शिक्षण अधिगम के प्रमुख अभिकरण (Main Agencies of Teaching Learning)
शिक्षण का अर्थ है किसी ज्ञान को सिखाना एवं शिक्षण अधिगम का संयुक्त अर्थ है कि उचित शिक्षण किस प्रकार किया जाए अर्थात शिक्षण से संबंधित नियम तथा शिक्षण के सिद्धांत; और शिक्षण अधिगम के अभिकरण से तात्पर्य है कि शिक्षण प्रक्रिया को सुचारु रूप से चलाने के लिए एवं उनमें सुधार करने के लिए सरकार द्वारा बनाए गए उपक्रम एवं संस्थाएं।
शिक्षण अधिगम के प्रमुख अभिकरण निम्नलिखित हैं:-
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जिला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थान (डाइट)
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यशपाल समिति-1990
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शिक्षक-अभिभावक संघ
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ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड योजना
जिला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थान (डाइट)
District Institute of Education and Training (DIET)
देश में शिक्षा के पूर्व प्राथमिक, प्राथमिक तथा उच्च प्राथमिक स्तरों में गुणात्मक सुधार, इन विद्यालयों के शिक्षकों की उन्नति के लिये, इस स्तर पर शोध कार्यों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में जिला स्तर पर एक ऐसी संस्था स्थापित करने की बात कही गयी है जो जिले के या अध्यापकों की व्यावसायिक उन्नति तथा विकास के लिये समुचित कार्य कर सके। इस प्रकार की संस्था को D. I. E. T. कहा जाता है।
डाइट (D.I.E.T.) की स्थापना
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में निर्धारित शिक्षा नीति के अधीन अक्टूबर 1987 में जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों की स्थापना का कार्य प्रारम्भ हुआ। इन संस्थानों की स्थापना का उद्देश्य प्राथमिक एवं प्रौढ़ शिक्षा के क्षेत्र में अपनायी गयी विभिन्न नीतियों और कार्यक्रमों को निचले स्तर पर सफलता के लिये शैक्षिक एवं स्रोतपरक सहयोग प्रदान करना है।
इन उद्देश्यों के साथ जनपदों के प्राथमिक स्तरीय विद्यालयों से सेवित क्षेत्रों, शिक्षकों तथा निरीक्षकों आदि की विशिष्ट आवश्यकताओं तथा समस्याओं को दृष्टि में रखकर उन्हें अपेक्षित शैक्षिक सहायता एवं निर्देशन प्रदान करने के साथ-साथ समाधान प्रस्तुत करने का कार्य जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों द्वारा प्रस्तावित है।
डाइट (D.I.E.T.) के विभिन्न विभाग
डाइट (D. I. E. T.) के उपरोक्त कार्यों को सुचारु रूप से चलाने के लिये इस संस्थान में निम्नलिखित विभाग होते हैं:-
- सेवापूर्व अध्यापक प्रशिक्षण विभाग।
- कार्यानुभव विभाग।
- प्रौढ़ शिक्षा तथा अनौपचारिक शिक्षा विषयक जिला साधन इकाई।
- सेवारत कार्यक्रम, क्षेत्रीय सम्पर्क तथा प्रवर्तन समन्वय विभाग।
- पाठ्यक्रम, सामग्री विकास एवं मूल्यांकन विभाग।
- शैक्षिक प्रौद्योगिकी विभाग।
- नियोजन तथा प्रबन्धन विभाग।
डाइट (D.I.E. T.) हेतु मानवीय तथा भौतिक संसाधन
जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान के लिये प्रस्तावित मानवीय तथा भौतिक संसाधनों को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं:-
- डाइट (D.I. E.T.) के अधिकारी एवं कर्मचारी।
- डाइट के भौतिक संसाधन।
जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान के कार्य (Functions of District Institute of Education and Training)
जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:-
- जिला स्तर पर शिक्षक प्रशिक्षण की व्यवस्था करना।
- कार्यशाला, सम्मेलन तथा सेमिनार आदि का आयोजन करना।
- अध्यापकों के लिये शैक्षिक प्रतियोगिताओं का आयोजन करना।
- जिला प्तर पर शोध कार्य करना एवं जिले के अध्यापकों को इस कार्य के लिये प्रोत्साहित करना तथा इस कार्य में आवश्यक सहायता प्रदान करना।
- शिक्षक प्रशिक्षण को व्यावहारिक बनाना तथा उसे वास्तविक शिक्षण से सम्बन्धित करना।
- शिक्षकों के लिये सतत् तथा सेवाकालीन प्रशिक्षण की व्यवस्था करना।
- अनौपचारिक शिक्षा केन्द्रों के अनुदेशकों एवं पर्यवेक्षकों के लिये सेवापूर्व एवं प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों तथा सेवाकालीन प्रशिक्षण की व्यवस्था करना।
- विद्यालय के प्रधानाध्यापकों के लिये संस्थागत नियोजन, प्रबन्धन तथा सूक्ष्म नियोजन हेतु प्रशिक्षण तथा अभिनवीकरण कार्यक्रम संचालित करना।
- विद्यालय संकुलों तथा जिला शिक्षा बोर्डों को सहयोग प्रदान करना।
- प्राथमिक विद्यालयों, अपर प्राथमिक विद्यालय, अनौपचारिक शिक्षा तथा प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रमों के लिये मूल्यांकन केन्द्र के रूप में कार्य करना।
- शिक्षकों तथा अनुदेशकों के लिये साधन केन्द्र के रूप में सेवाएँ उपलब्ध कराना।
यशपाल समिति-1990
Yash Pal Samiti-1990
वर्तमान शिक्षा में पाठ्यक्रम के भारी-भरकम बोझ को दूर करने के लिये यशपाल समिति का गठन प्रो. यशपाल की अध्यक्षता में 1990 में किया गया। यह समिति केन्द्र सरकार द्वारा गठित की गयी थी। जिसमें यशपाल समिति की प्रमुख सिफारिश स्कूली बच्चों के ऊपर पुस्तकों और बस्तों का बोझ कम करने हेतु पाठ्यक्रम में राष्ट्रीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय स्तर पर एक जैसा पाठ्यक्रम (Unified Curriculum) का स्वरूप प्रदान करने पर बल दिया गया। जिससे हम इस परम्परागत शिक्षा को व्यावसायिक शिक्षा का रूप दे सकें।
आर्थिक रूप से तथा सामाजिक रूप से पिछड़े हुए वर्गों को सम्मिलित करते हुए (सबके लिये शिक्षा) लक्ष्य की प्राप्ति करने का उद्देश्य रखा जाय तथा सन् 1990 में विश्व के 155 देशों के प्रतिनिधियों की थाईलैण्ड में हुई बैठक सम्बन्धी योजनाओं को (Education for All) सबके लिये शिक्षा सन् 2000 तक वैश्विक प्राथमिक शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु क्रियाशील होने पर सहमति जतायी।
प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ, जिससे यह पता लग गया कि हम इतना करने के बावजूद अपने लक्ष्य को क्यों प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं? इसका कारण था देश में मानव संसाधन एवं विद्यालयों की संख्या का कम होना।
इस कमी को दूर करने के लिये 1990 में ही आचार्य राममूर्ति की अध्यक्षता में 8 सदस्यीय समिति का गठन किया गया। जिसने उच्च शिक्षा के अलावा प्राथमिक शिक्षा के सुधार हेतु नवीन विद्यालय खोलने की सिफारिश की, जो पूर्ण रूप से स्वयं पोषित हो तथा विद्यालयों में प्रवेश की व्यवस्था में भी लचीलापन लाने की सिफारिश की।
शिक्षक-अभिभावक संघ
Teacher Parents Association
बालक के शैक्षिक विकास में शिक्षक और अभिभावकों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता परन्तु दोनों की शिक्षा सम्बन्धी भूमिकाएँ तथा परस्पर अपेक्षाएँ भिन्न होती हैं । शिक्षक बालकों की जिन समस्याओं को अपने दृष्टिकोण से देखता है, उनके अभिभावकों का उन्हीं समस्याओं के प्रति सर्वथा भिन्न दृष्टिकोण होता है। इसका एक सबल कारण यह है कि जहाँ शिक्षक के लिये विद्यार्थी सैकड़ों में से एक है, वहीं माँ-बाप के लिये वह स्वयं का अंश है।
