कस्तूरबा गांधी स्मृति दिवस
कस्तूरबा गांधी स्मृति दिवस (Kasturba Gandhi Memorial Day) हर वर्ष 22 फरवरी को मनाया जाता है, जो महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी के जीवन और योगदान को स्मरण करने का अवसर है। कस्तूरबा गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अपने पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देश की आजादी के लिए संघर्ष किया।
कस्तूरबा गांधी जयंती
कस्तूरबा गांधी जयंती (Kasturba Gandhi Jayanti) हर साल 11 अप्रैल को उनकी जन्म तिथि पर मनाई जाती है। यह दिन उनके बलिदान, समाज सेवा और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को सम्मानित करने के लिए समर्पित है।
कस्तूरबा गांधी का जीवन परिचय
कस्तूरबा गांधी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक प्रमुख महिला और महात्मा गांधी की पत्नी थीं। उन्होंने गांधीजी के साथ कदम से कदम मिलाकर न केवल भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई बल्कि सामाजिक सुधारों के लिए भी संघर्ष किया। उनका जीवन त्याग, समर्पण और देशभक्ति का प्रतीक है।
कस्तूरबा गांधी की संक्षिप्त जीवनी:
नाम | कस्तूरबा गांधी (Kasturba Gandhi) |
पूरा नाम | कस्तूरबा मकनजी गांधी (Kasturba Makanji Gandhi) |
उपनाम | ‘बा’ (गांधी जी द्वारा दिया गया नाम) |
जन्म | 11 अप्रैल 1869, पोरबंदर, गुजरात |
मृत्यु | 22 फरवरी 1944, पुणे, महाराष्ट्र |
पिता का नाम | गोकुलदास मकनजी कपाड़िया |
माता का नाम | व्रजकुंवरबा |
पति | मोहनदास करमचंद गांधी (महात्मा गांधी) |
शादी | 1883 (जब कस्तूरबा 13 वर्ष की थीं) |
बच्चे | 4 बेटे: हरिलाल, मणिलाल, रामदास, देवदास |
धर्म | हिंदू |
शिक्षा | औपचारिक शिक्षा बहुत कम |
मुख्य कार्य | स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी, समाज सेवा |
महत्वपूर्ण योगदान | महिलाओं को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ना |
जेल यात्रा | दक्षिण अफ्रीका में तीन महीने की जेल |
स्वभाव | कड़क, अनुशासनप्रिय, पतिव्रता |
विशेषता | समाज सेवा, महात्मा गांधी की हर कदम पर साथ देना |
मृत्यु स्थल | आगाखान डिटेंशन कैंप, पुणे |
प्रारंभिक जीवन
कस्तूरबा गांधी का जन्म 11 अप्रैल 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। उनके पिता गोकुलदास मकनजी एक सफल व्यापारी थे। बचपन में कस्तूरबा की शिक्षा औपचारिक रूप से नहीं हो पाई, लेकिन उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों से ज्ञान अर्जित किया। उनकी सगाई 7 वर्ष की उम्र में मोहनदास करमचंद गांधी से हुई, और 13 वर्ष की आयु में विवाह संपन्न हुआ।
वैवाहिक जीवन
कस्तूरबा गांधी की शादी महज 13 वर्ष की आयु में महात्मा गांधी जी हुई। विवाह के बाद कस्तूरबा ने अपने पति के साथ हर परिस्थिति में साथ दिया। महात्मा गांधी के इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका जाने के दौरान भी उन्होंने घर और बच्चों की जिम्मेदारी निभाई।
दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष
1888 में, महात्मा गांधी इंग्लैंड में अध्ययन के लिए गए, जबकि कस्तूरबा भारत में रहीं। 1893 में, गांधीजी दक्षिण अफ्रीका में कानूनी कार्य के लिए गए, और 1896 में कस्तूरबा अपने बच्चों के साथ वहां उनके पास पहुंचीं। दक्षिण अफ्रीका में, कस्तूरबा ने भारतीय समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्ष में सक्रिय भाग लिया। 1913 में, उन्होंने भारतीय महिलाओं के साथ अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ सत्याग्रह में भाग लिया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें जेल भी जाना पड़ा। इस दौरान, कस्तूरबा ने महिलाओं को संगठित किया और उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया।
