उदयशंकर भट्ट (Uday Shankar Bhatt) का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, कवि परिचय एवं भाषा शैली और उनकी प्रमुख रचनाएँ एवं कृतियाँ। “उदयशंकर भट्ट” का जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय नीचे दिया गया है।
Uday Shankar Bhatt Biography / Uday Shankar Bhatt Jeevan Parichay / Uday Shankar Bhatt Jivan Parichay / उदयशंकर भट्ट :
नाम | उदयशंकर भट्ट |
जन्म | 3 अगस्त, 1898 |
जन्मस्थान | इटावा, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 22 फरवरी, 1966 |
माता | हेमंगिनी देवी |
पिता | श्याम शंकर चौधरी |
पेशा | लेखक, रेडियो जॉकी, निर्देशक |
प्रमुख रचनाएँ | नए मेहमान, राका, मानसी, विसर्जन, युग दीप, दाहर, मुक्तिपथ, शक विजय, कमला, अंतहीन, क्रांतिकारी, नया समाज और पार्वती। |
साहित्य काल | आधुनिक काल |
विधाएं | एकाँकी, नाटक, उपन्यास, काव्य, कविता |
साहित्य में स्थान | बहुमुखी प्रतिभा के धनी एकांकीकार |
उदयशंकर भट्ट का जीवन-परिचय
उदयशंकर भट्ट जी का जन्म तीन अगस्त सन् 1898 ई० को अपनी ननिहाल इटावा, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पूर्वज गुजरात के निवासी थे और वहाँ से आकर उत्तर प्रदेश में बस गए थे। उनके परिवार का वातावरण साहित्यिक और संस्कृतनिष्ठ था; अत: साहित्यिक अभिरुचि उनमें बचपन से ही उत्पन्न हो गई थी। चौदह वर्ष की अवस्था में ही उनके माता-पिता का देहावसान हो गया था।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से बी०ए०, पंजाब से शास्त्री और (कोलकाता तत्कालीन कलकत्ता) से काव्यतीर्थ की परीक्षाएं उत्तीर्ण की। सन् 1913 ई० में ही उनके माता-पिता का देहावसान हो गया था। बहुत दिनों तक वे लाहौर में हिन्दी एवं संस्कृत के अध्यापक रहे तथा स्वतन्त्रता आन्दोलन में भी आप भाग लेते रहे। देश के विभाजन के बाद वे लाहौर से दिल्ली आ गए और आकाशवाणी के परामर्शदाता और निदेशक रहे। नागपुर एवं जयपुर में रेडियो केन्द्रों पर भी उन्होंने सेवा की।
सेवानिवृत्त होकर वे कहानी, उपन्यास, आलोचना एवं नाटक लिखते रहे तथा 22 फरवरी, सन् 1966 ई० को उनका निधन हो गया।
उदयशंकर की रचनाएँ
- उदयशंकर भट्ट का एकांकी-संग्रह: लोक परलोक, समस्या का अन्त, परदे के पीछे, अभिनव एकांकी, अन्त्योदय, चार एकांकी, धूपशिखा, वापसी, आदि भट्ट जी के प्रमुख एकांकी हैं।
- उदयशंकर भट्ट के काव्य: तक्षशिला , राका , मानसी , विसर्जन, अमृत और विष, इत्यादि, युगदीप, यथार्थ और कल्पना, विजयपथ, अन्तर्दर्शन : तीन चित्र, मुझमें जो शेष है।
- उदयशंकर भट्ट का नाट्य-साहित्य: विक्रमादित्य , दाहर या सिंधपतन, सगर विजय, कमला , अंतहीन अंत, मुक्तिपथ, शक विजय, नया समाज, पार्वती, विद्रोहिणी अम्बा, विश्वामित्र, मत्स्यगंधा, राधा, अशोक-वन-बन्दिनी, विक्रमोर्वशीय, अश्वत्थामा, गुरु द्रोण का अन्तर्निरीक्षण, नहुष निपात, कालिदास, संत तुलसीदास, एकला चलो रे, क्रांतिकारी, अभिनव एकांकी नाटक, स्त्री का हृदय, आदिम युग, तीन नाटक, धूमशिखा, अंधकार और प्रकाश, समस्या का अंत, आज का आदमी, दस हजार एकांकी।
- उदयशंकर भट्ट के उपन्यास: वह जो मैंने देखा, नए मोड़, सागर, लहरें और मनुष्य , लोक-परलोक, शेष-अशेष, दो अध्याय।
उदयशंकर भट्ट जी ने कविता, उपन्यास, नाटक और एकांकी लिखे हैं। नाटक और एकांकी के क्षेत्र में उन्हें विशेष ख्याति मिली है। विषय की दृष्टि से उनके एकांकियों को पौराणिक, ऐतिहासिक, सामाजिक, प्रतीकात्मक, समस्या-प्रधान और हास्य-व्यंग्यपूर्ण वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। इनमें वैदिक युग से लेकर आज तक की भारतीय जीवनधारा की संवेदना को चित्रित करने का प्रयास किया गया है।