शिक्षक जहाँ प्रत्येक बालक के समान विकास की बात सोचता है वहीं माँ-बाप अथवा अभिभावक अपने बालक के अधिकाधिक शैक्षिक विकास में रुचि लेने की शिक्षकों से अपेक्षा करते हैं। इन भिन्नताओं के कारण ही बालक की क्षमताओं, रुचियों तथा व्यवहारगत् दोषों के बारे में अभिभावकों की सोच, शिक्षकों से सर्वथा भिन्न होती है क्योंकि बालक अभिभावकों के समक्ष शिक्षक की तुलना में कहीं अधिक रहता है अत: वे शिक्षक से अनेक क्षेत्रों के बारे में अधिक जानते हैं। अतः अभिभावकों का बालकों के शैक्षिक विकास में सहयोग लिया जाना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है ।
शिक्षा के क्षेत्र में किये गये, विशेषकर समस्यात्मक बालकों पर किये गये शोध इस ओर स्पष्ट इंगित करते हैं कि उनकी समस्याओं पर सामाजिक पर्यावरण का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। यही बात छात्र उपलब्धियों को लेकर भी सिद्ध होती है । छानों की शैक्षिक प्रगति पर परिवार और पर्यावरण का महत्त्वपूर्ण प्रभाव देखा जा सकता है।
सत्य तो यह है कि अभिभावक या माता-पिता बालक के प्रथम शिक्षक हैं। अत: इन प्रारम्भिक शिक्षकों और विद्यालयी शिक्षकों का परस्पर सहयोग भावी नागरिकों के शैक्षिक विकास में द्विगुणित योगदान दे सकता है इसलिये शिक्षक-अभिभावक संघ की स्थापना तथा संचालन किसी भी विद्यालय के लिये अनिवार्य ही नहीं, अपितु अपरिहार्य भी होनी चाहिये।
अभिभावक-शिक्षक संघ अभिभावकों और शिक्षकों को परस्पर सन्निकट लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकता है, उसकी सूचनाएँ विद्यालय एवं सामुदायिक सहयोग में भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती हैं परन्तु यह संघ के प्रभावी संचालन पर निर्भर करता है।
इस संघ की नियमित बैठकों में जहाँ अभिभावकों को अपने बालक तथा समुदाय के बालकों की शैक्षिक समस्याओं को निकट से जानने और समझने का अवसर मिलता है वहीं विद्यालय को सभी विद्यार्थियों की पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, वैयक्तिक समस्याओं तथा विद्यालय से समुदाय की अपेक्षाओं का ज्ञान होता है। इस प्रकार एक-दूसरे को समझने और परस्पर सहयोग से समस्याओं के समाधान का अवसर मिलता है।
वे देश जहाँ सामुदायिक विद्यालय हैं, वहाँ अभिभावक-शिक्षक संघ के प्रभावीपन का सहज ही आकलन हो सकता है। पश्चिम जगत् में मातृ क्लब के विकास में अभिभावक शिक्षक संघ की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि का उदाहरण दिया जाता है।
शिक्षक अभिभावक संघ के कार्य (Functions of Teacher-parents Association)
शिक्षक अभिभावक संघ के मुख्य कार्य निम्नलिखित प्रकार हैं:-
- संघ को अभिभावक एवं शिक्षक दिवसों का आयोजन करना चाहिये, इससे अभिभावक विद्यालय के विभिन्न कार्यक्रमों से अवगत हो सकेंगे एवं विद्यालय के अधिकारी बालक के घर की परिस्थितियों तथा आवश्यकताओं को समझ सकेंगे।
- संघ के माध्यम से शिक्षकों एवं अभिभावकों के मध्य सद्भावना एवं विश्वास की स्थापना की जा सकती है। इस प्रकार अध्यापक बालकों के विषय में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।
- समय-समय पर विभिन्न बैठकों का आयोजन करना, जिनमें अभिभावक तथा शिक्षक वैयक्तिक अथवा सामूहिक रूप से समस्त समस्याओं के विषय में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।
