सीखने-सिखाने तथा विद्यालयी व्यवस्था के सन्दर्भ में समुदाय, ग्राम शिक्षा समिति, विद्यालय प्रबन्ध समिति तथा अन्य विद्यालयी समितियों के सदस्यों का अभिप्रेरण.
Motivation of Members of Community, Village Education Committee, School Management Committee and Other School Related Committee in Reference of Teaching-Learning and School System.
विभिन्न समितियों के सदस्यों का अभिप्रेरण
वर्तमान समय में सरकार द्वारा शिक्षा में सुधार एवं अभिभावकों की सन्तुष्टि हेतु शिक्षा समिति एवं विद्यालय प्रबन्ध समितियों का गठन किया है। इन समितियों के गठन का उद्देश्य प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में सुधार करना है।
इस आधार पर इन समितियों के सदस्यों को (अभिभावकों को) रखा गया है क्योंकि अभिभावक ही अपने बालक के हित में सर्वाधिक उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण योजना बना सकता है।
इस कार्य में प्रधानाध्यापक की भूमिका को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। प्रधानाध्यापक से अपेक्षा की जाती है कि ग्रामवासियों को जो कि विद्यालय से संबंध रखते हैं उनको अभिप्रेरित किया जाये तथा विद्यालय की शिक्षण अधिगम प्रक्रिया सम्बन्धी क्षेत्र में तथा विद्यालयी व्यवस्था के सन्दर्भ में उनका सहयोग लिया जाये।
अभिप्रेरणा प्रमुख रूप से दो क्षेत्रों में किया जाना चाहिये क्योंकि ये दोनों ही क्षेत्र महत्त्वपूर्ण हैं। इनका वर्णन निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है:-
-
सीखने-सिखाने के सन्दर्भ में सदस्यों का अभिप्रेरण
-
विद्यालय व्यवस्था के सन्दर्भ में सदस्यों का अभिप्रेरण
सीखने-सिखाने के सन्दर्भ में सदस्यों का अभिप्रेरण
Motivation of Members in Reference of Teaching-Learning
सीखने-सिखाने की प्रक्रिया के सन्दर्भ में सदस्यों का अभिप्रेरण परमावश्यक माना जाता है क्योंकि विद्यालय में प्रमुख रूप से छात्रों को सिखाया जाता है तथा छात्र विद्यालय की शैक्षिक परिस्थितियों द्वारा सीखते हैं। इस प्रकार विद्यालय में प्रमुख कार्य सीखने-सिखाने का होता है।
इस सीखने-सिखाने के क्षेत्र में विभिन्न समितियों के सदस्यों का अभिप्रेरण निम्नलिखित रूप में किया जाता है:-
1. शिक्षा के महत्त्व सम्बन्धी अभिप्रेरण (Importance related motivation of education)
सामान्य रूप से समितियों के सदस्य को शिक्षा के महत्त्व के बारे में ज्ञान नहीं होता। इसलिये वह अपने पद की गरिमा एवं शैक्षिक महत्त्व को नहीं समझ पाते। इसलिये वे अपने विद्यालय सम्बन्धी दायित्व एवं कार्यों को उचित रूप में सम्पन्न नहीं कर पाते।
शिक्षक एवं सरकार दोनों का ही कर्त्तव्य है कि उनको शिक्षा का महत्त्व समझायें तथा बतायें कि शिक्षा के अभाव में मानव पशुतुल्य है। इसलिये उनको अपने बालकों को शिक्षित बनाने के लिये वे सभी कार्य करने चाहिये जो कि सम्भव हैं।
2. गृहकार्य में सहयोग सम्बन्धी अभिप्रेरण (Cooperation related motivation in home work)
सामान्यत: यह देखा जाता है कि अभिभावक अपने बालकों को घर पहुँचते ही अनेक गृहकार्यों में लगा देते हैं तथा उनको विद्यालय से मिला कार्य करने का अवसर नहीं देते।
विद्यालय समितियों के सदस्यों का यह दायित्व होता है कि समाज में वह ऐसी स्थिति देखते हैं तो उसको रोकने का प्रयास करना चाहिये तथा अभिभावकों को यह बताना चाहिये कि बालक को यह गृहकार्य अन्य गृहकार्यों की तुलना में महत्त्वपूर्ण है तथा उनका दायित्व इसमें सहयोग करना है।
इस कार्य के लिये शिक्षक एवं सरकार द्वारा विविध कार्यक्रमों के माध्यम से समितियों के सदस्यों को प्रोत्साहित करना आवश्यक है, जिससे वह सभी छात्रों के अभिभावकों का मार्गदर्शन कर सकें।
3. विद्यार्थी की उत्तर पुस्तिकाओं का निरीक्षण (Supervision of answer seats of students)
सदस्यों को यह बताना चाहिये कि वे छात्रों की उत्तर पुस्तिकाओं का निरीक्षण को तथा एक ही प्रकार की समस्याओं का समाधान शिक्षक के सहयोग से करें; जैसे-सभी छात्रों के गणित विषय में अंक कम आते हैं तो गणित विषय के शिक्षक से सम्पर्क करके शिक्षण विधियों एवं शिक्षण अधिगम सामग्री की समीक्षा करनी चाहिये तथा उन उपायों पर विचार करना चाहिये जो कि गणित विषय में छात्रों के अधिगम स्तर को उच्च कर सकें।
