शारीरिक आवश्यकता (Physical Need)

Sharirik Avashyakta

मास्लो के पिरामिड की आधारभूत प्रथम आवश्यकता शारीरिक आवश्यकताएँ हैं। जीवन में सर्वाधिक महत्त्व इन आवश्यकताओं का ही है। अत: इन आवश्यकताओं का क्षेत्रफल सर्वाधिक दिखाया गया है।

शरीर में किसी भी प्रकार की भौतिक कमी जैसे-भूख, प्यास, थकान तथा श्वास के लिये वायु एवं स्वास्थ्य आदि में किसी प्रकार की कमी की अनुभूति होने पर व्यक्ति इस कमी की पूर्ति हेतु अनुप्रेरित हो क्रियाशील होता है और उस कमी की पूर्ति करता है। इसे समता की प्रक्रिया (Homeostatic process) कहा गया है।

शारीरिक या दैहिक आवश्यकता बहुत महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। यद्यपि आत्म-वास्तविकता की दृष्टि से इसे अधिक महत्त्व नहीं दिया गया। यह जीवित रहने के लिये आधारभूत आवश्यकता है किन्तु इसे निम्न श्रेणी की आवश्यकता के अन्तर्गत रखा गया है।

यह आवश्यकताएँ एक-दूसरे से स्वतन्त्र रूप में प्रभाव डालती हैं; जैसे- भूख, प्यास, नींद, यौनिच्छा एवं मलमूत्र त्याग आदि।

यदि ये आवश्यकताएँ अधिक समय तक अतृप्त रह जाती हैं तो दूसरे प्रकार की आवश्यकताएँ या तो दब जाती हैं या पीछे हट जाती हैं।

जब किसी व्यक्ति की शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति न हो तब वह उसके लिये कोई भी कार्य करने को तैयार हो जाता है; जैसे-माता-पिता बालक को खाना अथवा मिठाई तब तक प्रदान नहीं करते, जब तक कि वह विद्यालय का कार्य पूर्ण नहीं कर लेता।

किन्तु इसके अपवाद भी हैं; जैसे- भारत के ऋषि मुनि आदि आत्मज्ञान की खोज में शारीरिक आवश्यकताओं की बलि चढ़ा देते हैं।

इन दैहिक आवश्यकताओं की पूर्ति व्यक्ति को अन्य क्रियाओं के लिये गतिशील बनाती है किन्तु इन आवश्यकताओं की पूर्ति के उपरान्त दूसरे प्रकार की आवश्यकता उभर आती है।

मास्लो ने शारीरिक आवश्यकताओं को अभागीय या व्यर्थ की आवश्यकताएँ माना है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के फलस्वरूप अन्य उद्देश्यपूर्ण व्यवहार एवं आवश्यकताएँ प्रकट हो जाती हैं।

अभाव आवश्यकताएँ (Deficiency Needs, D-needs)

  1. प्रथम आवश्यकता – शारीरिक आवश्यकता (First Need – Physical Need)
  2. द्वितीय आवश्यकता – सुरक्षा आवश्यकता (Second Need – Safety Need)
  3. तृतीय आवश्यकता – अपनत्व एवं प्यार की आवश्यकता (Third Need – Love and Belongingness)
  4. चतुर्थ आवश्यकता – सम्मान की आवश्यकता (Fourth Need – Esteem Need)