अभिप्रेरणा एक लक्ष्य आधारित व्यवहार का उत्प्रेरण या ऊर्जाकरण है। प्रेरणा या अभिप्रेरणा या अभिप्रेरण आंतरिक या बाह्य दो प्रकार की हो सकती है। विभिन्न सिद्धांतों के अनुसार, बुनियादी ज़रूरतों में शारीरिक दुःख-दर्द को कम करने और जीवन को आनंदमय बनाने के मूल में अभिप्रेरणा हो सकती है।
अभिप्रेरणा में खान-पान, भोग-विलास और आराम जैसी खास ज़रूरतों को शामिल किया जा सकता है; या एक अभिलषित वस्तु, शौक, लक्ष्य, अस्तित्व की दशा, आदर्श, को शामिल किया जा सकता है, या फिर परोपकारिता, नैतिकता, या मृत्यु संख्या से बचने को भी इसमें शामिल किया जाता है।
अभिप्रेरणा के सिद्धान्त
अभिप्रेरणा के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित प्रकार हैं-
1. सांस्कृतिक प्रतिमानों का सिद्धान्त (Principle of cultural models)
इस सम्बन्ध में मानवशास्त्री, समाजशास्त्री तथा मनोवैज्ञानिकों का मत है कि प्रत्येक बालक अपनी समूह संस्कृति से अभिप्रेरणा लेता है। किसी भी प्रकार का प्राणी कहीं भी रहने पर वहाँ से अभिप्रेरणा ग्रहण करता है। समाज या समूह से अभिप्रेरणा ग्रहण करने के पश्चात् उसका व्यवहार भी समाज या समूह के अनुरूप रहता है।
जिन परिवारों में उच्च आदर्श या संतुलित अनुशासन है, वहाँ पर स्नेह एवं सहयोग की भावना अधिक पायी जाती है, परन्तु ऐसे परिवार जहाँ बालकों की उपेक्षा की जाती है, उन्हें कठोर अनुशासन में रखा जाता है, डाँटा-फटकारा जाता है, वहाँ पर उनका स्वभाव चिड़चिड़ा तथा रूखा हो जाता है। इससे उनमें आत्म-विश्वास की कमी हो जाती है।
प्रत्येक परिवार एवं समाज में मान्यता, आचार-विचार आदि सभी अभिप्रेरणा के प्रतिफल का परिणाम हैं।
2. व्यवहार और सीखने का सिद्धान्त (Principle of learning and behaviour)
इस सिद्धान्त के पोषक यह कहते हैं कि व्यक्ति का व्यवहार उसकी आवश्यकता पर निर्भर करता है और सीखना भी इसी तथ्य पर आधारित है। यदि व्यक्ति के व्यवहार द्वारा उसकी आवश्यकताएँ सन्तुष्ट नहीं होंगी तो उसे कुछ सीखने की अभिप्रेरणा नहीं मिलेगी।
सामाजिक आवश्यकताओं का सम्बन्ध भी उसके अनुभवों से होता है। शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के पश्चात् सामाजिक आवश्यकताएँ एवं दायित्व भी जुड़ जाते हैं, जिन्हें अभिप्रेरणा आगे बढ़ाती है।
3. क्षेत्रीयता सिद्धान्त (Principle of field)
क्षेत्रीयता सिद्धान्त कर्ट लेविन (अमेरिका) की देन है। उन्होंने स्थान विज्ञान (Topology) से बड़ी सहायता ली है। उनका कथन है कि किसी परिस्थिति विशेष में व्यक्ति का व्यवहार उन तत्त्वों द्वारा परिचालित होता है, जो आसपास के वातावरण के बीच में कार्यरत रहते हैं। यदि वातावरण में उसे उत्साह मिलता है तो वह आशावान बना रहेगा परन्तु भयपूर्ण वातावरण में निराशा ही हाथ लगेगी।
4. मूल-प्रवृत्ति का सिद्धान्त (Principle of intrinsic)
व्यक्ति के अन्दर जो प्रेरक शक्ति कार्य करती है, वह मूल-प्रवृत्ति है। मानवीय दृष्टि से यह सिद्धान्त महत्त्वपूर्ण है। मैक्डूगल के अनुसार समस्त प्राणियों का व्यवहार मूल-प्रवृत्तियों द्वारा संचालित होता है।
मैक्डूगल ने कहा है कि संवेगों का व्यक्ति की मूल-प्रवृत्तियों के साथ बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध है और मूल-प्रवृत्तियों का प्रकटीकरण संवेगों के रूप में होता है। संवेगों के आधार पर भी व्यक्ति में स्थायी भाव (Sentiments) का निर्माण होता है और चरित्र का गठन होता है।
5. मनोविश्लेषण का सिद्धान्त (Principle of psycho-analysis)
इस सिद्धान्त के अनुसार मन की निम्नलिखित तीन अवस्थाएँ मानी गयी हैं-
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चेतन मन (Conscious mind)
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अचेतन मन (Unconscious mind)
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उपचेतन मन (Sub-conscious mind)
इस सिद्धान्त के प्रवर्तक फ्रायड, एडलर तथा युंग हैं। मनोविश्लेषणवादियों के अनुसार समस्त मनुष्यों के व्यवहारों का संचालन अचेतन मन द्वारा होता है। चेतन अवस्था में होते हुए भी संस्कार हमारे अचेतन मन पर पड़ेगे, उसी के आधार पर ही हमारे चरित्र का निर्माण होगा।
फ्राइड ने सेक्स को अचेतन मन का आधार माना है। एडलर ने आत्म-गौरव की भावना को अचेतन मन का आधार माना है तथा युंग ने जातीय संस्कृति को अचेतन मन का आधार माना है।