उपलब्धि अभिप्रेरणा का सिद्धांत एटकिंसन और मैक्लीलैण्ड ने प्रतिपादित किया। इस सिद्धांत में एटकिंसन ने दो प्रेरक बताये है; सफलता प्राप्त करने का प्रेरक और असफलता से बचने का प्रेरक।
उपलब्धि अभिप्रेरणा की अवधारणा (Concept of Achievement Motivation)
अभिप्रेरणा से सम्बन्धित नयी विचारधारा का नाम उपलब्धि-अभिप्रेरणा (Achievement motivations) है। इसका सर्वप्रथम प्रतिपादन अमेरिका में किया गया। उपलब्धि-अभिप्रेरणा की प्रकृति व्यक्तिगत होती है और आधारभूत लक्ष्य उपलब्धि होता है। किसी भी प्रकार की उपलब्धि के लिये काम को करने की अभिप्रेरणा को उपलब्धि अभिप्रेरणा कहा जाता है अर्थात् कठिन कार्यों में निपुणता प्राप्त करने की आशा करना ही उपलब्धि-अभिप्रेरणा है।
उपलब्धि-अभिप्रेरणा में उपलब्धि द्वारा मान प्राप्त करने का व्यावहारिक प्रयत्न होता है। सफलता भी उपलब्धि का ही एक प्रकार है। उपलब्धि-अभिप्रेरणा के विपरीत भी एक प्रक्रिया है, जिसे “पलायन अभिप्रेरणा (Avoidance motivations)” कहते हैं। पलायन अभिप्रेरणा असफलता से दूर भागने की प्रवृत्ति होती है। दोनों प्रकार की अभिप्रेरणा युक्त लोगों का विशेष प्रकार का आकांक्षा स्तर होगा।
उपलब्धि-अभिप्रेरणा की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि ऐसी अभिप्रेरणा से युक्त लोगों का आकांक्षा स्तर बहुत ऊँचा होता है। ऐसे लोग सफलता प्राप्त करके अधिक प्रसन्न होते हैं। ऐसे लोगों में आगे बढ़ने की कामना, सफलता की इच्छा और सम्बन्धित कार्य में अधिक दृढ़ता से जुटने की प्रवृत्ति पायी जाती है।
इसके विपरीत “पलायन अभिप्रेरणा” से युक्त व्यक्तियों का आकांक्षा स्तर कम होता है। ऐसे व्यक्ति कठिन कार्यों को या जिनमें असफलता का भय हो उन कार्यों को अपने हाथ में नहीं लेते। वे सदा सरल कार्यों में ही रुचि लेते हैं।
एटकिन्सन तथा मैकक्लीलैण्ड का उपलब्धि अभिप्रेरणा का सिद्धान्त
Atkinson and McClelland’s Theory of Achievement Motivation
उपलब्धि अभिप्रेरणा सिद्धान्त का प्रतिपादन डेविड. सी. मैकक्लीलैण्ड (D. C. McClelland) ने सन् 1961 में किया। इसकी व्याख्या उनकी पुस्तक ‘द एचीविंग सोसाइटी’ (The achieving society)” में की गयी है। उनका विश्वास था कि व्यक्ति के मूल विश्वास एवं दृष्टिकोण उसकी उपलब्धि को निश्चित करते हैं। इसीलिये भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के उपलब्धि अभिप्रेरणा स्तर में अन्तर होता है।
उपलब्धि अभिप्रेरणा का आशय व्यक्ति के उन विशिष्ट स्थायी लक्षणों से है, जो उसे किसी कार्य को केवल कार्य के लिये करने में विशिष्टता प्राप्त करने के लिये प्रेरित करते हैं या शक्ति प्रदान करते हैं।
उपलब्धि अभिप्रेरणा की परिभाषाएँ एवं अर्थ
परिभाषाओं के आधार पर उपलब्धि अभिप्रेरणा को निम्नलिखित प्रकार से देखा जा सकता है-
जे. डब्ल्यू. ऐटकिन्सन और फैदर (J.W. Atkinson and N.T. Feather) के अनुसार, “उपलब्धि अभिप्रेरक एक ऐसी छिपी हुई विशेषता है, जो प्रत्यक्ष प्रयासों में तभी स्पष्ट होती है जब व्यक्ति अपने कार्य को व्यक्तिगत रूप से कुछ पाने का साधन समझता है।”
मैकडेविड और हरारी (McDavid and Harari) के अनुसार, “मनोवैज्ञानिक निर्देशन की उस प्रणाली को उपलब्धि प्रेरणा कहते हैं, जिसमें मानवीय क्रिया क्षमता, आक्रमणशीलता तथा प्रभुता के साथ सम्बन्धित हो।”
