
संदेह और भ्रांतिमान
जहां समानता के कारण अनिश्चय की स्थिति बनी रहती है वहां सन्देह अलंकार होता है। यथा-
वीर रस वीर तरवारि सी उघारी है।
हनुमान की जलती हुई पूंछ को देखकर ऐसा लगता है था मानो आकाश मार्ग में अनेक धूमकेतु हैं या ऐसा लगता था मानो वीररस रूपी वीर ने अपनी तलवार म्यान से बाहर निकाली है जो चारों और चमक रही है।
भ्रान्तिमान अलंकार में समानता के कारण एक वस्तु में दूसरी वस्तु का भ्रम हो जाता है यथा-
बीज दाड़िम का समझकर भ्रान्ति से।
देखकर सहसा हुआ शुक मौन है।
सोचता है अन्य शुक यह कौन है?
उर्मिला की नासिका की नथ का मोती अधरों की लालिमा से अनारदाने की भांति लग रहा है। उसे अनार का बीज समझकर यह तोता यह सोच रहा है कि यह नासिका रूपी तोते की चोंच में अनार का दाना है। इसीलिए यह पिंजरे का तोता सोच रहा है कि यह दूसरा तोता कौन सा है।
अन्य अलंकार-युग्म में अंतर
- यमक और श्लेष अलंकार में अंतर
- अनुप्रास और यमक अलंकार में अंतर
- उपमा और रूपक अलंकार में अंतर
- उपमा और उत्प्रेक्षा अलंकार में अंतर
- संदेह और भ्रांतिमान अलंकार में अंतर
सम्पूर्ण हिन्दी और संस्कृत व्याकरण
- संस्कृत व्याकरण पढ़ने के लिए Sanskrit Vyakaran पर क्लिक करें।
- हिन्दी व्याकरण पढ़ने के लिए Hindi Grammar पर क्लिक करें।
पढ़ें सम्पूर्ण हिंदी व्याकरण (Hindi Grammar):
- भाषा
- हिन्दी भाषा
- वर्ण
- शब्द
- पद
- काल
- वाक्य
- विराम चिन्ह
- संज्ञा
- सर्वनाम
- विशेषण
- क्रिया
- क्रिया विशेषण
- समुच्चय बोधक
- विस्मयादि बोधक
- वचन
- लिंग
- कारक
- पुरुष
- उपसर्ग
- प्रत्यय
- अव्यय
- संधि
- रस
- छन्द
- अलंकार
- समास
- विलोम शब्द
- तत्सम-तद्भव शब्द
- पर्यायवाची शब्द
- अनेक शब्दों के लिए एक शब्द
- एकार्थक शब्द
- अनेकार्थक शब्द
- युग्म शब्द
- शुद्ध अशुद्ध
- मुहावरे
- लोकोक्तियाँ
- पत्र लेखन
- निबंध लेखन