संत रविदास जयंती: पढ़ें गुरु रविदास का जीवन परिचय और उनके विचार

गुरु एवं संत रविदास को रोहिदास और रैदास के नाम से भी जाना जाता है, उनके सम्मान में हर वर्ष माघ पूर्णिमा के दिन रविदास जयंती का पर्व मनाया जाता है। यहां पढ़िए गुरु रविदास का जीवन परिचय, जानें संत रविदास जयंती का इतिहास और महत्व और उनके विचार, कोट्स आदि।

Sant Ravidas - Guru Ravidas

रविदास जी भारतीय मध्यकाल के एक महान संत, कवि और सतगुरु थे। इन्हें संत शिरोमणि की उपाधि से सम्मानित किया गया है। उन्होंने रविदासिया पंथ की नींव रखी और उनके द्वारा रचित कई भजन सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब, में भी शामिल हैं। गुरु रविदासजी ने जाति-प्रथा की कड़ी आलोचना की और समाज को आत्मज्ञान एवं समरसता का मार्ग दिखाया। आगे जाने संत रविदास जयंती के बारे में और उनका सम्पूर्ण जीवन परिचय।

संत रविदास जयंती

हर साल माघ पूर्णिमा को संत रविदास जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष माघ पूर्णिमा तिथि 11 फरवरी की शाम से शुरू होकर 12 फरवरी की शाम को समाप्त हो रही है, इसलिए आज रविदास जयंती मनाई जा रही है। रविदास जयंती के अवसर पर लोग गुरबानी गाते हैं, प्रार्थनाएँ करते हैं और नगर कीर्तन आयोजित करते हैं। संत रविदास के दोहों और वचनों को पूरी दुनिया में आदरपूर्वक याद किया जाता है। (महत्वपूर्ण दिवस)

संत रविदास का संक्षिप्त परिचय (Sant Ravidas Biography in Hindi):

विवरण जानकारी
नाम रविदास (Ravidas)
जन्म 1377 ईस्वी (कुछ विद्वानों के अनुसार 1399 ईस्वी), वाराणसी, उत्तर प्रदेश
माता-पिता पिता: संतोख दास, माता: कलसा देवी
पत्नी लोना देवी
जाति चमार जाति (जूते बनाने का कार्य करते थे)
प्रमुख उपाधि संत शिरोमणि
गुरु स्वामी रामानंदाचार्य
शिष्य मीरा बाई, झाली रानी
विचारधारा भक्ति आंदोलन, मानवतावाद, सामाजिक समानता
प्रसिद्ध रचनाएं लगभग 40 पद ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में सम्मिलित
प्रसिद्ध कथन “मन चंगा तो कठौती में गंगा”
देहांत 1540 ईस्वी, वाराणसी
प्रमुख स्मारक श्री गुरु रविदास मंदिर और मठ, वाराणसी
योगदान सामाजिक समानता, जातिगत भेदभाव का विरोध, आध्यात्मिक जागरूकता
जयंती माघ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है

संत रविदास का सम्पूर्ण जीवन परिचय

गुरु एवं संत रविदास जी, जिन्हें रैदास के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म काशी में माघ पूर्णिमा रविवार के दिन, 1376 ईस्वी (संवत 1433) को उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गांव में हुआ था। उनके जन्म को लेकर एक प्रसिद्ध दोहा प्रचलित है:

“चौदह सौ तैंतीस कि माघ सुदी पन्दरास।
दुखियों के कल्याण हित प्रगटे श्री गुरु रविदास।”

उनके पिता का नाम संतोख दास (रग्घु) और माता का नाम कर्मा देवी (कलसा देवी) था। उनकी पत्नी का नाम लोना देवी बताया जाता है। गुरु रविदास ने साधु-संतों की संगति में ज्ञान प्राप्त किया। चमार जाति में जन्मे रविदास जूते बनाने का कार्य करते थे, जिसे वे पूरी लगन और समयनिष्ठा के साथ निभाते थे।

कई मान्यताओं के अनुसार, गुरु रविदास का कोई गुरु नहीं था। यह भी कहा जाता है कि वे भारत की प्राचीन बौद्ध परंपरा के अनुयायी थे, जो उनकी वाणी से स्पष्ट होता है। उन्होंने समाज को धार्मिक अंधविश्वासों और ब्राह्मणवादी कुरीतियों से बचने का संदेश दिया। उनकी प्रसिद्ध उक्ति “मन चंगा तो कठौती में गंगा” इस बात पर बल देती है कि मन की शुद्धता ही सच्चा धर्म है, न कि बाहरी आडंबर।