सदस्यों को उन अभिभावकों की इस कार्य में सहायता करनी चाहिये जो कि कम पढ़े-लिखे होने के कारण अपने बालकों की उत्तर पुस्तिकाओं की समीक्षा नहीं कर पाते।
4. अध्यापक सहयोग सम्बन्धी अभिप्रेरण (Teacher cooperation related motivation)
अध्यापक सहयोग सम्बन्धी अभिप्रेरण के अन्तर्गत सदस्यों का प्रमुख दायित्व अध्यापक का सहयोग करना है। विद्यालय की सीखने-सिखाने सम्बन्धी समस्याओं का ज्ञान एक शिक्षक को पूर्ण रूप से होता है। एक शिक्षक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह छात्रों की शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी रूप में सम्पन्न करते हुए उनके अधिगम स्तर को उच्च करे।
इस कार्य में समितियों के सदस्यों के सहयोग की आवश्यकता होती है। इस कार्य में सहयोग के लिये सदस्यों को सरकार एवं शिक्षक दोनों द्वारा प्रेरित करने का प्रयास करना चाहिये।
उन्हें से बताने का प्रयास करना चाहिये कि सदस्यों की भूमिका शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में शिक्षक संचालित सहयोग के द्वारा ही पूर्ण होती है। इससे वे सभी सदस्य शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में शिक्षक का सहयोग करेंगे।
5. शत-प्रतिशत नामांकन सम्बन्धी अभिप्रेरण (Hundred percent enrolment related motivation)
शत प्रतिशत नामांकन सम्बन्धी अभिप्रेरण के अन्तर्गत विद्यालय व्यक्ति समितियों की बैठक में सदस्यों के समक्ष इस समस्या को उठाया जाता है तथा इस कार्य को करने के लिये उनसे सहयोग माँगा जाता है। जब ग्राम एवं समाज का प्रत्येक बालक विद्यालय में पहुँचेगा तब सीखने-सिखाने का कार्य प्रारम्भ होगा।
शिक्षक को समितियों के सदस्यों को अभिप्रेरित करना चाहिये कि वे जन-सम्पर्क करके तथा अपने प्रभाव का प्रयोग करके प्रत्येक अभिभावक को जागरूक करते हुए बालकों को विद्यालय भेजने के लिये उत्साहित करें। इससे सभी बालक विद्यालय जायेंगे तथा उनके सीखने-सिखाने का कार्य पूर्ण होगा।
6. परीक्षा परिणाम सम्बन्धी अभिप्रेरण (Examination result related motivation)
प्रत्येक प्राथमिक स्तर के विद्यालय में सत्र परीक्षा, त्रैमासिक परीक्षा, अर्द्धवार्षिक परीक्षा एवं वार्षिक परीक्षा होती है। सदस्यों को सभी छात्रों के परीक्षा परिणामों की समीक्षा करनी चाहिये, जिससे जो त्रुटियाँ प्रथम परीक्षा में हुई हैं वे द्वितीय परीक्षा में न हो सकें।
इस प्रकार वार्षिक परीक्षा में प्रवेश पाने तक छात्र का अधिगम स्तर उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त होगा क्योंकि अगम स्तर को सुधारने के लिये समितियों के सदस्यों द्वारा समय-समय पर प्रत्येक छात्र के लिये शिक्षक के सहयोग से सुझाव प्रदान किये जायेंगे।
7. शिक्षण कार्य सम्बन्धी अभिप्रेरण (Teaching work related motivation)
शिक्षण कार्य सम्बन्धी अभिप्रेरण में उन सदस्यों को शिक्षण कार्य करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है जो कि विद्यालय में छात्रों का शिक्षण कर सकते हैं। समितियों में अनेक सदस्य ऐसे होते हैं जो कि शिक्षक पद से सेवानिवृत्त होते हैं तथा उनका स्वास्थ्य भी अच्छा होता है और वे पढ़ा सकते हैं।
इसके साथ-साथ कुछ सदस्य ऐसे होते हैं जो कि विद्यालय शिक्षण में रुचि रखते हैं तथा उनके पास पर्याप्त समय भी होता है। एकल विद्यालय की स्थिति में या अधिक छात्र संख्या होने की स्थिति में ऐसे सदस्यों का सहयोग लिया जा सकता है तथा उनको शिक्षण कार्य करने के लिये अभिप्रेरित किया जा सकता है।
8. पाठ्यक्रम क्रियाओं सम्बन्धी अभिप्रेरण (Co-curricular activities related motivation)
विद्यालय में अनेक प्रकार की पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं का संचालन होता है जिसे मनोरंजन, संगीत एवं साहित्य से सम्बन्धित क्रियाएँ होती हैं। अभिभावक इन क्रियाओं को निरर्थक मानते हैं तथा बालकों को इन क्रियाओं में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित नहीं करते।
