Vygotsky Ka Sangyanatmak Vikas Ka Siddhant |
लेव सेमेनोविच वाइगोत्सकी का परिचय (1896-1934) Introduction of Lev Semyonovich Vygotsky
वाइगोत्सकी एक रूसी मनोवैज्ञानिक था जिसके प्रमुख मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त एवं शोध मानवीय चेतना के विकास एवं उसकी संरचना से सम्बन्धित थे। जब वह युवा था तब उसकी रुचि साहित्य एवं साहित्य के विश्लेषण में थी। उसका प्रमुख ध्यान दर्शन और कविता की ओर था।
लेव सेमेनोविच वाइगोत्सकी ने सर्वप्रथम मास्को चिकित्सा विद्यालय में प्रवेश लिया तथा शीघ्र ही उनका विचार बदला और कानून के विद्यालय में प्रवेश ले लिया। लेव सेमेनोविच वाइगोत्सकी ने एक विद्यालय में शिक्षण कार्य आरम्भ किया, जहाँ वह मनोविज्ञान के ऊपर व्याख्यान देते थे।
मनोविज्ञान के क्षेत्र में वाइगोत्सकी ने अपने कार्य को एलेक्जेंडर लूरिया (Alexander Luria) और एलेक्सी लियोन्टिव (Alexi Leontiev) की सहायता से गति प्रदान की। वाइगोत्सकी पर इस तथ्य के लिये दबाव पड़ा कि वे रूस की राजनैतिक विचारधारा से जुड़े तथा उसके लिये कार्य करें।
वाइगोत्सकी की मृत्यु राजयक्ष्मा (टी.बी.) के कारण हुई। मृत्यु के पश्चात् उनके विचारों पर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया, परन्तु उनके छात्रों ने उनकी विचारधारा एवं उनकी कृतियों को सुरक्षित रखा। वाइगोत्सकी के कार्यों को विकासात्मक मनोविज्ञान के क्षेत्र में आज भी याद किया जाता है। रूस की शिक्षा व्यवस्था को इनके विचारों से पूर्णत: लाभ पहुंचा।
वाइगोत्सकी को मुख्य रूप से संज्ञानात्मक मनोवैज्ञानिकीय उपागम के सन्दर्भ में याद किया जाता है। अनेक विद्वानों ने बालक के संज्ञानात्मक विकास में सामाजिक संसार की भूमिका मात्र प्रारम्भिक भूमिका के रूप में स्वीकार की है। वाइगोत्सकी ने संज्ञानात्मक विकास के सन्दर्भ में समाज के सूक्ष्म एवं व्यापक प्रभावों का अध्ययन किया है।
वाइगोत्सकी का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धान्त (Learning Theory of Vygotsky)
वाइगोत्सकी ने सीखने के सन्दर्भ में अन्य विद्वानों से पृथक रूप में अपने विचार प्रस्तुत किये हैं। वाइगोत्सकी ने सीखने की व्याख्या विकास के सन्दर्भ में की है। उन्होंने सीखने की व्याख्या को संस्कृति एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में स्पष्ट किया है।
वाइगोत्सकी ने सीखने को परिभाषित करते हुए लिखा है कि, “सीखना एक आवश्यक और सार्वभौमिक तथ्य है जो सांस्कृतिक संगठनों के विकास के प्रयास, विशेषत: मानव के मनोवैज्ञानिक कार्यों के प्रति उत्तरदायी होता है। अत: विकास का प्रयास सीखने के प्रयास को पीछे की ओर ले जाने को प्रवृत्त होता है।“
इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि सीखने की प्रक्रिया विकास पर आधारित होती है। विकास सीखने की प्रक्रिया पर आधारित नहीं होता। दूसरे शब्दों में सीखे गये ज्ञान के क्षेत्र में विकास के साथ-साथ विकास की प्रक्रिया उन क्षेत्रों में भी होती है जिन्हें हमने सीखा नहीं है।
