“डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल का जीवन परिचय देते हुए उनकी भाषा-शैली की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।” अथवा – “डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल के साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डालते हुए उनकी भाषा-शैली की विशेषताएं बताइए।”
Vasudeva Sharan Agrawal
प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं पुरातत्व के मर्मज्ञ विद्वान डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल शोध-दृष्टि वाले साहित्यकार रहे हैं। प्रकाण्ड पाण्डित्य, वाणी का अद्भुत सौन्दर्य और कवि जैसी भावुकता का सम्मिलन आपकी उत्कृष्ट रचनाओं में सर्वत्र व्याप्त है। पुरातत्व सम्बन्धी उपलब्धियों से सम्पन्न कर आपने हिन्दी की महत्वपूर्ण सेवा की है। प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति के अध्येता डॉ. अग्रवाल का निबन्ध साहित्य हिन्दी की अमूल्य निधि है।
नाम | वासुदेव शरण अग्रवाल |
उपाधि | डॉक्टर (पीएच. डी.) |
जन्म | 7 अगस्त, 1904 |
जन्म स्थान | खेड़ा ग्राम, मेरठ जिला, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 26 जुलाई, 1966 |
मृत्यु स्थान | वाराणसी |
माता | सीता देवी अग्रवाल |
पिता | विष्णु अग्रवाल |
विद्यालय | काशी हिन्दू विश्वविद्यालय |
शिक्षा | एम.ए., पीएच.डी., डी. लिट. |
व्यवसाय | साहित्यकार, वकील |
भाषा | हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत |
प्रसिद्धि | विद्वान तथा लेखक |
काल | आधुनिक काल |
प्रमुख विधाएं | निबन्ध, शोध ग्रन्थ, समीक्षात्मक ग्रन्थ। |
प्रमुख रचनाएँ | पृथ्वीपुत्र, कल्पवृक्ष, भारत की एकता, कल्पलता, वाग्धारा, मातृभूमि, कला और संस्कृति, पाणिनिकालीन भारतवर्ष आदि। |
प्रमुख कार्य | ‘राष्ट्रीय पुरातत्त्व संग्रहालय, दिल्ली’ की स्थापना |
पुरस्कार | साहित्य अकादमी पुरस्कार (1956, संजीवनी व्याख्या) |
वासुदेव शरण अग्रवाल का जीवन परिचय
डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल जी का जन्म उत्तर प्रदेश के मेरठ जनपद में स्थित खेडा नामक ग्राम में 7 अगस्त सन् 1904 ई. को हुआ था। माता (सीता देवी अग्रवाल) और पिता(विष्णु अग्रवाल) का निवास लखनऊ में होने के कारण इनका बचपन यहीं व्यतीत हुआ। अपनी शिक्षा भी आपने यहीं माता-पिता की छत्र-छाया में रहकर प्राप्त की।
तत्-पश्चात काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद इन्होंने एम.ए., पीएच. डी. तथा डी. लिट. की उपाधियाँ लखनऊ विश्वविद्यालय से प्राप्त की। ‘पाणिनिकालीन भारत’ नामक इनका शोध प्रबन्ध विद्वानों द्वारा काफी सराहा गया। पालि, संस्कृत, अंग्रेजी आदि भाषाओं और उनके साहित्य का गहन अध्ययन एवं अनुसन्धान करके डॉ. अग्रवाल ने उच्चकोटि के विद्वान के रूप में पर्याप्त ख्याति अर्जित की।
