अनुप्रास और यमक अलंकार में अंतर | Anupras aur Yamak Mein Antar

अनुप्रास और यमक

अनुप्रास अलंकार में किसी ‘वर्ण‘ की आवृत्ति बार-बार होती है। अर्थात जब किसी वर्ण की बार-बार आवृत्ति होने से जो चमत्कार होता है उसे अनुप्रास अलंकार कहते है। जैसे-

तरनि-तनूजा तट तमाल तरूवर बहु छाये।

उपर्युक्त उदाहरण में ‘’ वर्ण की लगातार आवृत्ति है, इस कारण से इसमें अनुप्रास अलंकार है।

यमक अलंकार में एक ‘शब्द‘ की आवृत्ति बार-बार होती है, परंतु उनके अर्थ भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे-

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर

इस उदाहरण में ‘मनका’ शब्द का दो बार प्रयोग किया गया है। पहली बार ‘मनका’ का आशय “माला के मोती” से है और दूसरी बार ‘मनका’ से आशय है “मन की भावनाओ” से।

Anupras aur Yamak Alankar Mein Antar

अनुप्रास और यमक अलंकार में अंतर
अनुप्रास अलंकार यमक अलंकार
अनुप्रास अलंकार में किसी ‘वर्ण’ की आवृत्ति बार-बार होती है। यमक अलंकार में एक ‘शब्द’ की आवृत्ति बार-बार होती है।
अनुप्रास में वर्ण की आवृत्ति केवल शब्दों को अलंकृत करती है, इनका कोई अर्थ संबंधी नियम नहीं होता है। जबकि यमक में वर्ण की आवृत्ति शब्दों के अलंकरण के साथ-साथ, इनके अर्थ संबंधी नियम होते है।
उदाहरण-

बंदऊँ गुरुपद पदुम परागा।
सुरुचि सुवास सरस अनुरागा।

उदाहरण-

तीन बेर खाती थी,
वह तीन बेर खाती है।

पहले ही बताया जा चुका है कि अनुप्रास में वर्ण की आवृत्ती सिर्फ अलंकरण करती हैं। अर्थ संबंधी नियम नहीं होते हैं। उपर्युक्त उदाहरण में “बेर” शब्द दो बार प्रयुक्त हुआ, प्रथम बेर का अर्थ हैं- किसी कार्य को कितनी बार किया, इसमें तीन बार खाना खाने से अर्थ है। और दूसरे बेर का अर्थ है एक फल, जो किसी ने कितने खाए, इस वाक्य में तीन बेर खाए बताया गया है।

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