अतः सीखने के क्षेत्र की तुलना में विकास का क्षेत्र व्यापक है। वाइगोत्सकी के अधिगम सिद्धान्त को समझने के लिये प्रमुख बिन्दुओं पर विचार किया जाना आवश्यक है जिन पर वाइगोत्सकी ने प्रमुख रूप से बल दिया है। ये बिन्दु इस प्रकार हैं-
1. संज्ञानात्मक विकास (Cognitive development)
संज्ञानात्मक विकास में वाइगोत्सकी ने सामाजिक प्रभावों की महत्त्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया था तथा इसके अधिगम प्रभावों के सन्दर्भ में सूक्ष्म प्रभाव एवं व्यापक प्रभावों का विश्लेषण किया है। संज्ञानात्मक विकास के प्रमुख साधन के रूप में भाषा का वर्णन करते हुए वाइगोत्सकी कहते हैं –
“भाषा संज्ञानात्मक विकास के उपागम के रूप में प्रयुक्त नहीं होती है। वरन् यह ऐसा उपाय है जो सांस्कृतिक विवरण को आकार प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त संस्थाएँ, साधन और प्रतीक व्यवस्थाएँ मानव निर्मित वे उपाय हैं जो ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्थाओं की ओर संकेत करती हैं।”
इससे यह स्पष्ट है कि भाषा एवं अन्य निर्मित उपायों से हमको ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था का ज्ञान होता है।
2. अन्त: क्रिया (Interaction)
वाइगोत्सकी अन्त:क्रिया को सीखने में महत्त्वपूर्ण योगदान मानते है। अन्त:क्रिया के माध्यम से छात्र में स्वतः प्रेरणा उत्पन्न होती है जो कि उसको सीखने में सहायता करती है। अन्त: क्रिया एवं सम्बन्धों के माध्यम से स्वयं छात्र अपने ज्ञान के भण्डार में वृद्धि करता है।
जब छात्र किसी समस्या पर विचार करता है तो उससे सम्बन्धित कुछ तथ्य उसके संज्ञान में होते हैं जो उसे आगे बढ़ने की ओर प्रेरित करते हैं; जैसे एक छात्र साइकिल चलाते हुए व्यक्ति को देखता है तो उसकी प्रक्रिया से सम्बन्धित कुछ तथ्य जैसे, साइकिल पकड़ना, साइकिल का स्वरूप एवं साइकिल को खड़ी करना आदि उसके संज्ञान में होते हैं, जो उसको साइकिल चलाने को सीखने में सहायता करते हैं।
अन्त:क्रिया के माध्यम से छात्र उच्च श्रेणी के मानसिक कार्य सीखता है; जैसे विचार करना, समस्या समाधान करना, स्मृति का ज्ञान तथा भाषा सीखना आदि क्योंकि सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी एवं सम्बन्धित अन्य उपाय अन्त:क्रिया प्रकृति की ओर मानव को आकर्षित करती है इस प्रकार छात्र अन्त:क्रिया के माध्यम से सीखता है।
3. ZPD की अवधारणा (Concept of Zone of Proximal Development)
वाइगोत्सकी के अधिगम सिद्धान्त को समझने के लिये जेड. पी. डी. की अवधारणा को समझना आवश्यक है। जो कुछ हम जानते हैं और जो कुछ हम नहीं जानते हैं उसके बीच एक रिक्त स्थान होता है। यह रिक्त स्थान ही विकास एवं ज्ञान का आधार होता है।
ZPD की व्याख्या करते हुए वाइगोत्सकी लिखते हैं कि, “वास्तविक विकासात्मक स्तर जो कि समस्या समाधान पर आधारित होता है और सम्भावित विकास स्तर जो कि मार्गदर्शन पर आधारित होता है। इनके बीच की दूरी सक्षम समान पदीय मार्गदर्शन पर आधारित होती है।“