आपने लखनऊ तथा मथरा के पुरातत्व संग्रहालय में निरीक्षक के पद पर कार्य किया। सन् 1946 से 1951 ई. तक सेन्ट्रल एशियन एण्टिक्विटीज म्यूजियन के सुपरिटेंडेट पद पर तथा भारतीय पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष पद पर भी इन्होंने कार्य किया। 1951 ई. में आप काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ इण्डोलाजी’ में प्रोफेसर नियुक्त हुए।
इस प्रकार प्राचीन भारतीय साहित्य और संस्कृति का यह महान विद्वान जीवन भर अनुसन्धान का प्रकाश विकीर्ण करता हुआ 26 जुलाई, सन् 1966 ई. को परलोक सिधार गया।
रचनाएं
अग्रवाल जी ने निबन्ध-लेखन के अतिरिक्त हिन्दी, पालि, प्राकृत और संस्कृत के कई ग्रन्थों का सम्पादन एवं पाठ-शोधन का कार्य भी किया। डाॅ. वासुदेवशरण अग्रवाल ने पुरातत्व को ही अपना वर्ण्य-विषय बनाया और कई निबन्ध एवं ग्रंथों की रचनाएं की।
वासुदेवशरण अग्रवाल की प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं-
- निबन्ध संकलन – (१) पृथ्वीपत्र. (२) कल्पवृक्ष, (३) भारत की एकता, (४) मातृभूमि, (५) कला और संस्कृति, (६) कल्पलता, (७) वाग्धारा।
- ऐतिहासिक एवं पौराणिक निबंध – (१) महापुरुष श्रीकृष्ण, (२) महर्षि वाल्मीकि, और (३) मनु।
- शोध ग्रन्थ – पाणिनिकालीन भारत।
- समीक्षात्मक ग्रन्थ – (१) मलिक मोहम्मद जायसी कृत पद्मावत, तथा (२) कालिदास कृत मेघदूत की संजीवनी व्याख्या।
- सांस्कृतिक ग्रन्थ – (१) भारत की मौलिक एकता, (२) हर्षचरित एक सांस्कृतिक अध्ययन (अनुवाद ग्रन्थ) तथा (३) हिन्दू सभ्यता।
भाषागत विशेषताएं
डॉ. अग्रवाल की भाषा शुद्ध, परिनिष्ठित हिन्दी है जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की बहुलता है। विषय के अनुरूप उनकी भाषा का स्वरूप बदलता रहा है। सांस्कृतिक एवं शोधपरक निबन्धों में गहन-गम्भीर भाषा का प्रयोग है तो अन्य निबन्धों में भाषा का सरल, सहज, व्यावहारिक रूप दिखाई पड़ता है।
देशज शब्दों का प्रयोग तो उनकी भाषा में है पर उर्दू- अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग प्रायः नहीं है। मुहावरे और लोकोक्तियां भी उनकी भाषा में नहीं हैं। समग्रतः डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल की भाषा प्रौढ़ संकृतनिष्ठ, परिमार्जित साहित्यिक हिन्दी है। जिसमें विषय के अनुरूप गम्भीरता विद्यमान है तथा उसमें भाव प्रकाशन की अद्भुत क्षमता है।
शैली के विविध रूप
डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल के निबन्धों में शैली के निम्न रूप पाए जाते हैं:
गवेषणात्मक शैली
पुरातत्व से सम्बन्धित गवेषणापूर्ण निबन्धों में इस शैली का प्रयोग किया गया है। इसमें भाषा संस्कृतनिष्ठ है तथा वाक्य लम्बे-लम्बे हैं। कहीं-कहीं अप्रचलित पारिभाषिक शब्द भी इसमें दिखाई।
पड़ते हैं। भाषा में दुरूहता भले ही आ गई हो पर उसका प्रवाह सुरक्षित रहा है। एक उदाहरण देखिए :
व्याख्यात्मक शैली
जायसी के पद्मावत की व्याख्या डॉ. अग्रवाल ने व्याख्यात्मक शैली में विषय को स्पष्ट करते हुए की है। क्लिष्ट प्रसंगों को सरल भाषा में इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है जिसे पाठक आसानी से समझ ले।
