अनुकरण का सिद्धांत
अनुकरण के सिद्धांत के प्रतिपादक मनोवैज्ञानिक हैगार्ट को माना जाता है। अनुकरण एक सामान्य प्रवृत्ति है, जिसका प्रयोग मानव दैनिक जीवन की समस्याओं के सुलझाने में करता है। अनुकरण में हम दूसरों को क्रिया करते हुए देखते हैं और वैसा ही करना सीख लेते हैं। मनोवैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि अनुकरण के द्वारा भी सीखा जा सकता है। यह सिद्धांत मानव में अधिक सफल हुआ है।
अनुकरण द्वारा सीखने की प्रक्रिया शैशवावस्था से ही प्रारम्भ हो जाती है। विद्यालय में बच्चे शिक्षक द्वारा की जाने वाली क्रियाओं का अनुकरण करके सीखते है। इस विधि में शिक्षक छात्र के लिए आदर्श स्वरूप होता है। मनोवैज्ञानिक हैगार्ट महोदय की अनुकरण द्वारा सीखने का सिद्धान्त से भी यह स्पष्ट होता है कि अधिगम की प्रक्रिया अनुकरण के माध्यम से सरल होती है।
मैक्डूगल के अनुसार, “एक व्यक्ति द्वारा दूसरों की क्रियाओं या शारीरिक गतिविधियों की नकल करने की प्रक्रिया को अनुकरण कहते हैं।“
Imitation is applicable only to copying by an individual of the actions, the bodily movements of others.”
कैज एवं शैन्क (Katz and Schank) के अनुसार, “अनुकरण प्रेरणा और प्रतिक्रिया के बीच वह सम्बन्ध है, जिसमें प्रतिक्रिया प्रेरणा उत्पन्न करती है या उससे मिलती-जुलती होती है।“
“Imitation is that relationship between stimulus and response in which the response reproduces or resembles the stimulus.”
हैगार्ट का प्रयोग
अनुकरण के द्वारा सीखने को प्रभावशाली बनाने के लिये हैगार्ट द्वारा किये गये प्रयोग को हम प्रस्तुत करते हैं। आपने एक भूखे बन्दर को एक कमरे में बन्द करके उसके सामने एक पोली नली में केला डालकर रख दिया। कमरे के बाहर एक अन्य बन्दर भी बैठा हुआ था। कमरे में बन्द बन्दर ने विभिन्न क्रियाएँ की, कि केला निकल आये, लेकिन सफलता न मिली।
अब उसने पास में पड़ी छड़ी को उठाया और पोली नली में डालकर केला निकाल लिया और अपनी भूख मिटायी। बाहर बैठा बन्दर उन क्रियाओं को गौर से देखता रहा। दूसरे दिन बाहर बैठे बन्दर को कमरे में बन्द कर दिया। उसने कमरे में पड़े सामान को देखा और एकदम छड़ी से केला निकाल कर खा लिया। इससे स्पष्ट होता है कि सीखना अनुकरण के द्वारा भी होता है।
अनुकरण का अधिगम महत्त्व (Importance of limitation in learning)
अधिगम के क्षेत्र में अनुकरण द्वारा सीखने का बहुत अधिक महत्त्व है जिसे निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है
1. सीखने में सरलता (Simplicity in learning)
अनुकरण की विधि इतनी सरल है कि कभी, किसी के द्वारा, किसी क्रिया या ज्ञान को आसानी से धारण किया जा सकता है। इसमें खेल की तरह से सीखते हैं।
2. जटिल समस्या (Difficult problem)
शिक्षा की जटिल समस्याओं को प्रदर्शन द्वारा बच्चों को आसानी से सिखाया जा सकता है। ये समस्याएँ शैक्षिक कुशलता पर निर्भर न रहकर व्यावहारिक पक्ष पर निर्भर करती हैं।
3. सौन्दर्यानुभूति (Aesthetic)
मानव जीवन में कला, नृत्य, संगीत, साहित्य आदि का विकास अनुकरण प्रवृत्ति से ही हुआ है। बालकों में सौन्दर्य बोध अनुकरण के द्वारा बढ़ाया जा सकता है।
4. शक्ति संचय (Power saving)
अनुकरण के द्वारा सीखने में बालक की सम्पूर्ण शक्ति को इकट्ठा करके लगाना होता है। अत: वह यह ज्ञान जाता है कि शक्ति एकत्रित करके ही कार्य को सम्पन्न किया जा सकता है।
5. व्यक्तित्व का विकास (Development of personality)
विद्यालय में बालक निश्चित ज्ञान को ही प्राप्त कर पाता है, जबकि अनुकरण के द्वारा वह विभिन्न प्रकार के ज्ञान को एकत्रित कर लेता है। यही ज्ञान उसके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करता है।
6. समाजीकरण (Socialization)
अनुकरण के द्वारा सीखना अत्यन्त सरल होता है, जो बालकों को समाज द्वारा निश्चित नियमों के अनुसार रहना सिखाता है। छोटा बालक विभिन्न लोगों के व्यवहार को देखता है और धीरे-धीरे वैसा ही करना सीख लेता है।
7. आदत निर्माण (Habit formation)
अनुकरण के द्वारा बालक अच्छी आदतों का विकास एवं गठन करते हैं। जब वे अच्छे परिणाम जो सुखदायी होते हैं, को समाज में देखते हैं तो उन्हें धारण करने की लालसा दिखलाते हैं और धीरे-धीरे अपने व्यक्तित्व में उन आदतों का गठन कर लेते हैं।
अनुकरण का शिक्षा में महत्त्व
टी. पी. नन (T. P. Nunn) के अनुसार, “अनुकरण व्यक्तित्व के विकास की प्रथम सीढ़ी है।“
जेम्स (James) के अनुसार, “अनुकरण और आविष्कार दो पाँव हैं, जिनकी सहायता से मानव जाति ने अपना ऐतिहासिक विकास किया है।“
“Imitation and invention are two legs on which in human race has historically walked.”
अनुकरण द्वारा सीखने का सिद्धांत बालकों को नयी बातें सिखाने में उपयोगी सिद्ध हुआ है। प्रदर्शन विधि इसी सिद्धांत का प्रतिफल है, जिससे कि सीखना ‘प्रयास तथा भूल सिद्धांत‘ की अपेक्षा अधिक एवं उच्च-कोटि का होता है। विज्ञान, गणित, चित्रकला, गृहविज्ञान, नृत्य, संगीत तथा खेल के प्रशिक्षण में भी अनुकरण विधि अधिक उपयोगी सिद्ध हुई है।