आत्मवास्तवीकरण की आवश्यकता के उपरान्त ज्ञान एवं समझ की आवश्यकता बलवती होती है। मास्लो के अनुसार अभावजनीन आवश्यकताओं (Deficiency needs) से अभिप्रेरित व्यक्तियों की तुलना में अभिवृद्धि की आवश्यकताओं (Growth needs) से अभिप्रेरित व्यक्तियों को सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्ति की आवश्यकता अधिक होती है।
ऐसे व्यक्ति सत्य एवं अभिज्ञान के स्वरूप को जानना चाहता है। वह जीवन एवं ब्रह्माण्ड के रहस्य को जानने को उत्सुक रहता है। उसमें इस विश्व की अव्यवस्था, अस्पष्टता एवं रहस्य को खोजने की चाह होती है।
उसी से प्रेरित हो वह सदृश्य, अपूर्व एवं अमूर्त सत्ता की खोज करता है। वह विभिन्नता में एकता एवं अव्यवस्था में व्यवस्था खोजना चाहता है। इस ज्ञानात्मक आवश्यकता की अतृप्ति पर मनोव्याधि उत्पन्न होती है तथा विरक्ति या उदासीनता की भावना पैदा होती है।
यह ज्ञान प्राप्ति की आवश्यकता चिन्ता एवं डर जैसी नकारात्मक भावना का विरोध करती है। कुछ व्यक्तियों में यह ज्ञान लिप्सा एवं उत्सुकता इतनी बलवती होती है कि वे जीवन को खतरे में भी डालकर इनकी पूर्ति करते हैं।
मास्लो यह निश्चय नहीं कर सके कि यह ज्ञान एवं समझ की आवश्यकता सभी व्यक्तियों में समान रूप से होती है या इसमें भिन्नता है।
यद्यपि यह स्पष्ट है कि उत्सुकता, खोज एवं अधिक ज्ञान प्राप्ति की इच्छा तीव्र बुद्धि के व्यक्ति में अधिक होती है, जो तथ्यों को अधिक गहराई से समझना चाहते हैं, व्यवस्थित करना चाहते हैं, विश्लेषण करना चाहते हैं एवं उनमें सम्बन्ध स्पष्ट करना चाहते हैं।
अभाव आवश्यकताएँ (Deficiency Needs, D-needs)
- प्रथम आवश्यकता – शारीरिक आवश्यकता (First Need – Physical Need)
- द्वितीय आवश्यकता – सुरक्षा आवश्यकता (Second Need – Safety Need)
- तृतीय आवश्यकता – अपनत्व एवं प्यार की आवश्यकता (Third Need – Love and Belongingness)
- चतुर्थ आवश्यकता – सम्मान की आवश्यकता (Fourth Need – Esteem Need)
अभिवृद्धि की आवश्यकताएँ अथवा आत्म विकास एवं आत्म-वास्तवीकरण की आवश्यकताएँ (Growth needs, meta needs, being needs and B-needs)
- पंचम आवश्यकता – आत्म-वास्तवीकरण (Fifth Need – Self-Actualization)
- छठी आवश्यकता – ज्ञान और समझ (Sixth Need – Knowledge and Understanding)
- सातवीं आवश्यकता – सौन्दर्य आवश्यकताएँ (Seventh Need – Aesthetic Needs)