चौथे प्रकार की आवश्यकता सम्मान की आवश्यकता है। प्रथम तीन प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाने पर सम्मान की आवश्यकता व्यक्ति को प्रेरित करती है, जिसके फलस्वरूप वह ऐसे कार्य करता है, जिससे उसका आत्मसम्मान बढ़े तथा समाज में उसकी प्रतिष्ठा बढ़े।
व्यक्ति समाज में एक सुयोग्य प्रतिष्ठित सदस्य के रूप में रहना चाहता है। सम्मान की आवश्यकता की पूर्ति के फलस्वरूप व्यक्ति आत्म-विश्वास एवं शक्ति की अनुभूति करता है। वह अपने को योग्य, उपयोगी एवं आवश्यक समझने लगता है।
उसके विपरीत इस आवश्यकता की पूर्ति न होने पर व्यक्ति अपने को निम्न, कमजोर एवं असहाय अनुभव करने लगता है।
सम्मान की आवश्यकताएँ दो प्रकार की होती हैं-
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आत्मसम्मान – इसके अन्तर्गत आत्म-मूल्यांकन (Self-evaluation) आत्म-प्रतिष्ठा, स्वमहत्त्व उपलब्धि की अनुभूति, पर्याप्तता, आत्म-विश्वास एवं स्वतन्त्रता का अनुभव आते हैं।
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दूसरों से प्राप्त सम्मान – इसके अन्तर्गत दूसरों से आदर पाना, प्रसिद्धि, सामाजिक प्रतिष्ठा एवं सफलता महत्त्व एवं प्रशंसा की प्राप्ति आते हैं।
मनोवैज्ञानिक दृष्टि से सम्मान बाह्य केन्द्रित है। इसका आंतरिककरण (Internalization) बाद में होता है अर्थात् दूसरे लोग किसी व्यक्ति के बारे में जिस प्रकार से सोचते हैं, उसी प्रकार वह व्यक्ति अपने बारे में धारणा बना लेता है।
इस सम्मान की भावना को नियन्त्रित रखने की आवश्यकता है अन्यथा वह व्यक्ति को अहंकारी बना सकती है। सम्मान की आवश्यकता की पूर्ति हो जाने पर इसकी शक्ति कमजोर पड़ जाती है तथा व्यक्ति उच्च सृजनात्मक एवं ज्ञानात्मक आवश्यकताओं के प्रति अग्रसर होता है।
अभाव आवश्यकताएँ (Deficiency Needs, D-needs)
- प्रथम आवश्यकता – शारीरिक आवश्यकता (First Need – Physical Need)
- द्वितीय आवश्यकता – सुरक्षा आवश्यकता (Second Need – Safety Need)
- तृतीय आवश्यकता – अपनत्व एवं प्यार की आवश्यकता (Third Need – Love and Belongingness)
- चतुर्थ आवश्यकता – सम्मान की आवश्यकता (Fourth Need – Esteem Need)
अभिवृद्धि की आवश्यकताएँ अथवा आत्म विकास एवं आत्म-वास्तवीकरण की आवश्यकताएँ (Growth needs, meta needs, being needs and B-needs)
- पंचम आवश्यकता – आत्म-वास्तवीकरण (Fifth Need – Self-Actualization)
- छठी आवश्यकता – ज्ञान और समझ (Sixth Need – Knowledge and Understanding)
- सातवीं आवश्यकता – सौन्दर्य आवश्यकताएँ (Seventh Need – Aesthetic Needs)