स्वभावोक्ति अलंकार
परिभाषा– बालकादि की अपनी स्वाभाविक क्रिया अथवा रूप का वर्णन ही स्वभावोक्ति अलंकार है। अर्थात किसी वस्तु के स्वाभाविक वर्णन को स्वभावोक्ति अलंकार कहते हैं।
यह अलंकार, हिन्दी व्याकरण(Hindi Grammar) के Alankar के भेदों में से एक हैं।
स्वभावोक्ति अलंकार के उदाहरण
1.
इहि बानिक मो मन बसौ , सदा बिहारीलाल।।
2.
लगनी लटकी आलीर गरे चित खटकती नित आनी।।
स्पष्टीकरण– नायक नायिका की सखी से कहता है कि उस नायिका के भोलेपन की चितवन गोरे मुख की हँसी और वह लटक लटक कर सखी के गले लिपटना ये चेष्टाएँ नित्य मेरे चित्त में खटका करती रहती हैं, यहाँ नायिका के चित्रित आँगिक व्यापारों में सभी स्वाभाविक हैं, इसमें वस्तु दृष्य अथवा चेस्टाओं का स्वाभाविक अंकन हुआ है।
स्वभावोक्ति अलंकारः संस्कृत
“स्वभावोक्तिस्तडिम्भादेः स्वक्रियारूप वर्णनम् ” – पालकादि की अपनी स्वाभाविक क्रिया अथवा रूप का वर्णन ही स्वभावोक्ति
अलंकार है।
उदाहरणस्वरूप :
2.
रासज्यामुग्नकण्ठो मुखमरसि सटां धूलिधम्रा विधूय ।
घासाग्रासाभिलाषादनवरतचलपोथतण्डस्तरङ्गो
मन्दं शब्दायमानो विलिखति शयनादुत्थितः मांखुरेण ।।
स्पष्टीकरण– यहाँ घोड़े की स्वाभाविक क्रियाओं के वर्णन से स्वभावोक्ति अलंकार की छटा दिखती है।
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