स्वामी रामकृष्ण परमहंस (Ramakrishna Paramahamsa) भारतीय संत, विचारक और आध्यात्मिक गुरु थे। वे मां काली के परम भक्त थे और धर्मों की एकता के पुजारी थे। उनका जीवन मानवता, प्रेम और अध्यात्म का आदर्श उदाहरण है। उनके उपदेश आज भी लाखों लोगों को मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। उनका जन्म फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि (18 फरवरी 1836) को बंगाल के कामारपुर में हुआ था।
रामकृष्ण परमहंस की जयंती
हिन्दू पंचांग के अनुसार, रामकृष्ण परमहंस का जन्म फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को हुआ था। अतः रामकृष्ण परमहंस की जयंती फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाई जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह तिथि इस वर्ष ‘1 मार्च’ को पड़ेगी। वर्ष 2025 में उनकी 189वीं जयंती मनाई जाएगी।
कई वेबसाईट्स पर अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार जयंती की डेट 18 फरवरी बताई गई है, परंतु जिस प्रकार होली का त्योहार हिन्दू पंचांग के अनुसार मनाया जाता है, ठीक उसी प्रकार रामकृष्ण परमहंस की जयंती भी हिन्दू पंचांग के अनुसार मनायी जाती है। यह तिथि वर्ष 2025 में 1 मार्च को पड़ेगी।
रामकृष्ण परमहंस के जीवन से संबंधित संक्षिप्त जानकारी:
नाम | रामकृष्ण परमहंस (Ramakrishna Paramahamsa) |
मूल नाम | गदाधर चट्टोपाध्याय |
जन्म तिथि (तिथि अनुसार) | फाल्गुन शुक्ल द्वितीया |
जन्म तिथि (अंग्रेजी कैलेंडर) | 18 फरवरी 1836 |
जन्म स्थान | कामारपुकुर, पश्चिम बंगाल |
पिता का नाम | खुदीराम चट्टोपाध्याय |
माता का नाम | चंद्रमणि देवी |
आध्यात्मिक अनुभव का प्रारंभ | 6-7 वर्ष की आयु |
मुख्य उपदेश | धर्मों की एकता, मानवता की सेवा |
भक्ति | मां काली के परम भक्त |
मुख्य मंदिर | दक्षिणेश्वर काली मंदिर |
प्रमुख उपदेश शैली | उपमा और दृष्टांत के माध्यम से उपदेश देना |
महत्वपूर्ण अनुभव | कम आयु में आध्यात्मिक चेतना का अनुभव |
मृत्यु तिथि | 16 अगस्त 1886 |
मृत्यु स्थान | कोलकाता, पश्चिम बंगाल |
प्रमुख अनुयायी | स्वामी विवेकानंद |
प्रसिद्धि | महान संत, विचारक, समाज सुधारक |
स्वामी रामकृष्ण परमहंस का जीवन परिचय
स्वामी रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी 1836 को पश्चिम बंगाल के कामारपुकुर गांव में हुआ था। हिन्दी पंचांग के अनुसार उनका जन्म फाल्गुन शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर हुआ। उनका बचपन का नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था। पिता का नाम खुदीराम और माता का नाम चंद्रमणि देवी था। ऐसा कहा जाता है कि रामकृष्ण के माता-पिता ने उनके जन्म से पहले ही अलौकिक घटनाओं का अनुभव किया था।
प्रारंभिक जीवन
रामकृष्ण परमहंस के पिता खुदीराम ने एक दृष्टांत में देखा कि भगवान गदाधर ने उनसे कहा कि वे विष्णु के अवतार के रूप में उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे। माता चंद्रमणि ने भी देखा कि शिव मंदिर में उनके गर्भ में एक रोशनी प्रवेश कर रही है। ये अलौकिक अनुभव उनके जीवन की आध्यात्मिक दिशा तय करने में महत्त्वपूर्ण रहे।
रामकृष्ण परमहंस बचपन से ही ईश्वर प्राप्ति के लिए अत्यंत गंभीर थे। उन्होंने कठोर साधना और भक्ति के माध्यम से ईश्वर दर्शन की राह पकड़ी। उनके जीवन में स्कूल की शिक्षा का कोई विशेष स्थान नहीं था। वे न तो अंग्रेजी जानते थे और न ही संस्कृत के जानकार थे। उनका सारा ध्यान मां काली की साधना पर केंद्रित था। उनकी मान्यता थी कि मां काली के दर्शन से जीवन का सार प्राप्त हो सकता है।
