रमाबाई आम्बेडकर की जयंती हर वर्ष 7 फरवरी को मनाई जाती है। उनका जन्म 7 फरवरी 1897 को महाराष्ट्र के दाभोल के पास वंणदगांव में हुआ था। रमाबाई ने अपने कठिन जीवन में भारत के संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर का हर कदम पर साथ दिया और उनके संघर्षपूर्ण जीवन में सहारा बनीं। उनकी जयंती पर लोग उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनके योगदान को याद करते हैं।
माता रमाबाई का संक्षिप्त जीवन परिचय:
पूरा नाम | रमाबाई अंबेडकर (Ramabai Ambedkar) |
जन्म तिथि | 7 फरवरी 1897 |
जन्म स्थान | वंणदगांव, दाभोल, महाराष्ट्र |
पिता का नाम | भिकु धुत्रे (वलंगकर) |
माता का नाम | रुक्मिणी |
भाई-बहन | 1 भाई (शंकर) और 3 बहनें |
विवाह तिथि | अप्रैल 1906 |
पति का नाम | डॉ. भीमराव अंबेडकर |
बच्चों की संख्या | 5 (केवल यशवंतराव जीवित रहे) |
मृत्यु तिथि | 27 मई 1935 |
मृत्यु स्थान | मुंबई, महाराष्ट्र |
महत्वपूर्ण योगदान | डॉ. अंबेडकर का धैर्यपूर्वक समर्थन और सेवा |
रमाबाई आम्बेडकर का जीवन परिचय
रमाबाई का जन्म एक 7 फरवरी 1897 को एक गरीब परिवार में हुआ था। वह अपने पिता भिकु धुत्रे (वलंगकर) और माता रुक्मिणी के साथ वंणद गांव में नदी किनारे महारपुरा बस्ती में रहती थीं। उनके परिवार में तीन बहनें और एक भाई, शंकर, थे। उनकी बड़ी बहन दापोली में रहती थीं। रमाबाई के पिता भिकु, दाभोल बंदरगाह से मछलियों से भरी टोकरियां बाजार तक पहुंचाने का काम करते थे।
रमाबाई के बचपन में ही उनकी माता का बीमारी के कारण निधन हो गया, जिससे बच्ची रमा के मन पर गहरा आघात हुआ। उस समय उनकी छोटी बहन गौरा और भाई शंकर भी काफी छोटे थे। कुछ दिनों बाद उनके पिता भिकु का भी देहांत हो गया। इसके बाद वलंगकर चाचा और गोविंदपुरकर मामा उन बच्चों को लेकर मुंबई चले गए, जहां वे भायखला की एक चॉल में रहने लगे।
सुभेदार रामजी अंबेडकर अपने पुत्र भीमराव अंबेडकर के लिए वधू की तलाश कर रहे थे। इस दौरान उन्हें रमाबाई के बारे में पता चला। वह रमाबाई को देखने गए और उन्हें पसंद किया। इसके बाद उन्होंने रमाबाई के साथ अपने पुत्र भीमराव की शादी तय कर दी।
विवाह की तारीख तय की गई, और अप्रैल 1906 में रमाबाई का विवाह भीमराव अंबेडकर से संपन्न हुआ। उस समय रमाबाई की आयु महज 9 वर्ष थी, जबकि भीमराव 14 वर्ष के थे और 5वीं कक्षा में पढ़ रहे थे। 27 मई 1935 को सुबह 9 बजे रमाबाई का निधन हो गया।
प्रारंभिक जीवन
रमाबाई अम्बेडकर का जन्म 7 फरवरी 1897 को दाभोल के पास वंणदगांव में एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम भिक्कू धुत्रे और माता का नाम रुक्मिणी था। रमाबाई तीन बहनों और एक भाई के साथ नदी किनारे महारपुरा बस्ती में रहती थीं। बचपन में ही उनकी माँ का बीमारी से निधन हो गया, और कुछ ही समय बाद उनके पिता भीखू भी चल बसे। इसके बाद वलंगकर काका और गोविंदपुरकर मामा बच्चों को लेकर मुंबई चले गए और बायकुला मार्केट की एक चॉल में रहने लगे।
विवाह और शिक्षा
रमाई और भीमराव अंबेडकर का विवाह 1906 में भायखला की सब्जी मंडी में हुआ। विवाह के समय बाबासाहेब की उम्र 14 वर्ष और रमाई की उम्र 9 वर्ष थी। विवाह के बाद रमाई का नाम बदलकर रमाबाई हो गया। शादी से पहले रमाई अनपढ़ थीं, लेकिन भीमराव अंबेडकर ने उन्हें बुनियादी लिखना और पढ़ना सिखाया, ताकि वह अपनी लिखावट खुद लिख सकें। डॉ. अंबेडकर उन्हें ‘रामो’ कहकर बुलाते थे, जबकि रमाबाई उन्हें ‘साहेब’ कहती थीं।
परिवार और संतान
1924 तक रमाबाई और भीमराव के पांच बच्चे हुए। उनके सबसे बड़े पुत्र यशवंतराव का जन्म 12 दिसंबर 1912 को हुआ। उस समय भीमराव अंबेडकर अपने परिवार के साथ बीआईटी चॉल, पैबावड़ी, परेल, मुंबई में रहते थे।
जीवन की कठिनाइयाँ
जनवरी 1913 में भीमराव को बड़ौदा स्टेट आर्मी में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्त किया गया, लेकिन पिता रामजी सकपाल की बीमारी के कारण उन्हें जल्द ही मुंबई लौटना पड़ा। रमाबाई ने दिन-रात सेवा कर अपने ससुर का इलाज किया, लेकिन 2 फरवरी 1913 को उनका निधन हो गया।