शिक्षक को चाहिये कि इन समितियों के सक्रिय सदस्यों को पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं के महत्त्व से परिचित करायें। जब सदस्य इन क्रियाओं से परिचित हो जायेंगे तथा उपयोगिता को समझ सकेंगे तो वह सभी अभिभावकों को भी इसका महत्त्व समझायेंगे।
इससे विद्यालय में संचालित पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं के माध्यम से छात्रों के सर्वांगीण विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।
9. खेल के प्रति सकारात्मक अभिप्रेरण (Positive motivation to game)
सदस्यों में खेल के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न करना चाहिये क्योंकि सामान्य रूप से प्रत्येक व्यक्ति का अपने बालकों को खेलते समय रोकना देखा जाता है।
कोई भी अभिभावक अपने बालक को पढ़ते देखकर अधिक प्रसन्न होता है तथा खेलते देखकर उसे डाँटता है। जो अभिभावक खेल के महत्त्व को समझते हैं वह अपने बालकों को खेलने के लिये प्रोत्साहित करते हैं।
इसी प्रकार शिक्षकों को समिति के सक्रिय सदस्यों को खेल का महत्त्व बताना चाहिये, जिससे बालक विभिन्न प्रकार के कौशलों के बारे में सीख सकें क्योंकि सदस्य बालकों के अभिभावकों को प्रेरित करेंगे तथा अभिभावक अपने बालकों को खेलने के लिये प्रेरित कर सकेंगे। इस प्रकार बालक रुचिपूर्ण खेलों को सीख सकेंगे।
10. वैज्ञानिक विधियों सम्बन्धी अभिप्रेरण (Scientific methods related motivation)
वैज्ञानिक विधियों सम्बन्धी अभिप्रेरण के द्वारा सदस्य उन विधियों के प्रति सकारात्मक भाव रखते हैं जो कि बालकेन्द्रित होती हैं; जैसे-पुरानी शिक्षण विधियों में शिक्षक का अधिक महत्त्व होता था तथा छात्र गुरु के आदेश को श्रवण करके सीखता था परन्तु वर्तमान समय में बालकों को अधिक महत्त्व प्रदान किया जाता है तथा प्रत्येक कार्य को करके सीखने के लिये बालक को प्रेरित किया जाता है।
इस प्रकार भ्रमण विधि, वाद-विवाद विधि, खेल विधि एवं समूह विधि आदि में बालकों को ही महत्त्व प्रदान किया जाता है। अभिभावक इस प्रकार की विधियों को उचित नहीं मानते।
जब सदस्यों को इन विधियों का महत्त्व समझाया जायेगा तो वे अन्य व्यक्तियों को समझाने का प्रयास करेंगे तथा सीखने की वैज्ञानिक विधियों में छात्रों को विद्यालय एवं घर दोनों में ही सहयोग प्राप्त होगा। इससे छात्रों का अधिगम स्तर उच्च होगा।
11. शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के वातावरण निर्माण सम्बन्धी अभिप्रेरण (Teaching learning environment creation related motivation)
अनेक अवसरों पर यह देखा जाता है कि ग्राम में मनोरंजन एवं विवाह समारोह आदि में लाउड स्पीकर विद्यालय के पास विद्यालय समय में लगा दिये जाते हैं या विद्यालय परिसर में असामाजिक तत्त्व एकत्रित हो जाते हैं, जिससे शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का वातावरण निर्मित नहीं हो पाता।
शिक्षक द्वारा समिति के सदस्यों को इस प्रकार के कार्यों को रोकने के लिये प्रेरित करना चाहिये, जिससे एक ओर विद्यालय में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के लिये उपयुक्त वातावरण निर्मित होगा वहीं दूसरी ओर छात्रों का अधिगम स्तर उच्च बनेगा।
12. बालकों की पूरे समय विद्यालय में उपस्थिति सम्बन्धी अभिप्रेरण (Full time presence of students in school related motivation)
सामान्यतः यह पाया जाता है कि अभिभावक अपने निजी कार्यों की पूर्ति हेतु बालकों को विद्यालय में मध्यान्तर से बुला लेते हैं। शिक्षक द्वारा जब इसका विरोध किया जाता है तो अभिभावकों के क्रोध का शिकार शिक्षक को होना पड़ता है।
कुछ अभिभावक इस प्रक्रिया से बचने के लिये थोड़ा सा भी गृहकार्य होने पर बालक को रोक लेते हैं। इस प्रकार की गतिविधियाँ छात्र की सीखने की प्रक्रिया पर बुरा प्रभाव डालती हैं।
शिक्षकों द्वारा सदस्यों को यह बताना चाहिये कि जब तक विद्यालय में छात्र पूर्ण समय तक उपस्थित नहीं होगा तब तक उसका अधिगम स्तर उच्च नहीं होगा। जब सदस्य इस तथ्य को समझ जाते हैं तब अभिभावकों को भी इस कार्य के लिये प्रेरित करते हैं।
इससे सभी अभिभावक अपने बालकों को पूर्ण समय तक विद्यालय में उपस्थित रहने के लिये प्रेरित करते हैं।