गुरु रविदास ने इस्लाम धर्म में व्याप्त बुराइयों की भी समान रूप से आलोचना की। अपने समय के पाबंद स्वभाव और मधुर व्यवहार के कारण वे अपने आसपास के लोगों में अत्यधिक प्रिय थे। वे परोपकारी और दयालु स्वभाव के थे तथा साधु-संतों की सहायता करना उन्हें आनंदित करता था। वे कई बार साधुओं को बिना मूल्य लिए जूते भेंट कर देते थे।

उनकी उदारता और समाजसेवा के कारण उनके माता-पिता उनसे अप्रसन्न रहते थे, और कुछ समय बाद उन्होंने रविदास जी और उनकी पत्नी को घर से निकाल दिया। रविदास जी ने पड़ोस में एक अलग स्थान बनाकर अपना कार्य जारी रखा और शेष समय ईश्वर-भजन और साधु-संतों के सत्संग में बिताया।

सुप्रसिद्ध युवा कवि गोलेन्द्र पटेल ने अपनी कविता ‘कठौती और करघा’ में काशी के सन्दर्भ में लिखा है:

“रैदास की कठौती और कबीर के करघे के बीच/ तुलसी का दुख एक सेतु की तरह है/ जिस पर से गुज़रने पर/ हमें प्रसाद, प्रेमचंद व धूमिल आदि के दर्शन होते हैं। यह काशी/ बेगमपुरा, अमरदेसवा और रामराज्य की नाभि है।”

इस कविता में बेगमपुरा और रामराज्य के माध्यम से गुरु रविदास के आदर्श समाज की झलक मिलती है।

सामाजिक परिचय

संत रविदास का जन्म एक ऐसे समय में हुआ जब उत्तर भारत में अशिक्षा, गरीबी, भ्रष्टाचार और अत्याचार का बोलबाला था। मुस्लिम शासक हिन्दुओं को इस्लाम में परिवर्तित करने का प्रयास कर रहे थे। उनकी ख्याति बढ़ने के कारण, एक प्रसिद्ध मुस्लिम संत ‘सदना पीर’ ने उन्हें मुसलमान बनाने का प्रयास किया, लेकिन संत रविदास मानवता के प्रति समर्पित थे और धर्मांतरण के दबाव में नहीं आए।

संत रविदास दयालु और परोपकारी थे। उन्होंने अपने दोहों और पदों के माध्यम से जातिगत भेदभाव को खत्म करने और सामाजिक एकता को बढ़ावा देने का कार्य किया। उनके अनुसार, किसी व्यक्ति को उसके जन्म से नहीं बल्कि उसके कर्मों से आंका जाना चाहिए। उनकी कविताओं में ब्रजभाषा, अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और उर्दू-फारसी के शब्दों का मिश्रण है। उनके लगभग चालीस पद सिखों के पवित्र ग्रंथ ‘गुरुग्रंथ साहिब’ में शामिल हैं।

संत रविदास, स्वामी रामानंदाचार्य के शिष्य थे और संत कबीर के समकालीन व गुरूभाई माने जाते हैं। कहा जाता है कि मीराबाई उनकी भक्ति-भावना से बहुत प्रभावित हुईं और उनकी शिष्या बन गयी थीं।

वर्णाश्रम अभिमान तजि, पद रज बंदहिजासु की।
सन्देह-ग्रन्थि खण्डन-निपन, बानि विमुल रैदास की॥

उनका दृढ़ विश्वास था कि राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि परमेश्वर के विभिन्न नाम हैं और सभी धर्मग्रंथ—वेद, कुरान, पुराण—एक ही ईश्वर की महिमा का गुणगान करते हैं।

कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा ॥

चारो वेद के करे खंडौती ।
जन रैदास करे दंडौती।।

विनम्रता और अभिमान-त्याग पर उन्होंने विशेष बल दिया। उनका मानना था कि सच्ची भक्ति भाग्यशाली व्यक्ति ही प्राप्त करता है। उनके एक प्रसिद्ध भजन में यह भावना झलकती है:

कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै॥

चित्तौड़ में उनके नाम पर एक छतरी बनी है, जहाँ से उनकी स्वर्गारोहण की मान्यता है। कहा जाता है कि उन्होंने 1540 ईस्वी में वाराणसी में देह त्याग दी थी। आज वाराणसी में उनके नाम पर एक भव्य मंदिर और मठ बना हुआ है, जहाँ सभी जातियों के लोग दर्शन के लिए आते हैं। ‘गुरु रविदास स्मारक और पार्क’ के रूप में उनकी स्मृति को स्थायी रूप से संरक्षित किया गया है।