- विद्यालय तथा समाज के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित करने हेतु समय-समय पर विद्यालय में विभिन्न कार्यक्रम संचालित करना। इसके लिये सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा सकता है।
ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड योजना
Operation Black Board
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, सन् 1986 में प्राथमिक शिक्षा को आवश्यक मानते हुए ह्रास एवं अवरोध की समस्या को कम करने के उद्देश्य से शैक्षिक वातावरण को पर्याप्त समुन्नत बनाने एवं शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाने पर विशेष बल दिया गया है। विद्यालयों के अनाकर्षक वातावरण, अरुचिकर पाठ्यक्रम, अपर्याप्त भवनों, पाठ्य सामग्री एवं खेल सामग्री आदि में सुधार लाने की दृष्टि से राज्य सरकार एवं शिक्षा विभाग द्वारा अनेक प्रयास किये जा रहे हैं।
इसी उद्देश्य से राष्ट्रीय शिक्षा नीति, सन् 1986 की कार्य योजना में ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड अभियान चलाने की संकल्पना की गयी। ऑपरेशन से तात्पर्य यह है कि युद्ध स्तर पर अभियान चलाकर किसी कार्य को शीघ्रातिशीघ्र पूरा करना। ब्लैक बोर्ड विद्यालयों में आवश्यक उपकरणों का प्रतीक है।
ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड का उद्देश्य प्राथमिक विद्यालयों में पाठ्य-सामग्री तथा शिक्षक उपकरण जैसी न्यूनतम आवश्यक सुविधाओं की व्यवस्था को सुनिश्चित करना है। इस योजना के अन्तर्गत निम्नलिखित लक्ष्य रखे गये हैं:-
- प्रत्येक विद्यालय में कम से कम 2 कमरे बरामदा सहित वाले भवन उपलब्ध कराये जायें।
- शिक्षक उपकरण।
- कक्षा शिक्षण सामग्री।
- खेल सामग्री एवं खिलौने।
- प्राथमिक विज्ञान किट।
- लघु औजार किट।
- टू-इन-वन ऑडियो उपकरण।
- पुस्तकालय के लिये पुस्तकें।
- विद्यालय की घण्टी, चॉक, झाड़न तथा कूड़ादान।
- वाद्य-यन्त्र, ढोलक, तबला, मजीरा तथा हारमोनियम।
- श्यामपट्ट तथा फर्नीचर।
- शिक्षक के पास आकस्मिक व्यय के लिये धन।
- प्रसाधन-लड़के एवं लड़कियों के लिये अलग-अलग।
- पेयजल व्यवस्था।
ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड योजना को सन् 1987-88 में लागू किया गया। वर्ष 1992 में इस योजना के क्रियान्वयन का मूल्यांकन करके निम्नलिखित संशोधन किये गये:-
- वर्तमान O.B.B. योजना को शेष सभी विद्यालयों विशेषकर अनुसूचित जाति/जनजाति के क्षेत्रों के विद्यालयों में जारी रखा जाय।
- नामांकित बच्चों के आधार पर जहाँ आवश्यक हो उन प्राथमिक विद्यालयों में 3 अध्यापकों एवं 3 कमरों की व्यवस्था की जाय।
- उच्च प्राथमिक विद्यालयों तक ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड 0. B. B. योजना का विस्तार किया जाय।
ऑपरेशन ब्लैक बोर्ट की विशेषताएँ
ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड की विशेषताएँ निम्नलिखित प्रकार हैं:-
- विद्यालय एवं कक्षा कक्षों को आकर्षक बनाने पर बल दिया गया है।
- छात्रेन्द्रित एवं कार्यकलाप आधारित शिक्षण अधिगम के माध्यम से शिक्षा की गुणवत्ता के प्रोत्साहन पर बल दिया गया है।
- विद्यालय के प्रभावी रूप से कार्य करने के लिये भवन, अध्यापकों एवं शिक्षण सामग्री के सम्बन्ध में स्पष्ट, सुविधाओं का उल्लेख किया गया है।
- अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया के लिये न्यूनतम मदों का उल्लेख किया गया है।