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में सदस्यों का अभिप्रेरण आवश्यक है। सदस्यों के अभिप्रेरण के अभाव में सीखने-सिखाने की प्रक्रिया को प्रभावी रूप में सम्पन्न नहीं किया जा सकता।
अत: सरकार एवं शिक्षक दोनों को ही इन सदस्यों को अभिप्रेरित करते हुए उनका योगदान सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में प्राप्त करना चाहिये।
विद्यालय व्यवस्था के सन्दर्भ में सदस्यों का अभिप्रेरण
Motivation of Members in Reference of School System
विद्यालय से सम्बन्धित सभी समितियों का दायित्व विद्यालयी व्यवस्था को आदर्श रूप प्रदान करना होता है। इसलिये प्रत्येक सदस्य का यह दायित्व बन जाता है कि विद्यालयी व्यवस्था में अपना योगदान दें।
समितियों के सदस्यों को उनके कर्त्तव्य की याद दिलाने के लिये तथा उनका सक्रिय सहयोग विद्यालयी व्यवस्था में पाने के लिये निम्नलिखित क्षेत्रों में सदस्यों का अभिप्रेरण आवश्यक है:-
1. विद्यालय भवन सम्बन्धी अभिप्रेरण (School building related motivation)
विद्यालय भवन विद्यालयी व्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग है। इसके अभाव में विद्यालयी क्रियाकलाप सम्भव नहीं होते। विद्यालय भवन के अतिरिक्त खेल का मैदान, प्रयोगशाला एवं विद्यालय उद्यान को भी विद्यालय का महत्त्वपूर्ण अंग माना जाता है।
शिक्षक का यह दायित्व बनता है कि विद्यालय समिति के सदस्यों को इन सभी के रखरखाव के लिये अभिप्रेरित करना चाहिये, जिससे सभी ग्रामीण व्यक्ति विद्यालय की देखभाल एवं विद्यालय भवन को आदर्श रूप प्रदान करने में सहयोग प्रदान कर सकें।
इससे छात्रों को शैक्षिक वातावरण का अनुभव विद्यालय में हो सके।
2. विद्यालय स्वच्छता सम्बन्धी अभिप्रेरण (School cleanliness related motivation)
विद्यालय में स्वच्छता सम्बन्धी व्यवस्था के लिये भी सदस्यों को अभिप्रेरित करना चाहिये। प्राथमिक विद्यालयों में किसी सफाई कर्मचारी की नियुक्ति नहीं होती। इसलिये स्वच्छता का कार्य ग्रामीण विद्यालय के सदस्यों, छात्रों एवं अभिभावकों द्वारा किया जाता है।
इसके लिये सर्वप्रथम सदस्यों को स्वच्छता के लिये प्रेरणा प्रदान करनी चाहिये, जिससे सदस्य अभिभावकों को प्रेरित करेंगे तथा अभिभावक बालकों को यह शिक्षा प्रदान करेंगे कि उनको अपने विद्यालय को स्वच्छ रखना चाहिये।
इस प्रकार विद्यालय का प्रांगण, कक्षा-कक्ष एवं सभी परिवेश स्वच्छ एवं आदर्श स्थिति में होगा।
3. वित्तीय क्षेत्र सम्बन्धी अभिप्रेरण (Financial area related motivation)
विद्यालयी व्यवस्था के सन्दर्भ में धन एक महत्त्वपूर्ण पक्ष होता है। धन के अभाव में विद्यालयी व्यवस्था आदर्श रूप प्राप्त नहीं कर सकती। विद्यालयी व्यवस्था में कुछ समितियों के सदस्यों से आर्थिक सहयोग प्राप्त करना चाहिये क्योंकि कुछ सदस्य धनवान भी हो सकते हैं।
शिक्षक को ऐसे सदस्यों को विद्यालयी व्यवस्था में धन लगाने के लिये प्रेरित नहीं करना चाहिये, जो धनवान नहीं है उनको ऐसे व्यक्तियों को विद्यालय से जोड़ने का प्रयास करना चाहिये जो धनवान हों।
इस प्रकार विद्यालयी व्यवस्था के संचालन में वित्तीय समस्याओं को उत्पन्न नहीं होने देना चाहिये।
4. विद्यालयी प्रबन्ध सम्बन्धी अभिप्रेरण (School management related motivation)
विद्यालय प्रबन्ध एक व्यापक अवधारणा है। इसके अन्तर्गत शिक्षण अधिगम प्रक्रिया एवं विद्यालयी व्यवस्था के समस्त पक्ष आते हैं। विद्यालय समितियों के प्रत्येक सदस्य को अभिप्रेरित करते हुए यह समझाना चाहिये कि उसका दायित्व विद्यालय के चहुंमुखी विकास में सहयोग करना है।
विद्यालय की प्रत्येक व्यवस्था को आदर्श एवं सर्वोत्तम रूप प्रदान करना उसकी प्राथमिकता होनी चाहिये तथा अभिभावकों को भी इस कार्य के लिये प्रेरित करने का दायित्व भी सक्रिय सदस्यों का होता है क्योंकि प्रत्येक अभिभावक को विद्यालय प्रबन्ध समिति या अन्य समितियों का सदस्य नहीं बनाया जाता।
5. मध्याह्न भोजन व्यवस्था सम्बन्धी अभिप्रेरण (Mid-day meal arrangement related motivation)
