विचार गोष्ठी प्रविधि
विद्यालय एवं महाविद्यालयों का शिक्षण तथा अनुदेशन स्मृति स्तर तक ही सीमित रहता है, अधिक से अधिक बोध स्तर पर सम्भव हो पाता है जबकि महाविद्यालयों तथा शोध संस्थाओं में अनुदेशनात्मक परिस्थितियाँ ऐसी होनी चाहिये, जो चिन्तन स्तर की अधिगम परिस्थितियों को प्रोत्साहित कर सकें।
ऐसी परिस्थितियों में मानवी अन्तः प्रक्रिया से उच्च ज्ञानात्मक योग्यताओं एवं क्षमताओं को विकसित किया जाता है। इस प्रकार की अधिगम परिस्थितियों को उत्पन्न करने के लिये अनेक प्रकार के शिक्षण एवं अनुदेशन प्रतिमानों तथा प्रविधियों का विकास किया गया है, जो शिक्षण-अधिगम के सिद्धान्तों पर आधारित हैं।
जैसे– वाद-विवाद, सेमीनार, सम्मेलन, सभाओं का आयोजन, अनुकरणीय शिक्षण व्यूह रचना, वर्कशाप एवं सामूहिक वाद-विवाद प्रतियोगिता आदि हैं। यहाँ पर विचार गोष्ठी प्रविधि का विवेचन किया गया है।
परिभाषा
विचारगोष्ठी प्रविधि अनुदेशन की ऐसी प्रविधि है, जिससे चिन्तन स्तर के अधिगम के लिये अन्तः प्रक्रिया की परिस्थिति उत्पन्न की जाती है। इस प्रविधि को विभिन्न स्तरों पर अनुदेशन परिस्थितियों के लिये प्रयुक्त किया जाता है।
विचारगोष्ठी प्रविधि का स्वरूप (Form of Seminar Technique)
विचारगोष्ठी प्रविधि के प्रयोग करने में किसी प्रकरण का चयन किया जाता है। जो व्यक्ति उस प्रकरण पर प्रपत्र तैयार करते हैं, उन्हें वक्ता (Speaker) कहते हैं। प्रकरण के विभिन्न पक्षों को एक से अधिक व्यक्ति अलग-अलग प्रपत्र तैयार करते हैं।
प्राय: सेमीनार की व्यवस्था एक कक्षा तथा विभाग द्वारा महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों तथा शोध संस्थाओं के स्तर पर की जाती है। कुछ संस्थाओं में सेमीनार की व्यवस्था प्रति सप्ताह नियमित रूप से की जाती है।
इसके अतिरिक्त विविध प्रकरणों पर सेमीनार के लिये कुछ संगठन प्रोत्साहित करते हैं; जैसे राष्ट्रीय शिक्षा अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग आदि।
इस प्रकार की सेमीनार राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित की जाती है जिसमें विभिन्न संस्थाओं से व्यक्तियों (Participants) को आमन्त्रित किया जाता है, उनके व्यय के लिये संगठन आर्थिक सहायता देता है।
विचारगोष्ठी का प्रकरण पूर्व नियोजित होता है। वक्ता अपने प्रपत्र की प्रतिलिपियाँ भी तैयार करा लेते हैं और सेमीनार के आरम्भ में वितरण कर देते हैं।
सेमीनार के कार्य संचालन के लिये सेमीनार के भागीदारों (Participants) में से ही अध्यक्ष का चयन उसी समय किया जाता है। सेमीनार के लिये अध्यक्ष पूर्व निर्धारित नहीं होता है। यदि सेमीनार एक दिन से अधिक चलती है तो अध्यक्ष का प्रतिदिन चयन किया जाता है। सेमीनार के संचालन का उत्तरदायित्व अध्यक्ष का होता है।
संचालन प्रक्रिया (Mode of Operations) अध्यक्ष निर्धारित करता है। विचारगोष्ठी का अध्यक्ष यह निर्धारित करता है कि प्रत्येक व्यक्ति के प्रस्तुतीकरण के अंत में वाद-विवाद किया जायेगा अथवा सभी वक्ताओं के द्वारा प्रकरण प्रस्तुत करने के उपरान्त उस पर वाद-विवाद का अवसर दिया जायेगा। तदनुसार सेमीनार का संचालन किया जाता है।
विचारगोष्ठी प्रविधि की उपयोगिता (Utility of Seminar Technique)
विचारगोष्ठी अनुदेशन परिस्थितियाँ उत्पन्न करने की एक प्रभावशाली प्रविधि है। इसके निम्न उपयोग एवं लाभ हैं-
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इस विधि के द्वारा शिक्षा के ज्ञानात्मक तथा भावात्मक उच्च उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है।
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इससे प्रजातान्त्रिक मूल्यों का विकास होता है।
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प्रस्तुतीकरण तथा तर्क करने की क्षमताओं का विकास होता है।
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सेमीनार के उपयोग से उत्तम प्रकार की अधिगम आदतों का विकास होता है। शिक्षार्थी की अधिगम में तन्मयता होने लगती है।
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सेमीनार प्रविधि शिक्षार्थी केन्द्रित होती है।
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यह स्वतन्त्र अध्ययन (Independent study) को प्रोत्साहित करती है।
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इसके द्वारा वाद-विवाद में भाग लेने तथा बोलने के कौशल का विकास होता है।
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सेमीनार में शिक्षार्थी स्वाभाविक ढंग से सीखता है।
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इससे आलोचनात्मक चिन्तन का विकास होता है।
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शिक्षार्थी में सामाजिक तथा भावात्मक गुणों का भी विकास होता है।
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प्रकरण सम्बन्धी निरीक्षण अनुभवों के प्रस्तुत करने का अवसर भी मिलता है।