हरिशंकर परसाई – जीवन परिचय, कृतियां और भाषा शैली

“हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय देते हुए उनकी भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।” अथवा– “हरिशंकर परसाई की भाषा शैली की प्रमुख विशेषताएं बताइए।”

Harishankar Parsai
Harishankar Parsai Ka Jivan Parichay

Harishankar Parsai

श्री हरिशंकर परसाई हिन्दी के श्रेष्ठ व्यंग्य लेखक हैं। व्यंग्य लेखन में उन्हें प्रवीणता प्राप्त है। समाज, राजनीति, धर्म आदि सभी क्षेत्रों में व्याप्त विसंगतियों को उन्होंने अपने व्यंग्य लेखन से व्यक्त किया है। उनके व्यंग्य अत्यन्त चुटीले एवं प्रभावकारी होते हैं तथा उनका उद्देश्य व्यवस्था में सुधार लाना है।

सामयिक विषयों पर लिखी गई हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचनाओं ने पाठकों को बहुत कुछ सोचने-विचारने का अवसर प्रदान किया है। परसाईजी ने यद्यपि कहानियां, उपन्यास भी लिखे हैं किन्तु इन्हें सर्वाधिक प्रसिद्धि व्यंग्य रचनाओं से ही मिली है।

पूरा नाम हरिशंकर परसाई (Harishankar Parsai)
जन्म तिथि 22 अगस्त, 1924
जन्म स्थान जमानी ग्राम, होशंगाबाद, मध्य प्रदेश, भारत
मृत्यु तिथि 10 अगस्त, 1995
आयु 72 वर्ष
मृत्यु स्थान जबलपुर, मध्य प्रदेश
पेशा व्यंग्यकार, लेखक
शिक्षा एम.ए. हिन्दी
भाषा हिंदी
प्रमुख विधाएँ निबंधउपन्यास, कहानी
साहित्य काल आधुनिक काल
प्रमुख रचनाएँ तट की खोज, रानी नागफनी की कहानी, ज्वाला और जल, भोलाराम का जीव, हंसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, आदि।
प्रसिद्ध हास्य-व्यंग प्रेमचंद के फटे जूते, विकलांग श्रद्धा का दौर, सदाचार का तावीज, बेईमानी की परत, तब की बात और थी, शिकायत मुझे भी है, ठिठुरता हुआ गणतन्त्र, वैष्णव की फिसलन, पगडण्डियों का जमाना, निठल्ले की कहानी, सुनो भाई साधो, और अन्त में, भूत के पांव पीछे
सम्पादन वसुधा (पत्रिका)
पुरस्कार व सम्मान साहित्य अकादमी पुरस्कार (1982), शिक्षा सम्मान, शरद जोशी सम्मान (1992)।

हरिशंकर परसाई का ‘जीवन-परिचय’

हरिशंकर परसाई जी का जन्म 22 अगस्त, 1924 ई. को मध्यप्रदेश के इटारसी के पास जमानी नामक ग्राम में हुआ था। परसाई जी ने प्रारम्भिक शिक्षा “सेमस्टार ग्लोबल स्कूल नैनी इलाहाबाद” में प्राप्त करने के बाद की स्नातक तक की शिक्षा मध्यप्रदेश में प्राप्त की। फिर नागपुर विश्वविद्यालय से एम. ए. की परीक्षा पास की। तत्पश्चात् कुछ वर्षों तक इन्होंने अध्यापन का कार्य किया।

बाल्यावस्था में ही इन्होंने लेखन में रुचि लेना प्रारम्भ कर दिया था। अध्यापन के साथ-साथ साहित्य सृजन भी करते रहे। दोनों कार्य साथ-साथ न चलने के कारण अध्यापन का कार्य छोड़ कर साहित्य-साधना को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। इन्होंने जबलपुर में ‘वसुधा’ नामक पत्रिका के सम्पादन एवं प्रकाशन का कार्य प्रारम्भ किया, लेकिन धन के अभाव में यह बन्द करना पड़ा।

इनके निबन्ध और व्यंग्य पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते थे। उन्होंने नियमित रूप से धर्मयुग और साप्ताहिक हिन्दुस्तान के लिए अपनी रचनाएं लिखीं। हिन्दी के इस यशस्वी व्यंग्यकार का निधन 10 अगस्त, 1995 ई. को हो गया।

साहित्यिक परिचय

हरिशंकर परसाई एक प्रसिद्ध हिंदी व्यंग्यकार और हास्यकार थे, जो समकालीन भारतीय समाज पर अपनी तीक्ष्ण और व्यावहारिक टिप्पणी के लिए जाने जाते हैं। 1924 में इटारसी के पास जमानी, मध्य प्रदेश में जन्मे, परसाई ने पूर्णकालिक लेखन में जाने से पहले एक स्कूली शिक्षक के रूप में अपना करियर शुरू किया।