मध्याह्न भोजन सम्बन्धी व्यवस्था को आदर्श रूप प्रदान करना भी इन समितियों के सदस्यों की प्राथमिकता होनी चाहिये। समय-समय पर इन सदस्यों को विद्यालय में बैठक के अतिरिक्त भी आना चाहिये तथा रसोईघर एवं खाना बनाने की विधियों के सन्दर्भ में शिक्षक को सुझाव देने चाहिये।
इस प्रकार की व्यवस्था से मध्याह्न भोजन व्यवस्था को आदर्श रूप मिल सकेगा।
6. विद्यालय एक सामुदायिक संस्था के रूप में (School as a community institution)
विद्यालय के सभी सदस्यों को यह समझाना चाहिये कि वे विद्यालय को एक पृथक संस्था मानकर व्यवहार न करें वरन् विद्यालय को सामुदायिक विकास की आवश्यक संस्था के रूप में स्वीकार किया जाये क्योंकि विद्यालय के द्वारा शिक्षा का प्रचार प्रसार सम्भव होता है तथा समाज के बालकों को शिक्षा मिलती है।
शिक्षा के अभाव में किसी भी समुदाय का सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता। इसलिये समुदाय के विकास के लिये अन्य संस्थाओं का रखरखाव एवं विकास किया जाता है ठीक इसी प्रकार विद्यालय का विकास एवं रखरखाव किया जाना चाहिये।
इससे प्रेरित होकर समितियों के सदस्य एवं अभिभावक विद्यालय का सहयोग करेंगे।
7. वृक्षारोपण सम्बन्धी अभिप्रेरण (Plantation related motivation)
जिस विद्यालय में अधिक जगह पायी जाती है तथा खेल का मैदान पाया जाता है, उसमें समितियों के सदस्यों को वृक्षारोपण के लिये प्रेरित करना चाहिये। इसमें सभी छात्रों को पेड़ लगाने की प्रेरणा देनी चाहिये। इस प्रेरणा का क्रम शिक्षण से प्रारम्भ होता है।
शिक्षक द्वारा विद्यालय समिति के सदस्यों को वृक्षारोपण के लिये प्रेरित किया जायेगा। सदस्यों द्वारा अन्य अभिभावकों तथा अभिभावकों द्वारा अपने बालकों को प्रेरित किया जायेगा।
इस प्रकार विद्यालय में प्रभावी रूप से वृक्षारोपण का कार्य होगा क्योंकि विद्यालय से सम्बन्धित प्रत्येक व्यक्ति वृक्षारोपण का कार्य करेगा।
8. जल व्यवस्था सम्बन्धी अभिप्रेरण (Water arrangement related motivation)
विद्यालय में जल की व्यवस्था परमावश्यक होती है।
- प्रथम बालकों के पीने के लिये जल की व्यवस्था स्वच्छ होनी चाहिये अर्थात् पानी में फ्लोराइड एवं अन्य हानिकारक लवण नहीं होने चाहिये।
- द्वितीय जो भी पानी विद्यालयी व्यवस्था में फैलता है उसकी व्यवस्था उद्यान में वापस जाने की होनी चाहिये, जिससे उस पानी का सदुपयोग हो सके।
इसके अतिरिक्त जहाँ टंकी की व्यवस्था हो वहाँ पर समय-समय पर टंकी साफ होनी चाहिये। टंकी के स्वच्छ करने का दायित्व एवं जलीय व्यवस्था का दायित्व विद्यालय समिति के सदस्यों को देना चाहिये, जिससे वे स्वयं कार्य करके एवं अभिभावकों का सहयोग लेकर विद्यालय में जल की उचित व्यवस्था करने में अपनी भूमिका का निर्वहन करेंगे।
9. खेल व्यवस्था सम्बन्धी अभिप्रेरण (Game arrangement related motivation)
वर्तमान समय में खेलों का महत्त्वपूर्ण स्थान है किसी भी विद्यालय में यदि खेलों की उचित व्यवस्था नहीं है तो उस विद्यालय के छात्रों का सर्वांगीण विकास सम्भव नहीं हो सकता।
अभिभावक भी बालकों को खेलते समय उनको अच्छा नहीं समझते। विद्यालय समिति के सदस्यों को प्रेरित करना चाहिये कि वह स्वयं खेलों का महत्त्व समझें तथा अभिभावकों को भी खेलों में सम्बन्ध में उचित जानकारी दें, जिससे प्रत्येक अभिभावक अपने बालकों को खेलने के लिये प्रेरित कर सकें।
विद्यालय में यदि खेल का मैदान नहीं है तो सदस्यों को स्थानीय खेल के मैदान या अन्य मैदानों को खेल के लिये उपलब्ध कराने का प्रयास करना चाहिये, जिससे छात्र खेलने के माध्यम से अपना विकास कर सकें।
10. पुस्तक वितरण सम्बन्धी अभिप्रेरण (Book distribution related motivation)
पुस्तक वितरण सम्बन्धी अभिप्रेरण के अन्तर्गत सदस्यों को पुस्तक वितरण के समय विद्यालय में उपस्थित होना चाहिये। शिक्षक द्वारा बी. आर. सी. या एन. पी. आर. सी. केन्द्र से पुस्तक लानी है तो उसका सहयोग समिति के सदस्य को करना चाहिये।
पुस्तक प्राप्त होने के बाद अभिभावकों को उनके रखरखाव की प्रेरणा प्रदान करनी चाहिये। इस कार्य को सदस्यों द्वारा उचित रूप में किया जा सकता है क्योंकि सदस्यों का अभिभावकों से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है।
