मौलाना अबुल कलाम आजाद का जन्म 11 नवंबर 1888 को मक्का, सऊदी अरब में हुआ था। उनका पूरा नाम ‘अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन’ था। भारतीय स्वतंत्रता सेनानी मौलाना आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने और देश की आज़ादी के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। स्वतंत्रता संग्राम और शिक्षा क्षेत्र में उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए 1992 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। मौलाना आजाद ने मेडिकल कॉलेज, आईआईटी और यूजीसी जैसी महत्वपूर्ण संस्थाओं की स्थापना में अहम भूमिका निभाई। 11 नवंबर को उनकी जयंती मनाई जाती है, जिसे उनकी स्मृति में राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। उन्होंने 1947 से 1958 तक शिक्षा मंत्री के रूप में कार्य किया और एक प्रखर स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष किया।
अबुल कलाम आज़ाद (Maulana Azad) का संक्षिप्त परिचय | |
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पूरा नाम | अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन (Abul Kalam Ghulam Muhiyuddin) |
प्रसिद्ध नाम | मौलाना आज़ाद (Maulana Azad) |
जन्म तिथि | 11 नवंबर 1888 |
जन्म स्थान | मक्का, सऊदी अरब |
माता-पिता | पिता : मौलवी खैरुद्दीन, माता : अरेबियाई मूल की थीं |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
व्यवसाय | स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद्, लेखक, राजनीतिज्ञ |
प्रमुख योगदान | भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, हिंदू-मुस्लिम एकता, भारत की शिक्षा प्रणाली का विकास |
राजनीतिक दल | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका | असहयोग आंदोलन, खिलाफत आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भागीदारी |
महत्वपूर्ण पद | 1923 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे युवा अध्यक्ष (35 वर्ष की उम्र में), 1940 से 1946 तक कांग्रेस के अध्यक्ष |
भारत की स्वतंत्रता के बाद | 1947 से 1958 तक स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री |
शैक्षिक योगदान | आईआईटी, IISc, UGC, स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर की स्थापना, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) की स्थापना, साहित्य अकादमी, संगीत नाटक अकादमी, ललित कला अकादमी का गठन |
महत्वपूर्ण कृतियाँ | गुबार-ए-खातिर, इंडिया विंस फ्रीडम, बेसिक कॉन्सेप्ट ऑफ कुरान, दर्श-ए-वफा |
सम्मान | 1992 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित |
मृत्यु तिथि | 22 फरवरी 1958 |
जयंती एवं स्मृति दिवस | राष्ट्रीय शिक्षा दिवस (11 नवंबर) उनकी जयंती पर मनाया जाता है मौलाना आज़ाद स्मृति दिवस (22 फरवरी) उनकी पुण्यतिथि पर मनाया जाता है |
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद: जीवन परिचय
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद एक महान स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद, लेखक और भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और स्वतंत्र भारत में शिक्षा प्रणाली की नींव रखने में अहम योगदान दिया।
प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का जन्म 11 नवंबर 1888 को मक्का, सऊदी अरब में हुआ था। उनका पूरा नाम अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन आज़ाद था। उनके पिता मौलवी खैरुद्दीन एक प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान थे। कुछ समय बाद उनका परिवार भारत आकर कोलकाता में बस गया। मौलाना आज़ाद ने घर पर ही पारंपरिक इस्लामी शिक्षा प्राप्त की और कई भाषाओं जैसे अरबी, फारसी, उर्दू, हिंदी और अंग्रेज़ी में महारत हासिल की।
मौलाना आज़ाद महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थे और स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन, खिलाफत आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।
- 1912 में उन्होंने ‘अल-हिलाल’ नामक पत्रिका निकाली, जिसमें ब्रिटिश सरकार की नीतियों की कड़ी आलोचना की गई।
- 1920 में वे असहयोग आंदोलन में शामिल हुए और कई बार जेल भी गए।
- 1923 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे युवा अध्यक्ष बने।
