी,
चक्रवात, लू गरम-गरम से
झुलस रही है क्यारी-क्यारी,
चमक रहा सविता के फैले
प्रकाश से व्योम-अवनि-आँगन!
जर्जर कुटियों से दूर कहीं
सूखी घास लिए नर-नारी,
तपती देह लिए जाते हैं,
जिनकी दुनिया न कभी हारी,
जग-पोषक स्वेद बहाता है,
थकित चरण ले, बहते लोचन!
भवनों में बंद किवाड़ किये,
बिजली के पंखों के नीचे,
शीतल ख़स के परदे में
जो पड़े हुए हैं आँखें मींचे,
वे शोषक जलना क्या जानें
जिनके लिए खड़े सब साधन!
रोग-ग्रस्त, भूखे, अधनंगे
दमित, तिरस्कृत शिशु दुर्बल,
रुग्ण दुखी गृहिणी जिसका क्षय
होता जाता यौवन अविरल,
तप्त दुपहरी में ढोते हैं
मिट्टी की डलियाँ, फटे चरण!
~ महेन्द्र भटनागर
शरद ऋतु की सुकून भरी छांव Hindi Poem on Nature
नीले आकाश में चांद का डेरा,
सितारों की चुनरी ओढ़े है सवेरा,
शरद ऋतु आई ठंडक संग,
सजने लगे खेत, पेड़, और अंगन।
हवा में है ठंडक की सौगंध,
हर पत्ता झूमे, हर डाली प्रफुल्लित,
रजाई की गर्मी का स्वाद अलग,
शरद के मौसम में सब है सजग।
सुनहरी धूप का अब स्पर्श है कोमल,
जलाशयों में दिखते बादल के पल,
फूलों की क्यारियां मुस्काती हैं,
और धरती पर रंग बिखराती हैं।
चाँदनी रात में शरद का ठहराव,
जैसे मन को मिले कोई सुकून भरा भाव,
शांत हवाओं का मधुर संगीत,
धरती पर फैली एक अनोखी प्रीत।
पक्षी भी उड़ते दूर गगन में,
मानो खोज रहे हों नई राहें चमन में,
शरद का मौसम सिखाता यही,
हर ठहराव के बाद है चलना सही।
शरद की ये ऋतु, सौंदर्य का समय,
शीतलता में छिपा जीवन का आनंदमय,
आओ, इस ऋतु का हम अभिनंदन करें,
प्रकृति के इस रूप को ह्रदय से वंदन करें।
शीत ऋतु का आलिंगन Hindi Poem on Nature
श्वेत चादर ओढ़े धरा,
शीत ऋतु ने अपना रंग भरा,
ठंडी हवाएं गुनगुनाती हैं,
हर सांस में सिहरन जगाती हैं।
सूरज भी जैसे शर्माता है,
धुंध के पर्दे में छिप जाता है,
पत्तों पर ओस की बूंदें मोती सी,
धरती पर जमी ठंडक की चादर सी।
पेड़ों ने त्यागी अपनी हरियाली,
पर उनकी शाखें भी हैं निराली,
बर्फ से ढकीं, ठंड से कसीं,
शीत की सुंदरता इनमें बसी।
चिड़ियों की चहक भी हुई धीमी,
कानों में बसती शांति गहरी,
पर भीतर है एक नूतन आग,
जो जीवन को देती निरंतर राग।
आग के पास बैठना अब सुकून,
धुएं में बसी पुरानी यादों का जूनून,
चाय की प्याली में गर्मी का एहसास,
शीत ऋतु का ये है खास अंदाज़।
ये मौसम सिखाता सहनशीलता,
हर कठिनाई में खोजो सरलता,
ठंड में भी जीवन खिलता है,
शीतलता में भी प्रेम मिलता है।
शीत ऋतु का आलिंगन है गहरा,
धूप के इंतजार में है सब ठहरा,
पर इसी ठहराव में बसी वो बात,
जो जीवन को देती नई सौगात।
आँधी Hindi Poem on Nature
रात हुई तारीकी छाई, मीठी नींद सभी को आई।
मुन्नू सोया अप्पा सोई, अब्बा सोए अम्मी सोई।
आधी रात हुई जब सोते, खर खर खर ख़र्राटे भरते।
चुपके-चुपके आँधी आई, गर्द गुबार उड़ाती लाई।
चली हवाएँ सुर्र सुर्र सुर्र सुर्र, काग़ज़ उड़ गए फुर्र फुर्र फुर्र फुर्र।
खड़ खड़ खड़ खड़ पत्ते खड़के, डरने वालों के दिल धड़के।
बजने लगे किवाड़े खट खट, घर वाले सब जागे झटपट।
खटपट सुनकर मुन्नू जागा, उठकर झटपट अंदर भागा।
आँधी ने फिर ज़ोर दिखाया, फूस का छप्पर दूर गिराया।
टीन उड़ाई पेड़ गिराए, खपरे भी छत के सरकाए।
शाखें टूटीं तड़ तड़ तड़ तड़, बादल गरजे गड़ गड़ गड़ गड़।
