सेठ गोविन्ददास (Seth Govind Das) का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, कवि परिचय एवं भाषा शैली और उनकी प्रमुख रचनाएँ एवं कृतियाँ। “सेठ गोविन्ददास” का जीवन परिचय एवं साहित्यिक परिचय नीचे दिया गया है।
Seth Govind Das Biography / Seth Govind Das Jeevan Parichay / Seth Govind Das Jivan Parichay / सेठ गोविन्ददास :
नाम | सेठ गोविंद दास |
जन्म | 16 अक्टूबर, 1896 |
जन्मस्थान | जबलपुर, म. प्र. |
मृत्यु | 18 जून, 1974 |
पद | लेखक, राजनेता |
पिता | राजा गोकुलदास |
पत्नी | गोदावरी बाई |
पुत्र | जगमोहनदास, मनमोहनदास |
पुत्रियाँ | रत्नाकुमारी, पद्मा |
रचनाएँ | चंपावती, कृष्ण लता, सोमलता, विश्व प्रेम, सप्तरश्मि, अष्टदश, एकादशी, पंचभूत, चतुष्पथ, आपबीती-जगबीती। |
साहित्य काल | आधुनिक काल |
विधाएं | उपन्यास, एकाँकी, नाटक |
साहित्य में स्थान | राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रतिष्ठापित लेखक |
पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
सेठ गोविन्ददास का जीवन-परिचय
सेठ गोविन्ददास का जन्म जबलपुर (म०प्र०) के एक सम्पन्न धार्मिक परिवार में 1896 ई० में हुआ था। सेठजी ने घर पर ही अंग्रेजी और हिन्दी का गंभीर अध्ययन किया। बचपन से ही बल्लभ सम्प्रदाय में होने वाले उत्सवां लीलाओं और नाटकों से वे प्रभावित थे। उनका परिवार धार्मिक आचार-विचारों वाला था, जिससे वे प्रभावित हुए बिना नहीं रहे, अत: नाटक लिखने की प्रेरणा बचपन में ही जाग्रत हो गयी थी। उनका पहला नाटक ‘विश्व-प्रेम परिवार द्वारा स्थापित श्री शारदा-भवन पुस्तकालय के वार्षिकोत्सव के लिए लिखा गया था।
सेठ जी एक कुशल राजनीतिज्ञ थे। उनका अधिकांश जीवन भारत की सक्रिय राजनीति में बीता। वे गांधीजी के निकट सम्पर्क में रहे और अनेक बार जेल गए। आपने अधिकांश रचनाएँ जेल में ही लिखीं। देश के स्वतन्त्र होने पर वे संसद सदस्य बने और आजीवन इस पद पर बने रहे। हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने में आपका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सन 1974 में सेठ जी का स्वर्गवास हो गया।
गोविन्ददास की रचनाएँ (एकांकी-संग्रह)
- सेठ गोविन्ददास के प्रमुख एकांकी-संग्रह निम्नलिखित हैं- सप्तरश्मि, अष्टदश, एकादशी, पंचभूत, चतुष्पथ, आपबीती-जगबीती और व्यवहार।
- सेठ गोविन्ददास के उपन्यास– चंपावती, कृष्ण लता, सोमलता।
- सेठ गोविन्ददास के नाटक– विश्व प्रेम।
सेठ जी ने मुख्यतः उपन्यास, नाटक और एकांकी ही लिखे हैं। उनके एकांकियों पर शॉ. इब्सन, ओनील आदि की शैली का विशेष प्रभाव है किन्तु उनकी भाव-भूमि भारतीय जीवनधारा से ग्रहण की गयी है। उनके एकांकियों के विषय पौराणिक युग से आरम्भ होकर विभिन्न ऐतिहासिक युगों को समेटे हुए आधुनिक-सामाजिक, राष्टीय और राजनैतिक धरातल तक विस्तृत हैं। उनके जीवन-दर्शन पर गांधीवाद का गहरा प्रभाव हैं। सेठ जी के कछ एकांकी समस्या-प्रधान कुछ पात्रों की अन्तर्वृत्तियों के विश्लेषणपूर्ण वैयक्तिक और कुछ व्यंग्य-विनोद प्रधान प्रहसन हैं।
साहित्यिक अवदान
उक्त एकांकी-संग्रहों के अतिरिक्त सेठ जी ने सासंद के रूप में जीवन-भर हिन्दी के उन्नयन हेतु कार्य किया। राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठापित हिन्दी उनके सत्प्रयत्नों की आभारी रहेगी। उनके समस्त एकाँकी रंगमंच की दष्टि से पूर्णरूपेण सफल हैं तथा प्रेरणादायी एवं विचारोत्तेजक हैं।
व्यवहार, एकांकी (सेठ गोविन्द दास)
