अधिगम की प्रभावशाली विधियाँ
बालक के सीखने की प्रक्रिया निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। इसको बालक द्वारा विविध रूपों में सम्पन्न किया जाता है। बालक विद्यालय में आने से पूर्व बहुत सी बातें जानता है, जिन्हें वह अपने परिवार एवं परिवेश से सीखकर आता है।
जैसे– शिक्षक की आज्ञा का पालन करना, शिक्षक का अभिवादन करना, कक्षा में शान्त रहना एवं अपने साथियों से प्रेमपूर्वक व्यवहार करना आदि। इस प्रकार के अनेक तथ्यों को आत्मसात् करके ही बालक विद्यालय में प्रवेश करता है।
बालक के सीखने की अनेक प्रभावशाली विधियों में वातावरण, शिक्षक एवं परिवेश की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि बालक कब किस विधि का उपयोग सीखने में करेगा यह कोई निश्चित तथ्य नहीं है? अनेक अवसरों पर बालक अनुकरण द्वारा, सुनकर, देखकर, सूंघकर एवं स्पर्श करके वस्तुओं के बारे में सीखते हैं।
सीखने की प्रमुख प्रभावशाली विधियाँ और उनमें शिक्षक, परिवार एवं विद्यालय की भूमिका का वर्णन निम्न रूप में किया जा सकता है-
1. करके सीखना (Learning by doing)
सामान्यतः यह देखा जाता है कि छोटा बालक अपने हाथों द्वारा विविध प्रकार के कार्यों को सम्पन्न करता है जो कि सार्थक एवं निरर्थक दोनों रूपों में होते हैं। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि जो कार्य करके सीखा जाता है उसका अधिगम स्थायी रूप से बना होता है।
जैसे– आप अपने घर में टी. बी. चला रहे हैं, रिमोट द्वारा आप आवाज कम करते हैं तथा अधिक करते हैं, चैनल परिवर्तित करते हैं, जब बालक इस घटना को देखता है तो उसका मन करता है कि उसके द्वारा भी यह कार्य किया जाना चाहिये। जब वह इस कार्य के लिये आग्रह करता है तो उसको इस कार्य को करने के अवसर मिलने चाहिये। जब वह रिमोट के कार्य को स्वयं करके सीखता है तो यह कार्य करके सीखने की विधि के अन्तर्गत आता है।
इस प्रकार की गतिविधियों को विद्यालय में, प्रयोगशाला में, कक्षा-कक्ष में तथा विद्यालयी खेल के मैदान में सम्पन्न करने के अवसर बालकों को मिलने चाहिये। वर्तमान में विद्यालयों में करके सीखने की प्रक्रिया को अपनाया जाता है, जिसमें शिक्षक की भूमिका एक सहयोगी एवं सुगमकर्ता की होती है। इसमें बालकेन्द्रित शिक्षा व्यवस्था में करके सीखने की प्रक्रिया को सर्वोत्तम माना जाता है। विस्तार से पढ़ें – करके सीखना।
2. अनुकरण द्वारा सीखना (Learning by Immitation Method)
सीखने की प्रभावशाली विधियों में छात्रों के अनुकरण द्वारा सीखने को महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया जाता है। सामान्य रूप से बालकों को आपने माता-पिता की नकल करते हुए या शिक्षक की नकल करते हुए देखा होगा। अनेक बालक अपने साथी की भी नकल करते हैं।
अनेक अवसरों पर छात्र जब किसी अभिनेता या नेता से प्रभावित होता है तो वह उसकी गतिविधियों एवं रहन-सहन को सीखता है। इस प्रकार की स्थिति में जो अधिगम की प्रक्रिया सम्पन्न होती है उसे हम अनुकरण द्वारा सीखना कहते हैं।
विद्यालय में यह प्रक्रिया व्यापक रूप से सम्पन्न होती है। जब शिक्षक छात्रों को गणित, हिन्दी एवं विज्ञान सम्बन्धी तथ्यों को करके बताता है तो अनुकरण के द्वारा वह उन क्रियाओं को सम्पन्न करता है। बालक में अनुकरण का गुण स्वाभाविक रूप से पाया जाता है।
घर-परिवार एवं परिवेश में विविध प्रकार की सामाजिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षिक प्रक्रियाओं को बालक अनुकरण द्वारा ही सीखता है। अनुकरण द्वारा सीखने को एक प्रभावशाली अधिगम विधि माना जाता है।
अनुकरण किसी बालक द्वारा उस स्थिति में किया जाता है जब वह क्रिया उसे अच्छी लगती हो। इस प्रकार अनुकरण द्वारा किया गया अधिगम विविध कौशलों एवं स्थायित्व से युक्त होता है। विस्तार से पढ़ें – अनुकरण द्वारा सीखना।
3. निरीक्षण द्वारा सीखना (Learning by observation)
