वाच्य की परिभाषा
वाच्य क्रिया के उस रूप को कहते है जिससे पता चलता है कि वाक्य में क्रिया के द्वारा किसके विषय में कहा गया है जैसे – कर्ता के विषय में, कर्म के विषय में, भाव के विषय में, उदाहरण– साक्षी पुस्तक पढ़ती है।, पुस्तक पढ़ी जाती है।, साक्षी से पढ़ा नही जाता है।
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दो प्रकार की क्रियाएँ होती हैं-
- अकर्मक क्रिया (Intransitive Verb)
- सकर्मक क्रिया (Transitive verb)
अकर्मक क्रिया का मतलब है- कर्म-रहित क्रिया और सकर्मक क्रिया से तात्पर्य है- कर्म-युक्त क्रिया। यानी जब वाक्य में क्रिया अपने साथ कर्म लाती है तब वह सकर्मक क्रिया कहलाती है और जब वह कर्म नहीं लाती है तब वह अकर्मक क्रिया कहलाती है।
- प्रवरः भवनै निवसति। प्रवर भवन में रहता है। (अकर्मक क्रिया)
- प्रवरः भवने पुस्तकं(कर्म) पठति। प्रवर भवन में पुस्तक पढ़ता है। (सकर्मक क्रिया)
सकर्मक धातु में कर्म की जब प्रधानता रहती है तब कर्मवाच्य कहा जाता है और जब अकर्मक धातु के भाव में प्रधानता रहती है तब उसे भाववाच्य कहते हैं।
Vachya के उदाहरण
- बालक पत्र लिखता है। (कर्तृवाच्य)
- बालक से पत्र लिखा गया। (कर्मवाच्य)
- बालक से पत्र लिखा नहीं जाता। (भाववाच्य)
इस आधार पर (कर्म की उपस्थिति-अनुपस्थिति) वाक्य तीन प्रकार के होते हैं-
- कर्ता-प्रधान वाक्य – कर्तृवाच्य
- कर्म-प्रधान वाक्य – कर्मवाच्य
- क्रिया (भाव) प्रधान वाक्य – भाववाच्य
वाच्य के प्रकार (in Sanskrit)
संस्कृत भाषा में वाच्य तीन प्रकार के होते हैं –
- कर्तृवाच्य (Active voice)
- कर्मवाच्य (Passive voice)
- भाववाच्य
छात्र छात्राओं को इस बात पर पूर्णरूपेण ध्यान देना चाहिए कि कर्मवाच्य और भाववाच्य की क्रिया बनाने में प्रत्येक धातु के अन्त में ‘य’ केवल लट्, लोटु, लङ और विधिलिङ में जोड़ा जाता है।
भाववाच्य के कर्ता में तृतीया विभक्ति होती है और क्रिया केवल प्रथम पुरुष एकवचन में होती है। जैसे- मया स्थीयते, त्वया सुप्यते,अस्माभिः भूयते आदि।
कर्मवाच्य तथा भाववाच्य में केवल आत्मनेपद की ही विभक्तियाँ लगती हैं। ‘य’ जोड़ने के बाद ‘लभ् धातु‘ की तरह इनके रूप चलते हैं। जैसे-
1. गम् + य + लट् , ते
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथमपुरुष | गम्यते | गम्येते | गम्यन्ते |
मध्यमपुरुष | गम्यसे | गयेथे | गम्यध्वे |
उत्तमपुरुष | गम्ये | गम्यावहे | गम्यामहे |
2. गम् + य + लोट्, ताम्
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथमपुरुष | गम्यताम् | गम्येताम् | गम्यन्ताम् |
मध्यमपुरुष | गम्यस्व | गम्येथाम् | गम्यध्वम् |
उत्तमपुरुष | गम्यै | गम्यावहै | गम्यामहै |
3. गम् + य + लङ, त
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथमपुरुष | अगम्यत् | अगम्येताम् | अगम्यन्त |
मध्यमपुरुष | अगम्यथाः | अगम्येथाम् | अगम्यध्वम् |
