जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन (1851-1941) ब्रिटिश शासन के दौरान “इंडियन सिविल सर्विस” के कर्मचारी बनकर भारत में आए थे। वे विश्व की भाषाओं के साथ-साथ अनेक भारतीय भाषाओं के ज्ञानी और आधुनिक भारत में भाषाओं का सर्वेक्षण करने वाले पहले भाषाविज्ञानी थे। भारत में ग्रियर्सन को “लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ़ इंडिया” के प्रणेता के रूप में जाना जाता है। “रामचरितमानस” को ग्रियर्सन ने ‘करोड़ों लोगों की बाइबिल‘ कहा है।
आगे विस्तार से पढ़िए डॉ. ग्रियर्सन (George Abraham Grierson) का जीवन परिचय, सर्वेक्षण, खोज कार्य, उनकी मृत्यु एवं उनकी ख्याति का कारण और अन्य सम्पूर्ण जानकारी:
Sir George Abraham Grierson Biography in Hindi / George Abraham Grierson Jeevan Parichay / George Abraham Grierson Jivan Parichay / सर जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन :
नाम | जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन (George Abraham Grierson) |
उपाधि | सर (सरकार द्वारा 1912 में) |
पूरा नाम | सर जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन (Sir George Abraham Grierson) |
जन्म | 7 जनवरी, 1851 (डब्लिन, आयरलैंड) |
मृत्यु | 9 मार्च, 1941 (कैम्बरली, सरे, इंग्लैंड) |
उम्र | 90 वर्ष |
पिता | जॉर्ज ग्रियर्सन (प्रसिद्ध डबलिन प्रिंटर और प्रकाशक) |
माता | इसाबेला (आर्डी के हेनरी रुक्सटन की बेटी) |
पेशा | इतिहासकार, साहित्यकार, अन्वेषक |
अध्ययन के विषय | भारतीय भाषाएँ एवं बोलियाँ, संस्कृति, साहित्य एवं बिहार प्रदेश |
ख्याति | ‘लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया’ ग्रंथ (भारत का भाषा सर्वेक्षण) |
भाषा | अंग्रेज़ी, हिन्दी |
सम्मान | CIE (भारतीय साम्राज्य का साथी, 1894 में) , सर की उपाधि (1912 में) – तत्कालीन सरकार द्वारा |
जीवन परिचय
ग्रियर्सन (Grierson) का जन्म आयरलैंड के डब्लिन शहर में 7 जनवरी, 1851 में हुआ था। इनके पिता “जॉर्ज ग्रियर्सन” एक प्रसिद्ध डब्लिन प्रिंटर और प्रकाशक थे। और इनकी माता “इसाबेला”, आर्डी के हेनरी रुक्सटन की बेटी थीं।
ग्रियर्सन की प्रारम्भिक शिक्षा “बीज़ (Bee’s) स्कूल, श्यूजबरी” में हुई। संस्कृत और हिंदुस्तानी भाषाओं का अध्ययन उन्होंने डब्लिन में ही सन् 1868 से प्रारंभ कर दिया था।
डब्लिन के ट्रिनटी कालेज से डी.लिट्., केंब्रिज लंदन और जर्मनी के हले कॉलेज से पी.एच.डी. करने के बाद ग्रियर्सन, 1873 में “इंडियन सिविल सर्विस (आई.सी.एस.)” के कर्मचारी के रूप में बंगाल आए। प्रारम्भ से ही उनकी रुचि भारतीय भाषाओं के अध्ययन की ओर थी, अतः उन्होंने यहाँ अपने कार्य को और अच्छे से सम्पन्न किया।
ग्रियर्सन को 1880 में इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल्स, बिहार और 1869 तक पटना के ऐडिशनल कमिश्नर और अफ़ीम एज़ेंट, बिहार के रूप में नियुक्त किया गया। ऑफिस के कार्यों के बाद वे अपना अधिकतर समय संस्कृत, प्राकृत, पुरानी हिंदी, बिहारी और बंगला भाषाओं और साहित्यों के अध्ययन में लगाते थे। जहाँ भी उनकी नियुक्ति होती थी वहीं की भाषा, बोली, साहित्य और लोकजीवन की ओर उनका ध्यान आकृष्ट होता था।
भारत में ग्रियर्सन ने कई क्षेत्रों में काम किया। तुलसीदास और विद्यापति के साहित्य का महत्त्व प्रतिपादित करनेवाले वे सम्भवतः पहले अंग्रेज विद्वान थे। हिन्दी क्षेत्र की बोलियों के लोक साहित्य (गीत-कथा) का संकलन और विश्लेषण करने वाले विद्वानों में भी ग्रियर्सन अग्रिम पंक्ति के विद्वानों में थे।
