प्रयत्न और भूल का सिद्धांत
किसी कार्य को हम एकदम से नहीं सीख पाते हैं। सीखने की प्रक्रिया में हम प्रयत्न करते हैं और बाधाओं के कारण भूलें भी होती हैं। लगातार प्रयत्न करने से सीखने में प्रगति होती है और भूलें कम होती जाती हैं। अत: किसी क्रिया के प्रति बार-बार प्रयास करने से भूलों का ह्रास होता है, तो इसको प्रयत्न और भूल का सिद्धान्त कहते हैं।
वुडवर्थ के अनुसार- ” प्रयत्न और त्रुटि में किसी कार्य को करने के लिये अनेक प्रयत्न करने पड़ते हैं, जिनमें अधिकांश गलत होते हैं।“
एल. रेन (L. Rein) के अनुसार- “संयोजन सिद्धांत वह सिद्धान्त है, जो यह मानता है कि प्रक्रियाएँ, परिस्थिति और प्रतिक्रिया में होने वाले मूल या अर्जित कार्य सम्मिलित हैं।“
“Connection is the doctrine that all mental process consist of the functioning of the native are acquired connection between situation and response.”
प्रयत्न और भूल के सिद्धांत का जन्म
प्रयत्न और भूल के सिद्धांत के प्रतिपादक ई. एल. थॉर्नडाइक हैं। थॉर्नडाइक ने अपने सिद्धान्त में सही प्रतिक्रिया रचना और उपयुक्त उद्दीपक के साथ संयोजित करना माना है। उन्होंने दैनिक जीवन के अनुभवों में पाया कि व्यक्ति अपनी दक्षता के आधार पर प्रतिचार करता है।
वह उस समय तक प्रतिचार करता है, जब तक कि उसे सफलता नहीं मिल जाती है। इसमें प्रयत्न और भूलें साथ-साथ होती हैं। धीरे-धीरे अधिगम में सुधार होता है और भूलों में कमी आती है।
प्रयत्न और भूल के सिद्धांत की विशेषताएँ
थॉर्नडाइक ने प्रयत्न एवं भूल के अधिगम सिद्धांत में निम्न प्रकार की विशेषताएँ बतलायी हैं-
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प्रेरक की उपस्थिति, जो सीखने के प्रति रुचि की निरन्तरता को बनाये रखता है।
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अनेक प्रकार की प्रतिक्रियाएँ करना, जो सही भी होती हैं और गलत भी।
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भूलों या गलत क्रियाओं को न करना, बल्कि धीरे-धीरे समाप्त करना।
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लक्ष्य प्राप्ति प्रतिक्रियाओं एवं सहायक प्रतिक्रियाओं में क्रमिक संयोजन स्थापित करना।
थार्नडाइक का प्रयोग
थॉर्नडाइक ने समस्या बॉक्स नामक पिंजड़े में एक भूखी बिल्ली को बन्द कर दिया। पिंजड़े के बाहर मछली या मांस की तश्तरी रख दी, जिसकी सुगन्ध बिल्ली को अनुभव हो रही थी। अत: बिल्ली पिंजड़े से बाहर आने के लिये-तारों पर पंजा मारना, उन्हें काटना, पिंजड़े की सतह को दबाना और उछलना आदि क्रियाएँ करने लगी।
उस समय ये क्रियाएँ निर्लक्ष्य थीं। बाद में इन्हीं क्रियाओं को करते समय अचानक सिटकनी पर उसका पैर पड़ गया और पिंजड़े का दरवाजा खुल गया। बिल्ली बाहर आयी और भोजन प्राप्त कर लिया। इस प्रकार से बिल्ली को सिटकनी खोलकर बाहर आने के लिये 100 प्रयत्नों से गुजरना पड़ा।
अभ्यास के दौरान जो भूलें की गयीं उनका पूर्ण हिसाब रखा गया। अब जैसे ही बिल्ली को बन्द करते, वह सिटकनी खोल कर तुरन्त बाहर आ जाती, जैसे कोई मानव आता है।
प्रयत्न और भूल के सिद्धांत के प्रयोग के महत्त्वपूर्ण तथ्य
उपरोक्त प्रयोग के बाद हमारे सामने निम्न मनोवैज्ञानिक तथ्य आते हैं-
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प्रारम्भ में अनेकों लक्ष्यहीन क्रियाओं को करना,
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प्रेरणा द्वारा प्रयत्नों में तेजी लाना,
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आकस्मिक सफलता प्राप्त होना,
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अभ्यास का प्रभाव,
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संवेदना और प्रतिचार में सम्बन्ध का ज्ञान,
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सही प्रतिचारों का चुनाव करना और,
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गलत प्रतिचारों को भूलना।
प्रयत्न और भूल के सिद्धान्त का अधिगम में महत्त्व (Important of trial and error theory in learning)
एक शिक्षक को दैनिक शिक्षण में इस सिद्धान्त का प्रयोग निम्न प्रकार से करना चाहिये
1. छात्र प्रोत्साहन (Student encouragement)
इस सिद्धान्त से स्पष्ट होता है कि छात्र को सीखने और उत्साहित करने के लिये उनमें प्रेरणा, लक्ष्य, उद्देश्य का होना आवश्यक है। अत: प्रयत्न एवं भूल द्वारा छात्र प्रोत्साहित होते हैं।
2. स्वकार्य की प्रवृत्ति में विकास (Development in tendency of own work)
छात्र अपने कार्य को स्वयं करना सीखें। समस्या का समाधान स्वयं करें, ताकि वे अपने में विश्वास पैदा कर सकें। प्रयत्न और भूल के द्वारा बच्चों में नैसर्गिक प्रतिभा का विकास होता है।
3. अभ्यास पर बल (Force on practice)
छात्रों को अभ्यास का अर्थ, प्रयोग एवं महत्त्व बताना चाहिये। प्रत्येक व्यक्ति अभ्यास से ही महान् बनता है।
4. चिन्तन शक्ति का विकास (Development of thinking power)
इस सिद्धान्त में बालकों का मस्तिष्क लगातार क्रियान्वित रहता है। वह प्रत्येक प्रतिचार को तर्क शक्ति पर तौलता है। अत: चिन्तन के द्वारा ज्ञान के रास्तों को प्राप्त करता है।
5. समस्या समाधान (Problem solving)
बालकों के सामने समस्याएँ आती हैं। प्रत्येक स्थान पर शिक्षक उपलब्ध नहीं होता है। अत: प्रयत्नों के द्वारा ही वे अपनी समस्या का हल खोज लेते हैं।
6. समय एवं शक्ति की बचत (Saving of time and power)
प्रयत्न एवं भूल के सिद्धान्त के द्वारा सीखने पर बच्चों की शक्ति, धन, समय की बचत होती है। वह सही प्रतिचारों का चुनाव कर लेता है और उसका अभ्यास करके कार्य को शीघ्र सीख लेता है।
7. सभी वर्गों के लिये (For all groups)
बच्चे एवं बड़ों, मंद-बुद्धि या प्रतिभाशाली सभी वर्गों के लिये यह सिद्धान्त उपयोगी है। जैसा कि डॉ. मंगल ने लिखा है- “थार्नडाइक ने अपने सिद्धान्त द्वारा सीखने को उद्देश्यपूर्ण एवं लक्ष्य निर्देशित बनाने तथा अभिप्रेरणा को सीखने की प्रक्रिया का अमूल्य अंग बनाने का प्रयत्न किया है।“