उत्व् संधि
उत्व् संधि का सूत्र हशि च होता है। यह संधि विसर्ग संधि के भागो में से एक है। संस्कृत में विसर्ग संधियां कई प्रकार की होती है। इनमें से सत्व संधि, उत्व् संधि, रुत्व् संधि, विसर्ग लोप संधि प्रमुख हैं। इस पृष्ठ पर हम उत्व् संधि का अध्ययन करेंगे !
उत्व् संधि के नियम
उत्व् संधि (विसर्ग संधि) प्रमुख रूप से दो प्रकार से बनाई जा सकती । जिनके उदाहरण व नियम इस प्रकार है –
नियम 1.
यदि विसर्ग से पहले “अ” हो एवं विसर्ग का मेल किसी भी “वर्ग के – त्रतीय, चतुर्थ, या पंचम वर्ण” से या “य, र, ल, व” से हो तो संधि करते समय विसर्ग (:) को “ओ” मे बदल देते है ।
उदाहरन् :-
- रज: + गुण : = रजोगुण :
- तम : + बल : = तपोबल :
- यश : + गानम् = यशोगानम्
- मन : + रव : = मनोरव:
- सर : + वर : = सरोवर:
- मन : + हर : = मनोहर:
नियम 2.
यदि विसर्ग से पहले “अ” हो एवं अन्त: पद के शुरु मे भी “अ “ हो तो संधि करते समय विसर्ग (:) को “ओ” मे तथा अन्त: पद के “अ” को पूर्वरूप (ऽ) मे बदल देते है ।
उदाहरण:-
- देव : + अयम् = देवोऽयम
- राम : + अवदत् = रामोऽवदत्
- त्रप : + आगच्छत् = त्रपोऽगच्छत्
- क : + अत्र = कोऽत्र