परसाई जी की रचनाओं ने अक्सर भारतीय राजनीति, नौकरशाही और सामाजिक रीति-रिवाजों के पाखंडों और बेहूदगी का मजाक उड़ाया। उनकी लेखन शैली की विशेषता इसकी सरलता और प्रत्यक्षता थी, जिसमें अक्सर बोलचाल की भाषा का उपयोग किया जाता था और अपने संदेश को व्यक्त करने के लिए खिचड़ी भाषा का प्रयोग किया जाता था। उन्हें विडंबना और कटाक्ष के उपयोग के लिए भी जाना जाता था, जिसे उन्होंने अपने व्यंग्य में बहुत शामिल किया।

परसाई की सबसे प्रसिद्ध विधाओं में “व्यंग्य लेख” और “परसाई की कहानियां” संग्रह आदि शामिल हैं। हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए कई सम्मान और पुरस्कार अर्जित किए। उनकी विरासत लेखकों और पाठकों की पीढ़ियों को प्रेरित करती है, आधुनिक हिंदी साहित्य में सबसे महत्वपूर्ण शख्सियतों में से एक के रूप में उनकी जगह को मजबूत करती है।

कृतियां व रचनाएं

हरिशंकर परसाई की रचनाएँ एवं कृतियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. हास्य-व्यंग्य संकलन – विकलांग श्रद्धा का दौर, सदाचार का तावीज, बेईमानी की परत, तब की बात और थी, शिकायत मुझे भी है, ठिठुरता हुआ गणतन्त्र, वैष्णव की फिसलन, पगडण्डियों का जमाना, निठल्ले की कहानी, सुनो भाई साधो, और अन्त में, भूत के पांव पीछे
  2. निबन्‍घ संग्रह – अपनी-अपनी बीमारी, आवारा भीड़ के खतरे, ऐसा भी सोचा जाता है, काग भगोड़ा, ठिठुरता हुआ गणतंत्र, तब की बात और थी, तुलसीदास चंदन घिसैं, पगडंडियों का जमाना, प्रेमचंद के फटे जूते, बेईमानी की परत, भूत के पांव पीछे, माटी कहे कुम्हार से, शिकायत मुझे भी है, सदाचार का ताबीज, हम एक उम्र से वाकिफ हैं
  3. उपन्यास – रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज, ज्वाला और जल
  4. कहानी संग्रह – हंसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव

भाषागत विशेषताएं

परसाई जी की रचनाओं में व्यंग्य के अनुरूप भाषा का प्रयोग हुआ है। इनकी रचनाओं में बोलचाल के शब्दो, तत्सम शब्दो तथा विदेशी भाषा के शब्दों का प्रयोग हुआ है। लक्षणा एवं व्यजना का कुशल प्रयोग पाठकों को प्रभावित करता है। भाषा के प्रवाह के लिए इन्होंने यत्र-तत्र मुहावरों और कहावतो का भी प्रयोग किया है। परसाई जी सरल भाषा के पक्षपाती थे।

हरिशंकर परसाई के वाक्य छोटे-छोटे एवं व्यंग्य प्रधान हैं। संस्कृत शब्दों के साथ-साथ उर्दू एवं अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग भी वे पर्याप्त मात्रा में अपनी व्यंग्य रचनाओं में करते हैं। परसाई जी भाषा के मर्मज्ञ थे। शब्द की शक्ति से वे भली-भांति परिचित थे ऐसा उनकी रचनाओं को पढ़ने से पता चल जाता है।

शैलीगत विशेषताएं

हरिशंकर परसाई जी की रचनाओं में शैली की विविधता दिखाई पड़ती है। शैली के जो विविध रूप इनकी व्यंग्य रचनाओं में दिखाई पड़ते हैं उनमें से प्रमुख निम्न प्रकार हैं:

व्यंग्यात्मक शैली

व्यंग्यपूर्ण रचनाओं में इस शैली का प्रयोग प्रमुखता से किया गया है। इसमें जीवन के विविध क्षेत्रों में व्याप्त विसंगतियों पर करारी चोट की गई है। भाषा अवसर के अनुकूल सरल, व्यावहारिक
है तथा वाक्य छोटे-छोटे है। लाक्षणिक पदावली एवं व्यंजना शक्ति का उपयोग भी उन्होंने अपनी व्यंग्यात्मक शैली में किया है। यथा :

“सुबह चाय पीकर अखबार देख रहा था कि वे तुफान की तरह कमरे में घुसे ‘साइक्लोन’ की तरह मुझे अपनी भुजाओं में जकड़ा तो मुझे धृतराष्ट्र की भुजाओं में जकड़े भीम के पुतले की याद आ गई।”

प्रश्नात्मक शैली

प्रश्नात्मक शैली में हरिशंकर परसाई जी प्रश्नों की झड़ी लगा देते हैं और फिर स्वयं ही उनका उत्तर भी देते हैं। ऐसे प्रश्न पाठक को भीतर तक झकझोर देते हैं और सोचने-विचारने को मजबूर कर देते हैं। यहां इस शैली का एक उदाहरण प्रस्तुत है-