पुस्तकों के वितरण की व्यवस्था में भी सदस्यों को शिक्षकों का सहयोग करना चाहिये। पुस्तक वितरण व्यवस्था में सभी कक्षा के छात्रों को पुस्तक मिलने की व्यवस्था होनी चाहिये।
यदि किसी भी प्रकार एक या दो छात्र रह जाते हैं तो उनको सदस्यों द्वारा अपनी ओर से पुस्तक खरीद कर देनी चाहिये या सहायक पुस्तकों की आवश्यकता पड़ने पर सदस्यों द्वारा उपलब्ध कराने की व्यवस्था करनी चाहिये। इसके लिये प्रेरणा शिक्षक द्वारा प्रदान करनी चाहिये।
11. छात्रवृत्ति वितरण सम्बन्धी अभिप्रेरण (Scholarship distribution related motivation)
सरकारी विद्यालयों में छात्रवृत्ति अनुसूचित जाति एवं पिछड़े वर्ग के छात्रों को मिलती है, जिसके आधार पर इनकी शिक्षा में कोई भी आर्थिक असुविधा नहीं रहती।
छात्रवृत्ति वितरण में समिति के सदस्यों को पूर्णतः सजग रहना चाहिये क्योंकि अनेक अवसरों पर छात्र दो-दो स्थानों पर नाम लिखाकर छात्रवृत्ति प्राप्त कर लेते हैं। इससे सरकारी धन का दुरुपयोग होता है।
समिति के सदस्यों का यह दायित्व बनता है कि वह अभिभावकों को इस प्रकार के कार्यों को करने से रोकें क्योंकि जो भी छात्रवृत्ति मिलती है उसका उपयोग बालक की शैक्षिक गतिविधियों पर होना चाहिये न कि अपने निजी कार्यों पर।
इस प्रकार की प्रेरणा शिक्षक द्वारा समितियों के सदस्यों में प्रेरित करके अभिभावकों तक पहुँचाने का प्रयास करना चाहिये।
12. गणवेष सम्बन्धी अभिप्रेरण (Uniform related motivation)
प्राथमिक विद्यालयों में सरकार द्वारा गणवेष वितरित की जाती है। इस कार्य में भी समितियों के सदस्यों का अभिप्रेरण आवश्यक है। शिक्षक द्वारा समिति के सदस्यों को समझाना चाहिये कि जिस प्रकार हम अपने लिये कपड़े बनवाने से पूर्व अनेक उपयोगी बिन्दुओं पर विचार करते हैं ठीक इसी प्रकार बालकों के लिये गणवेष बनवाने के लिये भी विचार करना चाहिये।
उस व्यक्ति से गणवेष सिलवाने या बनवाने चाहिये जो कि निर्धारित कीमत में सर्वोत्तम गणवेष उपलब्ध करा सकें। इसके लिये समिति के सदस्यों को बाजार में विभिन्न प्रकार की फर्मों से सम्पर्क करके छात्रों के लिए उपयुक्त गणवेष बनवाने की व्यवस्था करनी चाहिये, जिससे सरकारी धन का लाभ छात्रों को मिल सके।
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षक को समितियों के सदस्यों के माध्यम से सम्पूर्ण ग्रामीण जनता का भी विद्यालय से जुड़े अभिभावकों का सहयोग प्राप्त करना चाहिये।
शिक्षक द्वारा सभी अभिभावकों से एक साथ सम्पर्क नहीं किया जा सकता है इसलिये उसको इस कार्य को सम्पन्न करने के लिये समितियों के सदस्यों की सहायता लेनी चाहिये क्योंकि एक व्यक्ति इन सभी कार्यों को पूर्ण नहीं कर सकता।
इसलिये एक कुशल शिक्षक सीखने-सिखाने की क्रिया एवं विद्यालयी व्यवस्था को आदर्श रूप प्रदान करने में विद्यालय की विभिन्न समितियों के सदस्यों का सक्रिय सहयोग प्राप्त करने के लिये उन्हें प्रेरित करता है
इस प्रकार एक कुशल शिक्षक एक विद्यालय का विकास ही नहीं करता वरन सम्पूर्ण समाज को आदर्श एवं सार्थक रूप में विकसित करता है।
समितियों के सदस्यों के अभिप्रेरण की विधियाँ
Methods of Motivation to Members of Committee
शिक्षक द्वारा एवं सरकार द्वारा समितियों के सदस्यों को अभिप्रेरित करने के लिये विविध प्रकार की विधियों एवं कार्यक्रमों का आयोजन करने की व्यवस्था की जाती है जिससे इन समितियों के सदस्यों का शिक्षक एवं विद्यालय से निरन्तर सहयोग बना रहता है।
इस प्रकार के प्रमुख कार्यक्रमों का वर्णन निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है जो कि सदस्यों को सहयोग प्रदान करने के लिये प्रेरित कर सकते हैं:-
1. बैठकें (Meetings)
सरकार द्वारा यह नियम बनाया गया है कि प्रत्येक विद्यालय में समितियों के सदस्यों की बैठक आयोजित की जाती हैं। यह बैठक माह में एक बार आयोजित की जाती है। इसमें दिनांक निश्चित होने पर प्रत्येक सदस्य उस दिन ही उपस्थित होता है।
उस दिन यदि अवकाश होता है तो दूसरे दिन बैठक आयोजित की जाती है। इस बैठक में प्रत्येक सदस्य के विद्यालयी व्यवस्था एवं शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के सम्बन्ध में विचार जाने जाते हैं तथा उनको सर्वोत्तम बनाने के लिये सुझाव प्रस्तुत किये जाते हैं।
