शिक्षण की विशेषताएँ – Characteristics of Teaching

Shikshan Ki Visheshtayen

शिक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Teaching)

शिक्षण की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं। इनमें अनेक का वर्णन योकम तथा सिम्पसन ने अपनी पुस्तक Modern and Techniques of Teaching में भी किया है-

1. वांछनीय सूचना देना (Providing of desirable information)

सभ्यता के विकास के साथ-साथ मानव का ज्ञान भी निरन्तर बढ़ता जा रहा है। यह सब कुछ हमने प्रयास और त्रुटि (Trial and Error), सूझ (Insight) तथा अनुकरण (Imitation) द्वारा सीखा है। हमें चाहिये कि ज्ञान के भण्डार के सम्बन्ध में बालकों को सुव्यवस्थित रूप से आवश्यक सूचनाएँ दें।

2. शिक्षण सिखाना है (Teaching is causing to learn)

शिक्षण से तात्पर्य है – पथ प्रदर्शन। अच्छा शिक्षण वही है जो बालकों को सीखने के लिये उचित मार्ग दिखाये। शिक्षक को चाहिये कि वह बालक की रुचियों, क्षमताओं, योग्यताओं तथा आवश्यकताओं का पता लगाये तथा उन्हीं के अनुसार उनका मार्गदर्शन करे।

मॉण्टेसरी (Montessori), किण्डरगार्टन (Kindergarten), प्रोजेक्ट (Project) तथा डाल्टन (Dalton) एवं बेसिक (Basic) आदि शिक्षण विधियों का निर्माण इसी सिद्धान्त के आधार पर हुआ है।

3. चुने हुए तथ्यों का ज्ञान (Knowledge of selective facts)

जब से मानव इस पृथ्वी पर आया है उसी समय से वह प्रकृति (Nature) से संघर्ष करता आ रहा है। इस संघर्ष के परिणामस्वरूप हमारा ज्ञान भण्डार दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। इतने अधिक बढ़ते हुए ज्ञान को बालक इतने कम समय में नहीं सीख सकता। अत: शिक्षण द्वारा बालक को चुने हुए शैक्षिक एवं लाभप्रद तथ्य बताने चाहिये।

4. सहानुभूतिपूर्ण (Sympathetic)

अच्छे शिक्षण के लिये यह आवश्यक है कि शिक्षक द्वारा बालकों के साथ परस्पर मित्रता तथा सहानुभूति का व्यवहार किया जाय। वह अध्यापक जो एक जल्लाद का रूप ले लेता है या वह अध्यापक जो अपने को एक न्यायाधीश समझने लगता है जिसे प्रत्येक अपराध के लिये लिखित नियमों के अनुसार सजा देनी है, कदापि अच्छा शिक्षण प्रदान नहीं कर सकता।

बालकों की त्रुटियों पर केवल सजा देना शिक्षक का कार्य नहीं है बल्कि उनको सुधारना ही उसका कार्य है। अतः शिक्षण सहानुभूति पर आधारित होना चाहिये न कि क्रूरता पर।

5. सहयोग पर आधारित (Depends on co-operation)

शिक्षण एक मार्गीय नहीं होता, उसके लिये अध्यापक तथा विद्यार्थियों के बीच सहयोग होना अनिवार्य है। यदि विद्यार्थियों का सहयोग अध्यापक को प्राप्त नहीं होगा तो कभी भी सफल शिक्षण नहीं हो सकता। विद्यार्थियों के सहयोग के लिये अध्यापक को चाहिये कि वह उनके लिये अच्छी क्रियाओं का आयोजन करे।

6. प्रजातन्त्रीय (Democratic)

