प्रथम दो प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाने के उपरान्त यह तीसरी प्रकार की आवश्यकता उभर कर व्यक्ति को उस दिशा में क्रियाशील होने के लिये प्रेरित करती है। यह भी एक अभावजनीन आवश्यकता (Deficit need) है अर्थात् प्रेम की कमी को पूरा करने के लिये व्यक्ति अभिप्रेरित होता है।
दूसरों से प्रेम पाने की लालसा से प्रेरित हो वह उस दिशा में क्रियाशील होता है। मनुष्य सामाजिक प्राणी होने के कारण वह किसी समूह या समुदाय का सदस्य होना चाहता है तथा उस दिशा में अपेक्षित व्यवहार करता है।
छोटे बालकों में यह प्रेम पाने की लालसा अधिक तीव्र रहती है। प्रौढ़ व्यक्ति प्रेम पाने की इच्छा (Egoistic love) से ऊपर उठ कर प्रेम देने की इच्छा (Altruistic love) से प्रेरित होता है।
जिन व्यक्तियों की प्रेम की भूख बचपन में पूरी नहीं होती, उनका व्यक्तित्व अधूरा रह जाता है तथा वे प्रौढ़ होने पर भी संवेगात्मक अस्थिरता से ग्रसित रहते हैं।
इसी अपनत्व एवं प्यार की आवश्यकता के फलस्वरूप व्यक्ति धर्म तथा समाज के विभिन्न सदस्यों से सम्बन्ध स्थापित करता है। व्यक्ति अपने मूल या स्रोत की तलाश में रहता है तथा समुदाय के बीच अपना स्थान खोजता है।
प्रत्येक व्यक्ति प्रेम पाना भी चाहता है तथा प्रेम देना भी चाहता है। यह प्राणी की स्वाभाविक प्रवृत्ति है।
मास्लो का विश्वास था कि व्यक्ति इसी कारण प्रेम नहीं करता कि वह इसकी विशेष आवश्यकता या कमी अनुभव करता है बल्कि वह इसलिये भी प्रेम करता है क्योंकि उसमें प्रेम की इतनी बहुलता होती है कि वह उसे दूसरों को बाँटना चाहता है।
प्रेम देने की क्षमता व्यक्ति के बचपन के अनुभवों पर निर्भर करती है। यदि किसी को बचपन में माता-पिता तथा बड़ों से पर्याप्त प्रेम नहीं मिला है तो वह जीवन भर प्रेम की कमी अनुभव करता है।
यहाँ प्रेम से ‘सेक्स’ या ‘कामेच्छा’ का अर्थ नहीं है। सेक्स का सम्बन्ध व्यक्ति की दैहिक आवश्यकता से है किन्तु यहाँ प्रेम का संवेगात्मक पक्ष लिया गया है।
प्रेम की आवश्यकता का अनुभव उन व्यक्तियों के जीवन से ज्ञात होता है, जो परिवार-विहीन, मित्र-विहीन हैं या पत्नी तथा बालकों से पृथक रहकर एकान्त जीवन बिताते हैं।
भौतिकवाद का एक अभिशाप यह भी है इसने व्यक्ति को एक-दूसरे से पृथक कर स्वार्थी जीवन बिताने पर मजबूर कर दिया है, जहाँ व्यक्ति परोपकार, त्याग, सहानुभूति तथा संयुक्त परिवार से दूर होता जा रहा है वहीं पारिवारिक तथा सामाजिक सम्बन्ध बिखरते जा रहे हैं। बिखरे परिवार इसी का परिणाम हैं।
अभाव आवश्यकताएँ (Deficiency Needs, D-needs)
- प्रथम आवश्यकता – शारीरिक आवश्यकता (First Need – Physical Need)
- द्वितीय आवश्यकता – सुरक्षा आवश्यकता (Second Need – Safety Need)
- तृतीय आवश्यकता – अपनत्व एवं प्यार की आवश्यकता (Third Need – Love and Belongingness)
- चतुर्थ आवश्यकता – सम्मान की आवश्यकता (Fourth Need – Esteem Need)
अभिवृद्धि की आवश्यकताएँ अथवा आत्म विकास एवं आत्म-वास्तवीकरण की आवश्यकताएँ (Growth needs, meta needs, being needs and B-needs)
- पंचम आवश्यकता – आत्म-वास्तवीकरण (Fifth Need – Self-Actualization)
- छठी आवश्यकता – ज्ञान और समझ (Sixth Need – Knowledge and Understanding)
- सातवीं आवश्यकता – सौन्दर्य आवश्यकताएँ (Seventh Need – Aesthetic Needs)