शिक्षक द्वारा इन सदस्यों के समक्ष विद्यालय की समस्याएँ रखी जाती हैं तथा उनको सहयोग देने के लिये कहा जाता है। इस प्रकार समिति के सभी सदस्य अपनी योग्यता एवं क्षमता के अनुसार विद्यालयी व्यवस्था का सहयोग देने के लिये तत्पर होते हैं।
2. सामाजिक कार्यक्रम (Social programmes)
समाज में होने वाले कार्यक्रमों में शिक्षक को भाग लेना चाहिये क्योंकि इन कार्यक्रमों में उसको उन व्यक्तियों से भी मिलने का अवसर मिलता है जो विद्यालय प्रबन्ध समिति के सदस्य नहीं है परन्तु समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं।
शिक्षक को ऐसे व्यक्तियों को विद्यालय से जोड़ने का प्रयास करना चाहिये। इससे वे व्यक्ति विद्यालय के हित में कार्य कर सकें। ऐसे व्यक्तियों को विद्यालय में होने वाले कार्यक्रमों में आमन्त्रित करना चाहिये।
इस प्रकार सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेकर शिक्षक समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को विद्यालय में सहयोग देने के लिये प्रेरित कर सकता है। समाज में विद्यालय का-समस्याएँ उठा सकता है।
3. सांस्कृतिक कार्यक्रम (Cultural programmes)
विद्यालय के समय-समय पर अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है; जैसे-किसी महापुरुष की जयन्ती मनाना, होली एवं दीपावली से सम्बन्धित कार्यक्रमों का आयोजन आदि। इन सभी आयोजनों में समिति के सदस्यों एवं अभिभावकों को आमन्त्रित करना चाहिये तथा उनको महापुरुषों की जीवनी एवं उनके कार्यों के आधार पर विद्यालय सहयोग के लिये प्रेरित किया जाना चाहिये।
इसके साथ-साथ भारतीय संस्कृति के त्यौहार एवं परम्पराओं से सदस्यों को परिचित कराना चाहिये। इससे अभिभावक एवं समितियों के सभी सदस्य एवं अभिभावक विद्यालय सहयोग के लिये प्रेरित हो सकेंगे।
4. राष्ट्रीय कार्यक्रम (National programmes)
विद्यालय में समय-समय पर राष्ट्रीय कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है; जैसे-15 अगस्त, 26 जनवरी एवं 2 अक्टूबर राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाये जाते हैं। इन सभी पर्वों पर विद्यालय समिति के सदस्यों को आमन्त्रित करना चाहिये तथा मंच पर उन सभी समस्याओं को समाज के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिये जो कि विद्यालयी व्यवस्था से सम्बन्धित है।
इसमें शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को सम्मिलित किया जाना चाहिये। जब अभिभावक एवं समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को विद्यालयी समस्याओं का ज्ञान होगा तो वे सहायता के लिये आगे आयेंगे। इससे विद्यालयी समस्याओं को समाधान जनता के सहयोग द्वारा सम्भव हो सकेगा।
5. प्रशिक्षण कार्यक्रम (Training programmes)
वर्तमान समय में सरकार द्वारा समय-समय पर विद्यालय प्रबन्ध समिति के सदस्यों को प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इसमें विद्यालय प्रबन्ध समिति के सदस्यों को उनके कर्तव्य एवं अधिकार के बारे में ज्ञान प्रदान किया जाता है।
इस अवसर पर अनेक विशेषज्ञ अधिकारी उपस्थित होते हैं वे समिति के सदस्यों को एवं अभिभावकों को विद्यालयी व्यवस्था के सहयोग के लिये प्रेरित करते हैं। इस प्रकार के कार्यक्रमों में विद्यालयी समितियों के सदस्य अपने दायित्वों एवं अधिकारों के बारे में प्रश्न पूछ सकते हैं।
सरकार से बालकों को प्राप्त होने वाली अनेक सुविधाओं के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
प्रशिक्षण कार्यक्रमों का प्रमुख उद्देश्य समिति के सदस्य एवं समुदाय को विद्यालयी सहयोग के लिये तैयार करना होता है।
6. प्रतियोगिता (Competitions)
विद्यालयी स्तर पर होने वाली विविध प्रकार की प्रतियोगिताओं में समिति के सदस्यों को आमन्त्रित करना चाहिये। विद्यालय में खेलकूद एवं गीत-संगीत आदि की प्रतियोगिताओं में जब अभिभावक एवं सदस्यों को बुलाया जायेगा तो विद्यालय की सदस्य समिति में सदस्य एवं अभिभावक अपने आपको महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी व्यक्ति समझेंगे तथा विद्यालय के प्रति उनका लगाव होगा। इस लगाव की स्थिति में वह विद्यालय में जो भी कमी उनको दिखायी देगी उसे पूर्ण करने का प्रयास करेंगे।