निरीक्षण विधि को भी एक प्रभावशाली अधिगम विधि के रूप में स्वीकार किया जाता है। बालक में जितनी अधिक गहन एवं व्यापक निरीक्षण की क्षमता होगी बालक उतनी ही तीव्र गति से सीखने का प्रयास करेगा।
जैसे– जेम्सवाट ने चाय की केतली के ढक्कन के ऊपर-नीचे गिरने की प्रक्रिया का गहन निरीक्षण किया तथा उस पर तार्किक रूप से विचार किया तो यह जान लिया कि भाप में शक्ति होती है। इसी आधार पर उसने भाप के इन्जन का निर्माण करके अपने आपको इतिहास में अमर कर लिया।
ठीक इसी प्रकार बालक विद्यालय, घर एवं समाज में अनेक तथ्यों को निरीक्षण के माध्यम से सीखते हैं। बालक वर्षा काल में पौधों के उगने, फसलों के उत्पादन एवं कुहरे के पड़ने के बारे में सीखता है। वह इस सन्दर्भ में अनेक प्रश्न अपने आप से करता है, अपने सहयोगियों से करता है तथा एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचकर ज्ञान प्राप्त करता है।
बालक के निरीक्षण की प्रक्रिया विद्यालय एवं विद्यालय के बाहर चलती रहती है। इसलिये इसे एक व्यापक विधि के रूप में स्वीकार किया जाता है। निरीक्षण विधि को बालकों के सीखने की प्रभावशाली विधि माना जाता है। विस्तार से पढ़ें – निरीक्षण द्वारा सीखना।
4. परीक्षण करके सीखना (Learning by experiment)
परीक्षण विधि का आशय उस विधि से लिया जाता है, जिसमें विविध प्रयोगों एवं खोजों के माध्यम से किसी नियम या सिद्धान्त की सत्यता का मापन किया जाता है। सामान्य रूप से बालक भी परीक्षण का कार्य अपने प्रारम्भिक जीवन से ही कर देता है।
वह अपनी माता के प्रति अधिक विश्वास का प्रदर्शन करता है क्योंकि माता की अनेक गतिविधियाँ बालक की इच्छा को पूर्ण करने वाली होती हैं। इसलिये वह माता के प्रति अधिक विश्वास करता है।
इसी प्रकार जब बालक शिक्षक से यह कथन सुनता है कि सजीव वस्तुओं में वृद्धि होती है तथा निर्जीव वस्तुओं में वृद्धि नहीं होती तो वह व्यावहारिक जगत में पेड़-पौधों का परीक्षण करके उनकी वृद्धि को ज्ञात करता है तथा मेज-कुर्सी में वृद्धि को नहीं देखता तो उसका अधिगम स्थायी हो जाता है।
इस प्रकार की परीक्षण की प्रक्रिया उसके जीवन में चलती रहती है। अनेक अवसरों पर वह स्वयं की कल्पना का भी परीक्षण करके अधिगम करता है। जब वह अपनी कल्पना को सही पाता है तो उसको अधिगम होता है।
जैसे– आम की गुठली को जब वह पृथ्वी में दबाकर आम का पौधा प्राप्त कर लेता है तो उसको ज्ञात हो जाता है कि बीज से पौधे और पौधों से फल की प्राप्ति होती है। इस प्रकार परीक्षण द्वारा अधिगम की प्रक्रिया निरन्तर एवं व्यापक रूप से चलती रहती है। विस्तार से पढ़ें – परीक्षण करके सीखना।
5. सामूहिक विधियों द्वारा सीखना (Learning by group methods)
सामान्य रूप से यह देखा जाता है कि छात्रों को समूह में कार्य करने में आनन्द का अनुभव होता है। बालक को अपने साथियों के साथ खेलना अच्छा लगता है। कक्षा में पढ़ते समय भी छात्र अपने साथियों से बातें करते हैं। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि समूह में रहकर छात्र का अधिगम प्रभावशाली रूप से हो सकता है।
इसलिये वर्तमान समय में अनेक सामूहिक विधियों का प्रचलन देखा जाता है, जिनके माध्यम से छात्र अधिगम करता है। विद्यालय में अनेक प्रकार की सामूहिक विधियाँ संचालित करके छात्रों के अधिगम का मार्ग प्रशस्त किया जा जाता है।
जैसे– छात्रों को खेल-खेल में गिनती सीखने के अवसर दिये जाते हैं। मैदान बनाने के कार्य से बालक मापन सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त करता है। क्रिकेट में रनों एवं ओवरों की संख्या से गिनती सीखता है।
इस प्रकार की स्थितियाँ छात्रों के अधिगम को स्थायी रूप प्रदान करती हैं तथा रुचिपूर्ण अधिगम प्रदान करती हैं। इसमें छात्रों को सभी कार्य सामूहिक रूप में प्रदान किये जाते हैं तथा प्रत्येक छात्र को सामूहिक रूप से कार्यों के प्रति उत्तरदायित्व दिया जाता है। विस्तार से पढ़ें – सामूहिक विधियों द्वारा सीखना।