शिल्प की दृष्टि से उदयशंकर भट्ट जी के एकांकी रंगमंच और रेडियो दोनों दृष्टियों से सफल हैं। उन्होंने नाटकीय तकनीक में अनेक प्रयोग भी किए हैं। उनके रेडियो-गीतिनाट्य बहुत सफल और लोकप्रिय हुए हैं।
साहित्यिक अवदान
उदयशंकर भट्ट जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी एकांकीकार थे। उनकी नाट्यकला युगानुरूप साहित्यिक प्रगति के अनुसार मोड़ लेती रही। उन्होंने रेडियो की दृष्टि से गीति-नाट्य प्रयोग किए।
उदयशंकर के गीति-नाटयप्रयोग को भी भारी सफलता मिली। उन्होंने पौराणिक कथाओं के आधार पर भी नाट्य-रचना प्रारम्भ की तथा युगानुरूप नवीन मान्यता एवं नाट्य-शैलियों को अपने एकांकियों में सन्निविष्ट किया। उन्होंने पौराणिक एकांकी, हास्य-प्रधान एकांकी तथा समस्या-प्रधान एकांकी, एकांकी साहित्य को प्रदान किए।
नए मेहमान, एकांकी (उदयशंकर भट्ट)
‘नये मेहमान’ उदयशंकर भट का एक अत्यन्त यथार्थवादी, जीवन्त तथा सशक्त एकांकी है। इसमें आधुनिक महानगरों के मध्यवर्गीय जीवन के भोगे हए क्षणों का सजीव चित्रण है। बड़े-बड़े नगरों में आवास का काठनाई इतनी बढ़ गयी है कि जीवन की सामान्य सुविधाएं भी नहीं मिल पाती हैं, फिर मेहमानों के आ जाने पर कितनी असुविधा उत्पन्न हो जाती है-इसका रोचक एवं विनोदपूर्ण अंकन इस एकांकी में हुआ है।
गृहस्वामी विश्वनाथ किसी बड़े नगर में अपने पूरे परिवार के साथ एक तंग मकान में रहता है। उसका छोटा पुत्र बीमार है। यहाँ खुली हवा में सोने का भी स्थान नहीं है। बेहद गर्मी का मौसम है। इसी समय रात में दो अपरिचित व्यक्ति बाबूलाल और नन्हेंमल उसके घर पहुँचते हैं। वे बिजनौर से आए हैं। अपने गन्तव्य का सही पता न होने के कारण विश्वनाथ के घर पहुँच जाते हैं। वे विश्वनाथ की कठिनाइयों का अनुभव न करके बेहयाई से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कराने लगते हैं। ‘मान न मान मैं तेरा मेहमान का मुहावरा चरितार्थ होवे लगता है। अन्त में रहस्य खुलता है कि वे इसी गली में किसी कविराज के यहाँ आए हैं। विश्वनाथ उन्हें गन्तव्य तक पहँचा देते हैं। उन्हें इस संकट से मुक्ति मिलती है। तभी विश्वनाथ की पत्नी का भाई पहुँच जाता है। उसका स्वागत अभाव में भी आत्मीयता से होता है। रेवती अपने सिरदर्द के बावजूद भाई के लिए प्रेम से भोजन बनाती है।
‘इस एकांकी की कथावस्तु परिचित और यथार्थ है। इसका विकास भी बड़े स्वाभाविक रूप में हुआ है। संकलन-त्रय का पूर्ण निर्वाह हुआ है। पूरा एकांकी एक कमरे में एक-आध घण्टे के भोगे हुए जीवन को नाटकीय संवेदना के साथ प्रस्तुत करता है।
इस नाटक का आकर्षण दोनों नए मेहमानों का चरित्र है। वे बिना जाने-बूझे एक अपरिचित व्यक्ति के घर में घिस पडते हैं तथा गहस्वामी की सीमाओं की चिन्ता किए बिना अपनी आवश्यकताओं को बढ़ाते चलते हैं। विश्वनाथ सभ्य और संकोचशील चरित्र है। शिष्टाचार के नाते वह खुलकर अपनी शंकाओं का समाधान भी नहीं कर पाता है। उसके मेहमान उसकी इस कमजोरी का लाभ उठाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। रेवती का चरित्र आधुनिक महिलाओं के अनुरूप है। नए मेहमानों के लिए भोजन बनाने में अपने सिरदर्द के कारण असमर्थ है, किन्तु अपने भाई के आने पर वही उत्साहपूर्वक खाना बनाने लगती है।
नाटक का शिल्प रंगमंच एवं रेडियो-रूपक दोनों के अनुकूल है। इसका अभिनय और प्रसारण दोनों ही सफलतापूर्वक किए जा सकते हैं। भाषा सामान्य जीवन के निकट एवं आडम्बरहीन है। विनोद और व्यंग्य दोनों ही प्रभावशाली हैं।
– Uday Shankar Bhatt “उदयशंकर भट्ट”
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