प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी की भाषा-शैली की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी का साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
Prof. G. Sundar Reddy
हिन्दी भाषी हिन्दी लेखकों में प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी का महत्वपूर्ण स्थान है। वे उत्कृष्ट निबन्धकार एवं श्रेष्ठ समालोचक के रूप में हिन्दी जगत में जाने जाते हैं। मूलतः तेलगू भाषी प्रो. रेड्डी ने हिन्दी और तेलगू का तुलनात्मक अध्ययन विषय पर गहन अध्ययन किया है।
हिन्दी के विकास और प्रगति में प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी का सराहनीय योगदान है। हिन्दी के जाने-माने लेखक के रूप में प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी ने अनेक ग्रन्थों की रचना करके हिन्दी भाषा पर अपने अधिकार का प्रमाण दिया है।
जीवन-परिचय
प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी का जन्म 10 अप्रैल 1919 ई. को आन्ध्र प्रदेश के बेल्लूर जनपद के बत्तुलपल्लि नामक ग्राम में हुआ था। हिन्दी के साथ-साथ आपने तमिल और मलयालम भाषाओं पर भी कार्य किया है। ये आन्ध्र विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रहे।
प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी के अनेक निबन्ध हिन्दी, अंग्रेजी एवं तेलगू पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। इन्होंने दक्षिण भारतीयों के लिए हिन्दी और उत्तर भारतीयों के लिए दक्षिणी भाषाओं के अध्ययन की प्रेरणा दी। इन्होंने हिन्दी भाषियों के लिए तमिल, तेलगू, कन्नड़ और मलयालम साहित्य की रचना की है।
इस राष्ट्रवादी हिन्दी प्रचारक, प्रख्यात साहित्यकार एवं तुलनात्मक साहित्य के मूर्धन्य समीक्षक प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी ने 30 मार्च 2005 को इस दुनिया को छोड़ दिया।
कृतियां
प्रोफसर रेड्डी के अब तक निम्न ग्रन्थ प्रकाश में आए हैं-
- साहित्य और समाज
- वैचारिकी शोध और बोध
- मेरे विचार
- हिन्दी और तेलुगू एक तुलनात्मक अध्ययन
- दक्षिण भारत की भाषाएं और उनका साहित्य
- तेलुगू दारुल
- लैंग्वेज प्राब्लम इन इण्डिया
भाषा का स्वरूप
प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी की भाषा परिमार्जित है। संस्कृत प्रधान शब्दावली का प्रयोग इनकी रचनाओं में हुआ है। कठिन से कठिन विषय को सरल और सुबोध बनाकर प्रस्तुत किया है। व्यावहारिकता की दृष्टि से इनका सुझाव प्रशंसनीय है। अंग्रेजी भाषा के शब्दों का प्रयोग भी कहीं-कहीं हुआ है।
शैली के विविध रूप
डॉ. रेड्डी की शैली के विविध रूप निम्न प्रकार से हैं-
विचारात्मक शैली
किसी विषय पर विचार प्रस्तुत करते समय इस शैली का प्रयोग हुआ है। इस शैली की भाषा सरल है और लघु और दीर्घ दोनों प्रकार के वाक्य लिखे गए हैं। भाषा में विषयानुकुल परिवर्तन
भी दिखाई देता है। इस शैली का एक उदाहरण अग्र पंक्तियों में देखा जा सकता है :
समीक्षात्मक शैली
इस शैली का प्रयोग प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी ने साहित्यिक विषयों का विश्लेषण करते हुए किया है। वे एक सजग समीक्षक हैं जिनके चिन्तन में गम्भीरता है। अपने विचारों को स्पष्टता से व्यक्त करने वाले प्रो. रेड्डी ने इस शैली में संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग किया है तथा उनकी वाक्य रचना आवश्यकतानुसार छोटे-छोटे वाक्यों तथा लम्बे वाक्यों वाली हो गई है, यथा-
गवेषणात्मक शैली
इस शैली का प्रयोग प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी अपने शोधपरक निबन्धों में करते दिखाई पड़ते हैं। भाषा विषय के अनुकूल गम्भीर परिमार्जित है जिसमें नवीन एवं मौलिक विचारों को प्रतिपादित किया गया है।यथा-
सूत्रात्मक शैली
प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी के निबन्धों में सूत्र शैली का प्रयोग वहां हुआ है जहां वे अपना अभिमत एवं निष्कर्ष प्रस्तुत करते हैं। कम से कम शब्दों में बात को व्यक्त करने में वे कुशल हैं। ऐसे कुछ सूत्र वाक्य हैं :
- रमणीयता और नित्य नूतनता अन्योन्याश्रित हैं।
- भाषा समूची युग चेतना की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है।
- भाषा स्वयं संस्कृति का एक अटूट अंग है।
हिन्दी साहित्य में स्थान
प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी ने हिन्दी की सेवा करके अहिन्दी भाषी व्यक्तियों के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत किया है और भारत की राष्ट्रभाषा के प्रति अपनी कृतियों के माध्यम से अपने कर्तव्य का निर्वहन किया है। वे एक श्रेष्ठ विचारक, कुशल निबन्धकार एवं विद्वान समीक्षक के रूप में हिन्दी जगत में सम्मानित रहे हैं।
तेलुगू भाषी होते हुए भी प्रो. जी. सुन्दर रेड्डी ने हिन्दी भाषा के विकास हेतु अपना जीवन समर्पित कर सभी हिन्दी प्रेमियों को प्रेरणा प्रदान की है। निश्चित रूप से उनका योगदान हिन्दी जगत में अविस्मरणीय रहेगा।
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