6. सम्मेलन एवं विचारगोष्ठी अधिगम (Learning by conference and seminar)
सम्मेलन प्रविधि
आधुनिक समय में सम्मेलन प्रविधि का महत्व प्रत्येक क्षेत्र में व्याप्त है। सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक तथा शैक्षिक आदि में सम्मेलन प्रविधि का उपयोग किया जाता है। प्रजातन्त्र के मूल्यों तथा लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये सम्मेलन प्रविधि का विशेष महत्त्व है। अंग्रेजी में सम्मेलन को अनेक शब्दों से सम्बोधित किया जाता है।
जैसे– कॉन्फ्रेन्स (Confrence), कन्वेन्शन (Convention) तथा मीट (Meet) आदि। विस्तार से पढ़ें – सम्मेलन प्रविधि।
विचार गोष्ठी प्रविधि
विद्यालय एवं महाविद्यालयों का शिक्षण तथा अनुदेशन स्मृति स्तर तक ही सीमित रहता है, अधिक से अधिक बोध स्तर पर सम्भव हो पाता है जबकि महाविद्यालयों तथा शोध संस्थाओं में अनुदेशनात्मक परिस्थितियाँ ऐसी होनी चाहिये, जो चिन्तन स्तर की अधिगम परिस्थितियों को प्रोत्साहित कर सकें।
ऐसी परिस्थितियों में मानवी अन्तः प्रक्रिया से उच्च ज्ञानात्मक योग्यताओं एवं क्षमताओं को विकसित किया जाता है। इस प्रकार की अधिगम परिस्थितियों को उत्पन्न करने के लिये अनेक प्रकार के शिक्षण एवं अनुदेशन प्रतिमानों तथा प्रविधियों का विकास किया गया है, जो शिक्षण-अधिगम के सिद्धान्तों पर आधारित हैं।
जैसे– वाद-विवाद, सेमीनार, सम्मेलन, सभाओं का आयोजन, अनुकरणीय शिक्षण व्यूह रचना, वर्कशाप एवं सामूहिक वाद-विवाद प्रतियोगिता आदि हैं। विस्तार से पढ़ें – विचार गोष्ठी प्रविधि।
7. परियोजना विधि एवं समूह अधिगम (Project methods and group learning)
परियोजना या प्रोजेक्ट प्रणाली
परियोजना या प्रोजेक्ट प्रणाली के जन्मदाता विलियम किलपैट्रिक (W. H. Kilpatrick) थे। वे प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री डीवी के शिष्य रह चुके थे। अतः उनके प्रयोजनवाद या व्यवहारवाद से विशेष रूप से प्रभावित थे। किलपैट्रिक के विचार में वर्तमान शिक्षा का सबसे बड़ा दोष उसका सामाजिक जीवन से पूर्णतया अलग होना है।
वर्तमान शिक्षा प्रणाली पूर्णतया सैद्धान्तिक है और उसका व्यावहारिक जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं है। विद्यालयों में छात्रों को केवल सूचना मात्र प्रदान की जाती है। अत: यह आवश्यक है कि शिक्षा और जीवन का परस्पर सम्बन्ध स्थापित किया जाये।
किलपैट्रिक के अनुसार-“हम चाहते हैं कि शिक्षा वास्तविक जीवन की गहराई में प्रवेश करे, केवल सामाजिक जीवन में ही नहीं वरन् उस उत्तम जीवन में जिसकी हम आशा करते हैं।”
प्रोजेक्ट प्रणाली का दार्शनिक आधार है व्यवहारवाद । इस प्रणाली में छात्र उद्देश्यपूर्ण क्रियाएँ पूर्ण संलग्नता से सामाजिक वातावरण में करते हैं। छात्र जो कुछ भी सीखता है वह क्रियाशील होकर सीखता है तथा वह जो क्रियाएँ सीखता है, वे सामाजिक जीवन से सम्बन्धित होती हैं। विस्तार से पढ़ें – प्रोजेक्ट विधि।
समूह अधिगम
सहपाठी समूह अधिगम के अन्तर्गत सीखने वालों को विभिन्न समवयस्क समूहों में बाँट लिया जाता है। समवयस्क शब्द के शाब्दिक अर्थ से ही स्पष्ट होता है कि इसमें सीखने वाले अपने स्तर पर समान योग्यता एवं आयु वर्ग के समूहों में सम्मिलित होकर स्वतन्त्र रूप से प्रजातान्त्रिक वातावरण में परस्पर समस्याओं का निवारण करते हुए किसी स्तर की पाठ्य-वस्तु सम्बन्धी तथ्यों, सिद्धान्तों, नियमों आदि पर आधारित अधिगम करते हैं।
सीखने वाले को अपने साथियों के साथ खुले मन से विषय-वस्तु पर आधारित अपने विचारों एवं भावों को अभिव्यक्त करने का अवसर मिलता है। इस शिक्षण नीति का उद्देश्य छात्रों को अपनी समस्याओं को स्वयं निराकरण करने के लिए प्रोत्साहित करना तथा उन्हें समाधान कार्यों को सही रूप में कर सकते हैं। विस्तार से पढ़ें – सहपाठी समूह अधिगम।
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