ग्रियर्सन ने अपने ग्रंथ “लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया” में 952 कवियों का वर्णन किया और इन्होंने सर्वप्रथम हिंदी साहित्य का नामकरण किया इन्होंने आदिकाल को चारण काल कहा। इसमें भारत की 179 भाषाओं और 544 बोलियों का विस्तार से वर्णन है, साथ ही भाषाविज्ञान और व्याकरण संबंधी नियम भी दिए गए हैं।
नई भारतीय आर्यभाषाओं के अध्ययन की दृष्टि से उन्हें बीम्स, भंडारकर और हार्नली के समकक्ष रखा जाता है। आधुनिक भारतीय भाषाओं के अध्ययन क्षेत्र में सभी विद्वान् उनका भार स्वीकार करते थे।
ग्रियर्सन बंगाल और बिहार के कई उच्च पदों पर 1899 तक कार्यरत करते रहे। 1902 में नौकरी से अवकाश ग्रहण करने के पश्चात्, 1903 में भारत छोड़कर “कैम्बरली, इंग्लैंड” में चले गए थे। कैम्बरली में ही 9 मार्च, 1941 को महान भाषाविद् “जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन” ने इस पृथ्वी पर उपस्थित नश्वर शरीर को त्याग दिया।
रचनाएँ एवं खोज कार्य
भाषाविद् ग्रियर्सन ने अपने कार्यकाल (1873 से 1902) के मध्य कई महत्वपूर्ण खोज कार्य किए। उनकी अधिकांश रचनाएँ बंगाल की रॉयल एशियाटिक सोसाइटी के जर्नल में ही प्रकाशित हुईं।
- उत्तरी बंगाल के लोकगीत, कविता और रंगपुर की बँगला बोली (1877);
- राजा गोपीचंद की कथा (1878);
- मैथिली ग्रामर (1880);
- सेवेन ग्रामर्स ऑफ द डायलेक्ट्स ऑफ द बिहारी लैंग्वेज (1883-1887);
- इंट्रोडक्शन टु द मैथिली लैंग्वेज;
- ए हैंड बुक टु द कैथी कैरेक्टर;
- बिहार पेजेंट लाइफ;
- बीइग डेस्क्रिप्टिव कैटेलाग ऑफ द सराउंडिंग्ज ऑफ द वर्नाक्युलर्स, जर्नल ऑफ द जर्मन ओरिएंटल सोसाइटी (1895-96);
- पद्मावती का संपादन (1902) महामहोपाध्याय सुधाकर द्विवेदी की देखरेख में;
- बिहारीकृत सतसई (लल्लूलालकृत टीका सहित) का संपादन;
- नोट्स ऑन तुलसीदास;
- द माडर्न वर्नाक्युलर लिटरेचर ऑफ हिंदुस्तान (1889);
- पिशाच भाषा ग्रंथ (1906 ई. में)
- कश्मीरी मैनुएल (1911 में)
- कश्मीरी कोश (1924 में 4 भागों में प्रकाशित)
उपरोक्त George Abraham Grierson कुछ महत्वपूर्ण रचनाएँ एवं कार्य हैं।
ख्याति : लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया
जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन की प्रसिद्धि (ख्याति) का मुख्य कारण उनका ग्रंथ “लिंग्विस्टिक सर्वे ऑव इंडिया” ही है। 1885 में पश्चिमी भाषाविदों की अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस ने “विएना अधिवेशन” में भारत की सभी भाषाओं सर्वेक्षण की आवश्यकता का अनुभव करते हुए भारतीय सरकार का ध्यान इस ओर गया।
परिणामस्वरूप भारतीय सरकार ने 1888 में ग्रियर्सन की अध्यक्षता में सर्वेक्षण कार्य प्रारंभ किया। सन् 1888 से उन्होंने इस कार्य के लिये सामग्री संकलित करना शुरू कर दिया था। 1902 में नौकरी से अवकाश ग्रहण करने के पश्चात् 1903 में जब उन्होंने भारत छोड़ा, तब सर्वे के विभिन्न खंड क्रमश: प्रकाशित होने लगे। इसे ही ग्रियर्सन का “लिंग्विस्टिक सर्वे ऑव इंडिया” कहा गया। वे इसे 1927 ई. में समाप्त कर सके।
“लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया” के 21 भाग है, और उसमें भारत की 179 भाषाओं और 544 बोलियों का विस्तार से वर्णन है। साथ ही भाषाविज्ञान और व्याकरण संबंधी नियम भी दिए गए हैं। इसमें 952 कवियों का वर्णन किया गया है।