होपे (Hoppe) के अनुसार, “वे व्यक्ति जिनकी उपलब्धि की आवश्यकता अधिक सुदृढ़ होती है वे अपने आप में सुधार करने के लिये अपने ही कौशलों का प्रयोग करते हैं। वे ऐसे कार्यों को प्राथमिकता देते हैं, जिनको करने में कुछ प्रयासों की आवश्यकता होती है परन्तु ये कार्य ऐसे नहीं होने चाहिये जिनका सम्पादन असम्भव हो। उपलब्धि प्राप्त करने वाले अपने लिये सामान्यतः कुछ लक्ष्यों का निर्धारण सफलता के एक प्रतीक के रूप में करते हैं। वे उच्च कोटि का कार्य करना चाहते हैं तथा दूसरों से सकारात्मक पुनर्बलन प्राप्त करने में सुख की अनुभूति प्राप्त करते हैं।”
इस प्रकार उपलब्धि-अभिप्रेरणा में उपलब्धि द्वारा मान प्राप्त करने का व्यावहारिक प्रयत्न होता है। सफलता भी उपलब्धि का ही एक प्रकार है। उपलब्धि-अभिप्रेरणा के विपरीत भी एक प्रक्रिया है, जिसे पलायन अभिप्रेरणा (Avoidance motivations) कहते हैं। पलायन अभिप्रेरणा असफलता से दूर भागने की प्रवृत्ति होती है। दोनों प्रकार की अभिप्रेरणा युक्त लोगों का विशेष प्रकार का आकांक्षा स्तर होता है।
उपलब्धि-अभिप्रेरणा की विशेषताएँ
उपलब्धि-अभिप्रेरणा की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि ऐसी अभिप्रेरणा से युक्त लोगों का आकांक्षा स्तर बहुत ऊँचा होता है। ऐसे लोग सफलता प्राप्त करके अधिक प्रसन्न होते हैं। ऐसे लोगों में आगे बढ़ने की कामना, सफलता की इच्छा और सम्बन्धित कार्य में अधिक दृढ़ता से जुटने की प्रवृत्ति पायी जाती है। इसके विपरीत पलायन अभिप्रेरणा’ से युक्त व्यक्तियों का आकांक्षा स्तर कम होता है। ऐसे व्यक्ति कठिन कार्यों को या जिनमें असफलता का भय हो उन कार्यों को अपने हाथ में नहीं लेते। वे सदा सरल कार्यों में ही रुचि लेते हैं।
उपलब्धि-अभिप्रेरणा का सिद्धान्त
उपलब्धि-अभिप्रेरणा का सिद्धान्त हॉरवर्ड विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक डेविड. सी. मैकक्लीलैण्ड (David C. McClelland) ने भी सन् 1961 में प्रतिपादित किया। उनका विश्वास था कि व्यक्ति के मूल विश्वास एवं दृष्टिकोण उसकी उपलब्धि को निश्चित करते हैं।
इस प्रकार उपलब्धि अभिप्रेरणा से आशय व्यक्ति के उन विशिष्ट स्थायी लक्षणों से है, जो उसे किसी कार्य को करने हेतु विशिष्टता प्रदान करने में अभिप्रेरणा प्रदान करते हैं।
मैकक्लीलैण्ड तथा एटकिन्सन ने यह स्पष्ट किया है कि भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में उपलब्धि की आवश्यकता में भिन्नता होती है, जिसके कारण उपलब्धि एवं सफलता के प्रति अभिप्रेरणा एवं उत्साह में भी अन्तर होता है।
मैकक्लीलैण्ड के अनुसार, प्रेरक वातावरण जन्य होते हैं अर्थात् विशिष्ट वातावरण में विशिष्ट प्रकार के प्रेरक आकांक्षा, रुचि,लक्ष्य, उद्देश्य, आवश्यकता एवं मूल्य मानव व्यवहारों को प्रभावित करते हैं।
मैकक्लीलैण्ड के अनुसार यदि उपलब्धि की आवश्यकता निरन्तर बनी रहती है तो उपलब्धि प्राप्त करने की इच्छा भी प्रबल होती है। उपलब्धि की बलवती आवश्यकता के लिये व्यक्ति में कुछ गुणों को विकसित करना होता है।
मैकक्लीलैण्ड ने इस प्रकार की 12 परिकल्पनाएँ प्रतिपादित की जो व्यक्ति में उपलब्धि प्राप्ति के गुण, व्यक्तिगत अध्ययन, लक्ष्य निर्धारण एवं अन्तर्व्यक्ति सहयोग के द्वारा उपलब्धि की आवश्यकता को विकसित करती है। उनके अनुसार स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना भी अधिक उपलब्धि के लिये प्रेरणादायी होती है।
एटकिन्सन का उपलब्धि-अभिप्रेरणा सिद्धान्त
मैकक्लीलैण्ड के शिष्य एटकिन्सन (Atkinson) ने सन् 1978 में उपलब्धि अभिप्रेरणा पर शोध कार्य किया तथा विस्तार से इस सिद्धान्त का निरूपण किया। एटकिन्सन के अनुसार, “उपलब्धि अभिप्रेरणा व्यवहार को दिशा, तीव्रता एवं निरन्तरता प्रदान करती है।”
यह प्रवृत्ति उस समय अधिक पायी जाती है जहाँ सफलता प्राप्ति की सम्भावना 0.5 होती है। इस सिद्धान्त के निम्नलिखित तीन पद (Steps) हैं-