रमाबाई का संघर्ष एवं सहनशीलता: बच्चों का जन्म और मृत्यु
अपने पिता की मृत्यु के बाद भीमराव उच्च शिक्षा के लिए विदेश चले गए और 1914 से 1923 तक लगभग 9 वर्षों तक विदेश में रहे। इस दौरान रमाबाई ने परिवार की पूरी जिम्मेदारी निभाई और कठिन परिस्थितियों में अपने परिवार को संभाला।
दिसंबर 1940 में डॉ. भीमराव अंबेडकर ने “पाकिस्तान के विचार” नामक पुस्तक लिखी और इसे अपनी पत्नी रमाबाई को समर्पित किया।
अर्पण में अंबेडकर ने लिखा: “मैं यह पुस्तक रामो को उसकी मन की पवित्रता, मानसिक सामंजस्य, मेरे साथ कष्ट सहने में उसके आचरण की पवित्रता, अभाव और संकट के समय में सहिष्णुता और सहमति दिखाने के लिए उसकी सराहना करते हुए भेंट करता हूँ, जब हमारा कोई सहायक नहीं था…”
जब बाबासाहेब अमेरिका गए थे, तब रमाबाई गर्भवती थीं। उन्होंने एक पुत्र (रमेश) को जन्म दिया, लेकिन उसकी शिशु अवस्था में ही मृत्यु हो गई। बाबासाहेब के लौटने के बाद एक और पुत्र, गंगाधर का जन्म हुआ, लेकिन वह भी ढाई वर्ष की अल्पायु में ही चल बसा।
डॉ. अंबेडकर ने एक बार गंगाधर की मृत्यु का जिक्र करते हुए बताया कि उचित उपचार न मिलने के कारण उसकी मृत्यु हो गई। शव को ढंकने के लिए कपड़े लाने के पैसे न होने पर रमाबाई ने अपनी साड़ी से कपड़ा फाड़ दिया, जिससे शव को लपेटा गया और कब्रिस्तान में दफनाया गया।
उनका एकमात्र जीवित पुत्र, यशवंत, भी कमजोर स्वास्थ्य से ग्रस्त था। रमाबाई उसकी बीमारी को लेकर बहुत चिंतित रहती थीं, लेकिन उन्होंने हमेशा इस बात का ध्यान रखा कि बाबासाहेब के काम और पढ़ाई में कोई बाधा न आए। उनके त्याग और सहनशीलता ने बाबासाहेब के जीवन में अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अपने पति के प्रयासों से रमाबाई ने थोड़ा-बहुत पढ़ना-लिखना सीख लिया था। महापुरुषों के जीवन में यह अक्सर देखा गया है कि उन्हें जीवन साथी के रूप में बेहद सहनशील और सच्चे साथी मिले। बाबासाहेब भी उन भाग्यशाली महापुरुषों में से एक थे, जिन्हें रमाबाई जैसी नेक और आज्ञाकारी जीवन साथी मिलीं।
बाबासाहेब अम्बेडकर के सबसे छोटे पुत्र का जन्म हुआ और उसका नाम राजरत्न रखा गया। बाबासाहेब अपने बेटे से बहुत प्यार करते थे। रमाई ने एक पुत्री को भी जन्म दिया, लेकिन उसकी शिशु अवस्था में ही मृत्यु हो गई। रमाबाई की तबीयत खराब होने पर उन्हें यशवंत और राजरत्न के साथ हवाई मार्ग से धारवाड़ भेजा गया। लेकिन 19 जुलाई 1926 को सबसे छोटे बेटे राजरत्न की भी मृत्यु हो गई।
बाबासाहेब ने अपने मित्र श्री दत्तोबा पवार को 16 अगस्त 1926 को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने अपने बच्चों की मृत्यु पर गहरा दुख व्यक्त किया:
“हमने चार सुंदर बच्चों को दफनाया है। उनमें से तीन बेटे और एक बेटी थे। अगर वे जीवित होते, तो भविष्य उनका होता। उनकी मृत्यु के बारे में सोचकर मेरा दिल दुखता है। बच्चों की मृत्यु ने जीवन का आनंद छीन लिया है। मेरे बेटों की मृत्यु के कारण मेरा जीवन कांटों से भरे बगीचे जैसा है। अब मेरा मन इतना भर गया है कि मैं और अधिक नहीं लिख सकता…”
आर्थिक कठिनाइयाँ
चारों बच्चों की मौत का मुख्य कारण आर्थिक तंगी थी। डॉ. अम्बेडकर स्वतंत्र जीविका कमाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि पेट भरने में भी कठिनाई होती थी। ऐसे में बच्चों की बीमारी का इलाज कराना संभव नहीं था।
बाबासाहेब के सबसे बड़े पुत्र यशवंतराव ही जीवित बच सके, लेकिन वह हमेशा बीमार रहते थे। रमाबाई और अधिक बच्चे चाहती थीं, लेकिन डॉक्टरों ने चेतावनी दी थी कि अधिक बच्चे पैदा करने से उन्हें टीबी होने का खतरा हो सकता है। बाबासाहेब को इस संबंध में सतर्क रहने की सलाह दी गई थी।
भीमराव अंबेडकर हमेशा सीखते रहते थे और ज्ञान प्राप्ति में रुचि रखते थे। जीवन की तमाम कठिनाइयों के बावजूद उनका शिक्षा और अध्ययन के प्रति समर्पण अटूट था।