शारीरिक थकान
शारीरिक थकान एवं मानसिक थकान से बालक का अधिगम प्रभावित होता है।
शारीरिक थकान के लक्षण (Characteristics of Physical Fatigue)
शारीरिक थकान के निम्न लक्षण होते हैं-
- शरीर के जिस अंग से अधिक काम लिया जाता है वह विशेष रूप से थक जाता है।
- सम्पूर्ण शरीर में थकावट आ जाती है।
- बालक सीधा खड़ा नहीं रह पाता।
- बालक जम्हाई लेने लगता है।
- चेहरे पर पीलापन और निस्तेजना आ जाती है।
- बालक का मुख खुला रहता है और मुख से साँस लेता है।
- कन्धे एक ओर झुक जाते हैं।
- शक्ति की कमी का अनुभव करने लगता है।
- बार-बार आसन बदलता है।
- काम करने में शिथिलता आ जाती है।
- आँखों में भारीपन छा जाता है।
- कार्य या पाठ पर ध्यान केन्द्रित नहीं होता है।
- बालक अपने कार्य में अशुद्धियाँ करने लगता है।
थकान का सीखने की गति एवं प्रक्रिया पर प्रभाव
- जब बालक थक जाता है तो उसमें सीखने की कुशलता कम हो जाती है।
- बालक थकावट की अवस्था में अधिक अशुद्धियाँ करते हैं।
- थका हुआ बालक ठीक प्रकार से नहीं सीख पाता।
- थकान के कारण बालक अपने पाठ या कार्य में रुचि नहीं ले पाते उनके उत्साह में भी कमी आ जाती है।
- मानसिक कार्य क्षमता में कमी आ जाती है।
- सीखने की गति शिथिल हो जाती है।
- प्रारम्भिक थकान के पश्चात् बालक के सीखने में अधिक कुशलता आ जाती है। अतः हल्की थकान का अनुभव करने पर कार्य बन्द नहीं कर देना चाहिये।
- थकान का प्रभाव छोटे बालकों पर अधिक पड़ता है। अत: उनके सीखने की गति और कुशलता भी बड़े बालकों की अपेक्षा अधिक प्रभावित होती है।
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि बालकों में थकान न उत्पन्न होने देने के लिये अध्यापक को केवल एक बात का ध्यान न रखकर अनेक बातों को ध्यान में रखना होगा। उसे विद्यालय और कक्षा के सम्पूर्ण वातावरण को उत्साहवर्धक तथा स्वास्थ्यवर्धक बनाने की दिशा में सहानुभूति-पूर्ण होना चाहिये।
उसके लिये आवश्यक है कि वह थकान के कारणों को भली प्रकार समझे तथा उसे दूर करने के लिये समुचित प्रयास करके । इस विषय में उसे छात्रों के अभिभावकों का भी सहयोग लेना अनिवार्य है।
थकान के कारण
थकान के निम्न कारण है-
1. कक्षा का दूषित वातावरण
कमरे का दूषित वातावरण थकावट का मूल कारण होता है। यदि कक्षा में पर्याप्त रोशनदान और खिड़कियाँ नहीं होंगी तो आक्सीजन की कमी के कारण बालक शीघ्र थकावट अनुभव करने लगेंगे। इसी प्रकार कक्षा में यदि सीलन होती है और आसपास दुर्गन्ध होगी तो भी थकावट शीघ्र जा आयेगी।
2. प्रकाश का अभाव
यदि कक्षा में प्रकाश का अभाव है तो छात्रों को पढ़ते समय आँखों पर आवश्यकता से अधिक बल देना पड़ेगा परिणामस्वरूप थकावट आ जायेगी।
3. दोषपूर्ण पाठ्यक्रम
यदि पाठ्यक्रम दोषपूर्ण है तथा उसमें नीरस तथा जीवन से सम्बन्ध न रखने वाले विषयों को रखा गया है तो बालक शीघ्र थक जायेंगे।
4. अमनोवैज्ञानिक शिक्षण विधियाँ
जब अध्यापक अमनोवैज्ञानिक शिक्षण विधियाँ कक्षा में प्रयोग करता है तो बालक थकान का अनुभव करने लग जाते हैं।
5. अनुपयुक्त फर्नीचर
सिम्पसन (Simpson) के शब्दों में, “अनुपयुक्त फर्नीचर बालकों की वास्तविक शारीरिक थकान में प्रत्यक्ष सहयोग करता है।” अनुपयुक्त फर्नीचर के कारण छात्र ठीक प्रकार से बैठ नहीं पाते । अतः उन्हें बाद में आसन बदलना पड़ता है परिणामस्वरूप शीघ्र थक जाते हैं।
6. विषैले पदार्थों का पाया जाना
जब शरीर में विषैले पदार्थ आवश्यकता से अधिक एकत्रित हो जाते हैं तो थकावट आ जाती है। अधिक श्रम करने से शारीरिक तन्तुओं का क्षय होता है। ये मरे हुए तन्तु ही शरीर में टॉक्सिन (Toxin) नामक विष उत्पन्न कर देते हैं। यह विष थकावट का जनक होता है।
7. योग्यता के आधार पर कार्य न मिलना
जब किसी बालक को उसकी योग्यता से अधिक या कम योग्यता का काम प्रदान कर दिया जाता है तो वह शीघ्र थक जाता है।
8. मौसम का प्रभाव
अधिक गर्मी बालकों में थकावट पैदा करती है। जाड़ों में थकावट कम आती है।
9. शारीरिक निर्बलता