उत्तमपुरुष | अगम्ये | अगम्यावहि | अगम्यामहि |
4. गम् + य + विधिलिङ, ईत
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथमपुरुष | गम्येत | गम्येयातम् | गम्येथाः |
मध्यमपुरुष | गम्येथा: | गम्येयाथाम् | गयेध्वम् |
उत्तमपुरुष | गम्येय | गम्यैवहि | गम्यमहि |
5. गम् + लट, स्यते
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
---|---|---|---|
प्रथमपुरुष | गमिष्यते | गमिष्येते | गमिष्यन्ते |
मध्यमपुरुष | गमिष्यसे | गमिष्येथे | गमिष्यध्वे |
उत्तमपुरुष | गमिष्ये | गमिष्यावहे | गमिष्यामहे |
कर्तृवाच्य (Active voice)
कर्तृवाच्य (Active voice) में कर्ता प्रधान होता है, इसलिए कर्ता में प्रथमा विभक्ति है और उसी के अनुसार क्रिया भी प्रथम पुरुष एकवचन में है। अतः, ‘पुस्तकं’ में प्रथमा विभक्ति है और उसी के अनुसार क्रिया भी प्रथम पुरुष एकवचन में है। (प्रवरः भवने पुस्तकं(कर्म) पठति।)
कर्मवाच्य (Passive voice)
सकर्मक धातु से कर्मवाच्य (Passive voice) बनता है। कर्मवाच्य में कर्म प्रधान होता है। कर्मवाच्य में कर्ता को गौण कर दिया जाता है और इसके लिए उसमें (कर्त्ता में) तृतीया विभक्ति लगाई जाती है।
उदाहरण के लिए- ओदनः मया पच्यते।- यहाँ कर्म प्रधान है। अतः, ‘ओदनः’ में प्रथमा विभक्ति हुई और क्रिया इसी के अनुसार हुई।
कर्मवाच्य और भाववाच्य में आकारान्त दा, धा स्था, पा. मा. गो. हा सा, धातुओं के ‘आ’ के स्थान में ई हो जाता है। जैसे-
- दा + य + ते = दीयते ।
- पा + य + ते = पीयते ।
- गा + य + ते = गीयते
कर्मवाच्य में लट्, लोट्, लङ् और विधिलिङ् में ‘ग्रह’ का ‘गृह’, प्रच्छु का पृच्छ व्रश्च् का वृश्च्, भ्रस्ज का भृज्ज और मस्ज का मज्ज हो जाता है। जैसे—
- ग्रह् (गृह) + य + ते = गृह्यते ।
कर्मवाच्च के ‘य’ परे रहने से वद्, वशु, विचू, वसु, बप्, वह, श्वि, हवे, स्वप और वे धात के स्थान में उ’ हो जाता है जैसे-
- वद् (उद्) + य + त = उद्यते ।
- वच् (उच्) + य + ते = उच्यते ।
कर्मवाच्य के ‘य’ परे रहने से यज, ज्या, व्यधु, वय, व्ये धातु के ‘य का ‘इ’ जाता है। जैसे-
- यज् (इज्) + य + ते = इज्यते ।
कर्मवाच्य के ‘य’ परे रहने से अकारान्त धात के ‘ऋ’ का ‘रि’ हो जाता है। जैसे-
- कृ + य + ते = क्रियते
- धृ + य + ते = ध्रियते
संयुक्ताक्षर में ‘ऋ’ को ‘अर’ हो जाता है। जैसे-
- स्म् + य + ते = स्मर्यते ।
दीर्घ ऋकार के स्थान में ईर’ हो जाता है। जैसे-
- क + य + ते = कीर्यते ।
- जृ + य + ते = जीर्यते
कर्मवाच्य के ‘य’ परे रहने से ‘शी’ धातु के ‘ई’ के स्थान में ‘अय’ हो जाता है। जैसे-
- शी + य + ते > शय्यते ।
कर्मवाच्य के ‘य’ परे रहने से घात के हस्त स्वर का दीर्घ हो जाता है। जैसे-
- जि + य + ते = जीयते
- श्रु + य + ते = श्रूयते
भाववाच्य