ग्रियर्सन कृत “लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया” अपने ढंग का एक विशिष्ट ग्रंथ है। इस सर्वे में हमें सम्पूर्ण “भारत का भाषायी मानचित्र” मिलता है, जिसका सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्व है।
भारत की भाषाओं और बोलियों का इतना सूक्ष्म अध्ययन पहले कभी नहीं हुआ था। बुद्ध और अशोक की धर्मलिपियों के बाद भारत में ग्रियर्सन कृत ‘लिंग्विस्टिक सर्वे’ ही एक ऐसा पहला प्रमाणिक ग्रंथ है जिसमें आम-जीवन में बोली जानेवाली भाषाओं और बोलियों के बारे में विस्तार से बताया गया है।
पुरस्कार, सम्मान, उपाधि एवं पद
सर जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन को मिलने वाले पुरस्कार एवं सम्मान इस प्रकार हैं:
- सी.आई.ई. (द कंपेनियन ऑफ द इंडियन एम्पायर: भारतीय साम्राज्य का साथी) (1894 में तत्कालीन सरकार की ओर से)
- “सर” की उपाधि (1912 में सरकार की ओर से)
- बंगाल की रॉयल एशियाटिक सोसाइटी के सदस्य (1876 से)
- नागरी प्रचारिणी सभा के मानद सदस्य रहे
- आनरेरी फेलोशिप प्राप्त हुई (1904 में)
- पी.एच.डी. (1894 में, हले से)
- डी.लिट्. (1902 में, ट्रिनिटी कालेज डब्लिन से)
FAQs: सर जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन पर प्रश्न-उत्तर
ग्रियर्सन को सबसे अधिक किस भाषा से प्रेम था?
ग्रियर्सन को हिंदी भाषा से अत्यधिक प्रेम था। इसी कारण उन्होंने 33 वर्ष तक पर्याप्त परिश्रम कर असंख्य व्यक्तियों से पत्राचार एवं सम्पर्क स्थापित करके भारतीय भाषाओं एवं बोलियों के विषय में भरसक प्रामाणिक आँकड़े और विवरण एकत्र किये। इतना बड़ा भाषाई प्रयास किसी अन्य देश में नहीं किया गया है, अंग्रेज़ी में यह 11 भागों में प्रकाशित हुआ था।
ग्रियर्सन सबसे विशिष्ट योगदान क्या है?
ग्रियर्सन कृत ‘लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ़ इंडिया‘ बुद्ध और अशोक की धर्मलिपि के बाद एक ऐसा पहला ग्रंथ है जिसमें दैनिक जीवन में बोली जानेवाली भाषाओं और बोलियों का दिग्दर्शन प्राप्त होता है। अतः “लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया” उनका सबसे विशिष्ट योगदान है।
रामचरितमानस को सर जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने क्या कहा है?
रामचरितमानस को ग्रियर्सन ने ‘करोड़ों लोगों की बाइबिल’ कहा है।
सर George Abraham Grierson की मृत्यु कब एवं कहाँ हुई?
सर जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन की मृत्यु 9 मार्च, सन् 1941 ई में एवं कैम्बरली, सरे, इंग्लैंड नामक स्थान पर हुई थी। भारत सरकार ने उनकी स्मृति में डॉ. जॉर्ज ग्रियर्सन पुरस्कार स्थापित किया है।
जार्ज Abraham Grierson के प्रमुख कार्य कौन-कौन से हैं?
उत्तरी बंगाल के लोकगीत (1877); राजा गोपीचंद की कथा (1878); मैथिली ग्रामर (1880); सेवेन ग्रामर्स आव दि डायलेक्ट्स ऑव दि बिहारी लैंग्वेज (1883-1887); इंट्रोडक्शन टु दि मैथिली लैंग्वेज; ए हैंड बुक टु दि कैथी कैरेक्टर; बिहार पेजेंट लाइफ; बीइग डेस्क्रिप्टिव कैटेलाग ऑव दि सराउंडिंग्ज ऑव दि वर्नाक्युलर्स, जर्नल ऑव दि जर्मन ओरिएंटल सोसाइटी (1895-96); कश्मीरी व्याकरण और कोश; कश्मीरी मैनुएल आदि George Abraham Grierson महत्वपूर्ण रचनाएँ एवं कार्य हैं।
हिन्दी साहित्य के अन्य जीवन परिचय– हिन्दी अन्य जीवन परिचय देखने के लिए मुख्य प्रष्ठ ‘Jivan Parichay‘ पर जाएँ। जहां पर सभी जीवन परिचय एवं कवि परिचय तथा साहित्यिक परिचय आदि सभी दिये हुए हैं।