समुदाय या वातावरण का बालक के अधिगम या विकास में योगदान

समुदाय या वातावरण का बालक के अधिगम या विकास में योगदान– अधिगम को प्रभावित करने वाले वातावरण से सम्बन्धित कारक अथवा बालक के अधिगम या विकास में समुदाय का योगदान (Factors Influencing Learning and Teaching Process Related to the Environment or Contribution of Environment in Child Learning Development):

Adhigam ya Vikas mein Samuday ya Vatavaran ka yogdan

बालक के अधिगम में समुदाय (Community or environment) की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। समुदाय अपने आदर्शों तथा मान्यताओं के अनुसार व्यक्ति के व्यवहार का निर्माण करता है।

  1. क्रो एवं क्रो (Crow and Crow) के अनुसार- “कोई समुदाय व्यर्थ में किसी बात की आशा नहीं कर सकता। यदि वह चाहता है, उसके तरुण व्यक्ति अपने समुदाय की भली-भाँति सेवा करें तो उसे उन सब शैक्षिक साधनों को जुटाना चाहिये, जिनकी तरुण व्यक्तियों को व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से आवश्यकता है।
  2. मैकाइवर एवं पेज (Maclver and Page) ने समुदाय को इस प्रकार परिभाषित किया है- “जब कभी छोटे या बड़े समूह के सदस्य इस प्रकार रहते हैं कि वे इस अथवा विशिष्ट उद्देश्य से भाग नहीं लेते वरन् जीवन की समस्त भौतिक दशाओं में भाग लेते हैं तब हम ऐसे समूह को समुदाय कहते हैं।

बालक के अधिगम में समुदाय की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। समुदाय अपने आदर्शों तथा मान्यताओं के अनुसार व्यक्ति के व्यवहार का निर्माण करता है।

  • विलियम ईंगर के अनुसार- “मनुष्य स्वभाव से सामाजिक प्राणी है, इसलिये उसने वर्षों के अनुभव से यह सीख लिया है कि व्यक्तित्व तथा सामूहिक क्रियाओं का विकास समुदाय द्वारा ही सर्वोत्तम रूप से किया जा सकता है।

अधिगम या विकास को प्रभावित करने वाले वातावरण या समुदाय से सम्बन्धित मुख्य कारक निम्न हैं-

1. वंशानुक्रम (Heredity)

वंशानुक्रम का बालक के सीखने पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। यदि वंशानुक्रम अच्छा है तो बालकों तथा व्यक्तियों में भी अच्छे गुणों का विकास होता है। वस्तुत: बालक की 50% योग्यताएँ एवं क्षमताएँ उनके वंशानुक्रम की ही देन हैं। रॉस (Ross) के अनुसार “बालक जो कुछ भी है और जिस रूप में विकसित होता है, वह वंशानुक्रम की ही देन है।

2. सामाजिक वंशानुक्रम का ज्ञान (Knowledge of social heredity)

वंशानुक्रम का महत्त्व इस दृष्टि से और भी अधिक बढ़ जाता है कि बालक को अपने पूर्वजों से जहाँ एक ओर जैविक वंशक्रम की जानकारी प्राप्त होती है वहीं दूसरी ओर अपने पूर्वजों के सामाजिक वंशक्रम का भी ज्ञान होता है। इस प्रकार बालक को अपने पूर्वजों के आदर्शों पर चलने की प्रेरणा मिलती है। वह उनके जीवन से बहुत कुछ सीखना चाहता है तथा उनके चरित्र को अपना आदर्श मानकर तदनुसार कार्य करके महान बनने का प्रयास करता है।

3. वातावरण का प्रभाव (Effect of environment)

वंशानुक्रम से बालक केवल अपने पूर्वजों के गुणों को ही प्राप्त करता है लेकिन उन गुणों का समुचित विकास वातावरण द्वारा ही होता है। यदि वातावरण उचित नहीं है तो उसके गुणों का विकास भी ठीक दिशा में नहीं हो पायेगा। वातावरण का उचित होना वंशानुक्रम के विकास के लिये एक अनिवार्य शर्त है। अत: वंशानुक्रम के गुणों का विकास करने के लिये वातावरण सहायक होता है। कहा भी गया है कि व्यक्तित्व वंशानुक्रम (50%) तथा वातावरण (50%) का गुणनफल होता है।

4. शिक्षा के अनौपचारिक साधन (Informal means of education)

बालक शिक्षा दो प्रकार के साधनों द्वारा प्राप्त करता है-औपचारिक तथा अनौपचारिक। इन दोनों ही प्रकार के साधनों का बालकों के अधिगम पर गहन प्रभाव पड़ता है। शिक्षा के औपचारिक साधनों के अन्तर्गत नियमित रूप से शिक्षा प्रदान करने वाली संस्थाएँ आती हैं जैसे-विद्यालय।