पहला आध्यात्मिक अनुभव
कहा जाता है कि रामकृष्ण परमहंस को पहला आध्यात्मिक अनुभव 6-7 वर्ष की उम्र में हुआ। एक दिन खेत में टहलते समय उन्होंने सारस पक्षी का झुंड आसमान में काले बादलों के नीचे उड़ते हुए देखा। उस दृश्य से मोहित होकर वे अचेत हो गए। यही उनका पहला आध्यात्मिक अनुभव था, जिसने उनके जीवन को आध्यात्मिकता की ओर मोड़ दिया।
मां काली के प्रति अटूट भक्ति
रामकृष्ण परमहंस का जनेऊ संस्कार 9 वर्ष की उम्र में हुआ। इसके बाद वे धार्मिक अनुष्ठानों और पूजा में सम्मिलित हो गए। दक्षिणेश्वर काली मंदिर में उनकी नियुक्ति मुख्य पुरोहित के रूप में हुई। इस मंदिर में मां काली की साधना करते हुए उन्हें मां काली के साक्षात दर्शन होने की मान्यता है।
धर्मों की एकता का संदेश
रामकृष्ण परमहंस ने अपने जीवन में सभी धर्मों की एकता पर जोर दिया। उन्होंने हिन्दू, इस्लाम और ईसाई धर्मों की साधना कर यह अनुभव किया कि सभी धर्म एक ही परम-सत्य की ओर ले जाते हैं। वे मानवता के पुजारी थे और उनकी शिक्षा में धर्म के प्रति गहरी श्रद्धा और समानता का भाव था।
स्वामी रामकृष्ण परमहंस का वचनामृत
रामकृष्ण परमहंस की वचनामृत शैली भारत के प्राचीन ऋषियों और संतों की परंपरा का अनुकरण करती थी। वे तर्कों का सहारा लेने की बजाय उपमाओं और दृष्टांतों के माध्यम से अपने उपदेश देते थे। उनकी शिक्षाएँ आज भी जनमानस में गहरी छाप छोड़ती हैं।
निधन
स्वामी रामकृष्ण परमहंस का निधन 16 अगस्त 1886 को कोलकाता में हुआ। उनकी शिक्षाएँ आज भी लाखों लोगों को प्रेरणा देती हैं और उनकी जयंती एक महान संत और विचारक के रूप में मनाई जाती है।
पढ़ें: संत रविदास का जीवन परिचय? क्यों मानते हैं उनकी जयंती।
रामकृष्ण परमहंस के प्रेरणादायक प्रसंग
पहला प्रसंग: भक्ति क्यों नहीं कर पाते हैं?
एक दिन रामकृष्ण परमहंस के एक शिष्य ने पूछा कि व्यक्ति सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति में व्यस्त रहता है, लेकिन भगवान की भक्ति में वैसी व्याकुलता क्यों नहीं होती? परमहंसजी ने उत्तर दिया कि यह अज्ञानता का परिणाम है। मोह-माया में उलझने के कारण व्यक्ति भगवान की ओर ध्यान नहीं दे पाता। जब तक व्यक्ति भोग-विलास में उलझा रहेगा, तब तक वह ईश्वर की भक्ति नहीं कर सकता।
उन्होंने समझाया कि यह स्थिति उस बच्चे की तरह है, जो खिलौनों में खोया रहता है और मां को याद नहीं करता। लेकिन जब वह खिलौनों से ऊब जाता है, तब मां को याद करता है। इसी तरह जब तक मन सांसारिक इच्छाओं के खिलौनों से मुक्त नहीं होगा, तब तक ईश्वर का स्मरण नहीं होगा। भक्ति के लिए सांसारिक इच्छाओं से दूरी बनानी आवश्यक है।
दूसरा प्रसंग: नियमों का उल्लंघन करने पर दंड मिलता है
एक दिन शिष्य ने रामकृष्ण परमहंस से पूछा कि सृष्टि इतनी विशाल और विविधताओं से भरी है, फिर भी यह नियंत्रित कैसे रहती है? परमहंसजी ने उत्तर दिया कि सृष्टि परमात्मा की रचना है, जिसमें हर चीज उनके नियमों के अनुसार चलती है।
उन्होंने समझाया कि प्रकृति के नियम कठोर हैं और इन्हें तोड़ने वालों को दंड अवश्य मिलता है। जैसे असंख्य ग्रह-नक्षत्र अपनी धूरी पर स्थिर रहते हैं और जंगल में जानवर अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करते हैं। इसी प्रकार मनुष्यों को भी समाज के नियमों का पालन करना चाहिए। सृष्टि का नियंत्रण ईश्वर के हाथ में है, इसलिए हमें उनके नियमों के अनुसार चलना चाहिए, अन्यथा प्रकृति दंड देती है।