- 1942 में उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन का समर्थन किया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
भारत की स्वतंत्रता के बाद 1947 से 1958 तक मौलाना आज़ाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री रहे। उनके कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण नीतियां बनाई गईं—
- आईआईटी, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) और मेडिकल कॉलेजों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति की नींव रखी और प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाया।
- संगीत नाटक अकादमी, साहित्य अकादमी और ललित कला अकादमी की स्थापना की।
मौलाना आज़ाद के योगदान को देखते हुए 1992 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उनकी जयंती 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाई जाती है।
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का निधन 22 फरवरी 1958 को हुआ, लेकिन उनकी शिक्षा और स्वतंत्रता संग्राम में दी गई सेवाएं आज भी प्रेरणादायक बनी हुई हैं।
मौलाना आज़ाद का स्वतंत्रता पूर्व योगदान
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख नेता थे, जिन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया और भारत के विभाजन का कट्टर विरोध किया।
पत्रकारिता और राष्ट्रवाद:
- 1912 में उन्होंने ‘अल-हिलाल’ नामक उर्दू साप्ताहिक पत्रिका की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य हिंदू-मुस्लिम एकता को मजबूत करना था। यह पत्रिका मॉर्ले-मिंटो सुधारों (1909) के कारण उपजे सांप्रदायिक तनाव को कम करने में प्रभावी रही।
- 1909 के सुधारों में मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचक मंडल का प्रावधान था, जिसका हिंदुओं ने विरोध किया था।
- ब्रिटिश सरकार ने 1914 में ‘अल-हिलाल’ पर प्रतिबंध लगा दिया, क्योंकि वह इसे अलगाववादी विचारों का प्रचारक मानती थी।
- इसके बाद, मौलाना आज़ाद ने ‘अल-बालाग’ नामक एक अन्य साप्ताहिक पत्र शुरू किया, जिसका उद्देश्य भी भारतीय राष्ट्रवाद और हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देना था।
- 1916 में, ब्रिटिश सरकार ने ‘अल-बालाग’ पर भी प्रतिबंध लगा दिया और मौलाना आज़ाद को कलकत्ता से निष्कासित कर बिहार भेज दिया, जहाँ वे 1920 में प्रथम विश्व युद्ध के बाद रिहा हुए।
स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका:
- 1920 में, उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन का समर्थन किया और उसी वर्ष भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए।
- 1923 में, उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। वे सिर्फ 35 वर्ष की उम्र में इस पद पर पहुंचने वाले सबसे युवा अध्यक्ष बने।
- 1930 में, उन्होंने गांधीजी के नमक सत्याग्रह में भाग लिया और नमक कानून तोड़ने के कारण उन्हें गिरफ्तार कर मेरठ जेल भेज दिया गया, जहाँ वे डेढ़ वर्ष तक कैद रहे।
- 1940 में, वे पुनः भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने और 1946 तक इस पद पर बने रहे।
एक महान शिक्षाविद्
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद न केवल स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता थे, बल्कि एक प्रबुद्ध शिक्षाविद् भी थे। उन्होंने भारतीय शिक्षा प्रणाली को एक नई दिशा देने के लिए सर्वहितकारी एवं उदारवादी दृष्टिकोण अपनाया।
शैक्षिक विचारधारा:
- मौलाना आज़ाद की शिक्षा संबंधी विचारधारा पूर्वी और पश्चिमी अवधारणाओं के सम्मिश्रण पर आधारित थी।
- पूर्वी शिक्षा प्रणाली जहाँ आध्यात्मिक उत्कृष्टता और व्यक्तिगत मोक्ष पर केंद्रित थी, वहीं पश्चिमी प्रणाली ने वैज्ञानिक सोच, सामाजिक प्रगति और सांसारिक उपलब्धियों को महत्व दिया।
- उन्होंने इन दोनों धाराओं का संतुलन स्थापित करने पर बल दिया ताकि एक समग्र एवं एकीकृत व्यक्तित्व का निर्माण किया जा सके।
शैक्षिक योगदान:
- वे 1920 में अलीगढ़ में स्थापित जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के संस्थापक सदस्यों में से एक थे।
- स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री (1947-1958) के रूप में उन्होंने आईआईटी, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), संगीत नाटक अकादमी, साहित्य अकादमी और ललित कला अकादमी जैसी संस्थाओं की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- उनकी नीतियों के कारण भारत में मौलिक शिक्षा प्रणाली मजबूत हुई और प्राथमिक शिक्षा को अधिक व्यवस्थित एवं अनिवार्य बनाया गया।
