वक्रोक्ति अलंकार – परिभाषा, अर्थ, पहचान, भेद और उदाहरण

Vakrokti Alankar

वक्रोक्ति अलंकार (Vakrokti Alankar) Hindi Grammar के अलंकार के शब्द अलंकार 6 भेदों के भेदों में से एक हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि वक्रोक्ति अलंकार क्या है? वक्रोक्ति अलंकार की परिभाषा (Vakrokti alankar in hindi) इसके भेद या प्रकार और वक्रोक्ति अलंकार की पहचान Vakrokti Alankar ke udaharan सहित की जानकारी आगे दी जा रही है।

वक्रोक्ति अलंकार की परिभाषा : Vakrokti Alankar Ki Paribhasha

वक्रोक्ति शब्द ‘वक्र+उक्ति’ के योग से बना है, वक्र का अर्थ है- ‘टेढ़ा‘, और उक्ति का अर्थ- ‘कथन‘; अर्थात “टेढ़ा कथन“। अतः जहाँ पर वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का श्रोता अलग अर्थ निकाले, उसे वक्रोक्ति अलंकार कहते है। इस अलंकार का प्रयोग प्रायः व्यंग्यात्मक, कटाक्ष एवं हंसी मजाक आदि के रूप में होता है। जैसे:-

मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू।
तुमहिं उचित तप मोकहँ भोगू।

इस उदाहरण में सीता राम से कहती है- “मैं सुकुमारी हूँ और आप वन जाने के योग्य हैं; तुम्हारे लिए तप का रास्ता उचित है, मुझे भोग के रास्ते पर चलने को कह रहे हैं।” यहाँ सीता के कहने के विशेष प्रकार यानी स्वर विकार (काकु) के कारण यह ध्वनित हो रहा है कि मैं ही सुकुमारी नहीं हूँ, आप भी सुकुमार हैं। अतः स्पष्ट है यहाँ वक्रोक्ति अलंकार है। अर्थात-

“जब वक्ता के शब्दों का श्रोता अन्य अर्थ समझे, और उस अर्थ के अनुसार व्यवहार या कार्य करे, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है।”

अन्य शब्दों में-

“ऐसा काव्य जिसमें सुनने वाला किसी के कहे गए शब्दों के इतर अन्य अर्थ की कल्पना करे तो इसे वक्रोक्ति अलंकार कहते हैं।”

वक्रोक्ति अलंकार में श्लेष अलंकार की तरह ‘शब्द’ और ‘अर्थ’ दोनों में चमत्कार होने के कारण यहाँ भी विवाद है कि यह शब्दालंकार में माना जाय या अर्थालंकार में, आचार्य जयदेव ने इसका वर्गीकरण करते समय इसे ‘अर्थालंकार’ में रखा था। वक्रोक्ति अलंकार में ‘श्लेष’ तथा ‘काकु’ से वाच्यार्थ बदलने की शक्ति होती है। ‘काकु’ और ‘श्लेष’ शब्द-शक्ति के ही अंग होते हैं। इसीलिए वक्रोक्ति को मम्मटाचार्य सहित अन्य आचार्यो ने भी ‘शब्दालंकार’ में ही स्थान दिया है।

आचार्य भामह ने ‘वक्र+उक्ति’ को ‘काम्य अलंकार‘ मानकर और आचार्य कुन्तक ने वक्रोक्ति को ‘काव्य का जीवन‘ मानकर इस अलंकार को हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक महत्त्व दिया है।

वक्रोक्ति अलंकार के अंग

वक्रोक्ति अलंकार के चार आवश्यक अंग है-

  • वक्ता का कथन
  • कथन का स्पष्ट अर्थ
  • कथन का अन्य कल्पनीय अर्थ
  • कल्पनीय अर्थ के अनुसार व्यवहार या जबाब

उदाहरण के लिए-

आये हू मधुमास के प्रियतम ऐहैं नाहिं।
आये हू मधुमास के प्रियतम ऐहैं नाहि ?

