काव्यलिंग अलंकार – Kavyalinga Alankar परिभाषा, भेद और उदाहरण – हिन्दी

Kavyalinga Alankar
Kavyalinga Alankar

काव्यलिंग अलंकार

परिभाषा: हेतु का वाक्यार्थ अथवा पदार्थ रूप में कथन करना ही काव्यलिङ्गालङ्कार है। अर्थात जहाँ पर किसी युक्ति से समर्थित की गयी बात को काव्यलिंग अलंकार कहते हैं अथार्त जहाँ पर किसी बात के समर्थन में कोई -न -कोई युक्ति या कारण जरुर दिया जाता है।

यह अलंकार, हिन्दी व्याकरण(Hindi Grammar) के Alankar के भेदों में से एक हैं।

काव्यलिंग अलंकार के उदाहरण

उदाहरण 1.

कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।
उहि खाय बौरात नर, इहि पाए बौराए।।

काव्यलिङ्गालङ्कारः, संस्कृत

काव्यलिङ्गहेतोर्वाक्यपदार्थता‘ – हेतु का वाक्यार्थ अथवा पदार्थ रूप में कथन करना ही काव्यलिङ्गालङ्कार है।

उदाहरणस्वरूपः

उदाहरण 2.

वपुः प्रादुर्भावादनुमितमिदं जन्मनि पुरा
परारे! न प्रायः क्वचिदपि भवन्तं प्रणतवान् ।
नमन्मुक्तः सम्प्रत्यहमतनुरग्रेऽप्यनतिभाक्
महेश! क्षन्तव्यं तदिदमपराधद्वयमपि ।।

स्पष्टीकरण– यहाँ ‘पुरा जन्मनि भवन्तं न प्रणतवान्’ और ‘अग्रेऽप्यनतिभाक्’ इन वाक्यों का अर्थ अपराधद्वय का हेतु है।

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