भारत में स्वतंत्रता संग्राम
1915 में, गांधीजी और कस्तूरबा भारत लौटे और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हो गए। कस्तूरबा ने चंपारण सत्याग्रह (1917) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जहां उन्होंने महिलाओं को शिक्षा, स्वच्छता और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया। खेड़ा सत्याग्रह (1918) के दौरान, उन्होंने महिलाओं को संगठित किया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन में भाग लिया। 1922 में, गांधीजी की गिरफ्तारी के बाद, कस्तूरबा ने स्वतंत्रता संग्राम में नेतृत्व किया और विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार का आह्वान किया। 1930 के दांडी मार्च और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्होंने सक्रिय भागीदारी निभाई।
- चंपारण सत्याग्रह (1917): उन्होंने महिलाओं को स्वच्छता और शिक्षा के प्रति जागरूक किया।
- खेड़ा सत्याग्रह (1918): उन्होंने महिलाओं को संगठित किया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन में भाग लिया।
- दांडी मार्च (1930): कस्तूरबा ने नमक सत्याग्रह में भाग लिया और विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार में सक्रिय भूमिका निभाई।
- भारत छोड़ो आंदोलन (1942): कस्तूरबा ने महिलाओं को आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
व्यक्तिगत जीवन और संघर्ष
कस्तूरबा गांधी का जीवन त्याग, समर्पण और संघर्ष का प्रतीक था। उन्होंने अपने पति के साथ आश्रमों में सादा जीवन व्यतीत किया और सत्य, अहिंसा और स्वदेशी के सिद्धांतों का पालन किया। कस्तूरबा ने अपने चार पुत्रों—हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास—का पालन-पोषण किया, लेकिन परिवार की जिम्मेदारियों के साथ-साथ उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई। उनका स्वास्थ्य अक्सर खराब रहता था, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने कर्तव्यों से मुंह नहीं मोड़ा।
गांधी अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, “मैं सोचता था कि मेरी पत्नी कहां जाती है, यह जानना मेरा हक है। लेकिन कस्तूरबा को कैद बर्दाश्त नहीं थी। जितना दबाव डालता, वह उतनी ही स्वतंत्रता लेतीं।” बाद में गांधी ने कहा कि जैसे-जैसे उन्होंने कस्तूरबा को जाना, उनके प्रति प्रेम और सम्मान बढ़ता गया।
जेल जीवन और त्याग
कस्तूरबा गांधी को स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई बार जेल जाना पड़ा। 1942 में उन्हें पुणे के आगा खां महल में नजरबंद किया गया, जहां उनका स्वास्थ्य बिगड़ता गया।
निधन
कस्तूरबा गांधी का निधन 22 फरवरी 1944 को 74 वर्ष की आयु में आगा खां महल में हुआ, जहां वे महात्मा गांधी के साथ बंदी थीं।
विरासत
कस्तूरबा गांधी के योगदान को स्मरण करने के लिए कई स्मारकों और संस्थाओं की स्थापना की गई। कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट उनके नाम पर चलाया जाता है, जो महिलाओं और बच्चों के कल्याण के लिए कार्य करता है।
कस्तूरबा गांधी के जीवन से जुड़े रोचक तथ्य
कस्तूरबा गांधी, जिन्हें ‘बा‘ के नाम से भी जाना जाता है, महात्मा गांधी की पत्नी और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक प्रमुख हस्ती थीं। वह गांधी के सत्याग्रह, समर्पण और त्याग में बराबर की सहभागी रहीं। हर कदम पर उनका साथ दिया। बहस भी की, मगर हर फैसले को माना। कुछ लोग उन्हें महिला सशक्तिकरण की मिसाल मानते हैं, तो कुछ उन्हें सिर पर पल्लू लिए पति के पीछे चलने वाली साधारण घरेलू महिला मानते हैं।
‘बा’ कौन थीं- एक घरेलू महिला या सशक्त नारी की मिसाल?