भावात्मक शैली
इस शैली का प्रयोग उन स्थलों पर हुआ है जहां लेखक का हृदय पक्ष प्रधान हो गया है। इसमें आलंकारिकता का समावेश भी है तथा भाषा में सरसता के साथ-साथ काव्यमयता का संचार भी हुआ है, यथा :
उद्धरण शैली
डॉ. अग्रवाल ने अपने निबन्धों में कथन को पुष्ट करने के लिए स्थान-स्थान पर उद्धरण भी दिए हैं। ये उद्धरण प्रायः संस्कृत के हैं, यथा :
हिन्दी साहित्य में स्थान
डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल विलक्षण प्रतिभा के धनी प्रकाण्ड विद्वान थे। उनके निबन्ध हिन्दी साहित्य में अत्यन्त महत्वपूर्ण माने जाते हैं। वे एक उच्चकोटि के पुरातत्व विशेषज्ञ, अनुसन्धानकर्ता, विहान साहित्यकार तथा भावुक व्यक्तित्व से सम्पन्न मनीषी के रूप में हिन्दी साहित्य में विशिष्ट स्थान के अधिकारी हैं।
उनके निबन्धों की मौलिकता, गम्भीरता एवं विवेचन पद्धति प्रशंसनीय है। निश्चय ही हिन्दी साहित्य में उनका योगदान चिरस्मरणीय रहेगा।
कृतियाँ
निबंध
- निबंधों-संग्रह – पृथ्वी पुत्र , कल्पबृक्ष ,कल्पलता मातृ भूमि, भारत की एकता , वेद विद्या, कला और संस्कृति , वाग्बधारा, पूर्ण ज्योति इत्यादि।
- ऐतिहासिक/पौराणिक निबंध – महापुरुष श्रीकृष्ण ,महर्षि वाल्मीकि, और मनु।
ग्रंथ
- शोध ग्रन्थ – पाणिनिकालीन भारत।
- समीक्षात्मक ग्रन्थ – मलिक मोहम्मद जायसी कृत पद्मावत व्याख्या, तथा कालिदास कृत मेघदूत की संजीवनी व्याख्या।
- सांस्कृतिक ग्रन्थ – भारत की मौलिक एकता, हर्षचरित एक सांस्कृतिक अध्ययन (अनुवाद ग्रन्थ), हिन्दू सभ्यता।
ग्रन्थाधारित विवेचनात्मक अध्ययन
- मेघदूत : एक अध्ययन – 1951 (राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली);
- हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन – 1953 (बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् , पटना);
- पाणिनिकालीन भारतवर्ष – 1955 (चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी);
- पद्मावत (मूल और संजीवनी व्याख्या) – 1955 (साहित्य सदन, चिरगाँव, झाँसी);
- कादम्बरी : एक सांस्कृतिक अध्ययन – 1957 (चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी);
- मार्कण्डेय पुराण : एक सांस्कृतिक अध्ययन – 1961 (हिन्दुस्तानी एकेडमी, इलाहाबाद);
- कीर्तिलता (ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन तथा संजीवनी व्याख्या सहित) – 1962 (साहित्य सदन, चिरगाँव, झाँसी);
- भारत सावित्री (आलोचनात्मक संस्करण के पाठ पर आधारित महाभारत की कथा सार रूप में महत्त्वपूर्ण टिप्पणियों सहित) – तीन खण्डों में – 1957,1964,1968 (सस्ता साहित्य मंडल, नयी दिल्ली)।
स्वतंत्र विषयक ग्रन्थ
- भारत की मौलिक एकता – 1954 (लीडर प्रेस, इलाहाबाद);
- भारतीय कला (प्रारंभिक युग से तीसरी शती ईस्वी तक) – 1966 (पृथिवी प्रकाशन, वाराणसी)
विविध विषयक निबन्ध संग्रह
- पृथ्वी पुत्र – 1949 (सस्ता साहित्य मंडल, नयी दिल्ली);
