जब शारीरिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हो जाती है तब सुरक्षा की आवश्यकताओं का प्रादुर्भाव होता है। इनका मुख्य सम्बन्ध नियम एवं कानून से सुरक्षा बनाये रखना होता है।
व्यक्ति जीवन बीमा की पालिसी लेकर, मकान बनाकर एवं जमीन खरीदकर अपनी सुरक्षा की आवश्यकता की सन्तुष्टि करते हैं। इनका सम्बन्ध जीवन को भौतिक एवं मनोवैज्ञानिक सुरक्षा प्रदान करने से है, जीवन में स्थायित्व लाने से, आत्मनिर्भरता से तथा डर से मुक्त रहने से है।
यह आवश्यकताएँ व्यक्ति के विचार एवं व्यवहार को सर्वाधिक प्रभावित करने लगती हैं। मुख्य रूप से छोटे बालकों में ये आवश्यकताएँ अधिक दृष्टिगोचर होती है; जैसे-जैसे व्यक्ति बड़ा होता है तथा प्रौढ़ होता है ये आवश्यकताएँ ओझल होने लगती हैं।
इन्हीं आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु व्यक्ति स्वतः उन क्रियाओं एवं व्यवहारों के प्रति अभिप्रेरित होता है, जिनसे इनकी पूर्ति होती है; जैसे- सुरक्षा के प्रबन्ध करना, धन दौलत एकत्रित करना तथा जमीन जायदाद खरीदना आदि जिससे वर्तमान के साथ-साथ भविष्य भी सुरक्षित हो जाये।
इस आवश्यकता की दृष्टि से बालकों के वातावरण को नियन्त्रित करना अति आवश्यक है। बालक को आभास होना चाहिये कि वे शारीरिक रूप से तथा मनोवैज्ञानिक दृष्टि से सुरक्षित हैं। उन्हें किसी भी प्रकार के डर में रहने से बचाना चाहिये।
ये सुरक्षा की आवश्यकताएँ व्यक्ति को गतिशील एवं क्रियाशील बनाने में एक शक्तिशाली प्रेरक का कार्य करती हैं।
अभाव आवश्यकताएँ (Deficiency Needs, D-needs)
- प्रथम आवश्यकता – शारीरिक आवश्यकता (First Need – Physical Need)
- द्वितीय आवश्यकता – सुरक्षा आवश्यकता (Second Need – Safety Need)
- तृतीय आवश्यकता – अपनत्व एवं प्यार की आवश्यकता (Third Need – Love and Belongingness)
- चतुर्थ आवश्यकता – सम्मान की आवश्यकता (Fourth Need – Esteem Need)
अभिवृद्धि की आवश्यकताएँ अथवा आत्म विकास एवं आत्म-वास्तवीकरण की आवश्यकताएँ (Growth needs, meta needs, being needs and B-needs)
- पंचम आवश्यकता – आत्म-वास्तवीकरण (Fifth Need – Self-Actualization)
- छठी आवश्यकता – ज्ञान और समझ (Sixth Need – Knowledge and Understanding)
- सातवीं आवश्यकता – सौन्दर्य आवश्यकताएँ (Seventh Need – Aesthetic Needs)