नीलिमा डालमिया आधार, जिन्होंने कस्तूरबा गांधी पर ‘द सीक्रेट डायरी ऑफ कस्तूरबा‘ लिखी, बताती हैं कि बा पारंपरिक और पतिव्रता स्त्री थीं। शादी से लेकर आखिरी सांस तक उन्होंने गांधी के हर फैसले में उनका साथ दिया। वह एक आदर्श पत्नी और मां बनने की कोशिश में लगी रहीं। उन्होंने घर और आश्रम संभाला। अपने बच्चों के साथ आंदोलनकारियों पर भी ममता लुटाई। उन्होंने महिलाओं को आंदोलन से जोड़ा, जिससे आजादी की चिंगारी हर घर तक पहुंची।
नीलिमा कहती हैं, “शोध करने पर मुझे एहसास हुआ कि कस्तूरबा केवल घरेलू महिला नहीं थीं। वह आत्मनिर्भर और साहसी थीं। गांधी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रहीं।”
गांधी का साथ दिया, पर अधिकार भी जताया
कस्तूरबा और गांधी के बीच कई बार मतभेद हुए। लेकिन वह हर मुश्किल में गांधी के साथ खड़ी रहीं। आश्रम में गांधी के आसपास महिलाओं की उपस्थिति पर भी कस्तूरबा को कोई संदेह नहीं हुआ। एक बार मीरा बेन ने गांधी के साथ रहने की बात कही, तो कस्तूरबा ने कहा, “नहीं, वह मेरे साथ रहेंगे।”
जब सरला देवी से गांधी का नाम जुड़ा, तो करीबी लोग कस्तूरबा के पास पहुंचे। कस्तूरबा ने कहा, “मेरा पति कहीं नहीं जाएगा। वह जो मुझमें नहीं पा रहा, उसे बाहर ढूंढ रहा है।”
ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं कस्तूरबा
कस्तूरबा गांधी ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थीं, इसलिए शादी के बाद गांधी जी ने उन्हें पढ़ाने का निर्णय लिया। हालांकि, कस्तूरबा का पूरा ध्यान अपने पति की सेवा में ही लगा रहा। आज भी कस्तूरबा गांधी का नाम एक आदर्श जीवन संगिनी के रूप में लिया जाता है। वह हर कदम पर महात्मा गांधी के साथ परछाई की तरह रहीं। यहां तक कि जब गांधी जी दक्षिण अफ्रीका गए, तब भी कस्तूरबा साए की तरह उनके साथ चली गईं। शादी के बाद वह पहले उनकी अच्छी दोस्त बनीं और साथ ही एक समर्पित पत्नी का धर्म निभाया। जैसे गांधी जी को लोग “बापू” कहते थे, वैसे ही कस्तूरबा को सभी प्यार से “बा” कहकर बुलाते थे।
बापू से काम को लेकर होते थे झगड़े
कस्तूरबा मन से चंचल, स्वभाव से समझदार और एक पतिव्रता पत्नी थीं। कहा जाता है कि गांधी जी उनके प्रति काफी सख्त थे, जिसकी वजह से दोनों के बीच कई बार झगड़े भी हुए। धीरे-धीरे कस्तूरबा ने गांधी जी के इस सख्त रवैये को भी सहन कर लिया। एक किस्सा बहुत प्रसिद्ध है—जब गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में थे और कस्तूरबा उनके साथ थीं, तब उन्हें घर का सारा काम खुद करना पड़ता था। बापू के घर पर मेहमानों का आना-जाना भी लगा रहता था। चार भाइयों की इकलौती बहन होने के कारण कस्तूरबा बड़े लाड-प्यार में पली थीं, इसलिए शादी के बाद घर के काम और मेहमानों की सेवा करना उनके लिए चुनौतीपूर्ण था।
इससे दोनों के बीच काफी झगड़े होते थे। एक बार झगड़ा इतना बढ़ गया कि गांधी जी ने उन्हें घर से निकालने का फैसला कर लिया। उन्होंने कस्तूरबा से एक मेहमान का टॉयलेट साफ करने के लिए कहा, लेकिन कस्तूरबा ने मना कर दिया। इस बात पर दोनों में खूब लड़ाई हुई। बाद में जब गांधी जी खुद टॉयलेट साफ करने लगे तो कस्तूरबा को शर्मिंदगी महसूस हुई।
तीन महीने जेल भी गई थीं कस्तूरबा
महात्मा गांधी की पत्नी होने के साथ-साथ कस्तूरबा की अपनी भी एक सशक्त पहचान थी। वह एक समाज सेविका थीं। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के अमानवीय हालातों के खिलाफ उन्होंने आवाज उठाई, जिसके कारण उन्हें तीन महीने के लिए जेल भी जाना पड़ा। कस्तूरबा का स्वभाव कड़क और व्यक्तित्व अनुशासनप्रिय था, जो उनके दृढ़ चरित्र को दर्शाता है।
गांधी को बापू बनाने वाली शक्ति
कस्तूरबा गांधी के लिए श्रद्धा और भक्ति से भरी थीं। उन्होंने अपनी आखिरी सांस गांधी की गोद में ली। उनके जाने के बाद गांधी ने लिखा, “बा हमेशा जानती थीं कि मैं उनके बिना टूट जाऊंगा। वह मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा थीं। उनके जाने से जो सूनापन आया है, वह कभी नहीं भर सकता।”
कस्तूरबा गांधी का जीवन त्याग, समर्पण और साहस का प्रतीक है। उन्होंने न केवल एक पत्नी के रूप में महात्मा गांधी का साथ दिया, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में एक सक्रिय नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई। उनका योगदान भारतीय इतिहास में सदैव स्मरणीय रहेगा, और कस्तूरबा गांधी स्मृति दिवस हमें उनके आदर्शों और मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देता है।