वर्तमान युग प्रजातन्त्र का युग है। कक्षा के प्रत्येक विद्यार्थी को शिक्षण प्रक्रिया में समान अधिकार प्रदान किये जाने चाहिये। वास्तव में अच्छा शिक्षण वही है तो बालकों में प्रजातन्त्रात्मक मनोवृत्ति को उत्पन्न कर दे और वह अपने प्रतिदिन के व्यवहार एवं आचरण से प्रजातन्त्रीय भावनाओं द्वारा प्रेरणा ग्रहण करे तथा उनमें प्रजातन्त्रीय विचारों को जीवन में उतारने की भावना का विकास करे।

7. प्रगतिशील (Progressive)

बालक की सच्ची शिक्षा उसके निजी अनुभवों पर आधारित होनी चाहिये। अच्छा शिक्षण बालक के पूर्व अनुभवों (Previous experience) को ध्यान में रखते हुए नवीन ज्ञान प्रस्तुत करना है। इससे बालक के व्यवहार में परिवर्तन तथा सुधार होता है। अत: हम कह सकते हैं कि अच्छा शिक्षण प्रगतिशील होता है।

8. गुणकारी योजना पर आधारित (Depends on afficient planning)

अच्छा शिक्षण देने के लिये सबसे पहले शिक्षण देने की अच्छी योजना बनाना आवश्यक है। यदि योजना न बनायी जाय तो शिक्षण में क्या पढ़ायें ओर कैसे पढ़ायें, कब पढ़ायें? इन सब प्रश्नों के उत्तर के सम्बन्ध में अस्पष्ट विचार रहेंगे।

9. निर्देशात्मक (Directional)

अच्छे शिक्षण में बालक को निर्देश दिया जाता है न कि आदेश। कक्षा का वातावरण निर्देशात्मक होना चाहिये। वहाँ कठोर अनुशासन को अच्छा नहीं समझा जाता। अध्यापक ऐसी स्थिति उत्पन्न कर देता है जिनमें कार्य करके बालक अनेक गुण ग्रहण कर लेता है।

10. निदानात्मक एवं उपचारात्मक (Diagnostic and remedial)

आज हम वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं (Objective tests) के द्वारा बालक की योग्यताओं, क्षमताओं एवं संवेगात्मक विशेषताओं (Emotional traits) का पता भी सरलतापूर्वक लगा सकते हैं। उक्त साधनों के द्वारा हम शिक्षण को निदानात्मक (Diagnostic) बना सकते हैं।

साथ ही व्यक्तिगत भिन्नता (Individual difference), शिक्षण की नवीन पद्धतियों (New techniques of teaching) तथा पिछड़ेपन (Backwardness) के कारणों का ज्ञान प्राप्त करके हम शिक्षण को उपचारात्मक (Remedial) भी बना सकते हैं।

निष्कर्ष

संक्षेप में शिक्षण क्रियाशील रहने के अवसर प्रदान करता है। शिक्षण सीखने का संगठन करता है। यह बालक को अपने वातावरण से अनुकूलन करने में सहायता देता है। शिक्षण तैयारी का एक साधन है जो बालक को सन्तुष्टि प्रदान करता है।

शिक्षण का अर्थ, प्रकृति, विशेषताएँ, सोपान तथा उद्देश्य (Meaning, Nature, Characteristics, Steps and Aims of Teaching):-

  1. शिक्षण (Teaching) – शिक्षण की परिभाषा एवं अर्थ
  2. छात्र, शिक्षक तथा शिक्षण में सम्बन्ध
  3. शिक्षण की प्रकृति
  4. शिक्षण की विशेषताएँ
  5. शिक्षा और शिक्षण में अन्तर
  6. शिक्षण प्रक्रिया – सोपान, द्विध्रुवीय, त्रिध्रुवीय, सफल शिक्षण
  7. शिक्षण प्रक्रिया के सोपान
  8. द्विध्रुवीय अथवा त्रिध्रुवीय शिक्षण
  9. शिक्षण के उद्देश्य – शिक्षण के सामान्य, विशिष्ट उद्देश्यों का वर्गीकरण, निर्धारण और अंतर