भाववाच्य, अकर्मक धातु से बनता है। अकर्मक धात में कर्म नहीं रहता इसीलिए प्रथमा विभक्ति इस वाच्य में नहीं होती। इस वाच्य के कर्ता में तृतीया और क्रिया प्रथम पुरुष, एकवचन (3rd. Person Singular) की होती है।
जैसे- मया भूयते । यहाँ ‘मया’ कर्ता है जो तृतीया विभक्ति से युक्त है और क्रिया प्रथमा पुरुष एकवचन की है।
कर्ता (Subject) में कोई वचन या पुरुष रहे, उससे भाववाच्य की क्रिया में कोई भिन्नता नहीं आती अतः- तैः भूयते।, त्वया भूयते।, अस्माभिः भूयते। इत्यादि में कर्ता में बहुवचन की विभक्ति और प्रथम, मध्यम और उत्तम पुरुष रहने पर भी क्रिया प्रथमा पुरुष एकवचन की ही हुई।
कर्मवाच्य और भाववाच्य के कर्ता को ‘अनुक्त कर्ता’ कहते हैं और अनुक्त कर्ता में तृतीया विभक्ति होती है (अनुक्ते कर्तरि तृतीया)।
कर्मवाच्य के कर्म को उक्त कर्म कहते हैं और उक्ते कर्मणि प्रथमा के कारण कर्म में प्रथमा विभक्ति लगाई जाती है। जैसे—
- सः ग्रामं गच्छति – तेन ग्रामः गम्यते।
- वयं पुस्तकं पठामः – अस्माभिः पुस्तकं पठ्यते ।
Note: कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य या भाववाच्य में बदलने के लिए कर्ता में तृतीया विभक्ति लगानी चाहिए। कर्मवाच्य में कर्म में प्रथमा और क्रिया को कर्मानुसार तथा भाववाच्य में क्रिया को स्वतंत्र (यानी प्रथम पुरुष एकवचन) रखना चाहिए।
वाच्य के उदाहरण
नीचे लिखे उदाहरणों को ध्यानपूर्वक पढ़े और अभ्यास करें-
कर्तृवाच्य और कर्मवाच्य
कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य में परिवर्तन के नियम:-
कर्तृवाच्य (Active voice) | कर्मवाच्य (Passive voice) |
---|---|
रामः तं पश्यति (राम उसको देखता है) | रामेण सः दृश्यते (राम के द्वारा वह देखा जाता है) |
सः त्वां पश्यति (वह तुमको देखता है) | तेन त्वं दृश्यते (उसके द्वारा तुम देखे जाते हो) |
अहं प्रखरं पश्यामि | मया प्रखरः दृश्यते |
सः वेदं पठति | तेन वेदः पठ्यते |
त्वं निबंध लिखसि | त्वया निबंधः लिख्यते |
अहं कथां शृणोमि | मया कथा श्रूयते |
भवन्तः श्लोकान् वदन्ति | भवद्भिः श्लोकः उच्यते |
ते वार्ता कथयन्ति | तैः वार्ता कराते |
कवयः कवितां कुर्वन्ति | कविभिः कविता क्रियते |
सः विप्राय गां ददति | तेन विप्राय गौः दीयते |
बालः पयः पिबति | बालेन पयः पीयते |
अयम् ओदनं भुङ्क्ते | अनेन ओदनं भुज्यते |
शूरः शत्रु हन्ति | शूरेण शत्रुः हन्यते |
कर्तृवाच्य और भाववाच्य
कर्तृवाच्य से भाववाच्य में परिवर्तन के नियम:-
कर्तृवाच्य (Active voice) | भाववाच्य |
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मयूराः नृत्यन्ति (मोर नाचते हैं) | मयूरैः नृत्यते (मयूरो द्वारा नाचा जाता है) |
वयम् अन्नेन जीवामः (हम अन्न पर जीते हैं) | अस्माभिः अन्नेन जीव्यते (हमलोगों द्वारा अन्न पर जीया जाता है) |
त्वम् अत्र वससि | त्वया अत्र उष्यते |
सः गृहे स्वपिति | तेन गृहे सुप्यते |
ते तत्र तिष्ठन्ति | तैः तत्र स्थीयते |
