कवि नागार्जुन (Nagarjun) का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, कवि परिचय एवं भाषा शैली और उनकी प्रमुख रचनाएँ एवं कृतियाँ। कवि नागार्जुन का जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय नीचे दिया गया है।
Kavi Nagarjun Biography / Nagarjun Jeevan Parichay / Nagarjun Jivan Parichay / कवि नागार्जुन (वैद्यनाथ मिश्र) :
नाम | वैद्यनाथ मिश्र |
उपनाम | नागार्जुन |
जन्म | 30 जून, 1911 |
जन्मस्थान | सतलखा गाँव, दरभंगा, बिहार |
मृत्यु | 5 नवंबर, 1998 |
पिता का नाम | गोकुल मिश्र |
माता का नाम | उमा देवी |
पेशा | कवि, लेखक, उपन्यासकार |
प्रमुख रचनाएं | युगधारा, सतरंगे पंखों वाली, खून और शोले, प्यासी पथराई आँखें, भस्मांकुर, पुरानी जूतियों का कोरस, तालाब की मछलियाँ |
भाषा | हिन्दी भाषा |
साहित्य काल | प्रगतिवादी काव्याधरा |
विधाएं | कविता, काव्य, उपन्यास, कहानी |
पुरस्कार | साहित्य अकादमी पुरस्कार |
कवि नागार्जुन का जीवन परिचय
नागार्जुन (श्री वैद्यनाथ मिश्र) का जन्म दरभंगा जिले के सतलखा ग्राम में सन् 1911 ई० में हुआ था। उनका प्रारम्भिक जीवन अभावों का जीवन था। जीवन के अभावों ने ही आगे चलकर उनके संघर्षशील व्यक्तित्व का निर्माण किया। व्यक्तिगत दुःख ने उन्हें मानवता के दुःख को समझने की क्षमता प्रदान की। उनके जीवन की यही रागिनी उनकी रचनाओं में मुखर हुई है। इस मनीषी कवि का देहावसान 5 नवम्बर, सन् 1998 में हो गया।
साहित्यिक परिचय
नागार्जुन के हृदय में सदैव दलित-वर्ग के प्रति संवेदना रही है। अपनी कविताओं में वह अत्याचार-पीड़ित, वस्त्र-विहीन व्यक्तियों के प्रति सहानुभूति प्रदर्शित करके ही सन्तुष्ट नहीं हो गए, बल्कि उनको अनीति और अन्याय का विरोध करने की प्रेरणा भी देते रहे। समसामयिक, राजनीतिक तथा सामाजिक समस्याओं पर उन्होंने काफी लिखा है और अब भी लिख रहे हैं। व्यंग्य करने में उन्हें संकोच नहीं। तीखी और सीधी चोट करने वाले वे वर्तमान युग के प्रमुख व्यंग्यकार हैं।
नागार्जुन जीवन, धरती, जनता तथा श्रम के गीत गानेवाले ऐसे कवि थे, जिनकी रचनाओं को किसी याद की सीमा से नहीं बाँधा जा सकता। अपने स्वतन्त्र व्यक्तित्व की भाँति उन्होंने अपनी कविताओं को भी स्वतन्त्र रखा है। उनकी कविताओं में मानवीय संवेदनाएँ कूट-कूट कर भरी हुई है।
भाषा शैली
नागार्जुन की भाषा-शैली सरल, स्पष्ट तथा मार्मिक है। काव्य-विषय उनके प्रतीकों के माध्यम से स्पष्ट उभरकर आते हैं। उनके गीतों में जन-जीवन का संगीत व्याप्त है।
रचनाएँ
युगधारा, सतरंगे पंखों वाली, खून और शोले, प्यासी पथराई आँखें, भस्मांकुर (खण्डकाव्य) ‘पुरानी जूतियों का कोरस’ तथा ‘तालाब की मछलियाँ’ आदि नागार्जुन की प्रसिद्ध काव्य-रचनाएँ हैं।
नागार्जुन की कविता संग्रह:
- युगधारा (1943),
- सतरंगे पंखों वाली (1949),