- प्रत्येक मद की गुणवत्ता बनाये रखने के उद्देश्य से आपूर्ति किये जाने वाले प्रत्येक मद के मानक तथा उसकी विशिष्टताएँ निर्धारित की गयी हैं।
ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड में समन्वित उपलब्ध सामग्री
इस योजना के अन्तर्गत उपलब्ध करायी गयी सामग्री निम्नलिखित हैं:-
- मुद्रित सामग्री तथा
- गैर मुद्रित सामग्री।
1. मुद्रित सामग्री
- अध्यापकों का विस्तृत अभिविन्यास कार्यक्रम,
- बोधात्मक पैकेज खण्ड-1
- क्रियाशील पैकेज खण्ड-2
2. गैर मुद्रित सामग्री
- ब्लॉक, पहेलियाँ, खेल-खिलौने, टाइल्स एवं पट्टियाँ आदि।
- खेल और खिलौने, कूदने की रस्सी, रबर की गेंदे, टेनिस की गेंदे, थ्रो-बॉल,
- फुटबॉल एवं टायर सहित झूलने की रस्सी। हवा भरने वाला पम्प, रिंग।
- प्राथमिक विज्ञान किट,
- लघु औजार किट,
- गणित किट,
- पुस्तकालय के लिये पुस्तकें-सन्दर्भ पुस्तकें, बाल-पुस्तकें, पत्रा-पत्रिकाएँ एवं समाचार पत्र।
- संगीत वाद्य- ढोलक, तबला, मजीरा, हारमोनियम।
- कक्षा का समान-कुर्सी, मेज, चटाइयाँ, बक्से, ब्लैक बोर्ड, रोलर बोर्ड, चॉक, डस्टर तथा कूड़ादान।
ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड का योजना का क्रियान्वयन
प्रत्येक सामुदायिक विकास खण्ड, नगरपालिका क्षेत्र एक इकाई के रूप में सर्वेक्षण के आधार पर उस खण्ड के लिये एक योजना बनाने का प्रस्ताव राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अन्तर्गत किया गया है। ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड के लिये राज्य सरकारों को धनराशि अग्रिम प्रतिपूर्ति के आधार पर केन्द्र सरकार द्वारा प्रदान किये जाने की व्यवस्था की गयी है।
प्राथमिक विद्यालयों की विशेष आवश्यकताओं और लागत कम करने के लिये ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड में परिकल्पित उपकरणों की आपूर्ति और प्रयोग के लिये व्यवस्था की गयी है। विशेष रूप से ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड के अन्तर्गत
विद्यालय पद्धति द्वारा अपेक्षित सामग्री तैयार करने के लिये पॉलिटेक्निकों, आई. टी. आई. माध्यमिक तथा उच्च माध्यमिक विद्यालयों में उपलब्ध क्षमता को भी काम में लाये जाने का प्रावधान किया गया है।
ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड के क्रियान्वयन का प्रशिक्षण देने के लिये शरद्कालीन और ग्रीष्मकालीन अवकाश में शिक्षकों के लिये व्यवस्था की गयी है। ग्रामीण क्षेत्रों में एक अध्यापक वाले विद्यालय काफी संख्या में हैं। आठवीं पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत प्रत्येक कक्षा के लिये एक अध्यापक देने का विस्तृत कार्यक्रम तैयार किया गया है।
प्रत्येक विद्यालय में दो अध्यापकों में से एक महिला हो इसके लिये प्रत्येक सम्भव प्रयत्न किये गये हैं। वर्ष 1987-88 से 2001-02 के समय 5,22,902 प्राथमिक और 1,38,009 उच्च प्राथमिक विद्यालयों में अध्यापकों के लिये शिक्षण अध्ययन सामग्री उपलब्ध करायी गयी। एक शिक्षक वाले प्राथमिक विद्यालयों में अतिरिक्त अध्याय सुनिश्चित करने के लिये 1,49,146 शिक्षकों के अतिरिक्त पद स्वीकृत किये गये।
इसके अलावा 100 से ज्यादा विद्यार्थियों वाले विद्यालयों और उच्च प्राथमिक विद्यालयों के लिये क्रमश: तीसरे अध्यापकों के 83,045 पदों तथा अतिरिक्त शिक्षकों के 77,610 पदों को मंजूरी दी गयी। इस योजना के अन्तर्गत 1.85 लाख अतिरिक्त भवन बनाये गये।