उद्दीपन परिवर्तन कौशल (Stimulus Variation Skill)
यदि शिक्षण को प्रभावी तथा अधिगम को अधिकतम बनाना है तो शिक्षक को चाहिये कि वह जिन शब्दों अथवा अशाब्दिक शारीरिक क्रियाओं का उपयोग विद्यार्थियों की पाठ को समझने हेतु जिन भावनाओं एवं क्रियाओं को उद्दीप्त करने हेतु कर रहा है, उनमें यान्त्रिकता या अभ्यस्त शब्दों के अधिकतम प्रयोग से यथासम्भव दूर रहे। उन्हें अपनी आदतन कमजोरी के रूप में विद्यार्थियों के समक्ष न आने दे। प्रसंग एवं परिस्थिति के अनुरूप जहाँ, जो उद्दीपक सर्वाधिक प्रभावी सिद्ध हो उसी का उपयोग करे। इसी का नाम है उद्दीपन परिवर्तन (Stimulus variation)।
यदि विद्यार्थियों की प्रकृति का उनकी आयु के अनुरूप अध्ययन किया जाय तो छोटे बच्चों के लिये जब तक उनकी शाब्दिक एवं भाषायी जानकारी बहुत अधिक नहीं होती वहाँ शाब्दिक उद्दीपकों की तुलना में अशाब्दिक उद्दीपक ही अधिक प्रभावी सिद्ध होते हैं। उन्हें प्रेम से पुचकारना, लाड़ जताना आदि भी उद्दीपन का भरपूर काम करते हैं।
सहायक साधन भी विद्यार्थियों की आयु के अनुरूप प्रकृति तथा पढ़ायी जाने वाली विषयवस्तु दोनों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों ही रूपों में उद्दीपन का कार्य करते हैं, क्योंकि कहीं किसी पदार्थ अथवा प्राणी का मूर्त रूप प्रभावी सिद्ध होता है तो कहीं उसका प्रतिरूप और कहीं उसका चित्र एवं विषयवस्तु के स्पष्टीकरण से सम्बन्धित तालिकाएँ आदि, इनके द्वारा पाठ को समझने में रुचि उत्पन्न होती और सहायता मिलती है तो रुचि भी एक बहुत प्रभावी उद्दीपक है; क्योंकि दोनों की ही सम्बन्ध अन्ततः मन ही से तो है।
अत: इस दृष्टि से भी शिक्षक को अपनी निजी क्रियाओं के साथ ही साथ ऐसे साधनों का उपयोग करना चाहिये जो उस प्रसंग को समझाने हेतु सर्वाधिक उपयुक्त प्रतीत हो। ऐसा करने से भी स्वत: ही उद्दीपन परिवर्तन भी होगा तथा पाठ की विषयवस्तु भी सरलता से समझ में आ जायेगी। इस दृष्टि से कह सकते हैं कि-
पढ़ायी जाने वाली विषयवस्तु को समझाने हेतु, विद्यार्थियों की मानसिक एकाग्रता तथा बौद्धिक सक्रियता को उद्दीप्त करने की दृष्टि से शिक्षक द्वारा ‘स्व‘ एवं ‘सह‘ दृश्य एवं शृव्य क्रियाओं में प्रसंग एवं परिस्थितियों के अनुरूप परिवर्तन करते रहना ही उद्दीपन परिवर्तन है।
पुनर्बलन तथा उद्दीपन परिवर्तन में अंतर
पुनर्बलन (Reinforcement) तथा उद्दीपन परिवर्तन (Stimulation variation) दोनों में कोई विशेष अन्तर न होने के साथ-साथ ये दोनों अन्तः सम्बन्धित ही हैं। अन्तर है तो केवल इतना ही कि सामान्य परिस्थितियों के साथ-साथ विद्यार्थियों में किसी भी कारण से उत्पन्न हताशा की स्थिति उनकी भावनाओं को उद्दीप्त करने से सम्बद्ध अधिक है तो उद्दीपन-परिवर्तन भावनाओं को उद्दीप्त करने के ढंग में परिवर्तन करते रहने से।
अत: सूक्ष्म शिक्षण की दृष्टि से इन दोनों की पाठ-योजनाओं में कोई विशेष अन्तर नहीं होगा। पीछे, हमने पुनर्बलन की सूक्ष्म पाठ-योजना बनाते समय जो उद्दीपक परिवर्तित किये हैं- कहीं ‘शाबाश‘ कहा है तो कहीं ‘बहुत अच्छा‘ तो कहीं कुछ और वही उद्दीपन परिवर्तन है।
शिक्षण की सफलता का एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि छात्रों का ध्यान आकर्षित करने के लिये तथा ध्यान को पाठ में लगाये रखने के लिये शिक्षक अपने व्यवहारों में जान-बूझकर परिवर्तन लाता है। इसे ही उद्दीपन परिवर्तन कौशल कहते हैं।
शिक्षण में रोचकता लाने के लिये शिक्षक अनेक प्रकार के उद्दीपनों का प्रयोग करता है; जैसे– श्यामपट्ट पर लिखना या श्यामपट्ट के पास आना, छात्रों के बीच जाकर प्रश्न पूछना, अपने चेहरे के हाव-भाव बदलकर अपनी बात कहना, हाथ के इशारे से सहायक सामग्री का प्रयोग करना आदि।
उद्दीपन परिवर्तन कौशल की परिभाषाएं
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टेबर, ग्लेसर एवं सेफर के अनुसार- “कोई परिस्थिति, घटना अथवा वातावरण में परिवर्तन से यदि छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन होता है तो उसे उद्दीपन कहते हैं।”