जेड.पी.डी. छात्र को कार्य सीखने के प्रति आकर्षित करती है तथा छात्र नवीन तथ्यों को सीखने का प्रयास करता है। जो तथ्य एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं उन्हें अन्त:क्रिया के माध्यम से सीखता है।
4. संस्कृति का अधिगम पक्ष (Learning aspect of culture)
वाइगोत्सकी अधिगम की प्रक्रिया में संस्कृति का महत्त्वपूर्ण योगदान मानते हैं। संस्कृति को परिभाषित करते हुए लिखते हैं कि, “संस्कृति विशिष्ट व्यवहार परिवर्तन एवं मानसिक कार्य में परिवर्तन को प्रदर्शित करती है तथा उसके अतिरिक्त मानव व्यवहार के विकास का नवीन स्तर निर्धारित करती है।“
इससे यह स्पष्ट होता है कि संस्कृति के द्वारा बालक सीखने का प्रयत्न करता है क्योंकि अनुकरण के माध्यम से सीखने को वाइगोत्सकी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान करते हैं। बालक अनुकरण सिद्धांत के द्वारा प्रमुख रूप से सीखता है। यह स्थिति सामान्य रूप से दृष्टिगोचर होती है। सांस्कृतिक एवं सामाजिक परम्पराओं को सिखाने के लिये किसी विशेष प्रकार की परिस्थितियों का निर्माण नहीं करना पड़ता है।
इन परम्पराओं को बालक सामान्य रूप से करने का प्रयास करता है और सीख जाता है, जैसे बालक अपने पिता को ईश्वर भजन करते हुए देखता है तो स्वयं भी ईश्वर के ध्यान एवं भजन में एकाग्रचित्त हो जाता है। इसी प्रकार बालक अनेक प्रकार की सामाजिक एवं सांस्कृतिक परम्पराओं का अधिगम करता है।
5. अधिगम स्तर में भिन्नता (Differencing in learning level)
प्रायः छात्रों को समान परिस्थितियों में स्वतन्त्र रूप से रखने पर उनके अधिगम स्तर में भिन्नता पायी जाती है। कुछ छात्र सामान्य से अधिक अधिगम करते हैं तथा कुछ कार्य सामान्य से कम अधिगम करते हैं। इसके पीछे अनेक कारण हो सकते हैं जिनमें जेड.पी.डी. का प्रमुख स्थान है।
जेड.पी.डी. के कारण ही छात्रों के अधिगम स्तर में भिन्नता है क्योंकि जो छात्र जानने वाले ज्ञान तथा नहीं जानने वाले ज्ञान के मध्य सम्बन्ध स्थापित करने में सक्षम होते हैं उनका अधिगम स्तर सामान्य से कम होता है। अत: जेड.पी.डी. से सम्बन्धित रिक्त स्थान ही विकास एवं सीखने के मार्ग को प्रशस्त करता है। यह कार्य अन्त:क्रिया के माध्यम से ही सम्पन्न होता है।
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि अधिगम प्रक्रिया में अनुकरण, जेड.पी.डी, सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्रियाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। इन समस्त क्रियाओं में छात्रों के मध्य होने वाली अन्त:क्रिया का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है।
अन्त:क्रिया में होने वाली प्रत्येक वृद्धि छात्र के अधिगम स्तर की तीव्रता में वृद्धि करती है अर्थात् छात्र का अधिगम स्तर उच्च होता है तथा छात्र अधिक सक्षमता को प्रदर्शित करता है।
वाइगोत्सकी के सिद्धान्त की विशेषताएँ (Characteristics of Theory of Vygotsky)
वाइगोत्सकी के अधिगम के सिद्धान्त का विश्लेषण किया जाय तो निम्न विशेषताएँ इस सिद्धान्त में दृष्टिगोचर होती हैं-
