जन्मजात प्रेरक (Innate Motives) या जैविकीय प्रेरक (Physiological) या शारीरिक प्रेरक या प्राथमिक प्रेरक
ये प्रेरक मनुष्य में जन्म से ही पाये जाते हैं। इसी कारण इनको जैविकीय प्रेरक (Physiological) या शारीरिक प्रेरक या प्राथमिक प्रेरक भी कहते हैं। मनुष्य जीवित रहने के लिये इन प्रेरकों की पूर्ति करता है। यह कहना उचित ही है कि जन्मजात प्रेरक जीवन का आधार होते हैं। इनको जैविकीय आवश्यकता भी कहते हैं।
जन्मजात प्रेरक इस प्रकार हैं-
1. भूख (Hunger)
बालक को जन्म के पश्चात् भूख लगने लगती है। इस प्रकार भूख का प्रेरक बालक में जन्म से ही विद्यमान रहता है। व्यक्ति को भूख लगती है तो उसमें दो प्रकार के परिवर्तन होते हैं-
- शारीरिक दशाओं में परिवर्तन,
- बाह्य दशाओं में परिवर्तन
भूख लगने पर जब व्यक्ति भोजन करता है तो उसके आमाशय में होने वाली क्रिया की तीव्रता कम हो जाती है। जब व्यक्ति भूखा हो तो वह भोजन प्राप्त करने का प्रयत्न करता है।
बालक दिन में अनेक बार भोजन करता है, परन्तु वयस्क दिन में दो बार या तीन बार ही भोजन करता है। बालकों को जो वस्तु प्रिय होती है वे उसी को खाते हैं, परन्तु वयस्क अपने भोजन में उन वस्तुओं को पसन्द करते हैं जो पौष्टिक होती हैं।
2. प्यास (Thirst)
भूख और प्यास साथ साथ चलते हैं। भूख की भाँति प्यास का प्रेरक भी प्राणी में जन्म से ही विद्यमान रहता है। व्यक्ति को उस समय प्यास लगती है, जब शरीर में पानी की कमी होती है।
पानी शरीर के लिये आवश्यक है, जो व्यक्ति आवश्यकता से कम पानी पीता है उसके शरीर का सन्तुलन बिगड़ जाता है। शरीर की अनेक क्रियाएँ पानी के अभाव में रुक जाती हैं।
3. काम (Sex)
प्रत्येक प्राणी में काम सम्बन्धी प्रेरक पाया जाता है। व्यक्ति के जीवन में काम (Sex) का विशेष महत्त्व होता है। किशोरावस्था में काम-भावना का प्रदर्शन बाल्यावस्था में इसके प्रदर्शन से भिन्न होता है। किशोरावस्था में व्यक्ति स्पष्ट रूप से ‘काम’ भावना का प्रदर्शन करने लगता है।
बालक या बालिका विपरीत लिंग की ओर आकर्षित होने लगते हैं। प्रौढ़ावस्था में भी यह प्रेरक शक्तिशाली रहता है, परन्तु वृद्धावस्था में यह प्रेरक क्षीण पड़ जाता है। मनुष्य की काम भावना के प्रेरक में निम्न तत्त्व प्रमुख रूप से कार्य करते हैं-
- लिंग प्रन्थियों में होने वाला स्राव,
- अन्य ग्रन्थियों में होने वाला स्राव।
पुरुषों में ग्रन्थियों से निकलने वाला स्त्राव एण्ड्रोजन (Androgen) कहलाता है। स्त्रियों में ग्रन्थियों से जो स्राव निकलता है, उसे प्रस्टोजन कहते हैं।
किसी व्यक्ति की काम भावना इन्हीं ग्रन्थियों से निकलने वाले स्राव पर निर्भर करती है। काम भावना अनुभव करने तथा उसके प्रदर्शन में व्यक्तिगत भिन्नता देखी जाती है।
जिन व्यक्तियों की काम भावना शान्त नहीं हो पाती या वे किसी कारण काम वासना पूर्ति से असन्तुष्ट रहते हैं तो उनका व्यवहार असामान्य हो जाता है। काम वासना से असन्तुष्ट व्यक्ति का विकास भी रुक जाता है।
4. नींद (Sleep)
जब व्यक्ति में थकान आ जाती है तो यह प्रेरक क्रियाशील हो जाता है। उस समय यदि व्यक्ति को पर्याप्त नींद मिल जाती है तो उसका यह प्रेरक शान्त हो जाता है।
व्यक्ति उस समय थकान अनुभव करता है जब उसकी माँसपेशियों की शक्ति क्षीण हो जाती है। जब व्यक्ति थक जाता है तो वह विश्राम करना चाहता है। थका हुआ व्यक्ति ठीक कार्य नहीं करता। बालकों में वयस्कों की अपेक्षा यह प्रेरक अधिक शक्तिशाली होता है।
5. प्रेम (Love or affection)
यह प्रेरक भी बालक में जन्म से ही विद्यमान रहता है। प्रत्येक बालक और व्यक्ति (स्त्री या पुरुष) यह चाहता है कि उसे कोई प्रेम करे। इस प्रेरक की शान्ति उस समय होती है, जब व्यक्ति को प्रेम मिल जाता है।
6. क्रोध (Anger)
यह प्रेरक प्राणी में जन्म से ही पाया जाता है। जब व्यक्ति अपनी इच्छित वस्तु प्राप्त नहीं कर पाता है तो उसे क्रोध आता है। क्रोध की अवस्था में व्यक्ति के शरीर में तनाव उत्पन्न हो जाता है और उसके शरीर की क्रियाशीलता में वृद्धि हो जाती है।
व्यक्ति जब लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है तो उसका शारीरिक तनाव समाप्त हो जाता है और जब वह शान्त हो जाता है तो उसके क्रोध का प्रेरक भी समाप्त हो जाता है।
7. मल-मूत्र त्याग (Excretion of waste product)
यह प्रेरक भी विशेष महत्त्वपूर्ण है। इस प्रेरक को तुरन्त शान्त किया जाना चाहिये।