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सी. पी. आर. भटनागर के अनुसार- एक अच्छा शिक्षक सदैव प्रभावशाली शिक्षण के लिये उद्दीपन परिवर्तन कौशल का प्रयोग करता है। कक्षा में पढ़ाते समय शिक्षक को एक स्थान पर खड़े न होकर आवश्यकतानुसार अपने शरीर संचालन, हावभाव तथा स्वर में उतार-चढ़ाव लाना चाहिये तथा किसी विशेष बिन्दु पर केन्द्रीकरण व विराम का प्रयोग करना चाहिये। इस प्रकार शिक्षक छात्रों का ध्यान आकर्षित करके विद्यार्थियों का सहयोग प्राप्त कर सकता है।
उद्दीपन परिवर्तन कौशल के घटक (Components of Stimulus Variation Skill)
उद्दीपन परिवर्तन कौशल के निम्नलिखित घटक होते हैं-
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शरीर संचालन (Body movement)
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हाव-भाव (Gesture)
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स्वर में आरोह-अवरोह (Change of voice)
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केन्द्रीयकरण (Focussing)
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अन्त: क्रिया शैली में परिवर्तन (Change in interaction style (pattern))
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विराम (Pause)
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छात्रों की शारीरिक सहभागिता (Pupil’s physical participation)
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दृश्य-शृव्य क्रम परिवर्तन (Audio visual switching)
1. शरीर संचालन (Body movement)
छात्र किसी उद्दीपन (वस्तु) को एक ही स्थिति में देर तक देखता है तो उसका ध्यान उससे हटने लगता है। यह स्थिति अध्यापक के साथ भी होती है और छात्र आपस में बातें करने लगते हैं। अत: पाठ की ओर छात्रों का ध्यान आकर्षित के लिये शरीर संचालन करना चाहिये; जैसे– हिलना-डुलना, श्यामपट्ट पर जाकर लिखना आदि।
2. हाव-भाव या भावभंगिमा (Gesture)
शिक्षक को पाठयवस्तु को पढ़ाते समय उसके अनुसार हाव-भाव करने चाहिये। यदि दुःख की बात है तो चेहरे पर दु:ख के भाव और यदि खुशी की बात है तो चेहरे पर खुशी के भाव झलकने चाहिये।
3. स्वर में आरोह-अवरोह (Change of voice)
पाठ पढ़ाते समय शिक्षक को पाठ्यवस्तु के अनुसार ऊँची, जोर की, तेज या तीव्र आवाज में बोलना चाहिये। आवाज की गति में उतार-चढ़ाव आना चाहिये। किसी-किसी शब्द पर दबाव डालकर बोलना चाहिये।
4. केन्द्रीयकरण (Focusing)
छात्रों का ध्यान आकर्षित करने के लिये किसी बिन्दु पर केन्द्रीय- करण करना चाहिये। इससे छात्रों का ध्यान आकर्षित हो जाता है और अधिक अधिगम होता है; जैसे यह कहना कि “इधर ध्यान दो, यह चित्र देखो” या किसी निश्चित बिन्दु पर हाथ रखकर कुछ बताना, या Pointer के संकेत से बताना आदि।
5. अन्तःक्रिया शैली में परिवर्तन (Change in interaction style (pattern))
जब दो या दो से अधिक व्यक्ति एक-दूसरे से मौखिक वार्तालाप करते हैं तो इसे मौखिक अन्तः क्रिया की संज्ञा दी जाती है। कक्षा में कई प्रकार की अन्तःक्रिया होती हैं। छात्र सहभागिता के लिये अन्त:क्रिया शैली में परिवर्तन से प्रोत्साहन मिलता है।
6. विराम (Pause)
विराम का अर्थ है शिक्षक का बोलते-बोलते रुक जाना ताकि छात्रों का ध्यान उस ओर हो जाये। यदि शिक्षक स्वयं बोलता जाता है और छात्र को कुछ बोलने का मौका नहीं देता है तो पाठ नीरस हो जाता है। अतः बीच में रुककर छात्र की सहभागिता लेनी चाहिये।
7. छात्रों की शारीरिक सहभागिता (Pupil’s physical participation)
पाठ्यवस्तु के शिक्षण में छात्रों की सहभागिता लेनी चाहिये।
8. दृश्य-श्रव्य क्रम परिवर्तन (Audio visual switching)
शिक्षक पढ़ाते समय चित्र, मॉडल, चार्ट आदि दिखाता है जिससे छात्र अधिक सीखते हैं। शिक्षक को बदल-बदल कर ये चीजें दिखानी चाहिये।