इन संस्थाओं के निर्धारित एवं निश्चित नियम होते हैं तथा प्रदान की जाने वाली शिक्षा की पद्धति भी पूर्वनिश्चित होती है। अनौपचारिक साधनों के अन्तर्गत रेडियो, समाचार-पत्र, चलचित्र, पुस्तकालय, वाचनालय तथा अन्य कार्यक्रम आते हैं, जिनका बालक के अधिगम में महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।

5. व्यक्तित्व का विकास (Personality development)

वंशानुक्रम तथा वातावरण के ज्ञान से व्यक्ति मानवीय मूल्यों के विकास में रुचि लेने लगता है। वंशानुक्रम के प्रति आस्था व्यक्ति के सांवेगिक तथा सामाजिक विकास में विशेष योग देती है तथा सामाजिक व्यक्तित्व समाज के लिये उपयोगी सिद्ध होता है। ऐसी स्थिति में यदि अभिभावकों में अपने वंशक्रम के प्रति आस्था एवं मोह है तो वे अपने शिशुओं के व्यक्तित्व को भी उसी के अनुरूप ढालने का प्रयास करेंगे। इस प्रकार वंशानुक्रम तथा वातावरण व्यक्तित्व के विकास के लिये मनोवैज्ञानिक आधार प्रस्तुत करते हैं।

6. परिवार का वातावरण (Family environment)

बालक की अधिगम प्रक्रिया पर उसके परिवार के वातावरण का पर्याप्त प्रभाव पड़ता है। यदि परिवार में लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं तो ऐसे वातावरण का बालकों के मस्तिष्क पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। वे उदास तथा खिन्न रहने लगते हैं, घर का माहौल उन्हें बोझिल लगता है, काटने को दौड़ता है तथा वे अपने अध्ययन के लिये घर से दूर किसी नदी या बाग की शरण लेते हैं। घर का अच्छा वातावरण उन्हें निरन्तर आगे बढ़ने के लिये प्रोत्साहन देता रहता है।

7. कक्षा का भौतिक वातावरण (Physical environment of the class)

कक्षा का भौतिक वातावरण छात्रों के अधिगम को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। भौतिक वातावरण के अन्तर्गत प्रकाश, वायु, कोलाहल आदि आते हैं। इस प्रकार यदि कक्षा में छात्रों के बैठने की समुचित व्यवस्था नहीं है, कमरों में अंधेरा है, रोशनी तथा हवा का कोई प्रबन्ध नहीं है, फर्नीचर टूटा-फूटा है तथा कक्षा के बाहर कोलाहल मचा रहता है तो ऐसी स्थिति में छात्रों का मन अधिगम से उचाट हो जाता है, वे थोड़ी देर में थकान का अनुभव करने लगते हैं तथा इन सब बातों से उसके सीखने में बाधा उत्पन्न होती है।

8. मनोवैज्ञानिक वातावरण (Psychological environment)

कक्षा का मनोवैज्ञानिक वातावरण भी छात्रों के सीखने की प्रक्रिया को पर्याप्त सीमा तक प्रभावित करता है। यदि छात्रों में एक-दूसरे के प्रति सहयोग और सहानुभूति की भावना है, उनमें आपस में मधुर सम्बन्ध हैं तो सीखने की प्रक्रिया सुचारु रूप से आगे बढ़ती रहती है। इसके विपरीत यदि कक्षा का वातावरण बोझिल, तनावयुक्त एवं आतंकित बना रहता है तो ऐसे वातावरण में छात्र घुटन अनुभव करता है और शीघ्र ही उसमें कक्षा छोड़ने की प्रवृत्ति उत्पन्न हो जाती है, जो आगे चलकर उसे भगोड़ा छात्र बना देती है।

9. सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण (Social and cultural environment)

छात्रों के अधिगम पर उसके सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है। सामान्यतः सांस्कृतिक वातावरण का आशय व्यक्ति द्वारा निर्मित या प्रभावित उन समस्त नियमों, विचारों, विश्वासों एवं भौतिक वस्तुओं की पूर्णता से है, जो जीवन को चारों ओर से घेरे रहते हैं। सामाजिक वातावरण के अन्तर्गत समाज में प्रचलित रीति-रिवाज, मान्यताएँ, आदर्श, मूल्य एवं स्वयं व्यक्ति की समाज में स्थिति आती है, जो उसके अधिगम को निश्चित तौर पर प्रभावित करती है।

10. सम्पूर्ण परिस्थिति (Situation as a whole)

बालक के प्रभावी अधिगम की दृष्टि से यह अत्यन्त आवश्यक है कि उसे एक ऐसी समुचित सम्पूर्ण परिस्थिति प्रदान की जाये, जिसमें सीखने के सभी तत्त्व तथा दशाएँ विद्यमान हों। इसीलिये विद्यालय का सम्पूर्ण व्यवहार परिवेश इस प्रकार से निर्मित किया जाये जो विद्यार्थी को पूर्ण सन्तुष्टि प्रदान करे तथा अधिगम को अधिक प्रभावी बनाये।