बिजली चमकी चम चम चम चम, बूँदें टपकीं कम कम थम थम
लेकिन वह बूँदें थीं कैसी, पट पट पट पट ओले जैसी।
~ इस्माइल मेरठी
वृंदावनी धुन Hindi Poem on Nature
कीर्तन जो मैं गाता हूँ
यमन राग है जो रात
अँधेरा वृंदावनी धुनों के साथ
जो मेरे पास सोता है
वह मेरी वासना है
वह मेरी सुबह की ओस है
वह मेरे नहाने का पानी है
वह है मेरे होंठों की मिठास
बात जो संचारी में
रुद्रवीणा की लय में झूम उठती है
मैं एक सुंदर गीत हूँ
मैं एक सुंदर कविता हूँ
मैं रवींद्रतीर्थ में एकाकी उदासी खींचता हूँ
राधा की आँख…
मैं विसर्जन हूँ
मैं कृष्णचुरा गीत हूँ
मैं अपना अंश हूँ
कण-कण में संधिपूजा की पत्तियाँ हूँ मैं
मैं रोता हुआ,
धूल भरा पागल भजन हूँ
मैंने तुम्हें सब कुछ दिया
अभिसार,
तुम ही वैष्णव बनो…
~ बेबी शॉ
पशु-पक्षियों की दुनिया Short Hindi Poem on Nature
पशु-पक्षियों की है अद्भुत बात,
धरती की गोद में बसी है राहत की सौगात।
पंछियों का चहकना, जैसे मधुर गीत,
फूलों पर बैठकर करते सबको भ्रीत।
गिलहरी की क्यूट हरकत, मस्ती भरी,
बंदरों का खेल, है जीवन की जड़ी।
गाय, बकरी, सबकी है एक जगह,
प्रकृति की धड़कन, सबका है एक रंग।
सूरज की किरणें, जब छूतीं इनको,
नदियों की लहरों में, मिलतीं जिनको।
पशु-पक्षियों की संगत में बसी है खुशी,
प्रकृति का संतुलन, हर प्राणी की सृष्टी।
संभालें इन्हें, समझें इनकी बात,
पशु-पक्षियों की दुनिया, है सबका साथ।
इनकी रक्षा में है, मानवता का वरदान,
प्रकृति के संग, बना रहे सबका एक अभिमान।
पेड़ों का आशीर्वाद Short Hindi Poem on Nature
पेड़ हैं जीवन के आधार,
इनकी छांव में मिलता प्यार,
हरी-भरी पत्तियाँ, फल-फूलों से भरे,
प्रकृति के रक्षक, सुख-दुख में खड़े।
सूरज की किरणें जब छूतीं इन्हें,
खुशबू फैलती है, मन को भातीं इन्हें।
पंछियों का बसेरा, हर शाख पर है,
पेड़ की गोद में, जीवन का मजा है।
जड़ों में छिपा, सृजन का जादू,
हर मौसम में हैं ये कर्ता-धर्ता।
संभालें इन्हें, करें इनका मान,
पेड़ों की सुरक्षा, सबका है कर्तव्य, यही है ज्ञान।
सूर्योदय का जादू Short Hindi Poem on Nature
सूरज की पहली किरण जब छूती धरती,
हर एक मन में जगाती नई उमंगें और अर्थ।
गुलाबी आसमान में रंग बिखराए,
सुबह की रोशनी, नई उम्मीद लाए।
सुरज की हल्की गर्मी, चिड़ियों का गीत,
फूलों की मुस्कान, प्रकृति का प्रीत।
हर कोना महकता, हर दिल खिलता,
सूर्योदय का जादू, जीवन में निखार लाता।
सहर का यह मंजर, जीवन का अलार्म,
हर रोज़ की शुरुआत, नयी खुशियों का धाम।
आओ, मिलकर मनाएं इस अद्भुत दृश्य को,
सूर्योदय की चमक से भर दें हर दिल को।
सूर्यास्त की छटा Short Hindi Poem on Nature
सूर्य जब ढलने लगे क्षितिज के पास,
संग लाए रंग, बिखेरें अनुपम एहसास।
लालिमा छाई, जैसे आग का खेल,
धरती पर बिछी, सुनहरी रेशमी बेल।
सागर की लहरें भी हो गईं शर्मीली,
चाँद की रजत छवि, गुनगुनाए हंसी-खुशी।
पेड़ों की छांव में, सुकून की बात,
सूर्यास्त की गोद में, मिलती है राहत की रात।
पंछियों की उड़ान, घर लौटने का वक्त,
प्रकृति का ये पल, हर दिल में करे रेक।
आओ, हम सब मिलकर करें इस क्षण का जश्न,
सूर्यास्त की खूबसूरती, भर दे मन में प्रेम।
चांदनी रातें Short Hindi Poem on Nature
चांदनी रातें, मधुर साज,
चाँद की चाँदनी, दिल का राज।
तारों की जगमग, जैसे ख्वाब,