- सीखना एक सार्वभौमिक क्रिया है जो निरन्तरता की स्थिति में पायी जाती है अर्थात् यह प्रक्रिया निरन्तर रूप से चलती रहती है।
- सीखने में प्रमुख रूप से सांस्कृतिक संगठन, सामाजिक संस्थाएँ, विद्यालय एवं संस्कृति का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
- मानव के व्यवहार परिवर्तन का प्रमुख आधार संस्कृति, सामाजिक एवं ऐतिहासिक परम्पराएँ होती हैं जो कि व्यक्ति को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से अधिगम के लिये प्रेरित करती हैं।
- व्यक्ति अपने व्यावहारिक विकास के उपाय एवं साधनों में परिवर्तन करता हुआ विशिष्ट प्रकार के व्यावहारिक स्वरूप एवं विकास प्रक्रिया का निर्माण करता है।
- अन्त:दृष्टि के द्वारा विद्यालय छात्रों को अधिगम प्रक्रिया का एक निर्देशित स्वरूप प्रदान करता है।
- सीखने की प्रक्रिया में अन्त:क्रिया ही एक प्रेरणा स्रोत कार्य करती है जिससे छात्र सीखने के लिये प्रेरित होता है।
- सीखने की प्रक्रिया का मूल्यांकन व्यक्तिगत विशेषताओं के विश्लेषण के बजाय सामाजिक गत्यात्मकता के विश्लेषण पर आधारित होना चाहिये। अर्थात् अधिगम के स्तर का मापन सामाजिक व्यावहारिकता के विशेष सन्दर्भ में होना चाहिये।
- सीखने की प्रक्रिया में दूसरे व्यक्तियों का अनुकरण प्रमुख भूमिका का निर्वाह करता है; जैसे– छात्र द्वारा शिक्षक का अनुकरण एवं बालक द्वारा माता-पिता का अनुकरण आदि।
- सीखने की प्रक्रिया में सांस्कृतिक संगठनों के उपाय एवं मनोवैज्ञानिक तथ्य उत्तरदायी होते हैं।
- जो हम जानते हैं तथा हम नहीं जानते हैं उसके मध्य को ही विकास का रिक्त स्थान माना जाता है जिससे अधिगम प्रक्रिया सम्पन्न होती है।
- अधिगम प्रक्रिया में जेड.पी.डी. का प्रमुख स्थान होता है।
- सीखने की प्रक्रिया विकास पर आधारित होती है परन्तु विकास सीखने की प्रक्रिया पर आधारित नहीं होता है क्योंकि विकास सीखे गये ज्ञान क्षेत्र से अधिक विस्तृत क्षेत्र में भी हो सकता है।
- समस्या समाधान की योग्यता ही अधिगम प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण भाग है, जिसे प्रत्येक स्थिति में अधिगम के लिये प्राप्त करना होता है।
- अधिगम प्रक्रिया को कुशलतम रूप से सम्पन्न करने एवं अधिगम तीव्रता में वृद्धि के लिये छात्रों को क्रियाशीलता की स्थिति में रखना चाहिये।
- यह सिद्धान्त सांस्कृतिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक तथ्यों के समन्वय से अधिगम प्रक्रिया का सम्पन्न होना माना जाता है।
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि वाइगोत्सकी का अधिगम सिद्धान्त प्रमुख रूप से सांस्कृतिक, सामाजिक एवं ऐतिहासिक तथ्यों के द्वारा सीखने की प्रक्रिया में अधिक विश्वास रखता है। व्यक्तिगत विशेषताओं की अपेक्षा सामाजिक योग्यता एवं गत्यात्मकता को अधिगम स्तर का मापन एवं मूल्यांकन का आधार मानता है।
इसके साथ-साथ अधिगम में मनोवैज्ञानिक तत्वों के महत्त्व को भी स्वीकार करता है; जैसे– बुद्धि, सृजनात्मकता एवं अभिरुचि आदि।