स्पष्टीकरण– विरह में डूबी प्रेमिका कहती है कि बसन्त आने पर भी प्रियतम ‘नहीं आयेंगे।’ सखी उन्हीं शब्दों द्वारा कल्पित करती है कि क्या प्रियतम नहीं आयेंगे? अर्थात् “अवश्य आयेंगे?”।

वक्रोक्ति अलंकार के भेद : Vakrokti Alankar Ke Bhed

रुद्रटाचार्य ने इसके दो भेद बताए हैं- (1) काकु और (2) श्लेष। अतः वक्रोक्ति अलंकार के दो प्रकार होते हैं। आगे Vakrokti Alankar Ke Bhed दिए जा रहें हैं-

  1. काकु वक्रोक्ति अलंकार (काकुमूला – ध्वनि-विकार/आवाज में परिवर्तन)
  2. श्लेष वक्रोक्ति अलंकार (श्लेषमूला – चिपका अर्थ)

1. काकु वक्रोक्ति अलंकार (काकुमूला – ध्वनि-विकार/आवाज में परिवर्तन)

काकु वक्रोक्ति का शाब्दिक अर्थ “ध्वनि-विकार या आवाज में परिवर्तन” होता है। अतः “जब वक्ता के द्वारा बोले गये शब्दों का उसकी कंठ ध्वनी के कारण श्रोता कुछ और अर्थ निकाले वहाँ पर काकु वक्रोक्ति अलंकार होता है।” जैसे-

माँ सीता द्वारा कही यह बात काकु वक्रोक्ति अलंकार का उदाहरण है-

मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू।
तुमहिं उचित तप मोकहँ भोगू।

विरह में डूबी प्रेमिका द्वारा कही यह बात भी काकु वक्रोक्ति अलंकार का उदाहरण है-

आये हू मधुमास के प्रियतम ऐहैं नाहिं।
आये हू मधुमास के प्रियतम ऐहैं नाहि ?

2. श्लेष वक्रोक्ति अलंकार (श्लेषमूला – चिपका अर्थ)

श्लेष का शाब्दिक अर्थ “चिपका” होता है। अतः “जहाँ पर श्लेष की वजह से वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का अलग अर्थ निकाला जाये वहाँ श्लेष वक्रोक्ति अलंकार होता है।” जैसे-

श्लेष वक्रोक्ति अलंकार के उदाहरण-

को तुम हौ इत आये कहाँ घनस्याम हौ तौ कितहूँ बरसो ।
चितचोर कहावत है हम तौ तहां जाहुं जहाँ धन सरसों।।

श्लेष वक्रोक्ति दो प्रकार के होते है-

  1. भंगपद श्लेषवक्रोक्ति अलंकार
  2. अभंगपद श्लेषवक्रोक्ति अलंकार

भंगपद श्लेषवक्रोक्ति अलंकार-

अयि गौरवशालिनी, मानिनि, आज
सुधास्मित क्यों बरसाती नहीं?

उपर्युक्त उदाहरण में पद ‘गौरवशालिनी’ में दो अर्थ (एक ‘हे गौरवशालिनी’ और दूसरा ‘गौः, अवशा, अलिनी’) श्लिष्ट होने के कारण यहाँ श्लेषवक्रोक्ति है। और, इस ‘गौरवशालिनी’ पद को ‘गौः+अवशा+अलिनी’ में तोड़कर दूसरा श्लिष्ट अर्थ लेने के कारण यहाँ भंगपद श्लेषवक्रोक्ति अलंकार है।

निज कामिनी को प्रिय, गौ, अवशा,
अलिनी भी कभी कहि जाती कहीं?

अभंगपद श्लेषवक्रोक्ति अलंकार-

एक कबूतर देख हाथ में पूछा, कहाँ अपर है?
उसने कहा, ‘अपर’ कैसा ?वह उड़ गया, सपर है।

उपर्युक्त उदाहरण में अपर और सपर के अर्थभेद से वक्रोक्ति अलंकार संभव हुआ है। पहले अपर का अर्थ दूसरा है जबकि श्रोता द्वारा दूसरे अपर का अर्थ परहीन (बिना पंख का) लिया गया है। यह जहाँगीर ने नूरजहाँ से वार्तालाप का हिस्सा है। यहाँ ‘अपर’ शब्द को बिना तोड़े ही ‘दूसरा’ और ‘बेपरवाला’ दो अर्थ लगने से अभंगश्लेष वक्रोक्ति अलंकार है।

कौन द्वार पर, राधे मैं हरि।
क्या कहा यहाँ ? जाओ वन में।

कौन तुम ? मैं घनश्याम।
तो बरसो कित जाय।

भिक्षुक गो कितको गिरिजे?
सो तो मांगन को बलि द्वार गयो री।

उपर्युक्त उदाहरण में लक्ष्मीजी हास परिहास में पार्वती से पूछती है कि हे गिरिजा तुम्हारा भिक्षुक अर्थात शिव कहाँ गए हैं। पार्वती भी परिहास में उत्तर देती हैं कि है लक्ष्मीजी भिक्षुक अर्थात विष्णु तो बलि के द्वार मांगने गये है।