- उरु-ज्योति – 1952 (श्रीकन्हैयालाल वैदिक प्रकाशन निधि, गाज़ियाबाद की ओर से प्रकाशित);
- कल्पवृक्ष – 1953 (सस्ता साहित्य मंडल, नयी दिल्ली);
- मातृभूमि -1953;
- कला और संस्कृति – 1952 (साहित्यभवन लिमिटेड, इलाहाबाद);
- इतिहास-दर्शन – 1978 (पृथिवी प्रकाशन, वाराणसी);
- भारतीय धर्ममीमांसा (पृथिवी प्रकाशन, वाराणसी)
संपादन एवं अनुवाद
- पोद्दार अभिनन्दन ग्रन्थ – 1953,
- हिन्दू सभ्यता – 1955 (राधाकुमुद मुखर्जी की अंग्रेजी पुस्तक का अनुवाद),
- शृंगारहाट (डाॅ मोतीचन्द्र के साथ)
उनकी प्रतिनिधि रचनाओं को हिन्दी में पढ़ने के लिए साहित्य अकादमी दिल्ली से प्रकाशित “वासुदेवशरण अग्रवाल रचना संचयन” पढ़ें।
हिन्दी साहित्य के अन्य जीवन परिचय
हिन्दी अन्य जीवन परिचय देखने के लिए मुख्य प्रष्ठ ‘Jivan Parichay‘ पर जाएँ। जहां पर सभी जीवन परिचय एवं कवि परिचय तथा साहित्यिक परिचय आदि सभी दिये हुए हैं।
FAQ
वासुदेव शरण अग्रवाल का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
वासुदेव शरण अग्रवाल जी का जन्म उत्तर प्रदेश के मेरठ जिला के खेड़ा नामक ग्राम में 7 अगस्त, सन् 1904 में हुआ था।
वासुदेव शरण अग्रवाल की मृत्यु कब और कहाँ हुई थी?
वासुदेव शरण अग्रवाल जी की मृत्यु 27 जुलाई सन् 1967 को वाराणसी में हुई थी।
वासुदेव शरण अग्रवाल ने शिक्षा कहाँ से प्राप्त की?
वासुदेव शरण अग्रवाल ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम. ए. (लखनऊ – 1929), पीएच.डी. (लखनऊ -1941), डी. लिट. (लखनऊ – 1946) आदि शिक्षा प्राप्त की।
वासुदेव शरण अग्रवाल की भाषा कैसी थी?
डॉ. अग्रवाल की भाषा शुद्ध, परिनिष्ठित हिन्दी है जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की बहुलता है। विषय के अनुरूप उनकी भाषा का स्वरूप बदलता रहा है। सांस्कृतिक एवं शोधपरक निबन्धों में गहन-गम्भीर भाषा का प्रयोग है तो अन्य निबन्धों में भाषा का सरल, सहज, व्यावहारिक रूप दिखाई पड़ता है।
वासुदेव शरण अग्रवाल की लेखन शैली कैसी थी?
डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल के निबन्धों में शैली के निम्न रूप पाए जाते हैं: गवेषणात्मक शैली, व्याख्यात्मक शैली, भावात्मक शैली, उद्धरण शैली आदि।
वासुदेव शरण अग्रवाल की प्रमुख रचनाओं के नाम लिखो?
मलिक मोहम्मद जायसी कृत पद्मावत व्याख्या, कालिदास कृत मेघदूत की संजीवनी व्याख्या, भारत की मौलिक एकता, हर्षचरित एक सांस्कृतिक अध्ययन (अनुवाद ग्रन्थ), हिन्दू सभ्यता, पृथ्वीपुत्र, कल्पवृक्ष, भारत की एकता, कल्पलता, वाग्धारा, मातृभूमि, कला और संस्कृति, पाणिनिकालीन भारतवर्ष आदि।
Hindi sabhi jivan parichay
Inke mummy papa ka kya naam tha
माता- सीता देवी अग्रवाल
पिता- विष्णु अग्रवाल
inki mrutyu 1966 mai nhi 1967 mai hui thii
Died on 26 July 1966 in Varanasi, Date is correct. कहीं-कहीं 27 July 1966 भी लिखी हुई है, ये दोनों सही मान सकते हैं, पर 1967 कभी नहीं। हिन्दी विकिपिडिया पेज पर तिथि गलत दी हुई है।