- प्यासी पथराई आँखें (1962),
- तालाब की मछलियाँ (1974),
- तुमने कहा था (1980),
- खिचड़ी विप्लव देखा हमने (1980),
- हजार-हजार बाँहों वाली (1981),
- पुरानी जूतियों का कोरस (1982),
- रत्नगर्भ (1984),
- ऐसे भी हम क्या! ऐसे भी तुम क्या! (1985),
- आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने (1986),
- इस गुब्बारे की छाया में (1990),
- भूल जाओ पुराने सपने (1994),
- अपने खेत में (1997)।
नागार्जुन के काव्य:
- भस्मांकुर(खंडकाव्य 1970),
- भूमिजा।
नागार्जुन के उपन्यास:
- रतिनाथ की चाची (1938),
- बलचनमा (1942),
- नयी पौध (1943),
- बाबा बटेसरनाथ (1954),
- वरुण के बेटे (1947),
- दुखमोचन (1947),
- कुंभीपाक (1960)
- चम्पा (कुंभीपाक: 1972),
- हीरक जयन्ती (1962),
- अभिनन्दन (हीरक जयन्ती: 1979),
- उग्रतारा (1963),
- जमनिया का बाबा (1968)
- इमरतिया (जमनिया का बाबा: 1968),
- गरीबदास (1971)।
संस्मरण:
- एक व्यक्ति: एक युग (1963)।
कहानी संग्रह:
- आसमान में चन्दा तैरे (1962)।
आलेख संग्रह:
- अन्नहीनम् क्रियाहीनम् (1983)
- बम्भोलेनाथ (1989)
नागार्जुन का बाल साहित्य:
- कथा मंजरी भाग 1 (1948)
- कथा मंजरी भाग 2 (1958)
- मर्यादा पुरुषोत्तम राम (1955): अन्य नाम- भगवान राम, मर्यादा पुरुषोत्तम आदि।
- विद्यापति की कहानियाँ (1964)
नागार्जुन की मैथिली रचनाएँ:
- चित्रा (कविता-संग्रह: 1949)
- पत्रहीन नग्न गाछ (1967)
- पका है यह कटहल (1994)
- पारो (उपन्यास: 1946)
- नवतुरिया (1954)
बाङ्ला रचनाएँ:
- मैं मिलिट्री का बूढ़ा घोड़ा (1997)।
पुरस्कार एवं सम्मान
- साहित्य अकादमी पुरस्कार (1969) : मैथिली भाषा में लिखित ‘पत्र हीन नग्न गाछ’ के लिए।
- भारत भारती सम्मान : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा।
- मैथिलीशरण गुप्त सम्मान : मध्य प्रदेश सरकार द्वारा।
- राजेन्द्र शिखर सम्मान (1994) : बिहार सरकार द्वारा।
- राहुल सांकृत्यायन सम्मान : पश्चिम बंगाल सरकार सेे।
बादल को घिरते देखा है, कविता – नागार्जुन
अमल धवल गिरि के शिखरों पर,
बादल को घिरते देखा है।
छोटे मोटे मोती जैसे-अतिशय शीतल वारि-कणों को
मानसरोवर के उन स्वर्णिम कमलों पर गिरते देखा है।
तुंग हिमालय के कंधों पर
छोटी बड़ी कई झीलों के
श्यामल, शीतल, अमल सलिल में
समतल देशों से आ-आकर
पावस की ऊमस से आकुलतिक्त-मधुर-बिसतंतु खोजते,
हंसों को तिरते देखा है।
एक दूसरे से वियुक्त हो
अलग-अलग रहकर ही जिनकी
सारी रात बितानी होती
निशा-काल के चिर अभिशापित
बेबस, उन चकवा-चकई का
बन्द हुआ क्रन्दन, फिर उनमें
उस महान सरवर के तीरे
शैवालों की हरी दरी पर,
प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
कहाँ गया धनपति कुबेर वह
कहाँ गयी उसकी वह अलका?
नहीं ठिकाना कालिदास का,
व्योम-वाहिनी गंगाजल का!
ढूँढा बहुत परन्तु लगा क्या,
मेघदूत का पता कहीं पर!