जो बालक शारीरिक दृष्टि से अधिक निर्बल होते हैं वे स्वस्थ बालकों की अपेक्षा शीघ्र थक जाते हैं।
10. दोषपूर्ण आसन
बालकों का बैठने का अनुचित ढंग या दोषपूर्ण आसन भी थकावट का कारण होता है।
11. शारीरिक दोष
बहरापन या निर्बल दृष्टि भी बालकों में थकावट लाती है।
12. दोषपूर्ण समय तालिका
जब समय तालिका में लगातार कठिन विषय तथा लगातार लिखने के घण्टे रख दिये जाते हैं तो बालक शीघ्र थक जाते हैं।
13. अरुचिकर कार्य
जो कार्य बालकों की रुचि के अनुकूल नहीं होता वह बालकों को शीघ्र थका देता है। वह उसमें रुचि नहीं लेते तथा कुछ सीख नहीं पाते।
14. देर तक जागना
जब बालक विभिन्न कारणों से रात में देर तक जगते हैं तो कक्षा में शीघ्र थक जाते हैं।
थकान दूर करने के उपाय एवं सीखने पर प्रभाव
थकान दूर करने के उपाय एवं सीखने पर प्रभाव निम्न प्रकार है-
1. आयु के अनुसार घण्टों के समय
बड़े बालकों की अपेक्षा छोटे बालकों को शीघ्र थकावट अनुभव होती है। अत: छोटे बालकों के घण्टे 25 से 30 मिनट तक के होने चाहिये। बड़े बालकों के 35 से 40 मिनट तक के रखे जा सकते हैं।
2. विद्यालय का समय
विद्यालय का समय 7 या 8 घण्टे से अधिक नहीं होना चाहिये। ग्रीष्मकाल में यह समय 1 घण्टे कम किया जा सकता है। साथ ही मौसम बदलने के साथ-साथ विद्यालय का समय भी बदला जाना चाहिये।
3. विद्यालय का अवकाश
विद्यालय में दो अवकाश होने चाहिये। पहला दूसरे या तीसरे घण्टे के पश्चात् तथा दूसरा चौथे या पाँचवें घण्टे के पश्चात् । अवकाश छात्रों में स्फूर्ति उत्पन्न करता है।
4. विषयों का क्रम
समय सारणी का निर्माण करते समय इस बात का भी ध्यान रखा जाय कि कठिन विषय क्रमानुसार पढ़ाये जायें। उदाहरण के लिये, प्रथम घण्टा अंग्रेजी का है और दूसरा घण्टा यदि गणित का है तो छात्र शीघ्र थक जायेगा। इसी प्रकार लिखित कार्य लगातार नहीं कराया जाना चाहिये। लगातार लिखने से भी छात्र थक जाते हैं।
5. पाठ्य सहगामी क्रियाएँ
पाँचवें या छठे घण्टे के पश्चात एक घण्टा व्यायाम, खेलकूद एवं मनोरंजन का भी रखा जाय।
6. प्रकाश और वायु
कक्षा में प्रकाश और वायु का उचित प्रबन्ध होना चाहिये। श्याम-पट्ट या श्वेत-पट्ट पर प्रकाश इस ढंग से पड़े कि वह अधिक चमके नहीं। कक्षा में पर्याप्त रोशनदान का होना आवश्यक है जिससे स्वच्छ वायु कमरे में प्रवेश कर सके और दूषित वायु निकल सके।
7. उपयुक्त फर्नीचर की व्यवस्था
कक्षा में उपयुक्त फर्नीचर की व्यवस्था करना आवश्यक है। फर्नीचर ऐसा हो जिस पर छात्र बैठकर लिख-पढ़ सकें उन्हें अधिक नहीं झुकना पड़े।
8. बाह्य बाधाओं पर रोक
कमरे के बार किसी प्रकार का शोरगुल नहीं होना चाहिये तथा न किसी प्रकार का धुंआ आदि हो।
9. कार्य में परिवर्तन
छात्रों से एक सा कार्य न करवाकर उसमें सुविधानुसार परिवर्तन भी किया जाय। लगातार एक सा कार्य करते रहने से छात्रों में नीरसता आ जाती है और नीरसता थकावट उत्पन्न करती है।
10. मनोवैज्ञानिक विधियाँ
अध्यापक को अपना पाठ यथा-सम्भव मनोवैज्ञानिक ढंग से पढ़ाना चाहिये। विधियाँ रोचक और प्रेरणा प्रदान करने वाली होनी चाहिये।
11. पर्याप्त विश्राम
निद्रा और विश्राम थकान दूर करने के सर्वोत्तम साधन हैं। अध्यापक का कर्त्तव्य है कि वह अभिभावकों को उचित परामर्श दें कि वे बालकों के विश्राम और पर्याप्त सोने पर अवश्य ध्यान दें।
12. रुचि का विकास
पाठ्य विषय रोचक ढंग से प्रस्तुत किया जाना चाहिये। अध्यापक अपनी पाठ्य सामग्री जितने रोचक ढंग से प्रस्तुत करेगा बालक उतनी कम थकान का अनुभव करेंगे।
13. पौष्टिक भोजन
पौष्टिक और सन्तुलित आहार बालकों के स्वास्थ्य के लिये परम आवश्यक है। स्वस्थ बालक शीघ्र नहीं थकते। अतः सन्तुलित भोजन के विषय में अभिभावकों को उचित परामर्श दिये जाने चाहिये।
यदि उपर्युक्त सभी थकान दूर करने के उपायों को शिक्षण कार्य में प्रयोग कर लिया जाय तो सीखने की दर अधिक हो सकती है। प्रत्यक्ष रूप से थकान सीखने को प्रभावित करती है तथा कोई भी थकान का एक कारण सीखने में बाधक बन सकता है।