‘व्यवहार’ Seth Govind Das का जमींदारों की सामन्तवादी विचारधारा से सुपोषित भावप्रधान सामाजिक उत्कृष्ट एकांकी है। इसमें परिवर्तित परिस्थितियों में विशुद्ध नियन्त्रण को ‘व्यवहार’ अर्जन हेतु दिया हुआ निमन्त्रण कृषक क्रान्तिचन्द्र के तर्कों से प्रभावित होकर उसका पूर्णरूपेण बहिष्कार कर देते हैं। प्रस्तुत एकांकी की कथावस्तु सामाजिक पृष्ठभूमि पर आधारित है।
रघुराजसिंह का स्वभाव अपने पिता के सामने चे चले आ रहे मैनेजर नर्मदा शंकर से पूर्णरूपेण भिन्न है। रघुराज सिंह को जमींदारी अपने पिता से प्राप्त हुई है। वह अपनी बहन के विवाह भोज में समस्त किसानों को सपरिवार निमन्त्रण देता है। इसे पुराने नजरिए से देखते हुए कृषक प्रतिनिधि क्रान्तिचन्द्र अपने अकाट्य तर्कों से बहिष्कार करता है। सभी किसान उसका साथ देते हैं, क्रान्तिचन्द्र पत्र में लिखकर ‘भक्षक और भक्ष्य का कैसा व्यवहार भेजकर रघुराज सिंह की आँखें खोल देता है।
इस एकांकी की कथावस्तु तीन दृश्यों में विभाजित है। प्रथम तथा तृतीय दृश्य रघुराज सिंह के महल की बालकनी में घटित होते हैं किन्तु दूसरा दृश्य गाँव के मकान के एक कोने में; अत: इसके अभिनय में दो सैटों का विधान है, कथा संगठन में कहीं भी कोई शैथिल्य दिखाई नहीं देता है।
इस एकांकी के कथानक में प्रगतिशीलता निरन्तर बनी रहती है। रघुराज सिंह तथा नर्मदा शंकर के वार्तालाप से कथा प्रारम्भ होती है। दूसरे दृश्य में कथानक का विकास तथा तीसरे दृश्य में रघुराज सिंह एवं नर्मदा शंकर के वार्तालाप एवं किसान प्रतिनिधि के लिखित ‘भक्षक और भक्ष्य का कैसा व्यवहार’ ? पर चरम सीमा है, ऐसा प्रतीत होता है कि रघुराज सिंह का यह कथन ‘जमींदार रहते हुए कोई जमींदार किसानों का हित नहीं कर सकता’ सत्य का उद्घाटन करता है। इसलिए ही वह ‘जमींदारी की तौक को गले से निकाल, जिनके हित की मैं डींग मारता हूँ उन्हीं का-सा हो उन्हीं के सच्चे हित में अपनी जीवन ………. अपना जीवन व्यतीत कर दूं।’ यह आकांक्षा करता है कि यहीं एकांकी का नाटकीय अन्त हो जाता है, यहीं एकांकी का अन्त सुखद मोड़ है तथा आनन्दात्मक रूप है।
संकलन त्रय– Seth Govind Das संकलन त्रय को अधिक महत्त्व नहीं देते हैं। स्थान एवं समय भेद होने पर भी इसके प्रस्तुतीकरण में कोई अस्वाभाविकता दिखाई नहीं देती है।
एकांकी की सुकुमारता एवं सन्देश रघुराज सिंह के चरित्र चित्रण में देखी जा सकती है, वह दयालु उदार एवं मानवसेवी जमींदार है, आम आदमी को सपरिवार भी एक कराने की लालसा उसके मल में छिपी हुई है। तभी वह सभी किसानों को सपरिवार निमन्त्रण देता है तथा विविध मिठाइयाँ, नमकीन, तरकारियाँ, मुरब्बे तथा चटनियाँ खिलाना चाहता है, साथ ही अपने आदर्श व्यवहार के साथ वह किसी के व्यवहार की आकांक्षा नहीं करता है, उसका अपना व्यवहार अतिसजीव, अहंकार शून्य स्वाभाविक तथा सरल है, उसमें विवेकशीलता है, अपने हृदय मंथन से वह सच्चे स्वरूप को पहचान लेता है।
दूसरी ओर क्रान्तिचन्द्र एक ऐसा पात्र है जो पुराने विश्वासों पर विश्वास नहीं करता आधुनिक शिक्षा के कारण वह सब को रघुनाथ सिंह जमींदार के यहाँ निमन्त्रण में जाने से रोकने में सफल हो जाता है। कृषकों में जागरूकता का शंख फूंककर वह उनका प्रतिनिधि बन जाता है। उसकी सफलता ही रघुराज सिंह के हृदय में मानव हित के सच्चे भाव जमाने में सफल होती है।
एकांकीकार का लक्ष्य भी मानव का आत्यन्तिक हित है जो एकांकी की समाप्ति पर स्पष्ट हो जाता है।
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