तीसरा प्रसंग: भक्ति में एक रास्ते पर स्थिर रहना चाहिए
एक चर्चित प्रसंग के अनुसार रामकृष्ण परमहंस ने कहा कि ईश्वर एक हैं, लेकिन उनके पास पहुंचने के मार्ग भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। सभी धर्मों का लक्ष्य एक ही है—ईश्वर की प्राप्ति। इसलिए सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए।
शिष्य ने पूछा कि सभी रास्ते एक ही लक्ष्य तक कैसे पहुंच सकते हैं? रामकृष्णजी ने समझाया कि जैसे किसी छत पर पहुंचने के कई तरीके हो सकते हैं—सीढ़ी, रस्सी या बांस का सहारा। जब एक बार छत पर पहुंच जाते हैं तो सब कुछ स्पष्ट हो जाता है। भक्ति में भी हमें किसी एक मार्ग को चुनकर उस पर अडिग रहना चाहिए। अलग-अलग मार्गों को देखकर भ्रमित होने से हम मंजिल से भटक सकते हैं। दृढ़ता से भक्ति का मार्ग अपनाने पर ही ईश्वर की प्राप्ति संभव है।
रामकृष्ण परमहंस के अनमोल विचार
“जो लोग भगवान को पूरी श्रद्धा और भक्ति से पुकारते हैं, भगवान अवश्य उनकी सुनते हैं।”
“ईश्वर को पाने के लिए मनुष्य को संसार से मोह छोड़ना होगा।”
“ईश्वर एक ही है, लेकिन उसकी ओर जाने के मार्ग अलग-अलग हो सकते हैं।”
“जब तक मनुष्य का मन सांसारिक इच्छाओं में उलझा रहेगा, वह भगवान का स्मरण नहीं कर सकता।”
“मनुष्य को अपने हृदय में प्रेम और करुणा का भाव रखना चाहिए, यही सच्ची भक्ति है।”
“हर धर्म सच्चा है और हर धर्म का लक्ष्य एक ही है—ईश्वर तक पहुंचना।”
“ईश्वर को पाने के लिए तुम्हें अपनी सारी इच्छाओं और अहंकार को त्यागना होगा।”
“प्रेम और भक्ति से ईश्वर को प्रसन्न किया जा सकता है, तर्कों से नहीं।”
“संसार एक परीक्षा है, इसे पार करने के लिए धैर्य और विश्वास की आवश्यकता है।”
“अगर तुम सच्चे हो और सच्चाई के मार्ग पर चलते हो, तो ईश्वर अवश्य तुम्हारा मार्गदर्शन करेंगे।”
FAQs
रामकृष्ण परमहंस कौन थे?
स्वामी रामकृष्ण परमहंस भारत के महान संत, आध्यात्मिक गुरु और विचारक थे। उन्होंने अपने जीवन में सभी धर्मों की एकता पर जोर दिया और मां काली के परम भक्त थे। उन्हें विभिन्न साधनाओं के माध्यम से ईश्वर के दर्शन प्राप्त हुए।
रामकृष्ण परमहंस का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी 1836 को पश्चिम बंगाल के कामारपुकुर नामक गाँव में हुआ था।
रामकृष्ण परमहंस की मुख्य शिक्षाएँ क्या थीं?
उनकी मुख्य शिक्षाएँ सभी धर्मों की एकता, मानवता की सेवा और सच्चे प्रेम व भक्ति के माध्यम से ईश्वर की प्राप्ति पर आधारित थीं। उन्होंने अपने उपदेशों में दृष्टांतों और उपमाओं का प्रयोग कर सरल तरीके से गूढ़ सत्य समझाए।
रामकृष्ण परमहंस को परमहंस की उपाधि क्यों मिली?
"परमहंस" उपाधि का अर्थ है वह व्यक्ति जिसने अपनी इंद्रियों और मन को वश में कर लिया हो। स्वामी रामकृष्ण ने कठोर साधना और भक्ति के माध्यम से आत्मा के उच्चतम स्तर को प्राप्त किया, जिसके कारण उन्हें यह उपाधि दी गई।
रामकृष्ण परमहंस को पहला आध्यात्मिक अनुभव कब हुआ?
रामकृष्ण परमहंस को पहला आध्यात्मिक अनुभव 6-7 वर्ष की आयु में हुआ, सुंदर प्राकृतिक दृश्य देखकर आत्म-ज्ञान की स्थिति प्राप्त हुई। यह अनुभव उनके आगे के आध्यात्मिक जीवन की दिशा निर्धारित करने वाला था।