‘क’ से क्या मैं गले मिला? क्या मुझे उसने समेटकर कलेजे से लगा लिया? हरगिज नहीं। मैंने अपना पुतला ही उसे दिया। पुतला इसलिए उसकी भुजाओं में सौंप दिया कि मुझे मालूम था कि मैं धृतराष्ट्र से मिल रहा हूं।

विवेचनात्मक शैली

हरिशंकर परसाई जी ने अपनी व्यंग्य रचनाओं में कहीं-कहीं वर्णन विवेचन भी किया है। ऐसे स्थलों पर भाषा में गम्भीरता है, संस्कृतनिष्ठ पदावली का प्रयोग है तथा वाक्य छोटे-छोटे किन्तु कसे हुए हैं।
एक उदाहरण प्रस्तुत है-

“निन्दा का उद्गम ही हीनता और कमजोरी से होता है। मनुष्य अपनी हीनता से दबता है। वह दूसरों की निन्दा करके ऐसा अनुभव करता है कि वे सब निकृष्ट हैं और वह उनसे अच्छा है। उसके अहं की इससे तुष्टि होती है।”

सूत्रात्मक शैली

इस शैली में हरिशंकर परसाई गागर में सागर भरते हुए सूत्रों में बात कहते है और फिर उसकी व्याख्या करते है। परसाई जी के निबन्ध निन्दा रस में प्रयुक्त कुछ ऐसे सूत्र वाक्य इस प्रकार हैं-

  • कुछ लोग बड़े निर्दोष मिथ्यावादी होते हैं।
  • ईष्र्या-द्वेष से प्रेरित निन्दा भी होती है।

भावात्मक शैली

जहां कहीं हरिशंकर परसाई जी जीवन के कटु यथार्थ को व्यक्त करते हैं वहां उनकी भावना प्रबल हो जाती है और वे भावात्मक शैली का प्रयोग करते हैं। ऐसे स्थलों पर चिन्तन गौण हो जाता है, भावना प्रबल हो उठती है। वाक्य छोटे-छोटे तथा भाषा सरल एवं व्यावहारिक रहती है।

हिन्दी साहित्य में स्थान

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि हरिशंकर परसाई जी ने सामाजिक रूड़ियों, राजनीतिक विडम्बनाओं तथा सामयिक समस्याओं पर व्यंग्य किया है और यथेष्ट कीर्ति पाई है। ये एक सफल व्यंग्यकार के रूप में स्मरणीय रहेंगे। उनकी व्यंग्य रचनाएं हिन्दी जगत में बड़े आदर की वस्तु हैं तथा एक व्यंग्यकार के रूप में परसाई जी को हिन्दी साहित्य में पर्याप्त यश प्राप्त हुआ है।

मानवीय दु:ख और पीडा को हरिशंकर परसाई ने अनुभव किया है। समाज में व्याप्त विसंगतियों को उन्होंने देखा-परखा है और एक प्रबुद्ध एवं भावुक व्यक्ति होने के कारण वे इन्हें अपनी व्यंग्य रचनाओं के माध्यम से दूर करने के लिए सजग एवं सक्रिय रहे हैं। निश्चय ही उनका योगदान अविस्मरणीय है तथा उनकी व्यंग्य रचनाओं ने हिन्दी को गौरव प्रदान किया है।

FAQs

हरिशंकर परसाई कौन थे?

सन् 1924 में इटारसी के पास जमानी, मध्य प्रदेश में जन्मे, हरिशंकर परसाई एक प्रसिद्ध हिंदी व्यंग्यकार और हास्यकार थे, जो समकालीन भारतीय समाज पर अपनी तीक्ष्ण और व्यावहारिक टिप्पणी के लिए जाने जाते हैं।

हरिशंकर परसाई का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

परसाई जी का जन्म 22 अगस्त सन् 1924 ई. में गाँव जमानी, जिला होशंगाबाद, मध्य प्रदेश, भारत में हुआ था।

हरिशंकर परसाई की मृत्यु कब और कहाँ हुई थी?

श्री हरिशंकर परसाई जी की मृत्यु 10 अगस्त 1995 में 72 वर्ष की उम्र में जबलपुर, मध्य प्रदेश हुई थी।

हरिशंकर परसाई ने शिक्षा कहाँ से प्राप्त की?

व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई जी की प्रारम्भिक शिक्षा “सेमस्टार ग्लोबल स्कूल नैनी इलाहाबाद” से हुई। नागपुर विश्‍वविद्यालय से M.A. की परीक्षा हिन्दी विषय से उत्तीर्ण की। कॉलेज से ग्रेजुएट होने के बाद, उन्होंने अपने कार्य के साथ-साथ लेखन में भी रुचि बनाई।

हिन्दी साहित्य के अन्य जीवन परिचय

हिन्दी अन्य जीवन परिचय देखने के लिए मुख्य प्रष्ठ ‘Jivan Parichay‘ पर जाएँ। जहां पर सभी जीवन परिचय एवं कवि परिचय तथा साहित्यिक परिचय आदि सभी दिये हुए हैं।

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