वक्रोक्ति अलंकार के उदाहरण : Vakrokti Alankar Ke Udaharan

आगे Vakrokti Alankar Ke Udaharan स्पष्टीकरण सहित आगे दिए जा रहे हैं-

वक्रोक्ति अलंकार का 1 उदाहरण:

कह अंगद सलज्ज जग माहीं।
रावण तोहि समान कोउ नाहीं।
कह कपि धर्मसीलता तोरी।
हमहुँ सुनी कृत परतिय चोरी।।

उपर्युक्त उदाहरण काकु वक्रोक्ति अलंकार अर्थात ध्वनि-विकार/आवाज में परिवर्तन का उदाहरण है।

वक्रोक्ति अलंकार के 2 उदाहरण:

सो भुज बल राख्यो उर घाली।
जीतेउ सहसबाहु बलि बाली।

उपर्युक्त उदाहरण उस समय का है जब रावण ने अंगद से अपनी भुजाओं की शक्ति की डिंग मारी तब अंगदजी कहते हैं। यह भी काकु वक्रोक्ति का शानदार उदाहराण है।

वक्रोक्ति अलंकार के 3 उदाहरण:

मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू।
तुमहिं उचित तप मो कहँ भोगू।।

उपर्युक्त उदाहरण उस समय का है जब राम वन प्रवास को जा रहे थे तब माता सीता यह कथन भी काकु वक्रोक्ति का शानदार उदाहराण है।

वक्रोक्ति अलंकार के 4 उदाहरण:

काह न पावक जारि सक, का न समुद्र समाइ।
का न करै अबला प्रबल, केहि जग कालु न खाइ॥

उपर्युक्त उदाहरण का दोहा काकु वक्रोक्ति का अप्रतीम उदाहरण है।

वक्रोक्ति अलंकार के 5 उदाहरण:

लिखन बैठि जाकी सबिहि, गहि गहि गरब गरूर।
भए न केते जगत के चतुर चितेरे कूर॥

वक्रोक्ति अलंकार के 6 उदाहरण:

एक कह्यो वर देत सिव, भाव चाहिए मीत।
सुनि कह कोउ, भोले भवहिं भाव चाहिए मीत॥

वक्रोक्ति अलंकार के 7 उदाहरण:

राम साधु तुम साधु सुजाना।
राम मातु भलि मैं पहिचाना॥

वक्रोक्ति अलंकार के 8 उदाहरण:

प्यारी काहे आज तुम वामा हो कतरात,
हम तो हैं वामा सदा का अचरज की बात॥

वक्रोक्ति अलंकार के 9 उदाहरण:

लिखन बैठि जाकी सबी, गहि गहि गबर गरूर।
भये न केते जगत के चतुर चितेरे क्रुर॥

वक्रोक्ति अलंकार के 10 उदाहरण:

को तुम हौ इत आये कहाँ घनस्याम हौ तौ कितहूँ बरसो।
चितचोर कहावत है हम तौ तहां जाहुं जहाँ धन सरसों।।

FAQs

1. वक्रोक्ति अलंकार किसे कहते हैं?

जिस काव्य द्वारा कही गई बात के इतर श्रोता किसी अन्य अर्थ की कल्पना करे, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है। जैसे- राम साधु तुम साधु सुजाना। राम मातु भलि मैं पहिचाना॥

2. निम्न पक्तियों में कौन सा अलंकार है-
“मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू।
तुमहिं उचित तप मोकहँ भोगू।”

उपर्युक्त पंक्तियों में वक्रोक्ति अलंकार है।

3. वक्रोक्ति अलंकार के कितने भेद है?
वक्रोक्ति अलंकार के कुल 2 भेद है, जो कि निम्नलिखित है- (1) काकु वक्रोक्ति अलंकार, (2) श्लेष वक्रोक्ति अलंकार।

4. काकु वक्रोक्ति अलंकार किसे कहते हैं?
जब वक्ता के द्वारा बोले गये शब्दों का उसकी कंठ ध्वनी के कारण श्रोता कुछ और अर्थ निकाले वहाँ पर काकु वक्रोक्ति अलंकार होता है।

5. श्लेष वक्रोक्ति अलंकार क्या है?
जहाँ पर श्लेष की वजह से वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का अलग अर्थ निकाला जाये वहाँ श्लेष वक्रोक्ति अलंकार होता है।

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