इस प्रकार समिति के सदस्य एवं अभिभावकों का सहयोग प्राप्त किया जा सकेगा जो कि उनके द्वारा पूर्ण मनोयोग के साथ किया जायेगा। इस स्थिति में सदस्य एवं अभिभावक समर्पण भाव से विद्यालय के लिये कार्य करेंगे।
7. प्रदर्शनी (Exhibition)
विद्यालय में समय-समय पर प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाना चाहिये तथा इस आयोजन में समिति के सदस्यों एवं अभिभावकों को आमन्त्रित करना चाहिये। छात्रों को प्रदर्शनी लगाने का दायित्व सौंपना चाहिये।
ये प्रदर्शनी शैक्षिक विषयों से सम्बन्धित होनी चाहिये। इस प्रकार के आयोजनों से यह सम्भव हो सकेगा कि विद्यालय से सम्बन्धित सभी व्यक्ति शिक्षक, सदस्य, अभिभावक एवं छात्र एक ही स्थान पर एकत्रित हो सकेंगे।
इसमें सभी मिलकर विद्यालय की समस्याओं के समाधान के प्रति जागरूक हो सकेंगे तथा इससे छात्रों की शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में भी सुधार होगा। अत: इस अवसर पर शिक्षक भी उन सदस्यों एवं अभिभावकों के समक्ष विद्यालय की समस्याओं को रख सकेगा तथा समस्या समाधान के लिये उपस्थित सदस्य एवं अभिभावकों को प्रेरित कर सकेगा।
8. मेले (Fairs)
विद्यालय में बालकों के मनोरंजन के लिये शैक्षिक मेलों का आयोजन किया जा सकता है। शैक्षिक मेलों के आयोजन में पाठ्यक्रम का अवश्य ध्यान रखना चाहिये।
जैसे-प्राथमिक स्तर पर विज्ञान मेले का आयोजन किया जा सकता है। इन मेलों में भी समिति के सदस्य एवं अभिभावकों को आमन्त्रित करना चाहिये। बालकों द्वारा भी इन सदस्यों के समक्ष अपनी समस्याओं का प्रस्तुतीकरण किया जा सकता है।
शिक्षक द्वारा भी इन सदस्यों को विद्यालयी अव्यवस्था से परिचित कराया जा सकता है। सदस्य स्वयं भी विद्यालयी समस्या के बारे में चर्चा कर सकते हैं।
इस प्रकार की प्रत्येक गतिविधि का सम्बन्ध सदस्यों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से विद्यालय की समस्याओं के समाधान की ओर आकर्षित करना होता है, जिससे विद्यालय का स्वरूप आदर्श रूप में विकसित हो सके।
9. सम्मेलन (Conference)
सम्मेलन के द्वारा भी सदस्यों को आकर्षित किया जा सकता है। शिक्षक द्वारा विद्यालय में शत प्रतिशत नामांकन की समस्या पर एक सम्मेलन आयोजित किया जा सकता है। इसमें मनोवैज्ञानिकों एवं शिक्षा शास्त्रियों को मुख्य अतिथि के रूप में आमन्त्रित किया जाना चाहिये तथा सदस्यों एवं अभिभावकों को श्रोता के रूप में।
इस सम्मेलन में प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचार रखने का अवसर देना चाहिये। अत: सम्मेलन के द्वारा शत-प्रतिशत नामांकन की प्रक्रिया, कारण एवं उपायों एवं व्यापक चर्चा होनी चाहिये। इसके बाद निश्चित रूप से विद्यालय में शत-प्रतिशत नामांकन सम्भव हो सकेगा।
इस प्रकार शिक्षक द्वारा विविध प्रकार के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये सम्मेलनों का आयोजन करना चाहिये तथा अपनी कुशलता के आधार पर सदस्यों का सहयोग प्राप्त करना चाहिये।
10. विचारगोष्ठी (Seminars)
अनेक अवसरों पर विद्यालयों में विचारगोष्ठियों का आयोजन भी किया जा सकता है। इन विचारगोष्ठियों में शिक्षाशास्त्रियों एवं प्रबन्धकीय योग्यता रखने वाले व्यक्तियों को आमन्त्रित करना चाहिये।
विद्यालय समितियों के सदस्य एवं अभिभावकों को भी बुलाना चाहिये। इस विचारगोष्ठी में सर्वप्रथम समस्या पर विशेषज्ञों के विचार जानने चाहिये। इसके बाद समस्या के प्रश्नों के उत्तर विशेषज्ञों को देने चाहिये।
विशेषज्ञों द्वारा सदस्य एवं अभिभावकों की विद्यालय के प्रति भूमिका पर भी चर्चा करनी चाहिये। इससे सदस्य एवं अभिभावक विद्यालय के प्रति समर्पण भाव से कार्य कर सकेंगे।
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि विद्यालय में सीखने-सिखाने के सन्दर्भ में तथा विद्यालयी व्यवस्था के सन्दर्भ में उपरोक्त विधियों द्वारा अभिप्रेरित किया जा सकता है।
अभिप्रेरणा की प्रक्रिया को सम्पन्न करने की उपरोक्त विधियों में से किसी एक विधि का उपयोग या एक से अधिक विधियों का उपयोग आवश्यकता के अनुसार किया जा सकता है।