कौन बताए यह यायावर,
बरस पड़ा होगा न यहीं पर
जाने दो वह कवि-कल्पित था,
मैंने तो भीषण जाड़ों में,
नभचुम्बी कैलाश शीर्ष पर
महामेघ को झंझानिल से,
गरज-गरज भिड़ते देखा है।
दुर्गम बर्फानी घाटी में,
शत सहस्र फुट उच्च-शिखर पर
अलख नाभि से उठने वाले
अपने ही उन्मादक परिमल-
के ऊपर धावित हो-होकर
तरल, तरुण कस्तूरी-मृग को
अपने पर चिढ़ते देखा है।
शत-शत निर्झर निर्झरिणी-कल
मुखरित देवदारु कानन में
शोणित, धवल, भोज-पत्रों से छाई हुई कुटी के भीतर
रंग बिरंगे और सुगन्धित फूलों से कुन्तल को साजे
इन्द्रनील की माला डाले शंख-सरीखे सुघर गले में,
कानों में कुवलय लटकाये, शतदल रक्त कमल वेणी में,
रजत-रचित मणि-खचित कलामय
पान-पात्र द्राक्षासव पूरित
रखे सामने अपने-अपने,
लोहित चन्दन की त्रिपदी पर
नरम निदाग बाल कस्तूरी
मृग छालों पर पल्थी मारे
मदिरारुण आँखों वाले उन
उन्मद-किन्नर-किन्नरियों की
मृदुल, मनोरम अंगुलियों को वंशी पर फिरते देखा है।
– नागार्जुन : ‘प्यासी पथराई आँखें’ से
नागार्जुन की कविता “बादल को घिरते देखा है” में प्रयुक्त कठिन शब्द और उनके अर्थ :
# | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | अमल | स्वच्छ। |
2. | बिसतन्तु | कमल नाल के भीतर स्थित कोमल रेशे या तन्तु। |
3. | क्रन्दन | सदन, चीत्कार। |
4. | शैवाल | पानी में उगने वाली सिवार नामक घास। |
5. | प्रणय-कलह | क्रीड़ा, किलोल। |
6. | धनपति-कुबेर | उत्तर दिशा का तथा धन का स्वामी कुबेर। |
7. | अलका | कुबेर की राजधानी का नाम। |
8. | अभिशापित | शापग्रस्त, कवि समय के अनुसार चकवा-चकवी को यह शाप है कि वे रात को साथ नहीं रह सकते। |
9. | मेघदूत | कालिदास का प्रसिद्ध काव्य, जिसमें उन्होंने मेघ को दूत बनाकर उसके द्वारा सन्देश भिजवाया है। |
10. | यायावर | यात्री, घुमक्कड़, जो एक स्थान पर टिककर न रहता हो। |
11. | झंझानिल | वात्याचक्र, तूफानी हवा। बर्फानी हिमाच्छादित, बर्फ से ढकी। |
12. | अलख | न दिखाई देने वाला। |
13. | उन्मादक | नशीला। |
14. | परिमल | सुगन्ध। |
15. | कुन्तल | केश। |
16. | कुवलय | नीलकमल। |
17. | शतदल रक्तकमल | सौ पंखुड़ियों वाला लाल कमल। |
18. | लोहित | लाल। |
19. | त्रिपदी | तिपाही, तीन पैरों वाली छोटी मेज। |
20. | निदाग | दागहीन, स्वच्छ। |
21. | मदिरारुण | मदिरापान के कारण हुई लाल (आँखें)। |
22. | उन्मद | उन्मादपूर्ण, नशे से युक्त। |
23. | निर्झरिणी | तटिनी, कल्लोलिनी, नदी। |
24. | रजत-रचित मणि खचित | चाँदी से बनी हुई (हुए) तथा मणियों से जड़े हुए। |
25. | द्राक्षासव | अंगूर की मदिरा। |
26. | किन्नर | स्वर्ग के गायक, गाने बजाने का व्यवसाय करने वाली एक जाति विशेष, नाग किन्नर आदि। |
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नागार्जुन शदी के महान साहित्यकार और यथार्थवादी कवी थें।