रविदास जयंती का महत्व

रविदास जयंती पर लोग गुरबानी गाते हैं, प्रार्थनाएँ करते हैं और नगर कीर्तन का आयोजन करते हैं। इस दिन वाराणसी के सीर गोवर्धनपुर स्थित श्री गुरु रविदास मंदिर में भव्य समारोह का आयोजन होता है। देश भर से श्रद्धालु इस महान संत की शिक्षाओं को स्मरण करते हुए मंदिर में दर्शन करने आते हैं। इसके साथ ही, श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान कर अपनी आस्था व्यक्त करते हैं और संत रविदास के संदेशों को आत्मसात करते हैं।

संत रविदास के अनमोल वचन

  1. हमें हमेशा कर्म में लगे रहना चाहिए और कभी भी फल की आशा नहीं करनी चाहिए क्योंकि कर्म करना हमारा धर्म है और फल पाना हमारा सौभाग्य है।
  2. जहां प्रेम नहीं, वहां नरक है। जहां प्रेम है, वहां स्वर्ग है।
  3. मन शुद्ध हो तो हर जगह पवित्रता है।
  4. यदि आपमें थोड़ा भी अभिमान नहीं है तो आपका जीवन सफल रहेगा, ठीक वैसे ही जैसे विशाल हाथी शक्कर के दाने नहीं बीन सकता, लेकिन छोटी चींटी आसानी से बीन लेती है।
  5. माता-पिता और गुरु तीनों देवताओं के समान हैं, इनकी सेवा करो और ईश्वर का भजन करो।
  6. ऐसा राज्य चाहता हूं जहाँ सभी को भोजन मिले, सब लोग समान रहें और खुश रहें।
  7. प्रेम ही सब कुछ है, प्रेम ही ईश्वर है।
  8. यह संसार असत्य है, केवल ईश्वर ही सत्य है।
  9. जीव को यह भ्रम है कि संसार ही सत्य है, किंतु वास्तव में यह असत्य है।
  10. अगर अच्छा नहीं कर सकते, तो दूसरों को नुकसान न पहुंचाएं। अगर फूल नहीं बन सकते, तो कांटे भी न बनें।

गुरु रविदास जयंती पर शुभकामना कोट्स

Ravidas Jayanti Quotes - 1

मन चंगा तो कठौती में गंगा,
संत परंपरा के महान योगी,
परम ज्ञानी संत श्री रविदास जी,
आपको कोटि-कोटि नमन।

Ravidas Jayanti Quotes - 2

करम बंधन में बन्ध रहियो,
फल की ना तज्जियो आस।
कर्म मानुष का धर्म है,
संत भाखै रविदास।

Ravidas Jayanti Quotes - 3

भला किसी का नहीं कर सकते,
तो बुरा किसी का मत करना।
फूल जो नहीं बन सकते तुम,
तो कांटा बनकर भी मत रहना।

Ravidas Jayanti Quotes - 4

गुरु के उपदेश कभी निष्फल नहीं जाते,
उसका वचन कभी गलत नहीं होता।
वह प्रकाश का सच्चा स्रोत है।

FAQs

1.

संत रविदास का जन्म कब हुआ था?

इतिहासकारों के अनुसार, संत रविदास का जन्म 1377 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के एक गांव में हुआ था। कुछ विद्वानों का मानना है कि उनका जन्म वर्ष 1399 में हुआ था।

2.

संत रविदास को और किन नामों से जाना जाता है?

संत रविदास को रोहिदास और रैदास के नाम से भी पहचाना जाता है।

3.

संत शिरोमणि रविदास कैसे बने?

संत रविदास को एक बार उनके पिता ने घर से निकाल दिया। इसके बाद वे साधु-संतों की सेवा करने लगे और भक्ति आंदोलन का हिस्सा बन गए। उनके उच्च विचारों और समाज सुधार के प्रयासों से अन्य संत प्रभावित हुए, जिससे उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती गई और वे संत शिरोमणि के रूप में प्रसिद्ध हो गए।

4.

रविदास जयंती कब और कैसे मनाई जाती है?

हर वर्ष माघ पूर्णिमा के दिन रविदास जयंती मनाई जाती है। इस दिन लोग गुरबानी गाते हैं, प्रार्थनाएं करते हैं और नगर कीर्तन का आयोजन करते हैं। वाराणसी के सीर गोवर्धनपुर स्थित श्री गुरु रविदास मंदिर में भव्य समारोह आयोजित होता है।

5.

रविदास जयंती का महत्व क्या है?

रविदास जयंती के दिन देश भर से श्रद्धालु संत रविदास की शिक्षाओं को याद करते हैं। लोग श्री गुरु रविदास मंदिर में दर्शन करते हैं और पवित्र नदियों में स्नान कर अपनी आस्था व्यक्त करते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*