उत्प्रेक्षा अलंकार – परिभाषा, भेद, और उदाहरण, हिन्दी एवं संस्कृत व्याकरण

Utpreksha Alankar in Hindi

उत्प्रेक्षा अलंकार (Utpreksha Alankar) : जहाँ पर उपमान के न होने पर उपमेय को ही उपमान मान लिया जाए। अर्थात जहाँ पर अप्रस्तुत को प्रस्तुत मान लिया जाए वहाँ पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इस अलंकार में “मनु, जनु, जनहु, जानो, मानहु मानो, निश्चय, ईव, ज्यों” आदि शब्द आते हैं।

यह अलंकार, Hindi Grammar के Alankar के भेदों में से एक हैं। अलंकार का शाब्दिक अर्थ “आभूषण या गहना” होता है। अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना है- “अलम + कार”; यहाँ पर अलम का अर्थ होता है- ‘आभूषण’, जबकि कार का अर्थ- ‘करने वाला’। इसी लिए कहा गया है- “अलंकरोति इति अलंकारः”, अर्थात ‘जो अलंकृत करता है, वही अलंकार है।’

उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा

जिस अलंकार द्वारा उपमेय में उपमान होने की संभावना या कल्पना की जाती है, उस अलंकार को “उत्प्रेक्षा अलंकार” कहते हैं। जैसे-

उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उनका लगा
मानो हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा॥

उत्प्रेक्षा अलंकार के भेद (Utpreksha Alankar Ke Bhed)

उत्प्रेक्षा अलंकार के हिन्दी व्याकरण में मुख्य रूप से तीन भेद होते हैं- वस्तुप्रेक्षा अलंकार, हेतुप्रेक्षा अलंकार, फलोत्प्रेक्षा अलंकार।

  1. वस्तुप्रेक्षा अलंकार
  2. हेतुप्रेक्षा अलंकार
  3. फलोत्प्रेक्षा अलंकार

1. वस्तुप्रेक्षा अलंकार (Vastu Utpreksha Alankar)

जहाँ पर प्रस्तुत में अप्रस्तुत की संभावना दिखाई जाए वहाँ पर वस्तुप्रेक्षा अलंकार होता है।

वस्तुप्रेक्षा अलंकार का उदाहरण:

सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल।
बाहर लसत मनो पिये, दावानल की ज्वाल।।

2. हेतुप्रेक्षा अलंकार (Hetu Utpreksha Alankar)

जहाँ अहेतु में हेतु की सम्भावना देखी जाती है। अर्थात वास्तविक कारण को छोडकर अन्य हेतु को मान लिया जाए वहाँ हेतुप्रेक्षा अलंकार होता है।

हेतुप्रेक्षा अलंकार का उदाहरण:

मुख सम नहि याते कमल,
मनु जल रहयो समाय।

3. फलोत्प्रेक्षा अलंकार (Fal Utpreksha Alankar)

इसमें वास्तविक फल के न होने पर भी उसी को फल मान लिया जाता है वहाँ पर फलोत्प्रेक्षा अलंकार होता है।

फलोत्प्रेक्षा अलंकार का उदाहरण :

खंजरीर नहीं लखि परत कुछ दिन साँची बात।
बाल द्रगन सम हीन को करन मनो तप जात।।

उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण (Examples of Utpreksha Alankar)

नीचे Utpreksha Alankar के उदाहरण अर्थ सहित दिए गए हैं, जिन्हें पढ़कर आप उत्प्रेक्षा अलंकार को और गहनता से समझ सकते हैं-

उत्प्रेक्षा अलंकार का 1 उदाहरण:

ले चला साथ मैं तुझे कनक।
ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण।

स्पष्टीकरण: इस उदाहरण में कनक का अर्थ धतुरा है। कवि कहता है कि वह धतूरे को ऐसे ले चला मानो कोई भिक्षु सोना ले जा रहा हो। इसमें ‘ज्यों’ शब्द का इस्तेमाल हो रहा है एवं कनक–उपमेय में स्वर्ण–उपमान के होने कि कल्पना हो रही है। इसलिए यह उत्प्रेक्षा अलंकार के अंतर्गत आएगा।

उत्प्रेक्षा अलंकार के 2 उदाहरण:

सिर फट गया उसका वहीं।
मानो अरुण रंग का घड़ा हो।

स्पष्टीकरण: इसमें सिर कि लाल रंग का घड़ा होने कि कल्पना की हो रही है। इसमें सिर–उपमेय है एवं लाल रंग का घड़ा–उपमान है। उपमेय में उपमान के होने कि कल्पना कि जा रही है, इसलिए यह उत्प्रेक्षा अलंकार के अंतर्गत आएगा।

उत्प्रेक्षा अलंकार के 3 उदाहरण:

नेत्र मानो कमल हैं।

उत्प्रेक्षा अलंकार के 4 उदाहरण:

सोहत ओढ़े पीत पट, स्याम सलोने गात
मनहुँ नीलमनि सैल पर, आतप परयौ प्रभात।

उत्प्रेक्षा अलंकार के सरल उदाहरण (Easy Examples of Utpreksha Alankar)

आगे Utpreksha Alankar के सरल उदाहरण दिए गए हैं-

उत्प्रेक्षा अलंकार के 5 उदाहरण:

सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की मालबाहर
सोहत मनु पिये, दावानल की ज्वाल।।

उत्प्रेक्षा अलंकार के 6 उदाहरण:

बहुत काली सिल जरा-से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो।

उत्प्रेक्षा अलंकार के 7 उदाहरण:

उस वक्त मारे क्रोध के तनु कांपने उनका लगा।
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।

उत्प्रेक्षा अलंकार के 8 उदाहरण:

कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए।

उत्प्रेक्षा अलंकार के 9 उदाहरण:

मानो माई घनघन अंतर दामिनी।
घन दामिनी दामिनी घन अंतर,
शोभित हरि-ब्रज भामिनी।

उत्प्रेक्षा अलंकार के 10 उदाहरण:

नील परिधान बीच सुकुमारी
खुल रहा था मृदुल अधखुला अंग,
खिला हो ज्यों बिजली का फूल
मेघवन बीच गुलाबी रंग।

उत्प्रेक्षा अलंकार के 11 उदाहरण:

कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर
गए हिमकणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए।

उत्प्रेक्षा अलंकार के 12 उदाहरण:

जान पड़ता है नेत्र देख बड़े
बड़े हीरो में गोल नीलम हैं जड़े।

उत्प्रेक्षा अलंकार के 13 उदाहरण:

पाहून ज्यों आये हों गाँव में शहर के;
मेघ आये बड़े बन ठन के संवर के।

उत्प्रेक्षा अलंकार के 14 उदाहरण:

मुख बाल रवि सम लाल होकर,
ज्वाला-सा बोधित हुआ।


उत्प्रेक्षालंकारः संस्कृत (Utpreksha Alankar in Sanskrit)

“सम्भावनमथोपेक्षा प्रकृतस्य समेन यत्” – इस अलंकार में उपमेय में उपमान की संभावना का वर्णन किया जाता है।

उदाहरणस्वरूप :

उदाहरणस्वरूप 1.

उन्मेषं यो मम न सहते जातिवैरी निशाया-
मिन्दोरिन्दीवरदलदशा तस्य सौन्दर्यदर्पः ।
नीतः शान्ति प्रसभमन्या वक्रकान्त्येति हर्षा ।
लग्ना मन्ये ललित तन ते पादयोः पदमलक्ष्मी ।।

उदाहरणस्वरूप 2.

लिम्पतीव तमोऽङगानि वर्पतीवाजनं नमः ।।
असत्पुरुषसेवेव दृष्टिर्विफलतां गता ।।

FAQs

1. उत्प्रेक्षा अलंकार किसे कहते हैं?

जहां पर उपमेय में उपमान की संभावना या कल्पना प्रकट की जाए, वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। उत्प्रेक्षा अलंकार अलंकार में अधिकांश रूप में “जनु, मनु, इव, मानो, मनो, मनहुँ” आदि शब्दों का प्रयोग होता है।

2. उत्प्रेक्षा अलंकार के कितने भेद हैं?

उत्प्रेक्षा अलंकार के हिन्दी व्याकरण में मुख्य रूप से तीन भेद होते हैं- वस्तुप्रेक्षा अलंकार, हेतुप्रेक्षा अलंकार, फलोत्प्रेक्षा अलंकार।

3. उत्प्रेक्षा अलंकार का उदाहरण लिखो।

Utpreksha Alankar का “उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उनका लगा, मानो हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा।” एक मुख्य उदहारण है।