शिक्षा का व्यापक अर्थ विकास की प्रक्रिया से लिया जाता है। यह प्रक्रिया शैशवावस्था से प्रौढ़ावस्था तक चलती रहती है। शिक्षा एक ऐसे अनुकूलन की क्रिया समझी जाती है जो शारीरिक तथा मानसिक रूप से विकसित मानव का ईश्वर के साथ व्यवस्थापन करने में उसकी सहायता करती है किन्तु शिक्षा (Education) शिक्षण (Teaching) से भिन्न है।
शिक्षा और शिक्षण में अन्तर (Distinction between Education and Teaching)
शिक्षा और शिक्षण में अन्तर निम्नलिखित प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
Sr. | शिक्षा (Education) | शिक्षण (Teaching) |
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1. | शिक्षा विकास का क्रम है। | शिक्षण बालक के विकास में सहायता करता है। |
2. | शिक्षा निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। | शिक्षण कला है। इसका मानव के सोद्देश्य कार्यों से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। |
3. | शिक्षा गतिशील रहती है। | शिक्षण सदैव परिवर्तित होता रहता है। |
4. | शिक्षा एक द्विमुखी प्रक्रिया है। शिक्षा की प्रक्रिया में बालक निष्क्रिय नहीं रहता वरन् शिक्षा तथा छात्र दोनों सक्रिय रहते हैं। | शिक्षण एक त्रिमुखी प्रक्रिया है। इसके तीन बिन्दु हैं – (1) शिक्षक, (2) छात्र या बालक और (3) विषय। |
5. | शिक्षा सम्बन्ध स्थापित नहीं करती। | शिक्षण का अर्थ है-शिक्षक,बालक और विषय में सम्बन्ध स्थापित करना। |
6. | शिक्षा एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। | शिक्षण सिखाना है। शिक्षक का कार्य शिक्षण के द्वारा बालक को सिखाना है। |
7. | शिक्षा बालक के सर्वांगीण विकास में सहायता करती है। | शिक्षण सूचना देता है। शिक्षण के समय शिक्षक अपने बालकों को नयी सूचनाएँ देता है। |
8. | एडीसन के अनुसार, “शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य में अपने से निहित उन शक्तियों तथा गुणों का दिग्दर्शन होता है जिनका होना शिक्षा के बिना असम्भव है।“ | शिक्षण सीखने का संगठन है। मरसेल का कथन है, “शिक्षण को सीखने के संगठन के रूप में सर्वोत्तम प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है।“ |
9. | शिक्षा के द्वारा बालक का सामाजिक विकास होता है। | शिक्षण कला बालक का व्यक्तिगत विकास करती है। |
10. | शिक्षा एक सामाजिक क्रिया है। | शिक्षण कार्य सिखाना मात्र है। |
11. | मॉरीसन के अनुसार, “शिक्षा सीखने की क्रिया व्यक्ति का विकास है तो उसके शारीरिक विकास से भिन्न है।“ | शिक्षण कला का सम्बन्ध मानसिक तथा शारीरिक विकास दोनों से हो सकता है। |
शिक्षा (Education)
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शिक्षा विकास का क्रम है।
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शिक्षा निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है।
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शिक्षा गतिशील रहती है।
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शिक्षा एक द्विमुखी प्रक्रिया है। शिक्षा की प्रक्रिया में बालक निष्क्रिय नहीं रहता वरन् शिक्षा तथा छात्र दोनों सक्रिय रहते हैं।
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शिक्षा सम्बन्ध स्थापित नहीं करती।
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शिक्षा एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है।
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शिक्षा बालक के सर्वांगीण विकास में सहायता करती है।
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एडीसन के अनुसार, “शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य में अपने से निहित उन शक्तियों तथा गुणों का दिग्दर्शन होता है जिनका होना शिक्षा के बिना असम्भव है।“
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शिक्षा के द्वारा बालक का सामाजिक विकास होता है।
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शिक्षा एक सामाजिक क्रिया है।
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मॉरीसन के अनुसार, “शिक्षा सीखने की क्रिया व्यक्ति का विकास है तो उसके शारीरिक विकास से भिन्न है।“
शिक्षण (Teaching)
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शिक्षण बालक के विकास में सहायता करता है।
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शिक्षण कला है। इसका मानव के सोद्देश्य कार्यों से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है।
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शिक्षण सदैव परिवर्तित होता रहता है।
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शिक्षण एक त्रिमुखी प्रक्रिया है। इसके तीन बिन्दु हैं-(1) शिक्षक, (2) छात्र या बालक और (3) विषय।
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शिक्षण का अर्थ है-शिक्षक,बालक और विषय में सम्बन्ध स्थापित करना।
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शिक्षण सिखाना है। शिक्षक का कार्य शिक्षण के द्वारा बालक को सिखाना है।
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शिक्षण सूचना देता है। शिक्षण के समय शिक्षक अपने बालकों को नयी सूचनाएँ देता है।
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शिक्षण सीखने का संगठन है। मरसेल का कथन है, “शिक्षण को सीखने के संगठन के रूप में सर्वोत्तम प्रकार से परिभाषित
किया जा सकता है।” -
शिक्षण कला बालक का व्यक्तिगत विकास करती है।
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शिक्षण कार्य सिखाना मात्र है।
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शिक्षण कला का सम्बन्ध मानसिक तथा शारीरिक विकास दोनों से हो सकता है।
शिक्षण का अर्थ, प्रकृति, विशेषताएँ, सोपान तथा उद्देश्य (Meaning, Nature, Characteristics, Steps and Aims of Teaching):-
- शिक्षण (Teaching) – शिक्षण की परिभाषा एवं अर्थ
- छात्र, शिक्षक तथा शिक्षण में सम्बन्ध
- शिक्षण की प्रकृति
- शिक्षण की विशेषताएँ
- शिक्षा और शिक्षण में अन्तर
- शिक्षण प्रक्रिया – सोपान, द्विध्रुवीय, त्रिध्रुवीय, सफल शिक्षण
- शिक्षण प्रक्रिया के सोपान
- द्विध्रुवीय अथवा त्रिध्रुवीय शिक्षण
- शिक्षण के उद्देश्य – शिक्षण के सामान्य, विशिष्ट उद्देश्यों का वर्गीकरण, निर्धारण और अंतर