प्रकृति का ये नजारा, मन करे जबाब।
हल्की ठंडी हवा में मस्तियाँ हैं,
फूलों की खुशबू में बस बस्तियाँ हैं।
चाँद की मुस्कान से झलकता प्यार,
हर दिल में बसी है चांदनी का अहसास।
रात की ये गोद, सारा जग सोए,
चाँदनी में बसीं, खुशियों के निचोड़।
आओ, इस रात का जश्न मनाएं,
चांदनी रातों में मिलकर मुस्कुराएं।
तारों की चमक Short Hindi Poem on Nature
रात के गहरे आसमान में,
तारों की झिलमिल, जैसे कोई हसीं कहानी।
एक-एक तारा, ख्वाबों की बात,
सपनों की रंग-बिरंगी जगमगाती रात।
चमकते सितारे, साज सजाते,
हर दिल की धड़कन, ख़ुशियाँ बिखेरते।
अंतरिक्ष में बसीं, नन्ही रोशनी,
तारों की चादर में छिपी है ज़िंदगी।
कुछ दूर, कुछ पास, संग हैं सब,
खामोशी में भी सुनते, दिल के वे सब।
आओ, मिलकर हम इनसे कुछ सीखें,
हर तारे की चमक में, एक नई उम्मीद देखें।
प्रकृति का रंग Short Hindi Poem on Nature
हर पत्ते में एक कहानी,
हर फूल में एक ग़ज़ल छिपी।
बारिश की बूंदों में ताज़गी,
धूप की किरणों में है शक्ति।
हरे-भरे पेड़, नीला आकाश,
बादलों का नज़ारा, कितना प्यारा।
प्रकृति का रंग कितना प्यारा,
हर पल बदलता, फिर भी हमारा।
धरती माँ
धरती माँ, हमारी माँ,
देती हमें सब कुछ अपना।
पानी, हवा, अन्न, फल,
हर चीज़ है इसमें समाई।
चलो मिलकर इसे बचाएँ,
प्रदूषण से दूर रखें।
हरियाली बढ़ाएँ, पेड़ लगाएँ,
धरती माँ को खुश रखें।
प्रकृति का संगीत Short Hindi Poem on Nature
पंछियों का कलरव, नदी का बहाव,
हवा का झोंका, पत्तों का रसनाव।
ये सब मिलकर बनाते संगीत,
प्रकृति का ये अपना ही सुर है।
चलो सुनें इस संगीत को,
मन को शांत करें।
प्रकृति से जुड़ें, प्रेम करें,
खुद को स्वस्थ रखें।
पूर्णिमा में महानदी किनारे Short Hindi Poem on Nature
महानदी का किनारा।
तट के बरगद के
घने पत्ते
रोकते हैं चाँद को।
करीब बिजली के खंभे से सटकर
सोई है एक सफ़ेद गाय।
मील-भर चाँदनी
नदी के मोड़ से
पसरी हुई है मुहाने तक
ओर-छोर नहीं
बह आती है एक राजहंस-सी नाव,
सादे डैनों से खेकर पतवार।
ऐसा लगा,
उस पर बैठी है मेरी माँ,
(जो नश्वर शरीर में नहीं)
एक सफ़ेद साड़ी पहने
विराट् है वह जैसे एशिया।
झक-झक घोंघे और रेत…।
नाव चलती जा रही है।
पार कर एक-के-बाद एक
मीलों-फैली चाँदनी।
नदी का पठार खिलखिलाकर हँसने लगता है।
~ सच्चिदानंद राउतराय (अनुवाद : राजेंद्र प्रसाद मिश्र)
प्रकृति केवल हमारी जीवनदायिनी ही नहीं, बल्कि प्रेरणा और सौंदर्य का भी स्रोत है। कवियों ने अपने शब्दों में इसके अनुपम वैभव को संजोकर हमें इसकी महिमा से अवगत कराया है। ऋतुओं का परिवर्तन, प्राकृतिक तत्वों का संतुलन, पशु-पक्षियों की मधुर ध्वनि और सूर्योदय से चाँदनी रात तक के दृश्य, सभी मिलकर एक अद्भुत संसार रचते हैं।
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इस लेख में प्रस्तुत प्रकृति पर कविताएँ (Poem on Nature in Hindi) आपको इसकी सुंदरता का अनुभव कराएंगी और इसे सहेजने की प्रेरणा देंगी। साथ ही, 8 पंक्तियों की कविताएँ (8 Lines Poem on Nature in Hindi) और 4 पंक्तियों की छोटी कविताएँ (4 Lines Short Poem on Nature in Hindi) आपके मन को प्रकृति से और अधिक जोड़ने का कार्य करेंगी। आइए, प्रकृति का सम्मान करें और इसके संरक्षण की ओर एक कदम बढ़ाएँ! 🌿✨