रचनाएँ
मौलाना आज़ाद ने शिक्षा, समाज और इस्लामी दर्शन पर कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं, जिनमें प्रमुख हैं:
- बेसिक कॉन्सेप्ट ऑफ कुरान
- गुबार-ए-खातिर
- दर्श-ए-वफा
- इंडिया विंस फ्रीडम
मौलाना आज़ाद के ये विचार और योगदान आज भी भारत की शिक्षा व्यवस्था के लिए प्रेरणादायक हैं।
मौलाना आज़ाद का स्वतंत्रता के पश्चात् योगदान
1947 में, भारत की स्वतंत्रता के बाद मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को देश के पहले शिक्षा मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। वे 1958 में अपने निधन तक इस पद पर बने रहे और भारतीय शिक्षा प्रणाली के विकास में असाधारण योगदान दिया।
शिक्षा के क्षेत्र में योगदान:
- उनके कार्यकाल में भारत में प्रथम IIT, IISc, स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की स्थापना हुई।
- भारतीय शिक्षा प्रणाली को सुदृढ़ करने के लिए उन्होंने तकनीकी और उच्च शिक्षा को बढ़ावा दिया।
भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में योगदान:
- अन्य देशों में भारतीय संस्कृति के प्रचार हेतु भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) की स्थापना की।
- भारतीय कला, साहित्य और संगीत के विकास के लिए तीन प्रमुख अकादमियों का गठन किया—
- साहित्य अकादमी – भारतीय साहित्य के विकास के लिए।
- संगीत नाटक अकादमी – भारतीय संगीत और नृत्य को प्रोत्साहित करने के लिए।
- ललित कला अकादमी – भारतीय चित्रकला और ललित कलाओं के संरक्षण के लिए।
सम्मान और विरासत
- मौलाना आज़ाद को 1992 में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।
- उनकी 11 नवंबर की जयंती को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
राष्ट्रीय शिक्षा दिवस: 11 नवंबर
राष्ट्रीय शिक्षा दिवस भारत में हर साल 11 नवंबर को मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यह दिवस शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाने और शिक्षा प्रणाली के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए समर्पित है। इसे 2008 में आधिकारिक रूप से घोषित किया गया था।
मौलाना आज़ाद स्मृति दिवस: 22 फरवरी
मौलाना आज़ाद स्मृति दिवस भारत में 22 फरवरी को मनाया जाता है, जो मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की पुण्यतिथि का दिन है। यह दिवस शिक्षा, राष्ट्रीय एकता और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को सम्मान देने के लिए समर्पित है। इस अवसर पर विभिन्न शैक्षिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
मौलाना अबुल कलाम के कोट्स और अनमोल विचार
हमने किसी पर आक्रमण नहीं किया है। हमने किसी पर विजय प्राप्त नहीं की है। हमने उनकी जमीन, उनकी संस्कृति, उनके इतिहास को नहीं पकड़ा है और उन पर हमारे जीवन के तरीके को लागू करने की कोशिश की है।
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के कोट्स:
अपने मिशन में सफल होने के लिए, आपके पास अपने लक्ष्य के लिए एकल-दिमाग वाली भक्ति होनी चाहिए।
- बहुत से लोग पेड़ लगाते हैं लेकिन उनमें से कुछ को ही इसका फल मिलता है।
- मैं उस अविभाज्य एकता का हिस्सा हूं जो भारतीय राष्ट्रीयता है।
- दिल से दी गई शिक्षा समाज में क्रांति ला सकती है।
- शीर्ष पर चढ़ना ताकत की मांग करता है, चाहे वह माउंट एवरेस्ट के शीर्ष पर हो या आपके करियर के शीर्ष पर।
- अपने सपने सच करने से पहले आपको सपने देखने होंगे।
- क्या हमें यह एहसास नहीं है कि आत्म-सम्मान आत्मनिर्भरता के साथ आता है?
- तेज लेकिन बनावटी खुशी के बाद चलने की तुलना में ठोस उपलब्धियां बनाने के लिए अधिक समर्पित रहें।
- सुंदर नामों को धारण करने पर भी गुलामी सबसे बुरी है।
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के अनमोल विचार
शिक्षाविदों को छात्रों में पूछताछ, रचनात्मकता, उद्यमशीलता और नैतिक नेतृत्व की भावना का निर्माण करना चाहिए और उनका आदर्श बनना चाहिए।
- क्या हमें यह एहसास नहीं है कि आत्म-सम्मान आत्मनिर्भरता के साथ आता है?
- महान सपने देखने वालों के महान सपने हमेशा पूरे होते हैं।
- जो संगीत से प्रभावित नहीं होता वह मानसिक रूप से अस्वस्थ और असंयमी होता है।
- ईश्वर की संतान होने के नाते, जो कुछ भी मेरे साथ घटित हो सकता है, मैं उससे बड़ा हूँ।