त्वं सर्पात् बिभेषि | त्वया सर्पात् भीयते |
भवान् कुत्र शेते ? | भवता कुत्र शय्यते ? |
बालिकाः खेलन्ति | बालिकैः खेल्यते |
मोदकेन् मह्यं रुच्यते | मह्यं रोचते मोदकम् |
विवेकिना सदा जागर्यते | विवेकी सदा जागर्ति |
रात्रौ चन्द्रेण द्योत्यते | रात्री चन्द्रः द्योतते |
हिन्दी में वाच्य (Vachya in Hindi)
वाच्य– क्रिया के जिस रुप से यह जाना जाय कि क्रिया के व्यापार का मुख्य विषय कर्ता है, कर्म है या भाव है, उसे वाच्य कहते है । वाक्य में जिसकी प्रधानता होती है, पुरुष, लिंग और वचन में क्रिया उसी का अनुसरण करती है ।
वाच्य के भेद (in Hindi)
हिन्दी भाषा में भी वाच्य के भेद तीन प्रकार के होते हैं – कर्तृवाच्य (Active voice), कर्मवाच्य (Passive voice), भाववाच्य।
कर्तृवाच्य (Kart vachya in Hindi)
क्रिया का वह रुप, जिससे यह जाना जाय कि वाक्य की क्रिया के विधान (व्यापार) का मुख्य विषय कर्ता है, उसे कर्तृवाच्य कहते है । इसमे क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष सदा कर्ता के अनुसार रहते है । इसमें अकर्मक और सकर्मक दोनों क्रियाओं का प्रयोग होता है ।
अकर्मक क्रिया–
- सूर्य निकलता है ।
- बालक हँसता है ।
सकर्मक क्रिया–
- बच्चा पुस्तक पढ़ता है ।
- रमेश पत्र लिखता है ।
- रानी गाना गाती है ।
- बच्चे पुस्तक पढ़ते है ।
ऊपर क्रिया का मुख्य विषय कर्ता है, अत: उनके लिंग, वचन और पुरुष कर्ता के अनुसार है ।
कर्मवाच्य (Karm vachya in Hindi)
क्रिया का वह रुप जिससे यह जाना जाय कि वाक्य की क्रिया के विधान (व्यापार) का मुख्य विषय कर्ता न होकर कर्म है, उसे कर्मवाच्य कहते है । इसमें क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष कर्म के अनुसार होते है ।
विशेष– कर्मवाच्य में केवल सकर्मक क्रियाओं का व्यहार होता है । जैसे –
- बालक से पत्र लिखा गया ।
- बालिका से पत्र लिखा गया ।
यहाँ ‘पत्र’ कर्म है और क्रिया का विधान उसके अनुसार है, कर्ता बालक या बालिका के अनुसार नही है
अन्य उदाहरण –
- बालक से चिट्ठी लिखी जाएगी ।
- बालक से कहानी पढ़ी जाती है ।
भाववाच्य (Bhav vachya in Hindi)
क्रिया के जिस रुप से यह जाना जाय कि विधान (व्यापार) का मुख्य विषय कर्ता या कर्म न होकर भाव है, उसे भाववाच्य कहते है । भाववाच्य की क्रिया सदा अन्य पुरुष, पुल्लिंग एकवचन में रहती है । इसमें केवल अकर्मक क्रियाओं का ही प्रयोग होता है ।
विशेष– भाववाच्य में प्राय; अशक्तता प्रगट करने के लिए ही क्रिया प्रयुक्त होती है । कभी कभी शक्तता भी प्रगट की जाती है । जैसे –
- मोहन से लेटा नही जाता ।
- रीता से आज सोया नही गया ।
- बच्चों से यहाँ खेला नही जाएगा ।
इस वाच्य की क्रिया में एक से अधिक क्रिया पद होते है । इसमें कर्ता के साथ ‘से’ लगाया जाता है ।
सम्पूर्ण हिन्दी और संस्कृत व्याकरण
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