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सफलता प्राप्त करने का अभिप्रेरक (Motive to seek success)
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असफलता से दूर रहने का अभिप्रेरक (Motive to avoid failure)
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उपलब्धि अभिप्रेरणा (Achievement motivation)
जिन छात्रों की उपलब्धि आवश्यकता अधिक होती है वे ऐसे कार्यों के प्रति अभिप्रेरित होते हैं, जिनमें सफल होने की पर्याप्त सम्भावना होती है।
एटकिन्सन ने यह स्पष्ट किया कि उपलब्धि-प्रेरित कार्य को व्यक्ति इस आशा से करता है कि उसका मूल्यांकन किसी उत्तम कार्य के समकक्ष किया जायेगा। उपलब्धि-अभिप्रेरणा का मापन उद्दीपकों की अनुक्रियाओं के बारे में लिखी गयी कहानियों का विश्लेषण करके किया जाता है।
अध्ययनों से भी ज्ञात होता है कि अधिक प्रेरित व्यक्ति अपूर्ण कार्यों के बारे में अधिक स्मरण रखते हैं, जबकि कम अभिप्रेरित व्यक्ति पूर्ण कार्यों को अधिक स्मरण रखते हैं।
उपलब्धि की आवश्यकता उन व्यक्तियों में होती है जिनको बाल्यकाल में ही स्वतन्त्र रहने का प्रशिक्षण दिया गया हो। उपलब्धि की आवश्यकता पर माता के प्रभाव के प्रमाण भी उपलब्ध हैं।
उपलब्धि-अभिप्रेरणा का मापन
उपलब्धि-अभिप्रेरणा को मापने के लिये दत्त और रस्तोगी द्वारा निर्मित सी. आई. ई. उपलब्धि अभिप्रेरणा परीक्षण (C. I. E. achievement motivation test) प्रमुख माना जाता है।
इस परीक्षण में हिन्दी और अंग्रेजी के अधूरे वाक्यों को पूर्ण करने के लिये कुछ विकल्प दिये जाते हैं। उनमें से जो सही लगे उसके सामने सही (🆗) का निशान लगा देते हैं। इसमें सभी पदों के उत्तर देने होते हैं। इसमें तीस पूर्तियाँ भी होती हैं। इन पूर्तियों में विद्यार्थियों के उत्तरों से उनकी उपलब्धि अभिप्रेरणा का अनुमान लगाया जा सकता है।
एटकिन्सन के सिद्धान्त से हमें यह समझने में सहायता मिलती है कि विद्यार्थी अपनी सफलता और असफलता की किस प्रकार व्याख्या करते हैं ? तथा इन व्याख्याओं के भविष्य में बालकों के उपलब्धि परक व्यवहार के साथ क्या निहितार्थ है ?
विद्यार्थी अपनी सफलता या असफलता के लिये निम्नलिखित सात अलग-अलग प्रकार की व्याख्याओं को प्रयोग में लाते हैं-
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योग्यता
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प्रयास
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कार्यों की कठिनता
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भाग्य या संयोग
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मनोदशा
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अध्यापक द्वारा पक्षपात
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दूसरे से असामान्य सहायता
किसी परीक्षा में असफलता को निम्नलिखित कारणों से जोड़ा जाता है-
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अध्ययन न करना (प्रयासों की कमी)
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कठिन परीक्षण (परीक्षा की कठिनता)
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परीक्षा देते समय संवेगात्मक रूप से खालीपन अनुभव करना (मनोदशा)
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गलत विषय-वस्तु का अध्ययन करना (भाग्य या संयोग)
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शिक्षक का अनुपयुक्त व्यवहार (शिक्षक पक्षपात)
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व्यक्तिगत कमियाँ जैसे-मैं सदैव गणित में कमजोर रहा हूँ।